गोवर्धन पर्वत कृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका पर उठा लिया था. पर सारे गोकुल वासी गुमान में रहे कि उनके हाथ लगाने से; उनके डण्डा अड़ाने से वह उठा है. कृष्ण काल का प्रतीक हैं. समय ने मायावती को जिता दिया. समय ने मुलायम को हरा दिया. पर हर डण्डा अड़ाने वाला “गोकुल वासी” मगन है कि उसने जीता चुनाव.
जनता पार्टी वाले प्रयोग के समय हम नासमझ थे. सन 1977 में रात भर जगे. श्रीमती गान्धी व उनके पुत्र के हारने का समाचार आकाशवाणी दे ही नहीं रहा था. हमें आम आदमी की जीत का एनाउंसमेण्ट सुनना था. हार कर सवेरे वह समाचार दिया. रेडियो जब मंगलाचरण गा रहा था तब हम मगन हो रहे थे कि जनता जीत गयी है. पर जो जीते; वो दूसरे ही थे. साल-डेढ़ साल में पूरी कलई खुल गयी. उन्होने आपसी खींचातान में जेपी की विचारधारा को ठिकाने लगा दिया. लोग सोचने लगे कि इससे तो श्रीमती गान्धी बेहतर थीं. आम आदमी वाला मिथक तब टूटा.
उत्तर प्रदेश में भी आम आदमी/बहुजन/सर्वजन का राज नहीं आया है.शिव कुमार मिश्र की मानें – और मानने में मुझे कोई हिचक नहीं है – तो 6 महीने के हनीमून में सब साफ हो जायेगा.
कभी-कभी तो लगता है कि नानी पालकीवाला सही कहते थे – वयस्क मताधिकार लागू कर भारत ने पिछली सदी की सबसे बड़ी भूल की थी. जब जनता मताधिकार के लिये परिपक्व है ही नहीं; तो “एक आदमी-एक वोट” का क्या मायने? और जनता अभी भी परिपक्व नहीं है.
फिर यह आम आदमी चीज क्या है? मुहल्ले वालों को पढ़ो तो आम आदमी कुछ और है; लोकमंच वालों के लिये कोई और है; मायावती के लिये कोई और है. मुलायम के लिये कोई और है. सिवाय लक्ष्मण के कार्टून में परिभाषित होने के, वह कोई मूर्त व्यक्ति नहीं है. मीड़िया अपनी दुकान चलाने को आम आदमी गढ़ता है. सैफोलोजिस्ट उसमें गणित और सांख्यिकी का चोला पहनाता है. फिर 6 महीने में आम आदमी का कैरीकेचर बदल जाता है. नेता का भी चित्र बदल जाता है।
आम आदमी/उसकी ताकत/उसका राज मिथक है. मिथक नहीं है तो वह है समय. समय कनिष्ठिका पर गोवर्धन उठाये है और तथाकथित आम आदमी अपना डंडा अड़ा, अपनी ताकत से मगन, अपने क्वासी-हिस्टिरिकल नशे में, आनन्दमार्गी नृत्य किये जा रहा है!!!
मीड़िया साइडलाइन में खड़ा, उसे जोश दिलाने को मृदंग/खरताल बजा रहा है!