"बड़ी देर से कोशिश कर रहा हूँ लेकिन गुझिया पर स्माइली नहीं लगा पा रहा हूँ. इब क्या करूं?" फुरसतिया जी ने अपनी समस्या बताते हुए जैसे मदद की गुहार कर डाली.
"गुझिया पर स्माइली! समस्या तो है. इसके लिए तो शायद ई-गुरु से संपर्क करना पड़ेगा. आप चाहें तो मैं अंकित से पूछ कर बताता हूँ"; अजित भाई ने समाधान सुझाया.
"एक बार और कोशिश कर लेते हैं"; यह कहते हुए फुरसतिया जी स्माइली लगाने में लीन हो गए.
स्माइली लगाते-लगाते बोले; "भारत का मानचेस्टर कुली-कबाड़ियों का शहर न होकर हलवाइयों का शहर होता तो स्माइली लगाने में दिक्कत नहीं होती. किसी भी हलवाई को फ़ोन करके पूछ लेते."
अचानक अजित भाई से मुखातिब होते हुए बोले; "वैसे, गुझिया शब्द के सफ़र के बारे में कुछ बताएं";
होली के मौके पर गुझिया सम्मलेन में सारे चिट्ठाकार गुझिया बनाने की कोशिश में जुटे थे. डॉक्टर अनुराग के कहने पर होली के मौके पर किये गए इस सम्मलेन को क्षेत्रीय सम्मलेन न मानकर भारतीय सम्मलेन के रूप में आयोजित किया गया था.
लिहाजा पूरे भारत के चिट्ठाकार जुटे थे.
फुरसतिया जी द्बारा गुझिया शब्द के सफ़र के बारे में पूछे जाने पर अजित भाई उत्साहित हो गए. उन्होंने गुझिया शब्द के बारे में बताते हुए कहना शुरू किया; "गुझिया शब्द असल में संस्कृत की धातु...."
"लग गई स्माइली. लग गई स्माइली"; अचानक फुरसतिया जी उठकर चिल्लाने लगे. उन्हें देखकर लग रहा था कि आर्कीमीडीज ने यूरेका-यूरेका नामक गीत इसी राग में गाया होगा.
फुरसतिया जी की इस घोषणा पर समीर भाई बोल पड़े; "बहुत बेहतरीन स्माइली लगाई है भाई. इसके लिए आपको साधुवाद और बधाई."
"आपने बिना गुझिया पर स्माइली देखे कैसे जाना कि मैंने बेहतरीन स्माइली लगाई है?"; फुरसतिया जी ने समीर भाई से पूछ लिया.
फुरसतिया जी के अचानक किये गए इस सवाल से समीर भाई अकबका गए. थोड़ा संभले और कहा; " आप अपनी पोस्ट पर इतनी धाँसू स्माइली लगाते हैं. ऐसे में गुझिया पर भी धाँसू ही लगाया होगा."
फुरसतिया जी समीर भाई की बात से असहमत होते हुए बोले; "आपको मेरी पोस्ट और मेरी गुझिया में कोई अंतर दिखाई नहीं देता?"
"अंतर क्या होगा? जैसे पोस्ट पर मौज लेते हैं वैसे ही गुझिया पर भी मौज ही लिया होगा"; समीर भाई ने अपने निष्कर्ष पर पहुचने का कारण बताया. उनकी बात सुनकर सब हंस पड़े.
वैसे समीर भाई की टिपण्णी सुनकर फुरसतिया जी को लगा कि कहीं समीर भाई अपनी टिपण्णी को आगे बढ़ाकर कविता में परिवर्तित न करे दें. उन्हें इस बात का भी डर था कि एक बार टिपण्णी कविता बनी नहीं कि समीर भाई उसको गाने लगेंगे.
लिहाजा उन्हें रोकने की चाहत लिए फुरसतिया जी ने और ही बात छेंड़ दी. वे बोले; "और आप की बनाई गुझिया कहाँ है? दिखाइये."
फुरसतिया जी द्बारा बात को मोड़ दिए जाने से समीर भाई की टिप्पणी को कविता बनाने की कोशिश नाकाम हो गई. वे बोले; "मैं गुझिया बनाना चाहता था लेकिन भाई लोगों ने मेरे मसाले में उतनी ही चीनी डाली है जितनी दूसरों के. मेरी गुझिया दूसरों से ज्यादा मीठी नहीं होगी तो मेरे लिए गुझिया बनाना संभव नहीं होगा."
"ये तो ठीक बात नहीं है"; ताऊ जी ने समीर भाई की बात को उठाते हुए कहा. इधर-उधर देखते हुए ताऊ जी ने बीनू फिरंगी को आवाज़ देते हुए कहा; "ओय बीनू, कठे है तू?"
उनकी बात सुनकर बीनू फिरंगी दौड़ते हुए आये. बोले; "मैं तो अठे ही था ताऊ. बता, के काम है?"
"काम ये है कि जल्दी से आधा किलो चीनी ले आ और समीर जी के मसाले में डाल"; ताऊ जी ने बीनू फिरंगी को निर्देश देते हुए कहा.
"अभी लाया ताऊ"; कहते हुए बीनू फिरंगी चीनी लाने दौड़ पड़ा.
समीर भाई के लिए चीनी का इंतजाम हो रहा था कि ज्ञान जी आ गए. उन्हें देखकर ताऊ जी बोले; "भाई, सही बात है. समीर जी की गुझिया बाकियों से मीठी तो होने ही चाहिए. वैसे ज्ञान जी, आपका तो ये दूसरा गुझिया सम्मलेन होगा?"
"हाँ, ये मेरा दूसरा गुझिया सम्मलेन है. पिछले साल मैंने करीब तीन सौ गुझिया बनाई थी. इस बार पता नहीं उतना बना पाऊँगा कि नहीं"; ज्ञान जी ने उनके द्बारा अटेंड किये गए गुझिया सम्मेलनों के बारे में बताया.
" अरे क्यों नहीं होगा? बिलकुल होगा जी. इस बार भी आप उतनी ही गुझिया बनायेंगे. आपकी गुझिया तो ब्लॉग-जगत की पहचान बन गई है"; ताऊ जी ने उनका हौसला बढ़ाते हुए बताया.
उनकी बात सुनकर ज्ञान जी कहा; "कोशिश रहेगी जी. लेकिन समस्या एक ही है. कभी-कभी लगता है कि एक ही तरह की गुझिया बनाते-बनाते गुझिया का मसाला ही ख़तम हो जायेगा."
ज्ञान जी की बात पर फुरसतिया जी ने मौजाते हुए कहा; "आप तो केवल गुझिया बनाईये. वैसे भी जब आपको लगे कि एक ही तरह की मीठी गुझिया बनाते-बनाते बोर हो रहे हैं तो दो-चार दर्जन नमकीन गुझिया बना डालिए."
फुरसतिया जी की बात सुनकर सब हंस पड़े.
तबतक डॉक्टर अनुराग आ धमके. सबको देखकर बोले; " अच्छा हुआ आप सब ने गुझिया सम्मलेन को क्षेत्रीय नहीं बनाया. वैसे गुझिया है भी बड़े मजे की चीज. तरह-तरह के आकार की गुझिया. ये त्रिभुजाकार गुझिया देखकर मन में आता है जैसे बनाने वाले ने त्रिवेणी लिख दी हो."
त्रिवेणी की बात आते ही फुरसतिया जी का मौजत्व कुलांचे मारने लगा. अनुराग जी से मुखातिब होते बोले; "और वो पैराबोलिक गुझिया को देखकर मन में क्या आता है?"
अनुराग जी इस सवाल के लिए तैयार नहीं थे. अचानक किये सवाल से अदबदा गए. कुछ सोचकर बोले; "उन गुझिया को देखकर मन में आता है जैसे किसी ने नज़्म लिख दी है."
अनुराग जी की बात सुनकर कुश ने टिप्पणी दे मारी. बोले; "आप हमेशा दिल की बात कहते हैं जी. इसीलिए तो हम आपकी त्रिवेणी और नज्मों सॉरी आपके गुझिया के दीवाने हैं."
कुश की बात सुनकर अनुराग जी यादों में खो गए. बोले; "हॉस्टल में रहते हुए एक बार गुझिया बनाने की कोशिश की थी. जाट के साथ बाईक पर सामान लाने गए थे. जितने पैसे लेकर निकले उनमें से एक पैकेट सिगरेट...."
अनुराग जी यादों में खोये ही थे कि कविता जी आ गईं. उन्हें देखकर फुरसतिया जी बोले पड़े; " कविता जी, आपने कितनी गुझिया बनाई? कहाँ हैं आपकी बनाई हुई गुझिया?"
फुरसतिया जी की बात सुनकर कविता जी ने सफाई देते हुए कहा; "गुझिया तो हमने बनाई है लेकिन उसे बक्शे में रखकर ताला लगा दिया है. आपको पता है कि नहीं, गुझिया चोरी की कई घटनाएं हो चुकी हैं?"
"ठीक ही किया आपने. ये चोर लोग पता नहीं कब सुधरेंगे? हमने भी जितनी गुझिया बनाई थी, सबको बंद करके ताला लगा दिया है"; अचानक डॉक्टर अमर कुमार बोल पड़े.
डॉक्टर साहब की बात सुनकर फुरसतिया जी पूछ बैठे; "आपने गुझिया बनाई? कब बनाई, मैंने तो आपको गुझिया बनाते देखा ही नहीं?"
फुरसतिया जी की बात सुनकर डॉक्टर साहब ने बताया; "मैंने तो तीन बजे सुबह ही उठकर करीब अस्सी गुझिया बना ली थी. वैसे आप देखना चाहेंगे क्या?"
सबकी उत्सुकता बढ़ गई. सबने एक साथ गुझिया देखने की फरमाईस की. डॉक्टर साहब ने ताला खोलकर जब गुझिया दिखाया तो सब हंसने लगे. एक से बढ़कर एक डौल, सुडौल, बेडौल गुझिया थी. डॉक्टर साहब बोले; "मैं तो ऐसी ही गुझिया बनाता हूँ. बेबाक गुझिया. आपको आकार पसंद न आये तो मैं क्या करूं?
गुझिया पर्यवेक्षण करते हुए अरविन्द जी बोले; "डॉक्टर साहब की बनाई गुझिया देखकर एक बार फिर से साबित हो गया की गुझिया के विकास का इतिहास सचमुच बड़ा रोचक था."
"गुझिया के विकास का भी कोई इतिहास है क्या?"; अचानक फुरसतिया जी पूछ बैठे.
फुरसतिया जी की बात सुनकर अरविन्द जी को लगा कि अब गुझिया पर्यवेक्षण ढंग से कर दिया जाय. वे बोले; "असल में शुरुआती रूप को देखा जाय तो शुरू-शुरू में गुझिया गोलाकार होती थी. जैसे बाटी होती है. लेमार्क ने इस विषय पर अपनी पुस्तक "आधुनिक गुझिया का विकास" में लिखा है...."
तबतक फुरसतिया जी बोल पड़े; "बड़े मौजी लोग थे ये लेमार्क और डार्विन. भाई गुझिया तक को नहीं छोडा! उसके विकास का भी इतिहास लिख डाला?"
उनकी इस बात पर शास्त्री जी बोले; " गुझिया पर अगर अंग्रेजी में किताब लिखी गई है तो मैं गुझिया नहीं बनाऊंगा. मैं हर वो चीज नहीं करूंगा जो अंग्रेजी से किसी भी तरह जुड़ी हो."
शास्त्री जी की बात सुनकर फुरसतिया जी बोले; " कोई भी भाषा बुरी नहीं होती. गुझिया के बारे में अगर अंग्रेजी में लिखा गया है तो इससे तो भारतीय संस्कृति को बढ़ावा ही मिला होगा."
शास्त्री जी फुरसतिया जी से प्रभावित नहीं हुए. बोले; "मैं आपसे सहमत नहीं हूँ. इस विषय पर आपसे शास्त्रार्थ करने के लिए भी तैयार हूँ. आप मानिए कि एक बार किसी चीज की अंग्रेजी हो गई तो आधुनिकता में सराबोर लोग पब में भी गुझिया बेचने लगेंगे. मेरा तो मानना है कि...."
शास्त्रार्थ की बात सुनकर सबने विमर्श के महत्व पर टिप्पणी दे डाली.
शास्त्रार्थ और विमर्श जैसी भारी-भरकम चीजों से दूर नीरज गोस्वामी जी एक जगह कागज़ सामने रख पेंसिल को दांत तले दबाये आसमान पर ताक-झाँक कर रहे थे. उन्हें देख किसी ने आवाज़ लगाईं; "नीरज जी, आप गुझिया नहीं बना रहे हैं?"
वे बोले; "अभी तो मैं फिलहाल गुझिया पर गजल लिख रहा हूँ. लगभग मुकम्मल हो चुकी है. मुलाहिजा फ़रमाएँ"; इतना कहते हुए उन्होंने गजल पढ़नी शुरू कर दी...
गज़ब की ये मिठाई है कहें जिसको सभी गुझिया
बिना मावा भरे किसकी बता अच्छी बनी गुझिया
कभी तुम भूल कर मत देखना इसको हिकारत से
अगर किस्मत में हो लिख्खी तभी मिलती सही गुझिया
हमारी तो समझ लेना उसी दिन यार तुम होली
बिपाशा हाथ से अपने खिलाये जब पकी गुझिया
... जारी रहेगा.
ham test kiye binaa kuchh nahi kahate sample bhejo :)
ReplyDeleteगजब ओह ...... ब्लागरो का गुजिया सम्मलेन . समीर जी के कारण शायद ही गुजिया वहां बची रही होगी . हा हा
ReplyDeleteसमीरलाल की गुझिया पर सौ वाह-वाह तो मिनिमम टपकना मांगता!
ReplyDeleteहमारी गुझिया तो बन नहीं पा रही - सो शिवकुमार मिश्र की बनाई गुझिया में आधे का साझा मेरा!
मस्तेस्ट लेखन! :)
अब इस मर्दानी रसोई में अजब-गजब गुझिया ही बनी होंगीं, जो न खुद खाई जा सकें, न खिलाई। यहाँ तो अभी सारे दल-बल को जोड़कर गुझिया की पाकविधि पता की जा रही है। इसी खतरे को भाँप मुझे अपनी बनाई गुझिया को यों सहेजना पड़ा होगा, इस चिन्ता में कि महिला के हाथ की बनी रसोई से आए पकवान के लालच में यह पूरी होली पलटन कहीं अकेले बनाई गुझियाओं पर हाथ साफ़ न कर दे।
ReplyDeleteमैं तो हलवाइयों के शहर में नहीं रहती ना! सो सॊरी!!
होली का पावन रंग आपको सपरिवार आनन्द में सराबोर कर दे। शुभकामनाएँ स्वीकारें।
ब्लॉगजगत में माहौल होलिया रहा है...ऐसे में एक गुझिया सम्मलेन तो होना जरूरी था...बहुत ही मस्त रहा...आगे की कड़ियों मेरा मतलब गुझियों का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeletekhoob rahi ghujhiya post. Maja aa gaya.
ReplyDeleteबहुत खुब भगवन, मजा आ गया।
ReplyDeleteतरन्नुम की पोस्ट पढ़कर आनन्द आ गया. इंतजार है अगली गुझिया पोस्ट का.
ReplyDeleteधन्यवाद.
हम ने डाक्टर अमर कुमार के कमरे का ताला खोला, बत्ती जली नहीं अंधेर में एक गुंझिया मुहँ में डाली तो वह गुंझिया बनाने का सांचा निकला। डाक्टर प्रवीण कुमार का भला हो गया।
ReplyDeleteये गुझिया विमर्श तो बड़ा धांसू रहा। लेकिन और ऊ सब भी बताइये जो शून्य प्रहर में बतियाया गया। शर्माइये नहीं जी। सब सच बता ही डालिये जो होगा देखा जायेगा। फोटो-सोटो भी सटाइये। अगली गुझिया विमर्श का हम इंतजार कर रहे हैं!
ReplyDeleteहोली का पावन रंग आपको सपरिवार आनन्द में सराबोर कर दे। शुभकामनाएँ स्वीकारें।
ReplyDeleteवाह शिव भाईया, वाह!! आज पहली नजर आपके चिट्ठे पर पढी तो एक सांस में पूरा का पूरा पढ गया. उम्दा और स्वादिष्ठ गुझिया! ऐसी गुझिया दक्षिण भारत में कहां, जहां हम इन दिनों डेरा लगाये हैं.
ReplyDeleteअब डर यह है कि ये गुझिया खाकर फुरसतियां कहीं पुराना राग न अलापने लगे कि शास्त्रीजी तो हो जाये वह पुराना शास्त्रार्थ. (दिनेश जी से राय लेनी पडेगी कि शास्त्रार्थ पर कानूनन मेरा एकाधिकार घोषित किया जा सकता है या नहीं).
डा अरविंद से जरूर अनुरोध है कि गुझिया की उत्पत्ति, विकास, रूप-भेद, गुणदोष आदि पर एक निबंध जरूर दें.
होली के आनंदमन पर्व पर शिव भईया आपको और हिन्दी चिट्ठापरिवार के हर सदस्य को मेरी हार्दिक शुभकामना!!
सस्नेह -- शास्त्री
चार साल से बना रहें है, मगर क्या मजाल कभी मिठी बन जाए. कोई चीनी वाला फार्मूला भेजो भाई. समीरजी.....कहाँ हैं आप?
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे सच मच गुझिया सम्मेलन में बैठे है.. वैसे होली आते ही आप शरारत करने लग गये.. करिए जी करिए.. मौजाने का ठेका खाली कानपुर वालो को थोड़े ही है.. बाकी क़ी गुझियो का इंतेज़ार है..
ReplyDeleteगजब की गुझिया युक्त फीड़.
ReplyDeleteहोली के शुभ अवसर पर आप के द्वारा गुझिया प्रसंग पर आनंद आ गया है...हमें नहीं मालूम था की हम गुझिया पर भी ग़ज़ल लिख सकते हैं.
ReplyDeleteहमारी सोयी हुई प्रतिभा (पाटिल नहीं) को जगाने का शुक्रिया...
होली की अभी से शुभ कामनाये...क्या पता होली के दिन आप को पहचानना मुश्किल हो जाए...
नीरज
gujhiya yukt post, man karta hai ki laptop ko kinare se kutarna shuru kar doon.
ReplyDeleteहम इसे अखिल भारतीय ब्लौगर सम्मेलन मानने से इंकार करते हैं.. दक्षिण भारत से हमें तो छोड़िये, किसी को नहीं बुलाया गया..
ReplyDelete"अब यहां चेन्नई में कहां गुझिया.. घर पर होते थे तो होली से ठीक पहले ढ़ेर सारी गुझिया मम्मी बनाती थी.." हमे बुलाते तो हम भी कुछ ऐसे ही किस्से सुनाते.. :D
हम तो रूठ गये हैं.. जल्दी से गुझिया पार्सल किजिये तभी मानेंगे.. :)
मजा आ गया फिलहाल तो गुझिया सम्मेलन की रपट देखकर।
ReplyDeleteअब ये सब गुझिया जब खिलाएंगे तब खिलाएंगे अभी तो प्रतीक्षा है अगली किश्त की।
बीनू फिरंगी और ताऊ न होते तो फुरसतिया जी ने तो काम डाल ही दिया था समझो मौज मौज में. बीनू बेटा, थोड़ा गुड़ भी ला देते तो और आनन्द आ जाये.
ReplyDeleteये आज नीरज जी की गज़ल बड़ी सूनी सी लग रही है -ओह!! गज़ल की आखिरी लाईन गुम है--’॒॒॒ का आशीर्वाद प्राप्त गज़ल’...ह्म्म!! अब समझे.
बुरा न मानो भाई, होली है न!!
हा हा , शिव जी मजा आ गया इस गुझिया सम्मेलन का। हम ने खुद को गुझिया इंस्पेक्टर घोषित कर दिया है तो हम सब की गुझिया चखेगें, आकार कोई भी हो मावा पूरा होना चाहिए। अगली किश्त का इंतजार। जो सबसे ज्यादा गुझिया बनायेगा उसे इनाम दिया जायेगा…।:)
ReplyDeleteवो तो ठीक है मिश्रा जी .....पर पहले ये तो बताये की हमारी गुंजिया में भांग किसने मिलायी थी ....
ReplyDeleteबक्से पर पडे़ ताले
ReplyDeleteगुजिया के पडे लाले
ताले की चाबी दिलादे
हज़ार हाथ वाले :)
DDDDDD - ई रही हमार गुझिया...एँ
होली की अग्रिम शुभकामनाएं॥
बिना खाये ही पता चल गया गुझिया टेस्टी है।
ReplyDeleteवेरी-वेरी टेस्टी... :)
ReplyDelete