Saturday, April 2, 2011

जिससे पूरा भारत बोरियत से बचे

डियर माही,

इससे पहले कि 'डियर माही' जैसा संबोधन तुम्हारे मन में किसी तरह की गलतफहमी को जन्म दे, मैं साफ़-साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मैं कोई 'टीनेजर गर्ल' नहीं बल्कि एक पुरुष हूँ. मेरे इस स्पष्टीकरण के पीछे कारण यह है कि तमाम टीवी चैनलों के संवाददाताओं ने मेरे सामान्य ज्ञान में बढ़ोतरी करते हुए मुझे न जाने कितनी बार बताया है कि ज्यादातर लड़कियां ही तुम्हें माही कहकर पुकारती हैं. वैसे भी अगर मैं डियर महेंद्र सिंह धोनी जैसे किसी संबोधन का इस्तेमाल करता तो उसे देखकर मुझे ही नहीं बल्कि औरों को भी लगता जैसे मैं तुम्हें कानूनी नोटिस भेज रहा हूँ. पढ़ने में भी यह संबोधन 'कूल' नहीं लगता.

नतीजा यह हुआ कि मैं तुम्हें डियर माही लिखकर संबोधित कर रहा हूँ.

तो डियर माही, मेरे इस पत्र लिखने के पीछे एक कारण है. नहीं-नहीं, जो तुम सोच रहे हो, वह कारण नहीं है. वर्ल्डकप फाइनल से पाँच घंटे पहले तुम्हारे सामने कोई डिमांड रखकर मैं तुम्हें नर्वस नहीं करना चाहता. दरअसल कारण यह है कि, मैं यह चिट्ठी लिखकर अपने ब्लॉग पर लगाना चाहता हूँ जिससे मुझे एक अदद ब्लॉग पोस्ट की प्राप्ति हो जाए. आखिर एक ब्लॉगर को और क्या चाहिए? एक पोस्ट, और क्या?

वैसे मैं चाहता तो तुम्हारी टीम और क्रिकेट वर्ल्ड कप पर सवा सौ ग्राम की अशुद्ध तुकबंदी वाली एक चवन्नी कविता लिख डालता और किसी हिंदी न्यूज़ चैनल को फोन कर देता तो वे मेरी कविता कवर करने तुरंत आ जाते और वह तुम्हारे पास पहुँच जायेगी, मैं यह सोचकर अपने मन में दर्जन भर लड्डू फोड़ लेता. शायद तुम्हें पता न हो लेकिन एक अनुमान के अनुसार इस प्रोसेस से हमारे हिंदी न्यूज चैनलों ने पिछले दस वर्षों में करीब चार हज़ार सात सौ अट्ठावन हिंदी कवि पैदा किये हैं.

लेकिन मैंने सोचा कि ऐसा कुछ किया जाय जिससे मुझे एक ब्लॉग पोस्ट भी मिल जाए और तुम्हारा मोटिवेशन भी हो जाए. माही, मुझे पता नहीं कि भारत जब पिछली बार २००३ वर्ल्डकप के फाइनल में पहुँचा था तो हमारे कोच जॉन राइट ने कप्तान सौरव गांगुली को कैसे मॉटिवेट किया था? मुझे यह भी नहीं पता कि जब इसबार हम फिर से फाइनल में पहुँच गए हैं तो गैरी कर्स्टन क्या कर रहे हैं? मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुम्हरी टीम के लिए वर्ल्डकप जीतना क्यों ज़रूरी है? वे कौन से कारण हैं जिनके लिए १२१ करोड़ भारतीय तुम्हें आशीर्वाद और प्यार देंगे.

तो हे अधिनायक, ध्यान लगाकर सुनो;

जैसा कि तुम्हें मालूम है हम २५ जून, १९८३ में क्रिकेट वर्ल्डकप जीते थे. वैसे कुछ चिरकुटों ने पिछले २-३ दिनों से यह भ्रम फैला रखा है कि हमें उस वर्ल्डकप में विजयश्री की प्राप्ति २ अप्रैल १९८३ के दिन हुई थी लेकिन यह सही नहीं है. खुद गूगलदेव ने यह बात कन्फर्म की है. और हे अधिनायक, आज की तारीख में गूगल से बढ़कर कौन है?

तो मैं कह रहा था कि २५ जून, १९८३ के दिन हम वर्ल्डकप जीते थे और उसके बाद केवल स्पोर्ट्स चैनलों पर लगातार जीतते जा रहे हैं. हाल यह है कि एक अनुमान के अनुसार हम स्पोर्ट्स चैनलों पर १९८३ का वर्ल्डकप १९८३ बार जीत चुके हैं. वैसे कुछ सूत्रों का मानना है कि यह आंकड़ा करीब आठ हज़ार दो सौ तक पहुँच सकता है. हम अगर इन दो सख्याओं का औसत भी निकालें तो हे अधिनायक, हम स्पोर्ट्स चैनलों पर करीब पाँच हज़ार बार वर्ल्डकप जीत चुके हैं. और तो और स्पोर्ट्स चैनलों के फुटेज के सहारे हमारे हिंदी न्यूज चैनल भी करीब ढाई हज़ार बार टीवी पर हमें वर्ल्डकप दिलवा चुके हैं.

हे अधिनायक, मुझे तो लगता है कि पिछले कई वर्षों में इन स्पोर्ट्स चैनलों के ट्रांसमिशन सेंटर में कुछ इस तरह का वार्तालाप होता होगा;

क्लर्क अपनी कुर्सी छोड़कर नीचे रतिराम चौरसिया की पान दूकान पर पान खाने जा रहा है. बीच में प्रोग्राम डायरेक्टर मिल जाता है. डायरेक्टर पूछता हा; "कहाँ जा रहे हो?"

क्लर्क'; "पान खाने नीचे जा रहा हूँ. आधे घंटे में वापस आता हूँ."

डायरेक्टर; "तो एक काम करो न. जाने से पहले वो १९८३ वर्ल्डकप फाइनल की सीडी लगाते जाओ. तुम जबतक पान खाकर वापस आओगे इंडिया फाइनल जीत जाएगा."

हे अधिनायक, हाल यह है कि बाथरूम में जाने से पहले एक भारतीय देख रहा है कि स्पोर्ट्स चैनल इंग्लिश प्रीमियर लीग का हाइलाइट्स दिखा रहा है और जब वह बाथरूम से बाहर आता है तो देखता क्या है कि मोहिंदर अमरनाथ माइकल होल्डिंग्स को एल बी डब्लू करके स्टंप लिए भागे जा रहे हैं. देख कर लगता है जैसे अगर वे आज इतनी जोर से न भागेंगे तो उन्हें स्टंप चोरी के इल्जाम में अरेस्ट कर लिया जाएगा. हे अधिनायक, तुम्हें यह जानकार आश्चर्य होगा कि १९८३ वर्ल्डकप फाइनल टीवी पर देखने की वजह से बेटा माँ के बार-बार कहने के बावजूद सब्जी लेने बाज़ार नहीं जाता और घर वालों को उस दिन केवल दाल-रोटी से गुज़ारा करना पड़ता है. वैसे सत्य यह है कि बेटा सोचता है कि क्या पता स्पोर्ट्स चैनल कल से भारत को जितवाना ही बंद कर दे. ऐसे में जब तक जितवा रहा है तब तक तो जीतते रहो.

हे अधिनायक माही, १२१ करोड़ लोग़ अट्ठाइस वर्षों से कपिल देव को दौड़ कर रिचर्ड्स का कैच लेते हुए देख रहे हैं. मानता हूँ कि गावस्कर के अनुसार; "कपिल वाज अ ग्रेट एथिलीट" लेकिन अब उनकी उमर भी तो देखो. पचास के पार पहुँच गए हैं. ऐसे में जब वे आजकल हाइलाइट्स में दौड़ते हैं तो धड़का लगा रहता है कि इस बार वे कैच नहीं पकड़ सके तो? अगर इस बार कैच छूट गया तो फिर रिचर्ड्स बड़ी दुर्गति करेगा हमारी. अभी तक तो कपिल कैच पकड़ते आये हैं लेकिन हे अधिनायक, यह क्रिकेट ही तो है. क्या पता अगली हाइलाइट्स में उनसे कैच छूट जाए और उसके बाद रिचर्ड्स ऐसा मारे कि आउट ही न हो? बीस ओवर भे नहीं लगेंगे वेस्ट- ईंडीज को मैच जीतने में.

और फिर हे अधिनायक, तुम्हें तो पता ही है कि हमारी संस्कृति और दर्शन में ऐसा बताया गया है कि हर चीज में जान होती है. अगर हम इस लिहाज से देखें तो क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें गोर्डन ग्रीनिज के उस स्टंप की रक्षा करनी चाहिए जिसे पिछले अट्ठाइस वर्षों से बलविंदर सिंह संधू अपने इन-स्विंगर से उखाड़ते आ रहे हैं. एक बार ठहरो और सोचो कि हर बार बॉल से धक्का खाने के बाद उस स्टंप की क्या दशा होती होगी? और फिर यह भी तो सोचो कि क्या होगा अगर अगली हाइलाइट्स में संधू का बॉल स्विंग ही न किया? क्या होगा तब? ग्रीनिज हमारी बड़ी दुर्गति करेगा. १९८३ में ही उसके पास बड़ा अनुभव था अब तो पूरे अट्ठाइस वर्षों का अनुभव उसमें जुड़ गया है. ऐसे में अगर वह अगले हाइलाइट्स में स्क्वायर ड्राइव लगाकर चौका मार दे तो? पता नहीं तुम्हें मालूम है कि नहीं लेकिन मुझे मालूम है कि उसने एक इंटरव्यू में कहा था कि; "अगर बॉल मेरे बैट पर ठीक से नहीं आती तो चौका हो जाता है. अगर आ जाती है तो फिर छक्का तो है ही."

हे अधिनायक, कभी तुमने माइकल होल्डिंग्स के पैड की दुर्गति के बारे में सोचा है? मोहिंदर अमरनाथ की बॉल पिछले अट्ठाइस वर्षों से उसके पैड पर एक ही जगह लग रही है. उसके पैड की दुर्दशा के बारे में सोचते हुए लगता है जैसे बेचारा पैड न जाने कितनी बार मरा होगा. उसके बाद मोहिंदर जिस तरह से भागते हैं और भीड़ उनका पीछा करती है वह देखकर लगता है जैसे अगर भीड़ इनके ऊपर टूट पड़ी और ये घायल हो गए तो फिर अगले हाइलाइट्स में कौन जेफरी डुजों को बोल्ड करेगा और कौन मार्शल को आउट करेगा? जिस तरह से डुजों टिक गया था, वह तो अगली हाइलाइट्स में मैच जीत ले जाएगा और हमारा जीता हुआ एक मात्र वर्ल्डकप हमसे छिन जाएगा.

और फिर अब समय आ गया है कि हम भारतीय मोहिंदर की उमर का लिहाज करे और उन्हें बार-बार लगातार दौड़ने की जिम्मेदारी न दें. अब तो उनके लिए यही सही रहेगा कि वे किसी टीवी स्टूडियो में बैठकर अपनी बेसुरी आवाज़ में मैच के दिन "मेरा रंग दे बसंती चोला" की गुहार लगायें और पूरे भारत का मनोरंजन करें.

हे अधिनायक, अगर ध्यान से देखो तो लॉर्ड्स की बालकोनी पर वर्ल्डकप उठाये हुए कपिल देव फबते तो बहुत हैं लेकिन हर बार मुझे ये खटका लगा रहता है कि इतनी भीड़ में कहीं कोई वेस्टइंडियन धक्का-मुक्की करके उनके हाथ से कप लेकर भाग न ले. आजकल चूंकि राजा लोग़ किसी एक्सक्लूसिव जगह पर कप उठाकर जीतने वाले कैप्टन के हाथ में नहीं रखते इसलिए ये डर नहीं रहता कि कोई धक्का-मुक्की में कप लेकर निकल लेगा. आजकल तो बाकायदा मैदान के बीच में कप दिया जाता है जहाँ भीड़-भाड़ कम रहती है.

इसलिए हे अधिनायक, और किसी बात के लिए नहीं तो कम से १२१ करोड़ भारतीयों को पिछले इतने वर्षों की बोरियत से तो बचाओ. किसी को केवल ख़ुशी देना ही महान काम नहीं होता. मैं तो समझता हूँ कि उसे बोरियत से बचाना महानतम काम होता है और आज पूरा भारत तुमसे यह चाहता है कि तुम और तुम्हारी टीम उसे ख़ुशी तो दे ही साथ ही आनेवाले वर्षों में उसे बोरियत से भी बचाए. मेरा तो ऐसा मानना है कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए पी ज़ी अब्दुल कलाम के ट्वेंटी-ट्वेंटी मिशन (क्रिकेट से मत जोड़ लेना इसे) को अचीव करने के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि पूरा भारत बोरियत से बचा रहे.

इसलिए हे अधिनायक, पूरे भारत की शुभकामनाएं तुम्हारे और तुम्हारी टीम के साथ हैं. कप जीतो हमें बोरियत से उबारो.

May God of cricket save us from this boriyat!!

17 comments:

  1. dil se mangi gai dua jaroor lagegi......mahi jitenge....hamari boriyat door hogi.....bhavishyavani
    nahi kar rahe....asha jata rahe hai..

    jai ho....

    pranam.

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  2. करारा कटाक्ष. लेकिन वह क्षण हैं तभी तो दिखा रहे हैं, अन्यथा है ही क्या हमारे पास. ध्यानचन्द, रूपसिंह को न तो कोई जानता है, न जानना चाहता है और सबसे बढ़कर बाजार में इनका मोल नहीं है. इतना तो फायदा हो ही गया है कि कई करोड़ का आयकर बच गया, लोग सब भूल गये, कलमाड़ी राजा और आदर्श.... यह बात अलग है कि जेब फिर भी उनहीं की कटेगी..

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  3. खेल मनोरंजन के लिए होते हैं और हमारा मीडिया मनोरंजन के लिए ही प्रतिबद्ध है। क्‍योंकि समाचार दिखाना तो इनके बस की नहीं, इसलिए सब लगे हैं मनोरंजन में।

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  4. `मैं कोई 'टीनेजर गर्ल' नहीं'.... और अब कोई चानस भी नाही ... हाय माही :(
    भारत भाग्य विधाता :)

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  5. LOL आखिर एक ब्लॉगर को और क्या चाहिए? एक पोस्ट, और क्या? mishraji ek blogger ko bas ek comment chahiye :D

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  6. एक ब्लाग तो बनता है.

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  7. ** एक टिप्पणीकार को भी एक पोस्ट और मिल जाए टिप्पणी में यह कहने के लिए कि बहुत मज़ा आया। इससे ज़्यादा और कुछ नहीं।

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  8. बंधू माही को इस तरह की पोस्ट लिख लिख कर परेशां न करें...अब १९८३ का वर्ल्ड कप हमने जीता तो इसमें उसका क्या दोष ?उसे बार बार दिखाया जा रहा है तो उसमें भी उसका क्या दोष?...सीधी सी बात है जिसके पास जो है वो उसे ही बार बार दिखाता है...हमारे टी.वी. वालों के पास १९८३ की फुटेज है वो उसे दिखा रहे हैं...आपके पास दुर्योधन की डायरी है आप उसे दिखाते रहते हैं...हमारे पास किताबे हैं तो हम उनका गुणगान करते रहते हैं...आप माही को परेशां न करें उसको परेशां करने को अभी बहुत से लोग लाइन में खड़े हैं...आपका नंबर बाद में आएगा...

    नीरज

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  9. 10 विकेट से जीते या पारी से हारे, जब तक दुनिया में क्रिकेट जिंदा है, कोई भारतीय कभी भी बोर नहीं हो सकता!

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  10. aapki boriyat door ho chuki hai -
    badhai aapko

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  11. रोचक लेख...बहुत दिलचस्प...

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  12. umda!!! mubarakbad lijiye dil se!!

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  13. एक ठो सुधार भेज रहा हूँ. ब्लॉगर को पोस्ट के अलावा टिपण्णी भी तो चाहिए होता है :)

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  14. मजेदार!

    धोनी बेचारा आपका यह प्रेमपत्र पढ़ने की स्थिति में ही नहीं था शायद। उसको तो अपने घर की चिंता सता रही थी जैसा कि एक अखबार ने बताया:
    एक संवाददाता: धोनी जब आप बैटिग कर रहे थे उस समय आपके मन में क्या चल रहा था?
    धोनी : मैं सोच रहा था कि अगर मैं अच्छा नहीं खेला और भारत हार गया तो लोग फ़िर मेरा घर तोड़ डालेंगे। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उसने मेरा घर बचा लिया। :)


    अब जब भारत जीत गया है तो सामान्य ज्ञानवालों को कई सवाल भी मिल गये। एक चित्र प्रतियोगिता भी। एक गेंद हवा में दिखाकर पूछेंगे कि बताइये ये रिचर्ड्स का कैच वाला शाट है या धोनी का छक्का वाला हेलीकाप्टर शाट!

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  15. चलो अब तो जीत लिए....बोरियत ख़तम !!!!!

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय