Tuesday, October 26, 2010

हिंदी ब्लॉग जगत के लिए मेरा सबसे बड़ा योगदान


विजयादशमी के अवसर पर कोलकाता में नहीं था. कुछ कारणों से गुडगाँव में था. न तो किसी से मुलाकात हो सकी और न ही इस शुभ अवसर पर किसी को बधाई दे सका. वापस आया तो पता चला कि दशमी के दिन हलकान भाई घर पर आये थे. मुझे न पाकर काफी दुखी हुए.

मैंने सोचा कि देर से ही सही उनसे मिल लूँ. यही कारण था कि रविवार को उनसे मिलने गया. मैंने सोचा कि उन्हें दशमी की बधाई दे डालूँ और साथ ही ब्लागिंग पर कुछ चर्चा वगैरह करके एक पोस्ट लिख मारूं और हिंदी ब्लागिंग के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर डालूँ.

शाम को उनके घर पर पहुँचा. घर के भीतर कुछ शोर सुनाई दे रहा था. एक बार के लिए समझ में नहीं आया कि क्या कारण हो सकता है?

डोर-बेल बजाया. थोड़ी ही देर में हलकान भाई आये. देखकर लगा कुछ क्रोधित थे. हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें तुरंत विजयादशमी की शुभकामनाएं दे डालूँ. फिर मन में आया कि कहीं पूछ न लें कि; "तुम मेरे घर किस लिए आये हो?"

मैंने उनसे धीरे से कहा; "विजयादशमी की शुभकामनाएं, हलकान भाई."

मेरी तरफ देखते हुए बोले; "काहे की शुभकामनाएं? विजयादशमी शुभ कहाँ रही इसबार?"

मैंने कहा; "ऐसा क्यों कह रहे हैं हलकान भाई? विजयादशमी तो हमेशा शुभ ही होती है."

वे बोले; "क्या शुभ होगी? इन जाहिलों के साथ रहकर विजयादशमी मेरे लिए कैसे शुभ होगी?"

मैंने कहा; "कुछ समस्या हो गई क्या हलकान भाई?"

वे बोले; "अरे, अब क्या कहूँ तुमसे? ऐसा जाहिल परिवार मिला है कि समस्या हुई नहीं है, समस्या मेरे घर में बिछौना बिछाकर बैठ गई है."

मैंने कहा; "ऐसा क्यों कह रहे हैं हलकान भाई? लगता है कुछ गंभीर बात हो गई घर वालों से?"

वे बोले; "अब तुमसे क्या बताएं? जब घरवालों का यह हाल है तो बाहर वालों के बारे में क्या कहें?"

मैंने कहा; "पहेलियाँ न बुझायें हलकान भाई. बताएं तो सही कि हुआ क्या?"

अभी मैंने अपनी बात कही ही थी कि भाभी ज़ी आ गईं. बोली; "हमसे सुनो. हम बता रहे हैं. सब मामला ऊ कबिता की बजह से हुआ है."

मैंने कहा; "कौन कविता?"

वे बोलीं; "अरे कौन कबिता क्या? ओही कबिता जो ई अपने ब्लॉग पर लिखते हैं."

मैंने कहा; "क्या हुआ हलकान भई? ऐसा तो नहीं हुआ कि आपने कविता लिखी थी और किसी की गलती से वह डिलीट हो गई?"

हलकान भाई को शायद लगा कि उन्हें पूरी बात बता देनी चाहिए. वे बोले; "अब क्या कहें तुमसे? पिछले सप्ताह मैंने एक कविता अपने ब्लॉग पर पब्लिश की थी. अपने ब्लॉगर भाई-बंधु ने उसे बहुत बढ़िया कविता बताया और उसकी सराहना की. सराहना के कुल छत्तीस कमेन्ट मिले थे. सबकुछ ठीक चल रहा था तबतक मेरी माता ज़ी ने अपना कमेन्ट देकर उस कविता को घटिया बता दिया. मैं कहता हूँ, जब बाकी लोग़ उसे बढ़िया बता रहे हैं तो क्या ज़रुरत थी इनको घटिया बताने की? इनकी देखा-देखी तीन-चार लोग़ और उस कविता को घटिया बता गए. अब तुम्ही बताओ इन जाहिलों के ऊपर गुस्सा नहीं आएगा? ऊपर से माताजी की देखा-देखी हमारे भाई साहब ने भी कमेन्ट कर डाला कि माँ का कहना सही है. कविता घटिया है. ये मेरे परिवार वाले हैं कि मेरे दुश्मन हैं?"

उनकी बात सुनकर भाभी ज़ी ने कहा; "अरे त एही बास्ते कोई अपनी माँ से झगड़ता है? कोई अपना भाई से झगड़ता है? हम कहते हैं ऐसा कबिता लिखना ही काहे जो घर में झगड़ा करवा दे?"

भाभी ज़ी की बात सुनकर हलकान भाई बोले; "आपको कुछ पता नहीं है चीजों के बारे में. आप कुछ मत बोलिए. चुप रहिये. ब्लागिंग में एक एड्भर्स कमेन्ट का मतलब बुझाता है आपको?"

उनकी बात सुनकर भाभी ज़ी बोलीं; "का होगा? पहाड़ टूट जाएगा? कौन सा कैरियर ख़राब हो जाएगा आपका? ब्लागिंग ही पेट भरता है का आपका?"

उनकी बात सुनकर हलकान भाई बोले; "आपसे त बात करना ही अपराध है. आप जाइए चाह बनाइये."

भाभी ज़ी वहाँ से चली गईं.

मैंने कहा; "जाने दीजिये हलकान भाई. जो हो गया सो हो गया. ऐसा हो ही जाता है कभी-कभी."

वे बोले; "अब क्या कहें तुमसे? आजतक कभी भी हमको कविता पर एक भी एड्भर्स कमेन्ट नहीं मिला था लेकिन ई घर वालों की वजह से पहली बार दाग लग गया. ऊपर से नंबर ऑफ कमेन्ट गिरकर सत्तासी से सीधा बयालीस. इसके पहले वाली पोस्ट पर मुझे सत्तासी कमेन्ट मिले थे. और इस पोस्ट पर केवल बयालीस. क्या बताऊँ शिव तुमको? इच्छा तो हो रही है कि ब्लागिंग ही छोड़ दूँ."

मैंने कहा; "ऐसी बात न कहें हलकान भाई. एक छोटी सी बात के लिए ब्लागिंग छोड़ने की क्या ज़रुरत है? आप यह देखिये न कि बच्चन, निराला और दिनकर ज़ी की तरह आपकी सभी कवितायें बहुत बढ़िया हैं. बस इतनी सी बात है कि उन महान कवियों की तरह ही आपकी भी कुछ कवितायें केवल बढ़िया है. कवियों को उनकी बहुत बढ़िया कविताओं के लिए याद किया जाता है. बढ़िया कविताओं के लिए नहीं. आप ब्लागिंग छोड़ने का अपना ख्याल दिल से निकाल दें. ऐसी उंच-नीच हो ही जाती है."

मेरी बात सुनकर बोले; "अब क्या कहें तुमसे? हम तो पोस्ट भी लिख लिए थे कि अब और ब्लागिंग नहीं करेंगे. बाकी तुम कहते हो तो ठीक है. वो पोस्ट पब्लिश करने के लिए शिड्यूल में डाल दिया था...."

मैंने कहा; "आप उस पोस्ट को डिलीट कर दीजिये हलकान भाई. आपसे बहुत उम्मीद है ब्लॉग जगत को. हिंदी ब्लागिंग को ऊपर पहुँचाने में आपकी भूमिका अविस्मरणीय है. आज हिंदी ब्लागिंग जहाँ पर है अगर वहाँ पर आप छोड़ देंगे तो उसे जिस जम्प की ज़रुरत है वह उसे नहीं मिलेगी........"

मैंने बहुत मनाया तो वे मान गए. दोनों ने चाय पी. मैं उनसे विदा लेकर अपने घर आ गया.

हलकान भाई ने ब्लागिंग छोड़ने का अपना फैसला वापस ले लिया. मेरे कहने से उन्होंने ऐसा किया. आशा है हिंदी ब्लॉग जगत मेरे इस प्रयास को स्वर्णाक्षरों में लिखेगा. हिंदी ब्लॉग जगत के लिए मेरा यह सबसे बड़ा योगदान है.

आप बताइए, मेरा यह योगदान याद रखेंगे तो?

29 comments:

  1. हकलान भाई हैं तो ठीक है... वर्ना कोई भी और होता तो हम याद ना रखते :)

    ReplyDelete
  2. वाह जी ! इत्ते बड़े योगदान के लिए आपका बहुत बहुत आभार :)

    ReplyDelete
  3. हलकान भाई का दुखी होना बिल्कुल जायज है जी। एक तो कविता की बुराई, फ़िर हलकान भाई की कविता की बुराई, फ़िर अपने घरवालों द्वारा ही कविता की बुराई - हद हो गई जी बेहद की भी।
    अच्छा आपने भी नहीं किया वैसे, एक बात तो उनके फ़ैसले का सम्मान करना ही चाहिये था। हम सब अपील करके हलकान भाई को मना ही लेते, आपने यह श्रेय भी अकेले ही लूट लिया।
    आपके इस योगदान को अवश्य याद रखेंगे। हलकान भाई को सुझाईयेगा कि आलोचना वाले कमेंट डिलीट कर दें। अपनी तरफ़ से कमेंट डाल दें कि कुछ पाठक अनर्गल और विषय से हटकर लिख रहे थे। घरवालों का क्या है, झक मारकर झेलेंगे ही, हलकान भाई को भी इत्मीनान रहेगा कि हमने किसी के कमेंट डिलीट किये थे।
    हो सके तो हलकान भाई के कुशल नेतृत्व तले एक कार्यशाला का आयोजन भी करवायें, नये और युवा ब्लॉगर्स लाभान्वित होंगे।

    ReplyDelete
  4. ब्लॉगजगत आपका चिरऋणी रहेगा कि आपने हलकान भाई को ब्लॉगिंग छोड़ने से रोक लिया। आशा है कि वे ब्लॉग जगत में बने रहेंगे-लेकिन कब तक?

    ReplyDelete
  5. दो कौड़ी की पोस्ट !
    ..........अब हम भी देख रहें हैं कि क्या होता है हमरे कमेन्ट के पीछे ?

    ReplyDelete
  6. आपने हलकान भाई को मना लिया, ब्लॉगिंग को बचा लिया, नहीं तो लोग हलकान हुये पड़े हैं।

    ReplyDelete
  7. ह्म्म्म्म, आपका योगदान तो लोग याद रखेंगे ही…

    लेकिन हलकान विद्रोही से कहिये कि "कविता" बहुत खतरनाक बूमरैंग होती है… यदि लिखी गई और फ़िर किसी को दिखाई या सुनाई नहीं गई, तो दिल का दौरा पड़ने के चांसेस बढ़ जाते हैं… :)

    ReplyDelete
  8. ऊफ़्फ़ एक कविता से इतना झोल...

    चलिये फ़िर भी स्थिती नियंत्रण में है यह ठीक है

    ReplyDelete
  9. अरे! आपने तो बचा ही लिया. हिन्दी ब्लॉगिंग की अकाल मृत्यु हो जाती. आपका यह ऋण सदा याद रखा जाएगा.

    नम्र निवेदन है कि आगे से कोई भी व्यक्ति किसी भी कविता को बकवास बता कर हिन्दी ब्लॉगिंग की गरिमा को ठेस नहीं पँहुचाएगा...

    क्षमा सहित समीरलाल से शब्द लूँगा. आपके समर्पित प्रयास को देख कर आँखे भर आई है. गला रूँध सा गया है. :)

    ReplyDelete
  10. आपको लोग कैसे भूलेंगे बंधू...आपकी वजह से हिंदी ब्लोगिंग को तो जंप मिल गया लेकिन बहुत से सुधि ब्लोगर इस बात से दुखी हो कर पहाड़ से जंप कर गए...अब कोई आएगा तो कोई जाएगा भी...संसार का नियम है...न हलकान भाई वापस आते और न दूसरे कई स्वनामधन्य ब्लोगर जाते...

    जरा सी बुराई को हलकान भाई बर्दास्त नहीं कर पाए लगता है उनके घर में आईना नहीं है इसीलिए खुद को शाहरुख समझते हैं...आइना होता तो अपनी घनी मूंछे देख कर शायद दुनिया से ही कूच कर जाते...

    गलत फेह्मी में जिंदा रहने वालों से भगवान बचाए...

    नीरज

    ReplyDelete
  11. halkan bhai jaise blogger ko blogging
    rok kar rakhne ke aapke jajbat irafat
    me bani rahe......

    hum pathak varg ki dilitamnna hai ke
    agle janam aapke halkan bhai ko blogger hi kijo.....

    pranam.

    ReplyDelete
  12. "हिंदी ब्लागिंग को ऊपर पहुँचाने में आपकी भूमिका अविस्मरणीय है"

    कित्ता ऊपर! जरा क्लियर किया जाए :)

    ReplyDelete
  13. ये कविता की बात है या किसी ऐसी वैसी रचना की जिसे कोई तवज्जो नहीं देता.....आपने अगर ऐसा कुछ किया तो कम से कम मैं तो आपको माफ़ करने से रहा -क्यूं वापस बुलाया आपने ऐसे नामुराद को !

    ReplyDelete
  14. आप महान है मिश्रा जी ये तो आपका बड़प्पन है सिर्फ एक गिना रहे है ......आपके तो ढेरो ऋण है ब्लोगिंग पे ....

    तनिक ओर धकियाये इस मुई ब्लोगिंग को ससुरी....फिर नीचे की ओर खिसक रही है ......

    ReplyDelete
  15. हे ब्लोगरो में उत्तम नहीं नहीं सर्वोत्तम.. कालजयी कवि श्री श्री हलकान भाई को आपने जाने से बचाकर हिंदी ब्लॉगजगत (जो कि अभी शैशवकाल में है) को कितनी बड़ी क्षति से बचाया है इसके लिए हम आपके आभारी है साथ ही आपको एक ब्लोगर बचाऊ पुरस्कार दिलवाने की मांग करते है.. पुरस्कार बांटने वालो से अनुरोध है कि एक आध पुरस्कार इधर भी सरकाए..

    वैसे सिडयुल्ड पोस्ट हटाई नहीं जानी चाहिए हलकान भाई के लिए सलाह है कि वो पोस्ट छाप दे और फिर दो दिन बाद आपकी समझाईश का हवाला देते हुए एक पोस्ट लिखे.. यकीन मानिए इस बीच उनके पोस्ट के कमेंट्स सत्तासी से एक सो सत्तासी हो जायेंगे..

    ReplyDelete
  16. "हे देव, आपके इस अतुलनीय कार्य के लिए जल्द ही आपको ब्लागजगत के नोबल अवार्ड से नवाजे जाने की कामना करता हूँ, आपने ब्लागजगत को कितनी बड़ी क्षति होने से बचाया है यह आपको भी ज्ञात नहीं.
    हिंदी ब्लागजगत सदैव आपका ऋणी रहेगा. "

    हे हे
    वैसे क्या निशाना लगाते हो भैया एकदम चुभ जाये अगर सामनेवाला समझे तो.... ;)

    ReplyDelete
  17. वो पोस्ट डिलीट करवा कर,आपने सारा श्रेय अकेले ले लिया.......अगर पोस्ट आ जाती तो इतने सारे लोग मनाने जाते और फिर सबका योगदान याद किया जाता....
    नॉट फेयर :)

    ReplyDelete
  18. काश हलकानजी का ब्लॉग वर्डप्रेस.कॉम पर होता। वरना माताजी के और बाद में आये उन कमेंट्स में एडिट का बटन दबा कर कविता की प्रशंसा भी की जा सकती थी।
    आप अपने योगदान को बहुत कम आँक रहे हैं। जब जब हिन्दी ब्लॉगिंग में आपके योगदान को याद करता हूँ मैं तो गद्‍गद हो जाता हूँ।
    :)

    ReplyDelete
  19. आप बताइए, मेरा यह योगदान याद रखेंगे तो?

    कैसी बात करते हैं.... आपका नाम ब्लॉग जगत में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.

    ReplyDelete
  20. हलकान तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।

    वैसे तो मैं हलकान जी को ‘तुम’ से संबोधित नहीं करना चाहता लेकिन क्या करूँ नारा कुछ ऐसा ही है कि ‘तुम’ ही जमता है।

    ब्लॉगिंग के लिए चंद समर्पित लोगों में हलकान जी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। अभी तो उनका सर्वोत्तम आना शेष है। इसलिए उन्हें हमारे लिए बचाकर आपने बड़ा धर्म का काम किया। बहुत-बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete
  21. सामाजिक दायित्वों को समझे-समझाये।
    हलकान भाई को ही नहीं ब्लॉगजगत को भी बचाए!

    ReplyDelete
  22. निसंदेह आपका योगदान सराहनीय है .... कम से कम हलकाई को आपने सही रास्ता बता दिया .... रो चक प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  23. आप धन्य हो. अब हलकान भाई निसंदेह ब्लागिंग को ऊपर पहुंचा देंगे....

    ReplyDelete
  24. अब जब सब लोग कह रहें हैं कि पुरानी भाई को वापस लौटा कर आपने बड़ा उम्दा काम किया है .....तो हम भी अपनी पुरानी टीप से पलटा खाते हुए आपको इस नेक काम के लिए आदाब बजा लाते है !........आखिर जो पंचों की राय !

    वैसे @अभिषेक ओझा हलकान भाई को हकलान कह रहें हैं ....तो थोड़ा और गंभीरता से आपको धन्यवाद ठेलना पडेगा !

    ReplyDelete
  25. क्या कहा ....विदाई का विचार त्याग दिया उन्होंने ?????
    माने कि गमन कैंसिल ?????

    और यह सब तुम्हारे सौजन्य से ???

    चलो यह ब्लाग जगत तुम्हे भले "ब्लागर बचाऊ " का गोल्ड मेडल दे दे..पर समझा देना अपने हलकान कवि जी को, अब अगर उन्होंने मेल पर मेल , फोन पर फोन कर कर के अपनी सड़ी कविताओं को पढने के लिए जान खाया न, तो तुम्हे कोर्ट में घसीटे बिना न छोडूंगी...

    अच्छे भले जा रहे थे मनई...तुमने बेडा गरक कर दिया..

    ReplyDelete
  26. ` "काहे की शुभकामनाएं? विजयादशमी शुभ कहाँ रही इसबार?"

    सही तोकहा हलकान भाई ने... रावण तो वर्षा के कारण जला ही नहीं :-)

    ReplyDelete
  27. मैंने बहुत मनाया तो वे मान गए. दोनों ने चाय पी. मैं उनसे विदा लेकर अपने घर आ गया.
    ------------
    इत्ता जन्य पाप किया आपने? अगली बार (अगर अगली बार मौका मिले) तो मनाने की गलती न करना।

    ReplyDelete
  28. लो एक कमेण्ट और दे देता हूं। हलकान जी का पता बताते तो वहां भी दे देता!

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय