Sunday, September 23, 2007

राम सेतु पर लेखन का बालकिशन जी का सुझाव!



भले लोग वाकई भले होते हैं. मित्र, बाल किशन मिल गए. आश्चर्य न करें. मित्र भी भले होते हैं. वो तो शायर लोग दोस्तों के बारे में 'भड़काऊ' शेर लिखकर आम लोगों के मन में दोस्तों के प्रति कुछ शंका पैदा करते रहते हैं. लेकिन मेरा अनुभव ये है कि दोस्त उतने ख़राब नहीं होते, जितना शायर लोग बताते हैं. राजेश रेड्डी साहब ने लिखा है;
रोशन हूँ इतनी तेज हवाओं के बावजूद
जिंदा हूँ दोस्तों की दुआओं के बावजूद
पता नहीं उनके साथ क्या हुआ कि उन्होंने ऐसा लिखा. वे अकेले नहीं हैं. कितने सारे शायरों के शेर पढ़कर लगता है कि उनके दोस्तों ने उनके 'पीठ में खंजर' घोंप दिया था. लेकिन मैं शायर तो हूँ नहीं इसलिए किसी दोस्त से ख़तरा नहीं महसूस करता. वैसे समाजशास्त्र का विद्यार्थी इस बात पर शोध कर सकता है कि शायरों को उनके दोस्तों ने धोखा क्यों दिया. कारण जो भी निकले, एक बात जो मेरे मन में आती है, वो आपको बताता चलूँ. मेरे ख़्याल से ये शायर लोग जब भी नई गजलें लिखते होंगे तो दोस्तों को सुनाने में जुट जाते होंगे. दोस्त को बर्दाश्त नहीं होता होगा, तो वो छुरा चला देता होगा. गजल सुनाने से दोस्त अगर छुरा चला सकता है तो दुश्मन तो तोप चला देगा. लेकिन एक बात के बारे में आजतक सोच नहीं पाया, कि ये दोस्त लोग पीठ में ही छुरा क्यों उतारते थे. शायद शायर लोग उनकी तरफ़ पीठ करके गजलें सुनाते थे.

भटक गया मैं. हमारे ज्ञान भइया होते तो तुरंत टोक देते कि विषयान्तर हो रहा है. चलिए शायर, शेर, छुरा और दोस्ती से हटकर दोस्त की बातें करते हैं. हाँ, तो बाल किशन मिल गए. बाल किशन के बारे में मैंने पहले भी लिखा था कि किस तरह से उन्होंने मुझे अच्छा ब्लागिया बनने के उपाय बताये थे. छूटते ही बोले; " बीस पोस्ट लिखने के लिए कहा था इसका मतलब जैसे-तैसे, जो-तो लिखोगे क्या?"

मैंने पूछा; "यार ऐसा क्यों बोल रहे हो? कोई पोस्ट तुम्हें नागवार गुज़री क्या?"

बोले; "गुजरेगी नहीं! भविष्य की आड़ लेकर भूतकाल की बातें लिखते हो. कभी-कभी वर्तमान के बारे में भी सोचो. देश को आज ब्लागवीरों की जरूरत है. दो-तिहाई ब्लॉग-सेना देश के लिए अपना समय और की-बोर्ड निछावर कर दे रही है और तुम हो कि अगड़म-बगडम जो मन में आ रहा है लिखे जा रहे हो."

आश्चर्यचकित होते हुए मैंने पूछा; "ब्लागवीरों की सेना! ऐसी कोई सेना है क्या?"

बोले; "ब्लॉग लिखते-लिखते चार महीना हो गया. लेकिन नतीजा वही. कुल धान बाईस पसेरी. अरे एक तरफ़ तो इतने जागरूक ब्लॉगर हैं, और एक तरफ़ तुम. आज देश को ब्लॉगर-सेना की जरूरत है.कम से कम एक पोस्ट तो वर्तमान के बारे में सोचकर लिखो."

मैंने कहा; "जरूरत है, मानता हूँ. लेकिन लड़ाई कहाँ लड़नी है, जब तक ये नहीं पता चले तो लैपटाप हाथ में लेकर कौन से सीमा पर जाएँ?"

बोले; "सीमा तय करने की आदत नहीं गयी तुम्हारी. अच्छा ब्लागिया कभी सीमा के बारे में नहीं सोचता. उच्चकोटि का ब्लागिया वो है जो असीम चिंतन करे."

मैंने कहा;"अरे यार पहेलियाँ बुझाते रहोगे या साफ-साफ बताओगे भी कि बात क्या है. किस मुद्दे पर लिखने को कह रहे हो?"

बोले; "राम और रामसेतु. पिछले बीस दिनों में क़रीब नब्बे पोस्ट आ चुकी हैं. रोज इस आशा के साथ तुम्हारे ब्लॉग पर आता हूँ कि आज शायद लिखा हो. तुम्हारे विचार क्या हैं. तुम क्या सोचते हो. लेकिन एक पोस्ट तो क्या एक लाईन भी नहीं दिखाई दी तुम्हारी".

(यह रामसेतु है)
मैंने पूछा; "हाँ ये बात तो है. मैंने तो इस विषय पर सोचा ही नहीं. लेकिन तुम्हें क्या लगता है, किसकी बात जोरदार लगती है तुम्हें? उनकी जो राम-सेतु तोड़ने के पक्ष में हैं, या उनकी जो नहीं चाहते कि राम-सेतु टूटे?"

बोले; "राम-सेतु तोड़ने और न तोड़ने की बात किसी ने की ही नहीं. सब तो राम की बात कर रहे हैं. मसलन राम थे कि नहीं. राम के नाम पर राजनीति हो रही या नहीं है. हिन्दुओं को भड़काने का काम हो रहा है. राजनैतिक पार्टियां रोटी सेंक रही हैं. उबलने के लिए चावल भी चूल्हे पर रख दिया है, आदि-आदि."

मैंने पूछा; "तो तुमको क्या लगा? ब्लॉग-सैनिकों का प्रदर्शन कैसा रहा?"

बोले; "कुछ समझ में ही नहीं आया. ब्लॉग-सैनिक अपनी-अपनी तलवारें हवा में भांज रहे हैं. कौन क्या कहना चाहता है पता ही नहीं चला. पोस्ट पढ़कर लगा जैसे ब्लॉग पोस्ट नहीं छायावाद का निबंध है." आगे बोले;" नसीरुद्दीन साहब को ही ले लो. राम-सेतु के नाम पर क्या-क्या लिख गए. उन्होंने तो मामला व्यक्तिगत, राज्यगत, गांवगत तक बना डाला. कह रहे थे सीता जी उनके गाँव की थीं. राम उनके गाँव के दामाद थे, लेकिन उन्होंने सीता जी को बड़ा दुःख दिया. बहुत नाराज दिख रहे थे राम से. कह रहे थे , राम ने अच्छा नहीं किया, सीता को दुःख देकर.यहाँ तक कहा कि राम समर्थ थे, अपना हक भरत से लड़कर ले सकते थे.लेकिन जान-बूझ कर सीता को इतना दुःख दिया."

मैंने कहा; "तो जब इतने सारे लोग इतना कुछ लिखकर भी 'कुछ नहीं लिख सके' तो फिर मैं क्या लिखूंगा. और अगर लिख भी दिया तो मेरे विचार इतने बड़े झगड़े में कौन सुनेगा?"

बोले; "फिर भी देखो. हो सके तो कुछ लिखो. हो सकता है ब्लॉग समाज के लोगों के लेखन से ही समस्या का समाधान मिल जाए."

मैंने सोचा लेखन से समस्या खडी हुई है. पहले सरकार ने सेतु तोड़ने के लिए प्लान लिखा होगा. फिर वित्त-मंत्री ने बजट लिखा होगा. उसके बाद कैबिनेट ने अपना फैसला लिखा होगा. फिर आर्कियोलोजिकल सर्वे के अफसरों ने हलफनामा लिखा होगा. आगे चलकर अम्बिका सोनी जी अपना इस्तीफ़ा भी लिख सकती हैं.

तुम्ही ने दर्द दिया और तुम्ही दवा देना वाले दर्शन पर चलकर हो सकता है लेखन से ही समस्या ख़त्म भी हो जाए.

8 comments:

  1. बढ़िया दर्द है। अब इसे दबाने के लिये दवा का इंतजार है। शायरों की पहचान के लिये देखा जा सकता है कि उनकी पीठ पर खंजर का घाव है कि नहीं! जिसके जितना बड़ा घाव वह उतना बड़ा शायर। है कि नहीं !

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  2. क्या बात है। दबा के मार रहे हैं या कंबल ओढ़ा कर। बात पते की है। चपे रहिए। कुछ के लिए सेतु सत्तू की तरह है। फंकी बना कर अंदर कर रहे हैं।
    आनन्द आया भाई।

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  3. शिवकुमार जी, शायर पीठ दिखाके भागते होंगे तभी उनकी पीठ पर छुरा लगता है। हां, राम सेतु पर लिखने के बहाने आपने बड़े हेतु की बात निकाली है। धन्यवाद।

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  4. क्षमा करना बडे भाई बहुत दिनो बाद आपको पढ रहा हूं, अब शायर महोदय नें कहा है तो लिखें ही हमें भी इंतजार रहेगा । वैसे एक हिन्‍दूवादी भाई नें अंग्रेजी में रामसेतु पर ब्‍लागपोस्‍ट बनाया है बहुत ही बढिया जानकारी है उसमें उसका यूआरएल मैं भूल गया हूं कुछ लिखने से पहले एक बार अवश्‍य पढियेगा, पिछले दिनों बजरंगियों नें मुझे पढवाया था । शायद www.ramsetu.blogspot.com है ।
    प्रणाम

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  5. वाह शायर वाला शोध बहुत मजेदार रहा, हँस-हँस कर मैं बेहाल हो गया। :)

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  6. लपक के लपेटा आपने!!

    गलती से भी कभी अपन शायर बने तो कभी पीठ करके दोस्तों को गज़ल नई सुनाएंगे!!

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  7. बंधु
    शायरों के बारे मॆं आप के अल्प ज्ञान से मैं आहत हुआ हूँ !आप तो ऐसे न थे ! शायर बहुत योद्धा किस्म के लोग होते हैं ! सच्ची बात कहते हैं और सच अक्सर पसंद नहीं किया जाता इसलिए लोग उनके पीछे छुरा लिए घूमते हैं , आगे लेकर घूमने मॆं उनके ख़ुद के आहत होने का खतरा जो होता है !शायर दिल से काम लेते हैं और समझते हैं की सारी दुनिया उनकी दोस्त है तभी जो उनको छुरा मारता है या कोशिश करता है वो उनको दुश्मन नहीं लगता !
    अब बात राम सेतु पर ! राम ने सेतु जो बनाया था वो मेरे रामायण के अल्प ज्ञान के अनुसार ऐसे पथ्थारों से बनाया था जो पानी पर तैर सकते थे !हर पत्थर पर राम के हस्ताक्षर थे ! राम सेतु तो पानी के भीतर है तो ये वो नहीं हो सकता जो श्री राम ने बनाया था लंका जाने के लिए और अगर वो ही है तो उन् पर राम के हस्ताक्षर देखे जा सकते हैं ! कितना आसान उपाय है जिस पर इतना विवाद हो रहा है !
    राम द्वारा छोडी गयी हर परम्परा को जब हम भूल चुके हैं तो फिर उनके द्वारा छोड़े गए सेतु के अवशेषों के लिए क्यों इतना सर फोडी कर रहे हैं बताईये?
    हम तो सिर्फ़ प्रश्न पूछे हैं जवाब देने को बाध्य नहीं किए हैं आप को ! टेंशन न लें !
    नीरज

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  8. नीरज भैया,
    अल्पज्ञान वालों से आहत होने में समस्या नहीं होनी चाहिए. समस्या तो तब होती है जब ज्ञान वाले आहत कर जाते हैं.... शायरों के लिए मेरे मन में कितनी इज्जत है, आप जानते हैं....लेकिन आपने ने पढा तो होगा, भटक गया था मैं...अब आदमी भटक जाए तो इधर-उधर कहीँ भी चला जाता है....:)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय