- आसाम में बम फट गया, आप कुछ करते क्यों नहीं?
- और क्या करें, दुःख तो प्रकट कर दिया.
- दुःख प्रकट करके क्या मिलेगा? देश में दुःख तो पहले से ही व्याप्त है.
- वो तो ठीक है लेकिन किसी चीज का स्टॉक बढ़ जाए तो हर्ज क्या है?
- लेकिन दुःख प्रकट करने के अलावा और भी तो कुछ कीजिये.
- करेंगे करेंगे. फिलहाल तो हम श्रीलंका की समस्या सुलझा रहे हैं?
- वो तो देख रहे हैं. लेकिन कभी भारत की समस्याओं के बारे में भी तो सोचिये.
- सोचा तभी तो न्यूक्लीयर डील पास करवा दिया. और क्या चाहिए?
- लेकिन आपकी डील से बाकी की समस्याओं पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा.
- पड़ेगा, पड़ेगा. थोड़ा धीरज धरो.
- वही तो कर रहे हैं. धरने के लिए धीरज ही तो बचा है. आटा, दाल, चावल वगैरह भी तो नहीं बचा है धरने को.
- यही तो कमीं है तुम्हारे अन्दर. आटा,दाल से कभी ऊपर उठोगे कि नहीं?
- हम तो पृथ्वी से भी उठते जा रहे हैं. आटा, दाल की बात जाने दीजिये.
- उठना ही चाहिए.
- मुंबई में इतना कुछ हुआ जा रहा है. कुछ सोचिये.
- केवल सोचेंगे क्यों? हमने अपील की है न. सब ठीक हो जायेगा.
- लेकिन कुछ प्रशासनिक कार्यवाई भी तो होनी चाहिए.
- गाँधी जी के देश में अपील से सबकुछ निबट जाता है. प्रशासनिक कार्यवाई की क्या ज़रूरत?
- अपील का कोई असर तो हो नहीं रहा है.
- होगा, होगा. धीरज धरो.
- फिर वही धीरज?
- तुम्ही ने तो कहा कि धरने को और कुछ नहीं है.
- और आपने पकड़ लिया?
- हमारी तो पकड़ने की आदत है. हमें तो तिनका, ननका कुछ भी मिले, हम तो पकड़ लेते हैं.
- कोई तिनका मिला हो, तो घुमाईये न.
- तिनका की जाने दो, हमारा ट्रबुल शूटर अभी भी हमारे साथ है.
- कौन?
- इतना भी नहीं समझते? अभी तो पूरे भारत में एक ही है.
- अच्छा, उनकी बात कर रहे हैं.
- और क्या समझे तुम?
- हमने सोचा बुश की बात कर रहे हैं.
- रह गए तुम भी बकलोल. उनके आगे बुश की क्या औकात?
- सही कह रहे हैं. बुश की औकात कुछ नहीं. होती तो वही न्यूक्लीयर डील न पास कर दिए होते?
- हाँ, सही समझे.
- लेकिन आपके ट्रबुल शूटर ने न जाने कहाँ-कहाँ से किसका-किसका कांट्रेक्ट ले रखा है.
- काबिल आदमी है.
- और कोई काबिल नहीं है आपकी नज़र में?
- कोई नहीं.
- तब तो अच्छा है, हम रोज सबेरे पूजा के लिए समय बढ़ा दें.
अच्छा; आज सवेरे से अभी रात सवा आठ तक पूजा ही करते रहे? तब तो समाधान निकलेगा, जल्द निकलेगा।
ReplyDeleteप्रार्थना में बहुत शक्ति है।
होगा, होगा. धीरज धरो. :-)
ReplyDeleteसुंदर|
ReplyDeleteसही है जब दुःख प्रकट करने भर से काम चल जाए तो और कुछ करने की क्या जरुरत है ? ठीक ही है पूजा का समय बढाया जाए तो भगवान् जी को दोष देने का बहाना तो रहेगा !
ReplyDeleteभाई साहब, सच बताऊँ तो मुझे इस ट्रबुल शूटर महोदय का पता नहीं चल सका। दो बार पढ़े, तब भी नहीं। अब चलते हैं पूजा करने...। :)
ReplyDeleteमन रे तू काहे न धीर धरे...
ReplyDeleteसत्यवचन महाराज,विश्वशांति अकेले बुश के बूते की नहीं है,
ReplyDeleteपूजा से कार्यसिद्ध होने में संशय न रहे,
इसीलिये पूरा देश ही ट्रबुलशूटिंग समाधि में लीन है ।
यदि नहीं है, तब तो मैं भी कुछ न कर पाऊँगा !
सुना है कोई कमेटी समेटी बनाने की सोच रहै है, अभी ऎसा करो इन्हे वोट देदो फ़िर कमेटी के बारे शान्ति से बेठ कर सोचेगे......
ReplyDelete"और कोई काबिल नहीं है आपकी नज़र में?
ReplyDeleteकोई नहीं."
आप की इन पंक्तियों से और कोई हुआ हो ना हुआ हो हम बहुत आहत हुए हैं...इतने वर्षों के परिचय के बाद भी आप हमें नहीं जान पाये...हमारी काबलियत को नहीं पहचान पाए...खेद है...क्या कहें आप की अल्प बुद्धि को...किसी ने ठीक ही कहा है...मूर्ख मित्र से समझदार दुश्मन अच्छा होता है...तलाशते हैं अब किसी दुश्मन को...मित्र तो आप मिल ही गए हैं.
नीरज
आहत तो नीरज भाई के साथ साथ मैं भी हूँ मगर कुछ कहूँगा नहीं...बस, धीरज धरे हूँ. :)
ReplyDeleteधीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये.......
बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बात है भइया
ReplyDeleteवीनस केसरी
गाँधी जी के देश में अपील से सबकुछ निबट जाता है. प्रशासनिक कार्यवाई की क्या ज़रूरत?
ReplyDeleteekdam sahi kaha......
lajawaab vyangya hai.