हमारे राज्य पश्चिम बंगाल में एक रिवाज है जो प्रदेश की राजनीति को पिछले कई वर्षों से प्रभावित करता आ रहा है. आये दिन पूरा राज्य ही बंद और हड़ताल ग्रस्त हुआ रहता है. राजनीतिक दल जनता को डरा धमका कर बंद करने का पुण्य कार्य करते रहते हैं. दिन में पुण्य कार्य करके बंद करवा देते हैं और शाम को एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर नेता जी लोग जनता को धन्यवाद दे डालते हैं.
डरने के लिए नहीं. बंद को सफल बनाने के लिए.
मेरी हालत कल से ही कुछ ऐसी ही हो गई है. ऐसा क्यों है? इसे जानने के लिए आपको ये मेल पढ़ना पड़ेगा.
Manish Tripathi to me
show details 11:55 AM (6 hours ago) Reply
आदरणीय शिव जी,
दैनिक जागरण होली विशेषांक की प्रति आपको भेज रहा हूं। आपके योगदान के बिना इसकी परिकल्पना असंभव थी, आशा है भविष्य में भी आपका स्नेह एवं आशीर्वाद प्राप्त होता रहेगा।
होली की शुभकामनाओं सहित
सादर
मनीष त्रिपाठी
दैनिक जागरण
कानपुर
यह मेल मुझे दैनिक जागरण के फीचर डिपार्टमेंट के श्री मनीष त्रिपाठी ने भेजा है. मनीष त्रिपाठी जी दैनिक जागरण, कानपुर में हैं.
इन्होंने बिना अनुमति लिए मेरे लेख अपने अखबार के होली विशेषांक पर छाप दिए. मुझे शाम को पता चला कि ऐसा कुछ हुआ है. जब मैंने इनसे फ़ोन पर बात की तो इन्होंने मुझे बताया कि ये मेरे छोटे भाई जैसे हैं. ऐसे में अनुमति लेना इन्हें ज़रूरी नहीं लगा.
समझ में नहीं आता कि उत्तर प्रदेश वाले भाई और बहनों से इतने प्रभावित क्यों रहते हैं?
और यह है मनीष जी को लिखा गया मेरा मेल...
Shiv Mishra to Manish
show details 12:48 PM (7 hours ago) Reply
मनीष जी,
बहुत दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि आपने और आपके अखबार ने जो भी किया वह मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. बिना किसी अनुमति के आपलोगों ने मेरे लेख छाप दिए. आपने फ़ोन पर मुझसे कहा था कि आप मेरी अनुमति लेकर ही कुछ छापेंगे और आपने ऐसा नहीं किया. मुझे यह तक पता नहीं चला कि मेरे कौन से लेख छपे हैं. मेरे लेख छपे हैं, इसकी जानकारी मुझे किसी और से मिलती है. लेख में क्या-क्या बदलाव किये गए, मुझे वह भी नहीं पता.
पिछले वर्ष भी बिना किसी पूर्व सूचना के आपने मेरे लेख से कई अंश निकाल दिए. आपलोग शायद यह सोचकर काम करते हैं कि एक बार छप गया तो कोई क्या कर लेगा? लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि अब से ऐसा बिकुल नहीं होगा. भविष्य में मेरे लेख किसी अखबार में नहीं छपेंगे.
मुझे समय नहीं मिला. समय मिलते ही मैं इस घटना पर एक पोस्ट लिखूंगा. आप देख लीजियेगा.
शिव
दैनिक जागरण देश के कोने-कोने में लोकतंत्र की रक्षा करने में जुटा हुआ है. लेकिन इसे चलाने वाले कैसे लोग हैं? ये लोग शायद यह सोचकर काम करते हैं कि; "एक बार छाप दो, छप गया तो स्साला कर भी क्या सकता है? दो-चार मिनट भुर्कुसायेगा. उसके बाद शांत हो जायेगा."
या फिर शायद यह सोचते होंगे कि; "हम मीडिया वाले हैं. देश हमीं से चल रहा है. लोकतंत्र की रक्षा के बहाने हम कुछ भी कर सकते हैं." या फिर यह कि एक ब्लॉग लिखने वाले की औकात ही क्या है? इसके लेख हम छाप रहे हैं ऐसे में इसे तो मेरा एहसान मानना चाहिए.
अखबार वाले बड़े पावरफुल लोग होते हैं. सुनते हैं इनसे बड़े-बड़े लोग डरते हैं. ये लोग सरकार से उठक-बैठक करवा देते हैं. मैं मानता हूँ कि सर्वशक्ति संपन्न लोग शक्ति के नशे में में छोटी-छोटी औपचारिकताएं भूल जाते हैं. लेकिन क्या नशा कुछ ज्यादा नहीं है?
कुछ महीने पहले इंदौर के एक अखबार ने भी बिना किसी पूर्व अनुमति के मेरे लेख छाप दिए थे.
मेल पढ़कर आपको लगेगा कि इन्होंने जिस तथाकथित सहयोग के लिए मुझे धन्यवाद दिया है, वही सहयोग लेने शायद फिर कभी आयें. लेकिन मनीष जी और तमाम अखबार वालों से मुझे यही कहना है कि मेरे ब्लॉग के लेख किसी भी अखबार में छपने के लिए नहीं हैं.
अगर हमारी स्मरण शक्ति ठीक है तो ऐसा हादसा आपके लेखों के साथ पहले भी हो चुका है जब आपसे पूछे बिना आपके लेख एक अखबार वाले ने छाप दिए थे....बहुत किस्मत वाले हैं आप बंधू...हमारे लेख तो अखबार वाले खुद उनके हाथ में देने पर भी वापस लौटा देते हैं और आप के लेख चुरा कर प्रकाशित करते हैं....क्यूँ की आप के लेखन में जान है...
ReplyDeleteआप को होली की शुभ कामनाएं ...
नीरज
नीरज जी सही कहते हैं कि आपके लेखन की चोरी का कारण है कि आपके लेखन में जान है।
ReplyDeleteथोड़ी जान कम डालिये। हमारे जैसा अण्ट्शण्टात्मक लिखें। इतनी परसाइयत ठीक नहीं।
दैनिक जागरण की इमेज मेरे दिमाग में गिर गई। आगे कभी नहीं खरीदूँगा!
अखबार वाले बिना दाम ही मजा लेना चाहते हैं। कम से कम पूछ तो लें।
ReplyDeleteसीधे कॉपीराइट के उल्लंघन का मामला है। आप चाहें तो कार्यवाही कर सकते हैं। ज्ञानदत्त जी के जागरण न खरीदने से उन की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा।
इस प्रतिक्रिया देने में मुझे थोडा़ असंमझस हो रहा है.... जी करता है आपको बधाई दूं और गुस्सा भी आता है कि कोई एसा कैसे कर सकता है..
ReplyDeleteकुछ random thoughts...
१. बिना अनुमती आपका लेख छापना सरासर गलत है.. कम से कम फोन या मेल से पुर्व सुचना तो दी ही जा सकती थी.. नैतिक रुप से सरासर गलत है..
२. आपने लिखा.. भले ही आपके ब्लोग पर.. मेहनत से.. पर किसलीये.. ताकी लोग पढे़.. सीधे ब्लोग पर आकर, सब्सक्राइब कर, फिड से, सर्च से....कई तरिके है.. लेकिन वो आपकी सुन्दर लेखनी पढ़्ने से वंचित रह जाते है जो कंपयुटर या इंटरनेट से जुडे़ नहीं है.. अगर अखबार में छप गया तो कई हजार लोग और पढ़ लेगें... ठीक है आपको सुचना नहीं मिली आपसे अनुमति नहीं ली, पर कर तो आपका ही काम रहे हैं..
जागरण हमारी नजर से भी उतर गया.. लेकिन आप गम न करे, बचपन की लाईने हमेशा याद आती है.. "मेरा जो जावे नहीं, जावे सो मेरा नहीं"
जान दो..
जागरण वाले मनबढ़ हो गये हैं। कुछ भी कर सकते हैं। रम्जन जी की दूसरी बात तब गलत हो जाती है जब आपके लिखे में से मनमानी काट-छाँट कर दी जाती है और वह भी बिना बताए। कॉपीराइट का सरासर उल्लंघन है।
ReplyDeleteवैसे भी किसी समाचारपत्र में छप जाने से हम उसकी छवि का हिस्सा बन जाते हैं जो जरूरी नहीं कि हमें सुहाए ही। पता नहीं हम किस पत्र समूह के साथ अपना नाम जोड़ा जाना पसन्द करें। ब्लॉग तो बिल्कुल स्वतंत्र और आत्मनिर्भर माध्यम है। इसकी तुलना अखबार से करना ठीक नहीं।
अखबार में आलेख के प्रकाशन के लिए बहुत बहुत बधाई ... पर ये आपकी अनुमति से होना चाहिए था ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअच्छा शिव जी ये बतलाएं आपको ब्लाग लेखन का कोई मेहनताना मिलता है क्या ? नहीं ना । तो बस छापने दीजिए ससुरे अखबारों को । कम से ये तो हुआ कि अखबार वाले ब्लागर्स के मोहताज हैं अब हम नहीं । बस ये देख लीजिए आपका ही नाम दिया या किसी और का। बाकी मुफ़्त पब्लिसिटी तो मिल ही रही है क्या नुक्सान। शेष आप सोचें। फिर भी हम आपसे सहमत ही हैं कि कम-अज़-कम आपकी अनुमति तो ली ही जानी चाहिए।
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनायें....
ReplyDeleteनीरजजी की बात से सहमति, आप इतना अच्छा लिखते क्यूँ हैं आपकी वजह से अखबार वालों के लिये हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा हि चोखा, कहावत सही यूज करी ना।
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।
ReplyDeleteregards
लेखक अपनी रोज़मर्रा के कार्यों से जूझ रहा है तो कोट कचहरी कहां करेगा। यही परिस्थिता का लाभ उठाकर समाचार पत्र जो भी चाहे छाप देते है, बिना अनुमति के। पत्रकारों से डरते होंगे भ्रष्ट नेता उअर अधिकारी। लेखक क्यों डरे भला।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं।
दैनिक जागरण से ज़्यादा पाठक आपको ब्लॉग पर मिल जाएँगे.. आपको किसी जागरण क़ी आवश्यकता नही.. बल्कि जागरण को आपकी आवश्यकता है.. वकील साहब ने जो कहा है उस पर गौर करे.. दैनिक जागरण ने अपनी बेइज़्ज़ती खराब कर ली.. हम तो पहले ही नही पढ़ते थे पर अब नज़र उठाकर भी नही देखेंगे..
ReplyDeleteइस से बढ़िया तो तहलका वाले है जिन्होने अपनी पत्रिका में अनुराग जी का लेख प्रकाशित किया तो पहले उनसे अनुमति ली.. जागरण वालो को सीखना चाहिए उनसे..
बहरहाल आपको होली क़ी बहुत बहुत शुभकामनाए
आपकी बात सही है, बिना अनुमति लिए कोई अगर लेख को छाप दे तो गुस्सा तो आएगा ही, पर हमारे यहाँ कॉपीराइट कानून इतने ढीले हैं कि ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई रास्ता नज़र ही नहीं आता. मेरा भी मानना है कि मैंने अपने ब्लॉग पर जो भी लिखा है इसलिए लिखा है कि मुझे यही माध्यम पसंद है, अगर अखबार में छपवाने कि किसी कि इच्छा हो तो वह संपादक तो तो भेज ही सकता है. ऐसे में अखबार में छपा देख कर कोई ख़ुशी नहीं होती, ये तो चोरी और सीनाजोरी वाली बात हुयी...पर इस धोखे का कुछ किया भी तो नहीं जा सकता.
ReplyDeleteये लेख उन्होंने आपके ब्लोग से लिया था ?
ReplyDeleteखैर, इसके लिये उन्हें माफी मांगनी चाहिये, और ऐसा भविष्य में न करने का वायदा भी करना चाहिये ।
आपको होली की शुभकामनायें ।
जरा इन साहब का और इन साहब के साहब का ईमेल आईडी यहॉं चस्पा कर दीजिए हम सब ठांस ठांस के इनके इनबाक्स में पत्रकारिता की नेतिकता पर कुछ कुछ भेजेंगे ताकि वे कम से कम माफी तो मांगे...
ReplyDeleteवेसे विरोधाभास ये है कि हमारी व्यक्तिगत राय साभार परंपरा को बढ़ावा देने वाली है।
लोगों के मन में गहरे बसी हुई है..."समरथ को नहीं दोष गोसाईं"..सो लोग इसे बड़े आराम से अपने जीवन में अमली जामा पहनाते रहते हैं...
ReplyDeleteअखबार वालों या प्रिंट मिडिया को लगता है किसी का नाम या लिखा छाप वे उसे कृतार्थ करदेते हैं...तो इतने बड़े उपकार के बाद शिष्टाचार या औपचारिकता निर्वहन की फिक्र ही क्यों की जायेगी...
लेख छपा, यह हर्ष का विषय इसलिए है कि यह कई लोगों तक पहुंचा...पर पाठ सामग्री या लेखक के नाम के साथ छेड़ छड़/फेरबदल निश्चित रूप से निंदनीय है...उचित उत्तर दिया तुमने...
शिव जी आप घर आयी लक्षमी को ठुकरा रहे है। आप एक पत्र सारी जनकारी के साथ जागरण को भेजे और लिखे कि इससे मुझे जो भी मानसिक क्षति हुयी है उसकी पूर्ति की जाये। मै पत्र मिलने के पन्द्रह दिनो तक आपके उत्तर की प्रतीक्षा करुंगा। उसके बाद न्यायाल्य की शरण मे जाऊँगा। रजिस्टर्ड डाक, हो सके तो यूपीएस से इसे भेजे। जागरण की ओर से निश्चित ही जवाब आयेगा। ज्यादातर मामलो मे समबन्धित पत्रकार पर गाज गिरेगी और आपको क्षतिपूर्ति मिलेगी। आमतौर पर कोर्ट से पहले ही मामला सेटल हो जायेगा। अभी आप वकील के चक्कर मे न पडे। यदि जागरण ने अडियल रवैया अपनाया तो फिर कांट्रेक्ट बेसिस पर वकील कर लीजियेगा। पेशी दर पेशी वाला सौदा मत कीजियेगा। मेरा अनुभव है कि आपको काफी बडी रकम मिल जायेगी। इसकी आधी आप बचाकर रखियेगा। जिस स्तर पर आप लिखते है उसमे आगे भी ऐसे मामले हो सकते है। उस समय इस बची हुयी रकम का उपयोग कीजियेगा।
ReplyDeleteइस प्रक्रिया मे कुल खर्च सौ रुपये से ज्यादा का नही है। यह खर्च भी क्षतिपूर्ति के साथ वापस मिल जायेगा।
जागरण को चोर कहना सही नही है। अब अखबार के मालिक तो यह सब नही देखते है। उन्हे तो इस चोरी का पता नही होगा। जब आप सूचित करेंगे तो उन्हे जवाब देना ही होगा। जब पत्रकार पर गाज गिरेगी तो वह आपसे क्षमा मांगेगा। आप इसे अन्देखा करियेगा। अखबार से निकाले जाने के बाद वह जहाँ भी जायेगा इस चोरी के बारे मे बतायेगा। उसकी दहशत औरो को ऐसा काम करने से रोकेगी।
जागरण को बुरा-भला कहने से उन्हे कोई फर्क नही पडेगा। आज ही आदरणीय संजय तिवारी जी का एक लेख विस्फोट मे देखा। उन्होने तिलक होली की आड मे दैनिक भास्कर के प्रति अपनी खुन्नस निकाली है। साफ झलकता है कि पानी बचाने से उनका कोई मतलब नही है। निज दुश्मनी है। पर इससे क्या उस बडे अखबार को फर्क पडेगा। अरे आठ-दस लोगो के पढने से क्या हो जायेगा। सूरज पर थूकने से थूक अपने ऊपर ही गिरती है। अखबारो का नाम छापकर कृष्ण पत्र्कारिता करने का काम संजय जैसो पर छोड दे।
भारतीय कानून आपके साथ है। मेरा दावा है कि नोटिस भेजने के कुछ दिनो बाद ही मामला आपने पक्ष मे निपट जायेगा।
याद रखे नोटिस भेजने के बाद कुछ अनजाने पत्रकार आपसे सौदा करने आयेंगे। आपकी तारीफ करेंगे और चने के पेड मे चढायेंगे। इनकी बातो मे नही आइयेगा। ये दलाल आपको भटका सकते है। सेटलमेंट सीधे अखबार से करियेगा।
बंधू जब मूड इस तरह की बातों से उखडा हो तो एक काम करें...आप पंकज सुबीर जी के ब्लॉग के इस लिंक पर क्लिक करें...
ReplyDeletehttp://subeerin.blogspot.com/2009/03/blog-post_10.html
और दिमाग की खिच खिच दूर करें....
आपको होली की ढेरों रंग बिरंगी शुभ कामनाएं.
नीरज
मैं इस प्रकार कि चोरी का विरोध करती हूँ। आपसे निवेदन भी करती हूँ कि यदि सम्भव तो कुछ कार्यवाही अवश्य कीजिए। हरेक के पास लड़ने की सामर्थ्य नहीं होती और न ह समय ना, ही इच्छा। जो ऐसा कर सकते हैं उन्हें अवश्य करना चाहिए, अन्यथा ऐसा बार बार होगा।
ReplyDeleteयह कहना कि ब्लॉग में कौन से हमें पैसे मिलते हैं, कोई मायने नहीं रखता। यह हम अपनी खुशी से करते हैं, अपने लिए करते हैं।
भारत में अधिकाँश लोग यह जानते हैं कि कोई कुछ नहीं करेगा और व्यक्ति की भद्रता व लड़ाई में न पड़ने की आदत का लाभ उठाते हैं। जानती हूँ कि मैं भी शायद कुछ ना करती, परन्तु यदि आप करेंगे तो बहुत खुशी होगी। खरी खरी जी की बात पर गौर करें।
होली की शुभकामनाओं सहित,
घुघूती बासूती
इसीलिये कहते हैं ज्ञानजी की बात मानो और खराब लिखना शुरू करो! मनीष त्रिपाठी अब जब आपका छोटा भाई समान है तो क्या कहा जाये?
ReplyDeleteकाहे इतना अच्छा लिखते हो कोई चुराने पर मजबुर हो जाए? छमा माँगों और मामला रफा दफा करो. दुनिया यही पतरकार लोग चलाते है.
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं.
कभी सामने मिल जाए तो लेख छपने का महेनताना अगले को ही दे देना...जेब में नहीं जी...गाल पर...
मिले प्यार के बदले आँसू
ReplyDeleteक्यों न मन में टीस उठे
झुका दिया चरणों में तो फिर
कैसे अब यह शीश उठे
नहीं बढ़ा इक हाथ
किसी भूखे ने जब माँगी रोटी
पत्थर मारो कहा किसी ने
तुरत हाथ चालीस उठे
हुए घुटाले राजमहल में
पंक्षी को न खबर हुई
एक चोर रोटी ले भागा
तुरत पालिकाधीश उठे
....
मेरी बजह से आपका त्योहार क्यों खराब हो....लीजिए मैं खुद-ब-खुद हाजिर हूं
bilkul sahi kaha aapne
ReplyDeleteहोली की मुबारकबाद,पिछले कई दिनों से हम एक श्रंखला चला रहे हैं "रंग बरसे आप झूमे " आज उसके समापन अवसर पर हम आपको होली मनाने अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करते हैं .अपनी अपनी डगर । उम्मीद है आप आकर रंगों का एहसास करेंगे और अपने विचारों से हमें अवगत कराएंगे .sarparast.blogspot.com
@ manish (मनीश) -
ReplyDeleteगहने के मखमली डिब्बे में बुलशिट!
होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली - हैप्पी होली !!!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
ऐसे लोगों को अपने यहाँ चिंदी चोर कहते हैं। दैनिक मरण!
ReplyDeleteफिर से ?
ReplyDeleteइ तो साला होना ही था. (साभार: गंगाजल फिल्म)