कॉफी भी गजब चीज है. किसी को पिला दो और कुछ भी पूछ लो. एक वो जमाना था जब लोग मदिरा का सहारा लेते थे, कुछ उगलवाने के लिए. लेकिन ये तब की बात है जब देश में बरिस्ता, कैफे कॉफी डे, कॉफी विद कुश वगैरह का मौसम नहीं आया था. उनदिनों साकी, मैजेस्टिक, सागर टाइप रेस्टोरेंट एंड बार हुआ करते थे जहाँ किसी को भी बिठाकर दो पैग पिलाकर सामने वाला कुछ भी उगलवा लेता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब लोग कॉफी पीकर सबकुछ उगल देते हैं.
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि करीब दस दिन पहले कुश ने कॉफी पिलाकर मुझसे बहुत कुछ पूछ लिया. उनका एक सवाल था; "क्या ये सच है की बाल किशन जी जब भी आपके पास आते है.. आपको कोई नया टॉपिक मिल जाता है?"
कुश भी आख़िर है तो आईडिया सम्राट. जान-बूझकर ये सवाल उस समय दागा जब तक हम कॉफी के नशे में टुन्न हो चुके थे. हमने भी सच-सच बता दिया. हमने कहा; "नहीं ये सच नहीं है. सच तो ये है कि जब भी मेरे पास कोई टॉपिक नहीं होता तो मैं उन्हें अपने ऑफिस बुला लेता हूँ."
अब इतिहास गवाह है कि सच बोलने से हमेशा कुछ न कुछ लफड़ा खड़ा हुआ है. झूठ बोलने से अक्सर लफड़े बैठ जाते हैं. सच अगर नहीं बोला जाता तो इतिहास बनता ही नहीं क्योंकि लफड़े नहीं होते.
मेरे सच ने इतिहास के दो पन्ने रंग डाले. सच बोलकर मैं फंस लिया. वैसे इस बात से संतुष्ट हूँ कि कॉफी के नशे की वजह से ही सही, अपनी ब्लागिंग के बारे में सच बोलने का मौका तो मिला.
असल में हुआ ऐसा कि पिछले तीन-चार दिनों से कुछ नहीं लिख सका. कुछ तो व्यक्तिगत समस्या की वजह से और कुछ उस समस्या से पैदा होनेवाले दुःख की वजह से. आदमी जब दुखी हो टॉपिक वैसे भी नहीं सूझते. अब मैंने अपने ब्लॉगर धर्म का पालन करते हुए बालकिशन को फ़ोन किया.
मैं चाहता था कि मेरे ऑफिस आयें. लेकिन मेरी बात सुनकर ही बिफर पड़े. बोले; "मैं नहीं आऊंगा तुम्हारे ऑफिस. मुझे मालूम है तुम मुझे क्यों ऑफिस बुला रहे हो. तुम मुझे फ़ोन करके ऑफिस इसलिए बुलाते रहे कि तुम्हें नए-नए टॉपिक मिलें! एक ब्लॉगर दोस्त के साथ इतना बड़ा धोखा किया? और ये बात भी तो इसलिए पता चली कि तुम कॉफी के नशे में थे. नहीं तो पता ही नहीं चलती और मैं बेवकूफों की तरह तुम्हें तुम्हारे ऑफिस जाकर टॉपिक प्रदान करता रहता."
लीजिये, सच बोलने से एक ब्लॉगर कम दोस्त ज्यादा तो नाराज हो लिया.
मैंने फिर भी उनसे कहा; "अच्छा कोई बात नहीं. अगर ख़ुद नहीं आते तो थोडी देर फ़ोन पर बात तो कर सकते हो."
मेरी बात सुनकर बोले; "अरे सीधा-सीधा बोलो न कि टॉपिक के लिए आईडिया चाहिए. ये फ़ोन पर बात करने का बहाना बनाने की क्या ज़रूरत है?"
मैंने कहा; "चलो, कोई बात नहीं. एक आईडिया ही दे दो. किस टॉपिक पर कीबोर्ड खीप करूं?"
मेरी बात सुनकर बोले; "किसी विदेशी कवि की कविता ठेल दो. भावानुवाद में मेरा नाम दे सकते हो."
मैंने कहा; "भावानुवाद में अगर तुम्हारा ही नाम देना है तो मैं ख़ुद का नाम क्यों न दूँ?"
मेरी बात सुनकर इत्मीनान से बोले; "बात समझा करो. आजतक तुमने किसी विदेशी कवि या कवयित्री की कविता अपने ब्लॉग पर दी है?"
उनकी बात सुनकर मुझे अपनी सीमाओं का ज्ञान हुआ. देसी कवि और शायर तक तो ठीक लेकिन विदेशी कवि और कवयित्रियों की कविता मैंने कभी नहीं दी अपने ब्लॉग पर. मैंने उनसे कहा; "फिर क्या करें?"
वे बोले; "बस वही करो, जो मैं बता रहा हूँ. एक विदेशी कवि की कविता छाप डालो. कविता के ऊपर जो फोटो लगानी हो, उसे गूगल दबा के सर्च कर लो. या फिर ऐसा करो न. अभी तो दस दिन पहले खड़गपुर गए थे. पूरे दो घन्टे का रास्ता है. उस यात्रा के बारे में लिख डालो. और फिर, सुना है तुम कॉलेज में भी पढ़े हो. वहां का ही कोई संस्मरण ठेल दो. देख लो. नहीं तो मुझे बताना, मेरे पास सूडान की महान कवयित्री सियामा आली की एक कविता है. मैंने परसों ही उसका अनुवाद किया है. दे दूँगा तुम्हें वो कविता. तीन-चार दिन से तुम्हारे ऊपर कोई एहसान नहीं किया सो वो भी हो जायेगा."
कविता देने के उनके प्रपोजल से मैं डर गया. मैंने अपने डर का खुलासा करते हुए उनसे कहा; " नहीं भइया, कविता वाली बात मुझे कम जमी. देखो न. सुदर्शन की लिखी हुई एक कविता मैंने छाप दी थी. लोग आए, कविता पढ़ी और टिप्पणियां लिखकर मेरा बैंड बजाते हुए निकल लिए. कविता के बारे में केवल दो-तीन लोग ही कुछ बोले."
मेरी बात सुनकर बोले; "ऐसा होना ही था. कविता छाप रहे हो, वो भी किसी कवि की नहीं है. एक आदमी की है. ऐसे में तुम्हारा बैंड बजना ही था. मुझे देखो, मैंने आजतक अपने ब्लॉग पर या तो अपनी लिखी हुई कविता पब्लिश की है या फिर विदेशी कवियों की."
मैंने कहा; " अपनी लिखी हुई या विदेशी कवि कि कविता छपने से क्या होता है?"
बोले; "ब्लॉगर बंधु मुझे खुलकर गाली नहीं दे सकते. और विदेशी कवि तो वैसे ही महान होते हैं. पूज्यनीय होते हैं.उनकी ऐसी-तैसी करने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इसलिए मैं कह रहा हूँ. विदेशी कवि की कविता ठेलो और मौज में रहो."
उनकी बात सुनकर मैं सोच रहा था कि उनका दिया हुआ आईडिया अच्छा है. मैं उनसे कविता उधार लेने के बारे में फ़ैसला करने ही वाला था कि लालमुकुंद जी आ गए. उनके साथ बातें हुईं. बता रहे थे दिल्ली गए थे. बहुत सारी बातें हुईं लालमुकुंद जी के साथ.
अगली पोस्ट में उनके साथ हुई बातों का जिक्र करूंगा.
पुनश्च:
कॉफी विद कुश में जब गया था तो वहाँ कुश ने एक गिफ्ट हैम्पर दिया था. कहा था घर जाकर खोलने के लिए और अपने ब्लॉग पर बताने के लिए कि उस गिफ्ट हैम्पर में क्या था. ब्लॉगर बंधुओं को बताते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि गिफ्ट के रूप में मुझे कुश की लिखी गई एक किताब मिली. नाम है "ब्लॉग लिखने के ऊपर १०५१ आईडिया". नीचे लिखा था; "आईडियाहीन लोगों के लिए."
Tuesday, September 2, 2008
ब्लॉग पोस्ट का टॉपिक, बालकिशन और विदेशी कवि
@mishrashiv I'm reading: ब्लॉग पोस्ट का टॉपिक, बालकिशन और विदेशी कविTweet this (ट्वीट करें)!
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अब तो तुम मुझे कोई रोयल्टी-सोयल्ती देने की व्यवस्था करो भाई.
ReplyDeleteबहुत इस्तेमाल कर रहे हो मेरे नाम का, मेरे आइडियास का.
सियामा तो अब.... मेरा मतलब है कि सियामा की कविता तो अब तुम्हारी हो गई है.
सो जब चाहे जब ठेल सकते हो.
" कविता छाप रहे हो, वो भी किसी कवि की नहीं है. एक आदमी की है. "
ReplyDeleteआदमी की तुलना कवि से कर रहे हैं ... बाअदब बामुलाहिज़ा होशियार !
सही है ये किताब कुश मेरे यहा से उठा ले गये थे,अब तुम्हे ठेल दी है .
ReplyDeleteमै ज्ञान दादा के यहा से उठा लाया था वे फ़ुरसतिया मिलन समारोह मे कानपुर से उठा लाये थे.जहा ये प्रमोद भुल गये थे.
अब कविता झेलिये
"कुंद हो चुका है दिल
मंद हो चुकी बुद्धी
शुद्ध हुई आत्मा हमारी
लिखने से मिली छुट्टी"
कुछ दिनो के लिए किताब उधार दी जाय, बदले में आपकी कविता पर भी टिप्पीया देगें. :)
ReplyDeleteकुश से बात करनी पड़ेगी :) हमारे गिफ्ट हेम्पर में तो सिर्फ़ कुछ रंग बिरंगे कागज से भरे हुए थे :) उस में भी कुछ "कुश आईडिया ""नही थे :)
ReplyDeleteइस किताब पर लेखक का नाम तो पढ़ लो किस का है। मेरी इसी शीर्षक की एक पाण्डुलिपि गायब है।
ReplyDeleteAB AUR KUCH LIKHANE KE LIYE NAHIN BACHA HAI KYA?
ReplyDeleteSAARE VYANGYA BAAN KHATAM HO GAYE HAIN KYA?
SHAYAD ISILIYE YE SADI HUI SI POST THELI HAI AAPNE.
KYON APANE SAATH-SAATH DUSARON KA SAMAY KHARAB KAR RAHEN HAIN.
अच्छा; आइडिया नम्बर ६७७ का प्रयोग किया है। वैसे ३८२ नम्बर आइडिया भी धांसू है!
ReplyDeleteहमारे साथ उल्टा हुआ...इस बार जयपुर प्रवास के दौरान हमने कुश को कॉफी पिला दी...और भाई ने कॉफी से टुन्न हो कर आप के बारे में जो बोला वो हम आप को लिख कर नहीं ना बता सकते कभी जब मिलिएगा तब बताएँगे...आख़िर आप की तारीफ लिखित में कैसे दे दें? कहीं मेरे लिखे को आपने चरित्र प्रमाण पत्र की तरह इस्तेमाल कर लिया तो???...उस दिन कुश जी के मुहं से आप के बारे में जो उदगार सुनने को मिले उससे ये बात पक्की हो गई की इंसान कॉफी पे कर होश खो देता है...देखिये ना कॉफी पिला हम रहे थे और गुणगान वो आप का कर रहे थे...
ReplyDeleteहमें जो गिफ्ट हम्पर में मिला वो हम सार्वजनिक नहीं कर सकते...मजबूरी है...मिलने पर बताएँगे.
नीरज
कविता डालने से पहले पढ़नी पढेगी मिश्रा जी...क्यूंकि कही ग़लत सलत डाल दी तो मुश्किल में फंस जायेगे ...कॉलेज के संस्मरण में गर कुछ ज्यादा ही झूठ लिख गए तो पुराने यार दोस्त पकड़ लेगे.......हाँ यात्रा लिखो चाहे ऑफिस के बाहर पान के गल्ले का किस्सा ................."लिखना " पड़ेगा....
ReplyDeleteहमें कुछ वैसे ही शक हो रहा है.....
लगता है आप ने मिलकर सांठ गाँठ कर ली है की भैय्ये दो दिन बाद मै तुम्हारा नाम डालूँगा .तीन दिन बाद तुम मेरा डाल देना
mai poori videshi naa sahi , videsh me rehne ke kaaran aadhi videshi to hui naa ......aur phir aapke kalkatta ki hi rehne waali hun ,, to taras khaiye, aur kabhi koi videshi ki kavita thelni ho to meri kavitaon ko bhi yaad kar lijiyega
ReplyDeleteअचानक आइडिया का अकाल कैसे आ गया भाई साहब?
ReplyDelete...मेरे खयाल से कुश भाई की कॉफ़ी का सैम्पल तत्काल किसी प्रयोगशाला में जाँच के लिए भेजना चाहिए। मुझे उड़ती खबर मिली है कि एक ऐसी दवा मार्केट में आ गयी है जिसे पिलाकर किसी के दिमाग की सारी आइडियाज़ अपने दिमाग में ट्रान्सफर की जा सकती हैं।
मैने तो पहले विश्वास ही नहीं किया था, लेकिन श्रीमान कुश जी की आइडियाज के निरन्तर चढ़ते भाव को देखने के बाद मेरा शक गहराता जा रहा है।
रिकॉर्ड जब एकाएक छलांग लगाते हैं तो डोपिंग का शक तो होता है भाई...।
वो कुश वाली किताब हमें भी थोड़े दिन के लिए चाहिए जी।
ReplyDeleteकाफ़ी तो हम दिन में ४-५ चढा ही लेते हैं पर कभी कुछ उगला नहीं :-)
ReplyDeleteलगता है अब बालकिशन जी को हमें भी फोन लगाना पड़ेगा... पूरे आईडिया की चलती-फिरती दूकान है !
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ReplyDeleteटिप्पणी मिले
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शिरी बालकीसन जी को,
________________
मारफ़त,
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श्री (?) शिवकुमार मिश्रा
_________________
पता महतो डाकिया से पुछ लेना
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मुकाम नीवास - कलकत्ता
बन्गाल
परमपूज्य बालकिशन जी,
प्रभु के चरणों में सादर दंडवत स्वीकारें
( अब उठें ? )
श्रीमान जी की चर्चा भी इतनी चर्चित हो गयी है, कि मैं आपके
चरणबिवाइयों में हठात यह पत्र प्रेसित करने का साहस कड़ रहा हूँ,
इसे अन्यथा ही लें पर पत्रलेखक को उपकृत करें । अकींचन को पूर्न
बिस्वास है कि आप किसी को निरास नहीं कर पाते । यदी आप
सिवकुँआर जी को उपकृत कर सकते हैं, तो हमको भी करीए ।
हमको भी सिवकुँआर जी का भाईये बूझिये,
दूर का मौसियाउत रिस्तेदारी लगेगा ।
सो हमको भी एगो दुगो आइडीआ दिजीए ।
आप तो अपने खुपड़िया में सहस्त्रों आइडीआ लादे घूमते हैं,
अबहिं काम चलाने भर का देंगे तो भी चलेगा । ऊ तो काफीयो
पीये अऊर एगो किताबो पा गये, हम गड़ीब के पास अकाल पड़ा है,
सो तनि किरपा करीएगा । आप उनको झेलते हैं, इहाँ हम तो रीकुएस्टे कर रह हैं ।
तनि इधरो निगाह करीएगा । हाथी को उबारे हैं त कछूआ काहे नहिं उबारीएगा ?
दया करीये । हमरा असीरबाद है की हमाड़ी कमेन्टिया तोहे लग जाये
आपक खुरसेवक - दास अमर्कुमार
सर जी पोस्ट और टिपणी , सब कुछ मजेदार !
ReplyDeleteपरम आनंद आया ! धन्यवाद !
अरे.. आपके पास कहां से वो किताब पहूंच गई..
ReplyDeleteवो तो मेरे पुज्य पिताजी ने मुझे 18वीं सालगिरह पर मुझे भेंट की थी.. और आशीर्वाद दिया था की जल्दी ही तुम ब्लौगर बनोगे तब ये काम आयेगा..
फिर मुझे ब्लौगर बनने में 7 साल की देरी हो गई.. इस बीच वो किताब गुम हो गई..
अब जल्दी से मेरी अमानत मुझे दे जाईये.. नहीं तो अच्छा ना होगा..
काफी के बहाने ब्लॉग जगत के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लगे। विदेशी कवि वाला आइडिया इतना भी बुरा नहीं। सारी झिझक छोड कर आजमा ही डालिए। मेरी ओर से एक टिप्पणी गारन्टीड।
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