Sunday, June 3, 2007

रेलवे झेलती है आन्दोलन

हर आये दिन लोग पटरी पर चले आते हैं. रेल के सिगनल तो सुरक्षा के लिये लगाये गये अवरोध हैं; पर जनता अनेक अवरोध खड़े करती है जो जनता के लिये ही नितांत असुरक्षित हैं. रेल को सॉफ्ट टार्गेट का नाम यूं ही नहीं दिया गया है.

मैं वाराणसी मण्डल में था. पडरौना के पास कॉलेज के छात्रों ने गाड़ी रोक ली. पता लगाने को कहा गया. तब तक हमने राज्य सरकार को फोन घुमाने प्रारम्भ कर दिये. एक घण्टे बाद पता चला कि कॉलेज में परीक्षा हो रही थी; प्रिंसीपल ने नकल नहीं करने दी. लिहाजा होनहार छात्र गाड़ी रोकने को मजबूर हो गये. बात आयी-गयी हो गयी. राज्य सरकार पर असर पड़ा, छात्रों पर और जनता पर. शायद प्रिंसीपल पर पड़ा हो और वे भविष्य में नकल कराने को सहमत हो गये हों.

सिवान के पास कस्बा है जीरादेई. उसकी खासियत यह है कि बाबू राजेन्द्र प्रसाद वहां जन्मे थे. वहां के लोगों ने रेल संघर्ष समिति बनायी और आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया कि उस जगह पर हर एक लम्बी दूरी की गाड़ी रुकनी चाहिये. तर्क यह था कि जीरादेई ने बाबू राजेन्द्र प्रसाद दिये देश को और देश इतना कृतघ्न है कि सारी ट्रेने भी उनके जन्म स्थान पर नहीं रोक सकता. आये दिन 2-3 घण्टे के लिये पटरी जाम कर वे लोग गाड़ियां रोकने लगे. जब अति हो गयी तो एक दिन पुलीस ने उन लोगों के हाथ-पैर तोड़े. नेता को अन्दर बन्द किया और रेलवे को कृतघ्नता से बिना ट्रेन-विराम कंसीड किये मुक्ति दिलाई. भगवान राजेन्द्र बाबू की आत्मा को शांति दें. उन्होने आजादी के लिये जो तरीके आन्दोलन के निकाले, लोगों ने उनका कैसा दुरुपयोग किया उन्ही के जन्म स्थान में उन्ही के उत्तराधिकारियों ने.

इस गुज्जर आन्दोलन (?) ने तो हमें थका दिया. एक तो इसका औचित्य समझ में नहीं आया. दूसरे यह तो आन्दोलन नहीं बगावत था कायदे-कानून को बतौर बागी तोड़ा लोगों ने. तीसरे इसमें कोई पैटर्न नहीं था. कब कहां 200-400 लोग पटरी पर जायेंगे, ट्रेक्टर से खींच कर पटरी डिस्टर्ब कर देंगे, सिगनल तोड देंगे, पत्थर बाजी कर देंगे, स्टेशन को आग लगा देंगे कहा नहीं जा सकता था. लिहाजा यात्री सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुये कई खण्डों पर यातायात रोक देना पड़ा. दिन-रात हम लगे रहे चल रही गाड़ियों को गंतव्य तक पंहुचाने की जुगत में.

आज जब लोग रविवासरीय आराम पर हैं, रेल मण्डलों पर टीमें कार्यरत हैं कि प्रचण्ड नुक्सान के बावजूद किस प्रकार से यातायात सामान्य किया जाये. हर घण्टे सूचना अपडेट की जा रही है. आन्दोलन को झेलते हुये भी नार्मल्सी लाने का सतत प्रयास कर रहे हैं कर्मी. कौन समझेगा इस जुनून को.

गुज्जर उग्रवाद तो तर्क नहीं मानता. सच में वह आदिमानव सा व्यवहार कर रहा है. आरक्षण देना देना तो पॉलिसी का मामला है या राजनीति का. पर इस आन्दोलन ने तो उनका जंगली आदिवासी के रूप में सशक्त परिचय करा ही दिया है.

4 comments:

  1. मै आपकी व्यथा समझ सकता हूँ। लेकिन हिन्दुस्तान मे अब तो यह सब आम बातें हो गयी है। किसी चीज का विरोध करना हो, जाओ, रेलवे/रोडवेज की सम्पत्ति तोड़ो, लो जी हो गया विरोध। इनके अनुसार यही लोकतन्त्र है।
    उधर सरकार भी है, वादों के लॉलीपाप टिकाती जाती है, इसे कहते है, घर मे नही है दाने, अम्मा चली भुनाने।

    अब तो लगता है, टैक्स देने वालों को भी सड़क पर उतरना पड़ेगा, इन आन्दोलन करने वालो के खिलाफ़, आखिर इनके द्वारा तोड़ा गयी सम्पत्ति की कीमत हमारे द्वारा दिए गए, करों से ही तो वसूल होगी। ये लोग तो हमेशा की तरह आरक्षण का ही इन्तज़ार करते रहेंगे।

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  2. आपकी समस्या समझी जा सकती है. आपके (रेल्वे कर्मचारीयों के) प्रयासो को सरहाते है.

    अनुसाशन स्वयंमेव न आये तो डण्डे के बल पर लाना पड़ता है.

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  3. आन्दोलन वालो के लिये रेल एक soft target है. हजारों मील लम्बी पटरी पर दौडती हजारों train का कोई मालिक नहीं. शायद सारे यात्री भगवान भरोसे यात्रा कर रहे हैं. जब जिसने चाहा, जहाँ चाहा train रोक दी, पटरी तोड दी,

    कोइ नहीं समझता कि सभी यात्री सैर सपाटे वाले नहीं है,
    कुछ बिमार है, जिन्हे डाक्टर के पास जाना है,
    कुछ बेरोजगार है, जिन्हे इन्टरव्यु पर जाना है,
    कुछ बच्चे परिक्षा देने जा रहे है,
    पता नहीं कितनी emergency है.

    लेकिन इतनी मानवता किसमे है?

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  4. Sir, please aap apnee kuchh posts ko apnee English blogs par bhi post karen. Aapki railway related posts kaafi interesting hain aur ek fresh perspective deti hain.

    English blogosphere mein Gujjar related discussion sirf politics aur reservation par hi centred hain. Aapki yeh, aur pichhlee post mein jaisa first hand account diya hai aapne, woh wahan nahi milega. Main yeh Gujjar-bashing ke maksad se nahi kah raha hoon. Main chahta hoon ki baaki log bhi jaane jab aisa law and order situation uthta hai to kaise railways ya baaki public services behind the scenes kaam karteen hain.

    Thank You.

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