बहुत दिनों बाद सोचा आज कुछ तुकबंदी इकठ्ठा करूं. कोशिश की तो करीब डेढ़ सौ ग्राम तुकबंदी जुट गयी. नतीजा ये दोहे हैं. आप भी झेलने की कोशिश करें.
चिट्ठाकारी वोहि भली, रहती बहस चलाय
बहस चले, हड़कंप हो, सारे जन टिपियाय
बेनामी की खाल से टिप्पणियों में ज़ोर
वाद चले, प्रतिवाद हो, मचे जोर का शोर
चिट्ठों के संसार का है अद्भुत बाज़ार
धूल उड़ाते घूमते सारे चिट्ठाकार
टिप्पणियों से मिल रही हमें प्राण की वायु
गर टिप्पणियां न मिलें, घटती जाए आयु
बातें कर के धर्म की करते बड़ा अधर्म
दें गाली समुदाय को, कुछ चिट्ठों का कर्म
बटला हाउस, जामिया, औ हिंसा का मंत्र
इतनी बातों से चले कुछ चिट्ठों का तंत्र
एग्रीगेटर पर करें अपनी पोस्ट पसंद
ऊपर बस चढ़ते रहें, आए परमानंद
टीवी, चिट्ठा दोनों पे 'इस्टाईल'है एक
लोग हँसें, फब्ती कसें, नहीं इरादे नेक
पत्रकार से पूछते बाकी चिट्ठाकार
"हिन्दू को गाली प्रभो, कैसा अत्याचार?"
त्यागो जो संजीदगी, आए अद्भुत मौज
सारा चिट्ठाजगत ही लगे भंग का हौज
टिप्पणी में इन्वेस्ट का मिलता अच्छा ब्याज
खुजलायें गर पीठ तो, मिटती जाय खाज
कविता, गजल औ हायकू लिख के पोस्ट चढाय
'अद्भुत', 'बढ़िया', 'साधुवाद' और 'बधाई' पाय
नव चिट्ठे जो आ गए, हमें मिले संदेश
चिट्ठों से भर जायेगा, एक दिन भारत देश
गाली, फब्ती से सजे टिप्पणियों का बैंक
मन में गर दुःख आए तो चढ़ जाओ फिर टैंक
भाषा को भी मिल रहा नित्य नया आयाम
हिन्दी में अंग्रेज़ी जोड़ खूब कमाओ नाम
ऐडसेंस का सेंस भी, नहीं समझ कोई पाय
दो रूपये भी न मिलें, कहाँ मिले फिर आय
गुटबाजी की भी चले बढ़िया यहाँ बयार
लेकिन ये तो होना है आख़िर है परिवार
चिट्ठापथ पर चलने का अपना ही आनंद
हम यूँ ही चलते रहें, जैसे देवानंद
पूरे एक साप्ताह बाद आया हू सबसे पहले आपके ही ब्लॉग पर टीपिया रहा हू..
ReplyDeleteडेढ़ सौ ग्राम तुकबंदी में ही डेढ़ मन की बात कह गये ज़ी... बहुत ही बढ़िया
हंसे हुए काफी दिन हो गए थे, मजेदार.... अब रोज चक्कर लगाऊंगा.
ReplyDeleteहा हा हा !!
ReplyDeleteहसीबा लडीबा लिखीबा ब्लागम !!
बहसम और गालीम नामम अनामम !!
टिप्पणी में इन्वेस्ट का अच्छा मिलता ब्याज
ReplyDeleteखुजलायें गर पीठ को मिटती जाय खाज
बेस्ट है यह :) धो डाला मतलब बढ़िया लिखा खूब
कविता, गजल औ हायकू लिख के पोस्ट बनाय
ReplyDelete'अद्भुत', 'बढ़िया', 'साधुवाद' और 'बधाई' पाय
बहुत सुंदर लिखा ! पर मिश्रा जी हमारी भैंस और लट्ठ कहाँ हैं ? :)
खूब धोये... बढ़िया धोये सॉरी दोहे !
ReplyDeleteभाषा को भी मिल रहा नित्य नया आयाम .
ReplyDeleteहिन्दी में अंग्रेज़ी जोड़ खूब कमाओ नाम .
आप गुरु हैं खूब लेग पुलिंग करिए . हम तो कुछ नहीं कह सकते . कहीं फेल कर दिया तो पडे रहेंगे इसी क्लास में .
उफ़ इस डेढ़ सौ ग्राम का वजन तो डेढ़ सौ किलोग्राम से भी ज्यादा है.खतरनाक तुकबंदी है.जबरदस्त ...बहुत बहुत जबरदस्त.बहुत उत्तम.
ReplyDeleteपर भाई, ऐसे चिटठा जगत की पोल खोलोगे चरित्तर दर्शन कराओगे तो हम जैसे बहुत से डर से सटकने भागने की सोचने लगेंगे.ऐसे नाही डराओ.अब अगली खेप तुकबंदी की चिट्ठाजगत के गुणगान पर लिखो.यह हमारा आदेश भी है और अनुरोध भी.इसी बहाने हमारा भय भी भागेगा और तुकबंदी रसास्वादन का आनंद भी मिलेगा.तुम्हारे लिए क्या है.एक पाँच मिनट खर्च करना एक डेढ़सौग्रामी छंद फ़िर तुंरत बन जायेगी.
चिट्ठाकारी वोहि भली, रहती बहस चलाय
ReplyDeleteबहस चले, हड़कंप हो, सारे जन टिपियाय
बेनामी की खाल से टिप्पणियों में ज़ोर
वाद चले, प्रतिवाद हो, मचे जोर का शोर
" ha ha ha ha ha ha ha ha ha humara to hanstey hanstey bura haal ho gya hai, 150 gm mey itna weight hai to 150 kg mey kita hoga, cant imagine....'
regards
बहुत सुंदर मिश्रा जी दो धोये मेरी तरफ़ से भी
ReplyDeleteटिप्पणी से करने लगे ,चिठ्ठाकार परहेज |
अगली रचना पायेगी , अस्पताल की सेज ||
गुरु महाराज जी आप हैं , सबकी खींचो टांग |
व्यंगकार से सब डरें, धरें विचित्र वे स्वांग ||
मेरी नई रचना पढने आपको आमंत्रण है
गाली, फब्ती से सजे टिप्पणियों का बैंक
ReplyDeleteमन में गर दुःख आए तो चढ़ जाओ फिर टैंक
?? :)
हा हा!!!!
'अद्भुत', 'बढ़िया', 'साधुवाद' और 'बधाई'
बातें कर के धर्म की करते बड़ा अधर्म
ReplyDeleteदें गाली समुदाय को, कुछ चिट्ठों का कर्म
बटला हाउस, जामिया, औ हिंसा का मंत्र
इतनी बातों से चले कुछ चिट्ठों का तंत्र
आपके यह दोनों धोये अमर रचना हैं।
वाह वाह करते लय बध पढ़ा है और मजेदार दोहों पर छटांगभर टिप्पणी चढ़ा रहें है. स्वीकारें. बाकी कईयों को लपेटा खूब है :)
ReplyDeleteWah saheb, anand aagaya.
ReplyDeleteजो पाश्चात्य सभ्यता के अनुयाई हैं
ReplyDeleteजिनके धर्म मे पुजती हैं " वर्जिन मेरी "
वो सबसे ज्यादा परेशान नज़र आते हैं
भारतीय सभ्यता पर पाश्चात्य सभ्यता
के दुश प्रभाव से
हिन्दी हैं भारत माँ के माथे की बिंदी
हिंदू को वो समझाते हैं
जिनके याहां बिंदी
लगाना पाप या कुफ्र हैं
दोहो ने धो दिया है मिश्रा जी......
ReplyDeleteआनंद आगया शिव भाई ! तुक्के में सटीक तीर मारे हैं आपने !
ReplyDeleteधुलाई दिवस के दिन अच्छी धुलाई कर दी आपने.....
ReplyDeleteत्यागो जो संजीदगी, आए अद्भुत मौज
ReplyDeleteसारा चिट्ठाजगत ही लगे भंग का हौज
मजा आ गया अग्रज ..... प्रणाम ।
धोये वो सही है जी ...
ReplyDeleteरोये वो सही नहीँ :)
बहुत अच्छी रही !!
इन धोयों की ऐसी मची है धूम
ReplyDeleteआना ही पड़ा हमें सारी दुनिया घूम
मजा आ गया, बेहतरीन , एक से बढ़ कर एक
बातें कर के धर्म की करते बड़ा अधर्म
ReplyDeleteदें गाली समुदाय को, कुछ चिट्ठों का कर्म
आप ने बहुत ही गहरी बाते कह दी है मजाक मजाक मै.
धन्यवाद
बिना रिन के ही काफी अच्छा चमका दिया है, मजा आ गया
ReplyDeleteचिटठाकारी की सारी रखी खोल कर पोल
ReplyDeleteबलिहारी गुरु आपने खूब बजाया ढोल
बढिया
टिप्पणी में इन्वेस्ट का मिलता अच्छा ब्याज
ReplyDeleteखुजलायें गर पीठ तो, मिटती जाय खाज
bahut badhiya tukabandi .
दोहे चौचक गढ़ दिए, शिवकुमार जी भाय।
ReplyDeleteब्लॉग मण्डली दौड़ती,गजब रही टिपिआय॥
गजब रही टिपिआय, पढ़ी जो अपनी करनी।
पीठ रही खुजलाय, रीति विनिमय की भरनी॥
चल सत्यार्थमित्र क्यूँ इतना इसपर मोहे।
शिवकुमार जी पुनः लिखेंगे चौचक दोहे॥
डेढ़ सौ ग्राम के दोहे और इतना धोये है । :)
ReplyDeleteभाई साब क्या धोये हैं अर् र र र र मेरा मतलब दोहे है.
ReplyDeleteबिल्कुल
'अद्भुत' और 'बढ़िया' इसके लिए आपको
'साधुवाद' और 'बधाई'
एकदम से आनंद, परमानन्द और देवानंद की प्राप्ति हो गई है.
जबरदस्त धोया है.. इन दोहे से.
ReplyDeleteअद््भुत..!!
मिश्रा जी समझन लगे ख़ुद को देवानंद
ReplyDeleteधो धो कर दोहे लिखें पायें परमानन्द
पायें परमानन्द, अजब है इनकी माया
लिख देते जो इनकी खोपडिया में आया
ब्लॉग जगत के खोलते गहरे गहरे भेद
जिस थाली में खा रहे उसमें करते छेद
नीरज
बहुत ही बढ़िया तुकबंदी .
ReplyDeleteआपके धोये में ही मेरी टिप्पणी छिपी बैठी थी-
ReplyDelete'अद्भुत', 'बढ़िया', 'साधुवाद' और 'बधाई।
अद्भुतम् अद्भुतम्
ReplyDeleteआनंदम् आनंदम्
धोये तो कई दिन हो गये। अब तो सूख गया होगा? अब तो नई पोस्ट आनी चाहिये! :-)
ReplyDelete--- रीता पाण्डेय