Thursday, August 28, 2008

हलवा-प्रेमी राजा

उसने राजा के ऊपर कभी एहसान किया था. राजे-महाराजे होते ही ऐसे थे कि उनके ऊपर कोई न कोई एहसान कर गुजरता था. राजाओं की बेचारगी के किस्सों से इतिहास भरा है. सूर्यवंशी दशरथ जी भी कभी इतनी बेचारगी के दौर से गुजरे कि कैकेयी जी जैसों के एहसान तले दबे. नतीजा हम सभी जानते हैं.

मजे की बात ये कि एहसान से दबे राजा-महाराजा वादा कर डालते थे; "हम तुम्हें एक वचन देते हैं. अभी तो अपनी तिजोरी में रख लो. जब इच्छा हो, भंजा लेना." दशरथ जी से प्रभावित इस राजा ने भी इस आदमी को वचन की हुंडी थमा दिया था. एक दिन इस आदमी ने अपनी तिजोरी में रखे राजा के वचन को निकाला. उसे धोया-पोंछा और उसे लेकर राजा जी के पास पहुँचा. बोला; "वो आपने मुझे जो वचन दिया था, आज मैं उसे भजाने आया हूँ."

राजा जी के पास कोई चारा नहीं था. एक बार तो उन्होंने सोचा कि वचन की इस हुंडी को एक कटु-वचन कहकर बाऊंस करवा दें. लेकिन इस बात की चिंता थी कि अगर ऐसा हुआ तो ये आदमी उन्हें बदनाम कर सकता था. हल्ला मच देगा कि राजा जी के वचन की हुंडी तो बाऊंस हो गयी. एक प्रेस कांफ्रेंस ही तो करना था. राजा की इज्जत धूल में मिल जाती. टीवी न्यूज चैनल वाले चटखारे लेकर राजा की ऐसी-तैसी करने में देर नहीं लगाते.

इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर राजा जी बोले; "अच्छा मांगो. क्या चाहिए तुम्हें?"

वो बोला; "मैं कुछ दिनों के लिए राजा बनना चाहता हूँ. देखना चाहता हूँ कि क्या-क्या मज़ा लूटा जा सकता है."

राजा जी बोले; "ठीक है. तुम बन जाओ राजा." ये कहते हुए राजा जी ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया.

इस आदमी ने कंधे पर लटक रही अपनी झोली को महामंत्री के हवाले किया और राजा के सिंहासन पर पसर गया. महामंत्री को हिदायत दी कि उसकी झोली को बहुत संभालकर रखा जाय. आख़िर अब वो एक राजा की झोली थी. बड़ी कीमती.

जिस दिन राज सिंहासन पर पसरा, उसी दिन से मज़ा लूटना शुरू कर दिया. दरबारियों को बुलावा भेजा. जब सारे दरबारी हाज़िर हुए तो उसने आदेश दिया; "सबके लिए सोने की कटोरी में हलवा पेश किया जाय."

हंसी-मज़ाक करते सबने हलवा खाया. दरबारियों को भी खूब मज़ा मिल रहा था. राजा और उसके दरबारियों की शाम हलवामयी होने लगी.

सुबह-शाम हलवे में डूबा ये राजा मस्त था. एक दिन मंत्री ने आकर कहा; "महाराज, पड़ोस के राजा ने हमारे राज्य पर चढ़ाई कर दी है." राजाओं को और काम ही क्या था? शिकार करने से बोर हुए तो पड़ोस के राज्य पर चढ़ाई कर दो.

मंत्री की बात सुनकर राजा बोला; "चढ़ाई कर दी? अच्छा कोई बात नहीं. दरबारियों को बुलाओ."

सारे दरबारी आ पहुंचे. सबके आने के बाद राजा ने फ़िर वही फरमाइस की; "सबके लिए हलवा ले आओ." हलवा खाकर सारे दरबारी खुश. दरबार खारिज.

दूसरे दिन मंत्री फिर दौड़ते हुए आया. बोला; "महाराज पड़ोस के राज्य का राजा तो हमारे नगर में प्रवेश कर चुका है."

राजा ने फिर दरबारियों को बुलाया. फिर वही हलवे की फरमाइस. फिर वही हलवा भक्षण कार्यक्रम और फिर से दरबार खारिज. ऐसे ही एक दिन और बीता.

तीसरे दिन मंत्री फिर दौड़ता हुआ आया. बोला; "महाराज, पड़ोस का राजा तो आपके महल में प्रवेश कर चुका है."

मंत्री की बात सुनकर उसने बिना किसी चिंता के कहा; "महल में प्रवेश कर चुका है? अच्छा, एक काम करो. मेरी झोली ले आओ. वही झोली जो मैंने तुम्हें रखने के लिए दी थी."

झोली को हाज़िर किया गया. उसने अपनी झोली कंधे पर टांगी और वहां से चलने लगा. मंत्री ने कहा; "महाराज कहाँ जा रहे हैं? इस समय सिंहासन छोड़कर जाना उचित नहीं. "

वो बोला; "भइया, मैं तो हलवा खाने आया था. मैंने पेट भरकर अपनी साध पूरी कर ली. अब तुम जानो और तुम्हारे राजा. मैं तो चला." ये कहते हुए वो आदमी निकल लिया.

इस हलवा-प्रेमी राजा का 'लेटेस्ट एडिशन' इस समय हमारे ऊपर शासन तो नहीं कर रहा?

28 comments:

  1. बड़ा चालु आदमी था भाई ! उसे तो नेता होना चाहिए... वैसे नेता ही तो था... हलवा-प्रिय नेता.

    ReplyDelete
  2. सही नीति-शिक्षा दे गया झोलाधारी!

    ReplyDelete
  3. सबके लिए हलवा ले आओ...अनूप जी को और ज्ञानदत्त जी को डबल प्लेट दो..पंगेबाज को बड़े कटोरे में लाओ...और हम तो खा ही रहे है..कुछ पैक दो..टिप्पणी करके चलते हैं..बाकि अनुज शिव जानें....हमें क्या!!!


    जबरदस्त कटाक्ष..महारथी हो लिए हो!! सच में. हमें भी सिखाओ कुछ गुर. :)

    ReplyDelete
  4. shayad nahi bhaiya, sach me aisa hi hai..

    ReplyDelete
  5. ये जो चढ़ाई कर के आ गया है यह भी हलवा ही तो नहीं मांग रहा है?

    ReplyDelete
  6. यथा राजा तथा प्रजा, हलवा प्रेमी राजा, हलवा प्रेमी प्रजा - इसे कहते हैं राम मिलाये जोड़ी

    ReplyDelete
  7. अब गलती तो उस पहले राजा और उसके दरबारियों की भी है, जो ऐसे हलवा-प्रेमी को राजा बना दिया; ...और जनता तो ससुरी पागल है ही, कहती है कि कोई भी राजा हो, हमें क्या नुकसान है। ऐसे में राज्य बिल्लाएगा नहीं तो क्या करेगा...?

    करारा व्यंग है... सोचने वाला।

    ReplyDelete
  8. हमारे वाला तो दिहाडी मजदूर है सोनिया अम्मा का देखा नही चीन से बुलावा तक नही आया .वो भी जानते है कि भारत का राष्ट्रपतॊ और प्रधानमंत्री दोनो दिहाडी मजदूर है ,कमाल ह आपको अणी तक नही पता जी :)

    ReplyDelete
  9. halwa khane ke bad ye bhi jhola utha ke chal dega kahin padhane

    ReplyDelete
  10. आज के कठोर यथार्थ पर उतना ही कठोर कटाक्ष; और वो भी इतने सहज व हलके-फुलके अंदाज़ में।
    बहुत, बहुत, बहुत ही ख़ूब।

    ReplyDelete
  11. वाह! अद्भूत व्यंग्य. झारखण्ड हो या दिल्ली....

    ReplyDelete
  12. अद्भुत व्यंग है.
    दिखाए दे रहा है कि इस हलवा खाने वाले राजा का लेटेस्ट एडिशन ही राज कर रहा है.
    अगर एक कटोरी हलवा खिलाओ तो दो टिप्पणी कर दूँ...:-)

    ReplyDelete
  13. गद्दी मिली ..खुश हुआ
    गद्दी नहीं मिली हलुआ मिला..खुश हुआ
    हलुआ नहीं मिला हलुये की गंध मिली ..खुश हुआ
    गंध नहीं मिली आगे मिलेगी कि उत्कंठा में ..खुश हुआ

    अब बच्चों को पढ़वाईये ..ह..लु ..आ
    एक होती थी मीठी मीठी सी ..बच्चे आँख फाड़े ..अच्छा ! मीठी माने क्या ?

    ये हुई उपकथा ..लेकिन मेरी कटोरी वाला हलुआ कौन ले उड़ा भाई

    ReplyDelete
  14. जियो बचवा जियो...क्या करार व्यंग्य लिखा है.इसे कहते हैं विशुद्ध व्यंग्य.एकदम सोलहो आने सच्ची बात कही..कहीं कोई शायद की गुंजाईश नही.हलवा खिला खिला कर वर्तमान दुर्दशा की गाथा सुना दी.

    ReplyDelete
  15. Bahut achcha Aur tikha vyang.Aaj ki shasan vyvstha par

    ReplyDelete
  16. बंधू...अब आप से का छुपायें? बुद्धि में हम बचपन से ही कृपन रहे...आप की पोस्ट से ये तो समझा की इंसान को चतुर होना चाहिए...जहाँ जब मिले अवसर का लाभ उठाना चाहिए...और हर किसी के फटे में टांग नहीं अडानी चाहिए...अब वो कोई राजा तो था नहीं जो लडाई की योजना बनाता...हलवा खाने वाला था खा कर चलता बना...अब ये बताईये की ये जो सब टिप्पणी वाले कह रहे हैं आप कटाक्ष किए हैं, वो किस पे किए हैं? साथ ये भी कह रहे हैं की खूब करारा व्यंग किए हैं, तो वो भी किसके पे किए हैं? जैसा की हम कह चुके हैं की बुद्धि में हम कृपन हूँ इसलिए इन प्रश्नों के उत्तर ना मिलने तक हम आप की कथा को कथा ही मान कर चलते रहेंगे...व्यंग फयंग और कटाक्ष-वटाक्ष की श्रेणी में नहीं ना डालेंगे...कहिये का कहते हैं?
    नीरज

    ReplyDelete
  17. .

    ऎ शिव भाई,
    ऊ जूठी कटोरियाँ कहाँ धरी भयी हैं ?
    इन टिप्पणीबाज़ों को उलझा रहने दो,
    लाओ हम जल्दी से माँज दें ।
    जूठी कटोरियों पर मक्खियाँ भिनक रही हैं ।

    ReplyDelete
  18. चलो खूब हलुवा खाकर गुरू वो तो मस्त हो गए और राजा का राज्य पस्त हो गया। जब ही कहा है जिसका काम उसी को साझे वरना....।

    ReplyDelete
  19. आपके इस व्‍यंग्‍यलेख ने मुझे भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र के कालजयी प्रहसन 'अंधेर नगरी' की याद दिला दी।

    ReplyDelete
  20. वाह वाह...जय हो ऐसे हलवा प्रेमी राजा की!आज भी यही हो रहा है बस फर्क इतना है की हलवा जनता की रसोई से राज महल में जा रहा है!करारा व्यंग है...

    ReplyDelete
  21. .

    বাট পাঠালেন না, শীৱ দা ?

    এঈ রক্কম একটা আর টীপ নাও আপনী |

    আবার বেশ খূশী তো ?

    ReplyDelete
  22. ..फिर आगे क्या हुआ ?
    इत्ता सोच कर ही
    चिँता गहरा रही है !
    :-(
    - लावण्या

    ReplyDelete
  23. हलवा खाउ राजा शायद अब भी हलवा खा रहा है....देखते नहीं ...टाटा चल पडा है सिंगूर से लेकिन अमर राम क्या कह रहे थे.....जाओ तुम्हे किसने रोका है...वो क्या जाने टाटा के चले जाने से कितने का नुकसान हो रहा है...हलवा तो वो अब भी खा रहे हैं...बदल बदल कर ।
    अच्छी पोस्ट।

    ReplyDelete
  24. असरदार का विलोम क्या सरदार होता हैं? और साम्प्रदायिक शक्तियों से तो राज्य फिर भी बचा ही लिया? क्या बताएं,इतनें दिनों से कह रहा हूँ कि इमरजेंसी लगाएं। इमरजेंसी होती तो किस्सा कुर्सी वाला हस्र होता।

    ReplyDelete
  25. अफ़सोस उसी एडीशन के हाथों में हमारे शासन की बागडोर दुबारा चली गई है.

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय