Friday, May 11, 2012

द्वापर युग का एक टीवी पैनल डिस्कशन

दो-तीन दिन पहले महाभारत से युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का प्रसंग पढ़ रहा था. राजसूय-यज्ञ के समय हुए शिशुपाल वध की बात भी पढ़ी. श्रीकृष्ण पूजन पर शिशुपाल के ऑब्जेक्शन से इन्द्रप्रस्थ की सभा में धर्म की व्याख्या वगैरह पढ़ी गई. तर्कों के तीर चले. उन तीरों को काटने के लिए नए तर्क गढ़े गए. फिर उधर से तर्क-तीर चले. फिर इधर से उनको काटा गया. तर्क वगैरह काटने के बाद काटने के लिए एक ही चीज बची थी. शिशुपाल की गर्दन. ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को भेजकर शिशुपाल जी की गर्दन काटकर उनको यमपुरी भेज दिया. देवताओं ने उप्पर से पुष्पवर्षा की. धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की समाप्ति हुई.

मन में आया कि वहाँ जो कुछ हुआ क्यों उसको बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया गया? वैसे देखा जाय तो और कर भी क्या सकते थे लोग़? उन दिनों टीवी चैनल भी तो नहीं थे कि पैनल डिस्कशन होते. रपट निकलती. विशेषज्ञ बैठते और बाल की खाल निकालते. ऐसा करने से शिशुपाल जी का मामला आराम से दस-बारह सालों तक चलता. इन्वेस्टिगेशन होता. एस आई टी जांच करती. उसकी रपट लीक होती. मानवाधिकार कार्यकर्त्ता नारे लगाते. मानवाधिकार नेता टीवी पर दलीलें देते. दूसरों की बात न सुनते. कैंडिल मार्च होता. शिशुपाल के लिए न्याय की मांग होती.

कुल मिलाकर बड़ी बमचक मचती.

शायद कुछ ऐसे;



न्यूज-आवर पर अरनब गोस्वामी जी आ चुके हैं. आते ही शुरू हो गए; "गुड़ इवेनिंग. इन अ बिजार टर्न ऑफ इवेंट, परसों करीब १० बजे सुबह श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के इन्द्रप्रस्थ की एक भरी सभा में महाराज शिशुपाल का क़त्ल कर दिया. उस शिशुपाल का जो राजा तो थे ही, श्रीकृष्ण के फूफा भी थे. सभा में शिशुपाल के जो दोस्त थे उन्होंने इसका विरोध किया लेकिन उनकी आवाज़ को दबा दिया गया. सवाल यह है कि इस देश में अब रूल ऑफ धर्मा है कि नहीं? तमाम तरह के अलग-अलग दावे किये जा रहे हैं. एक तरफ चेदिप्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्त्ता चाहते हैं कि इस मामले की पूरी छानबीन हो. वहीँ उनकी बात नहीं सुनी जा रही है. ऐसे में द नेशन वांट्स टू नो द ट्रुथ. सच क्या है यह देश जानना चाहता है. और इसके लिए वी हैव अ फुल पैनल टूनाईट ऑन न्यूज-आवर. हमारे साथ हैं हस्तिनापुर से कृपाचार्य टू इन्टरप्रेट धर्मा. हस्तिनापुर से ही हमारे साथ हैं महामंत्री विदुर. वी आल्सो वांटेड श्रीकृष्ण टू कम एंड ..लेकिन वे नहीं आये. इसलिए हमारे साथ हैं बलराम. उधर चेदिप्रदेश से हमारे साथ हैं नरोत्तम कलसखा जो ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं और जो चाहते हैं कि शिशुपाल के मर्डर की जांच एस आई टी करे. इन्द्रप्रस्थ से हमारे साथ है सहदेव. और हमारे स्टूडियो में मेरे साथ है बरिष्ठ पत्रकार आशुतोष. विदुर जी, मैं आपसे शुरू करना चाहता हूँ. क्या हुआ यह? भरी सभा में किसी को क़त्ल कर देना कहाँ तक जायज़ है?"

विदुर; "देखें ऐंकर श्री, पहले तो मैं आपको बता दूँ कि शिशुपाल श्रीकृष्ण के फूफा नहीं बल्कि उनके फूफेरे भाई थे. अब आप के सवाल पर आता हूँ. देखें, जिसे आप क़त्ल कह रहे हैं दरअसल वह क़त्ल नहीं है. उसे वध कहते हैं. धर्मनीति के अनुसार क़त्ल और वध में अंतर होता है."

अरनब; "लेकिन विदुर जी, एंड रिजल्ट तो दोनों का एक ही है न. आप उसको कोई भी वर्ड दे दें लेकिन दोनों का रिजल्ट यह है कि एक आदमी मारा जाता है."

विदुर; "ऐंकर श्री, पहले आप मेरी बात पूरी तो होने दें. देखें, किसी के अपराध की सज़ा के रूप में अगर किसी को मारा जाता है तो उसे वध....

नरोत्तम कालसखा; "आप ये बताएं..आप ये बताएं.."

अरनब; "ओके ओके. नरोत्तम जी वांट्स टू री-बट यू विदुर जी. मैं नरोत्तम जी के पास जाता हूँ. नरोत्तम जी, यह बताएं कि विदुर जो कह रहे हैं आप उससे सहमत हैं?"

नरोत्तम कालसखा; "बिलकुल नहीं. ये सो-काल्ड धर्म के जानकर केवल शब्दों से खेलते हैं. ये आज विदुर जी हस्तिनापुर में बैठकर धर्म सिखा रहे हैं लेकिन मैं आपको बता दूँ कि ये इनकी शब्दों की जादूगरी के अलावा और कुछ नहीं है. मैं पूछता हूँ कि केवल अपमान करने से किसी कि हत्या कर देना कौन सा धर्म है?"

अरनब; "विदुर जी, जवाब दें. नरोत्तम जी का कहना है कि केवल अपमान के बदले किसी का मर्डर कर देना कौन सा धर्म है?"

विदुर; "देखें, आप मुझे अपनी बात पूरी करने देंगे तब तो मैं कुछ कहूँगा. देखें, यह अपमान के एवज में हत्या का मामला नहीं है. असल मामला अधर्मी को दण्डित करने का है. बात केवल यह नहीं है कि शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया. बात यह भी है कि शिशुपाल अपने इलाके में राजाओं से युद्ध, प्रजा को अशांति और ऋषि-मुनियों को वर्षों से सताता रहा है. यह केवल श्रीकृष्ण के अपमान का मामला नहीं है. यह धर्म और अधर्म का युद्ध...

नरोत्तम कालसखा; "विदुर जी, आज आपको धर्म याद आ रहा है. धर्म तो यह भी कहता है कि स्त्री की हत्या नहीं करनी चाहिए. अगर ऐसा ही है तब श्रीकृष्ण ने पूतना की हत्या क्यों की? उस समय धर्म का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया? उनके मन में क्यों नहीं आया कि स्त्री की हत्या धर्म के विरुद्ध है?"

विदुर ; "देखें, पूतना एक राक्षसी थी. और वासुदेव कृष्ण ने उसकी हत्या नहीं बल्कि उसका भी वध ही किया था. वह श्रीकृष्ण को मारने के लिए गई थी. धर्म यह कहता है कि कोई भी अपने जीवन को बचाने के लिए किसी का भी वध कर सकता है."

नरोत्तम कालसखा; "मैं माननीय विदुर जी से पूछना चाहता हूँ कि हो सकता है पूतना हत्या करने के इरादे से गई होगी लेकिन उसने हत्या तो नहीं की न श्रीकृष्ण की. ऐसे में उसकी हत्या कर देना तो अक्षम्य हुआ."

विदुर; "तो कालसखा जी, आप क्या चाहते हैं कि पूतना पहले श्रीकृष्ण को मार देती क्या तभी उसका वध किया जा सकता था?"

नरोत्तम कालसखा; "मैं कहता हूँ कि क्या सबूत है कि पूतना श्रीकृष्ण की हत्या के इरादे से ही गई थी? श्रीकृष्ण ने कह दिया और आप मान गए? और फिर एक बात बताएं, क्या आप नहीं मानते कि हत्याऑं के मामले में श्रीकृष्ण का रिकार्ड ही खराब है. पूतना को तो जाने दें, श्रीकृष्ण ने उसे भी मार डाला जो उनका खुद का मामा था. महाराज कंस. आज शिशुपाल जी की हत्या कर दी जो खुद उनका फूफेरा भाई था. बचपन में ही इन्ही श्रीकृष्ण ने बकासुर की हत्या कर दी थी. वृषभासुर को मार डाला. मैं पूछता हूँ बचपन से ही केवल हत्याएं करना कौन से धर्म का है?"

विदुर; "नरोत्तम जी, पहले आप की जानकारी के लिए बता दूँ कि राक्षसों और अपराधियों को मारना...."

अरनब; "ओके ओके..मैं आशुतोष की तरफ आता हूँ. टेल मी आशुतोष, ये जो भरी सभा में हत्या हुई है, इसके बाद आप इस मामले को कहाँ जाता हुआ देखते हैं?"

आशुतोष; "अर्नब, यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना दिखाई देता है. जहाँ तक मेरी जानकारी है, श्रीकृष्ण का इस तरह से रिएक्ट करना शायद ठीक नहीं था. और मैं एक बात और बता दूँ अर्नब. पहले यह बात सुनाई दी कि इन्द्रप्रस्थ की सभा में ही शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का सौवीं बार अपमान किया लेकिन मेरी जानकारी के मुताबिक यह शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का सौवां अपमान नहीं था. मैंने इस केस को बहुत नजदीक से फालो किया है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस केस में ऐसे-ऐसे तथ्य सामने आ सकते हैं जो उन सभी बातों से भिन्न होंगे जो बातें अभी तक पब्लिक डोमेन में हैं."

अरनब; "जैसे? क्या खुलासा हो सकता है इस केस में?"

आशुतोष ; "जो मैंने खोजबीन की उससे तो बड़ी हैरत में डाल देने वाली बातें आई हैं सामने. जैसे मैंने अपमानों का रिकार्ड रखने वाले श्रीकृष्ण के कर्मचारी से भी बात की. उसका मानना है कि अपमानों का रिकार्ड रखने में गलती भी हो सकती है. ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपमान दो बार रिकार्ड हो गए हों. या ऐसा भी हो सकता है कि कोई २-३ अपमान दो बार रिकार्ड हो गए हों. वैसे अर्नब, मैंने उडती खबर यह भी सुनी है कि अपमानो के रजिस्टर में कुछ उलट-फेर भी हुआ है. अब पता नहीं यह बात कितनी सच है लेकिन सवाल तो अपनी जगह है. और अर्नब, मैंने इस केस को जिस तरह से फालो किया है.."

विदुर; "ये तो अभी परसों की घटना है पत्रकार श्री. दो दिन में कितना फालो कर लिया आपने?

अरनब; "ओके ओके..लेट मी गो टू बलराम..बलराम जी, यह बताइए कि क्या यह सच है कि अपमानों के रजिस्टर में हेर-फेर हुई है. ऐसी बात सुनाई दे रही है कि ऐसा हुआ है. आप क्या कहना चाहते हैं?"

बलराम; "देखिये, ऐसी बात बिलकुल नहीं है. अपमानों का रजिस्टर कभी भी कोई भी आकर देख सकता है. हम कुछ छिपा नहीं रहे. रही बात..."

नरोत्तम कालसखा; "लेकिन...लेकिन..."

अरनब; "ओके, नरोत्तम जी वांट्स टू री-बट यू. गो अहेड नरोत्तम जी."

नरोत्तम कालसखा; "बलराम जी, ये बताइए कि क्या सबूत है कि श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को शिशुपाल जी महराज के केवल सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था? हो सकता है उन्होंने सवा सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. या हो सकता है कि एक सौ चालीस अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. कोई सबूत है किसी के पास कि उन्होंने सौ अपमानों की ही बात की थी?"

बलराम; "नरोत्तम जी, जब श्रीकृष्ण ने बुआ को वचन दिया था मैं वहीँ पर था. और मैं आपको सच बताता हूँ कि उसने सौवें अपमान के बाद ही मारने का वचन दिया था. अगर आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो बुआ से पूछ सकते हैं."

नरोत्तम कालसखा; "देखिये बलराम जी मुझे आपकी बात का विश्वास क्यों हो? आप तो श्रीकृष्ण के भाई हैं. और रही बात बुआ से पूछने की तो क्या गारंटी है कि आप, श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर बुआ जी पर दबाव डाल के उनसे नहीं कहलवा देंगे कि श्रीकृष्ण ने केवल सौ अपमानों को क्षमा करने की बात कही थी?"

बलराम; "अब देखिये वैसे तो आपको हमारी किसी बात का विश्वास नहीं होगा लेकिन मेरा कहना यही है कि तथ्यों को जाने बिना...."

अरनब; "ओके लेट मी गोबैक तो आशुतोष. आशुतोष ये बताइए कि अब क्या देखते हैं इस केस में? अब जबकि मीडिया ने इस केस को अपने हाथ में ले लिया है?"

आशुतोष; "अर्नब, ये नरोत्तम जी का प्वाइंट महत्वपूर्ण है. मेरी बात एक सैनिक से हुई जिसने ये बताया कि जब श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को महाराज शिशुपाल के अपमानों को क्षमा कर देने की बात कही थी तो वह वहीँ पर था. और आपको हैरत होगी कि उसने बताया कि श्रीकृष्ण ने एक सौ पचहत्तर अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था. अब इसमें कितना सही है और कितना गलत यह कह पाना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन उस सैनिक ने मुझे यही बताया. और एक बात अर्नब. अब जिस तरह से सबूत एक-एक करके सामने आने लगे हैं उससे तो यही लगता है कि यह मामला बड़ा पेंचीदा होता जा रहा है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्लीयर नहीं है कि श्रीकृष्ण ने एक सौ अपमान होते ही महाराज शिशुपाल को मारना की बात कही थी या फिर एक सौ अपमान होने तक क्षमा कर देते और एक सौ एकवा अपमान होने के बाद मारते. यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है. और मेरा ऐसा मानना है..."

अरनब; "ओके ज्वाइनिंग मी नाऊ...अब हमें ज्वाइन कर रहे हैं हस्तिनापुर से आचार्य शकुनी. शकुनी जी, हमें ये बताएं...."

विदुर ; "ऐंकर श्री, महाराज शकुनी आचार्य नहीं हैं. आपको कम से कम इतनी जानकारी तो रहनी ही चाहिए. शकुनी गांधार नरेश हैं और पिछले कई वर्षों से अपनी बहन के घर बैठकर मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे हैं."

अरनब; "सॉरी सॉरी..विदुर जी. चलिए गंधार नरेश शकुनी ही सही. शकुनी जी, हमें ये बताएं कि ये इन्द्रप्रस्थ में जो महाराज शिशुपाल की हत्या का मामला हुआ है, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?"

शकुनी; "यह तो बहुत ही क्रूर हत्या का मामला है भांजे अरनब. क्षमा करो, मैंने तुम्हें भी भांजा कह डाला. एक सौ भांजो से दिन-रात मामा-मामा सुनते-सुनते आदत ख़राब हो गई है. हाल यह है कि एक दिन मेरे मुँह से जीजाश्री के लिए भी भांजे धृतराष्ट्र निकल आया था... हाँ तो मैं यह कह रहा था कि यह तो वासुदेव कृष्ण द्वारा क्रूर हत्या का मामला है. ऐसे में मैंने और भांजे दुर्योधन ने यह निर्णय लिया है कि कुछ ही दिनों में काशीनरेश के दरबार में होने वाले राजाओं के सम्मलेन में हमलोग इस मामले को उठाएंगे और चाहेंगे कि श्रीकृष्ण को उनके इस अपराध के लिए घोर दंड मिले. मैंने तय किया है कि हम इस मामले को मीडिया में उछालते रहेंगे जिससे शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."

अरनब; "ओके, लास्ट एक मिनट रह गया है मेरा पास. नरोत्तम जी, यह बताएं कि अब आपका क्या प्लान होगा? आप और आपके जैसे हजारों मानवाधिकार कार्यकर्त्ता क्या चाहते हैं?"

नरोत्तम कालसखा; "अरनब, हमारा स्टैंड बिलकुल क्लीयर है. हम यह चाहते हैं कि एक इंडिपेंडेंट एस आई टी से इस मामले की जांच कराई जाय और श्रीकृष्ण को तुरंत सज़ा दी जाय. जबतक यह नहीं होता, हम आन्दोलन करते रहेंगे और हम यह निश्चित करेंगे कि महाराज शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."

अरनब; "जेंटिलमेन, अब हमारे पास वक़्त नहीं है. लेकिन वी प्रोमिस यू दैट वी विल मेक इट स्योर दैट जस्टिस इज डन इन दिस केस. योर चैनल विल फाईट फॉर जस्टिस. हस्तिनापुर में कृपाचार्य और इन्द्रप्रस्थ में सहदेव जी, आपको भी थैंक्स. समय की कमी के कारण हम आपको समय न दे सके बट आई प्रोमिस यू कि अगली बार हम आप दोनों को भी समय देंगे. गुडबाय एंड गुड़नाइट."

18 comments:

  1. haahah नरोत्तम कलसखा 'ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट' वाले ....मस्त ! पैनल डिस्कशन को जारी रखे| :)

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  2. "रूल ऑफ धर्मा है कि नहीं?" अति उत्तम

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  3. बहुत बढ़िया भाँजे... आइ मीन भाई सा'ब. पूरी कथा चलचित्र की तरह आँखों के सामने चलती गई. इंटेलिजेंट अरनब रोक्स. वासुदेव इस युग में न हुए वरना...

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  4. ब्लॉग जगत को छोड़ें पूरे देश में महाभारत की जितनी अंदरूनी जानकारी आपको है उतनी तो इसके लेखक वेदव्यास (सही नाम है क्या?) को भी नहीं होगी...महाभारत के किस्सों कहानियों उनके पीछे की घटनाओं और उनके पात्रों पर आपके अधिकार को देख कर दांतों तले उँगलियाँ दबाने का मन होता है...कमाल किया है...टी.वी. के एंकर नेता अभिनेता सब पर आपकी पकड़ विलक्षण है...बंधू आप महान है...

    नीरज

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  5. इसका मंचन करा दीजिये, अरनब का रोल भला और कौन कर सकता है।

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  6. वाह! जायकेदार है ये व्यंग्य! सबसे मजेदार किरदार है आशुतोष श्री का! सही है, लगते भी हैं वे महाभारत काल के पत्रकार वो. साधुवाद आपको इस विशुद्ध व्यंगय रचना पर.

    रघुनाथ

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  7. नीरज जी की टिप्पणी को हमारी टिप्पणी माना जाये।

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  8. टीविया उठाई क पटकि देइ के चाही!

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  9. बहुत ही बढ़िया आती उतम

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  10. Sooo goood!!!.Cant stop laughing,the dialogues are so realistic like how those guys on panel discussion speak...This should be dramatized...a satire on Arnob and all the TV anchors/editors will be a HIT..:)

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  11. बहुत मजेदार व्यंग है!

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  12. Nice panel discussion of Arnob Goswami @timesnow

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  13. 'अपमानों के रजिस्टर' जैसे शब्द पढ़कर परसाई जी की शैली याद हो आयी सर।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय