Sunday, September 23, 2007

समस्या आहत मन की है - सेतु की नहीं


सेतु मुद्दा नहीं लगता मुझे. वह पर्यावरण वादी और अर्थशास्त्री/बिजनेस की समझ वाले सलटें. मुझे समस्या अपने आहत मन की लगती है. अगर जरूरी हो तो सेतु हटाया जा सकता है. स्वयम राम ने शिव का पिनाक ध्वस्त किया था स्वयम्वर में. पर ध्वस्त करने के पहले गुरु का ही मन ही मन स्मरण कर उनका अनुमोदन लिया था. यह आवाहन/अनुमोदन श्रद्धा के स्तर पर होता है - लिखित सैंक्शन जैसा नहीं होता. मुझे विश्वास है, राम भी - जो खुद अपने समय से आगे चले, हमें इतिहास/मिथक से मात्र चिपके रहने को विवश नहीं करेंगे.

परषुराम जी से संवाद में राम कहते भी हैं "छुअतहि टूट पिनाक पुराना" - अर्थात पुराना और अप्रासंगिक तो मात्र निमित्त ढ़ूंढ़ता है अवसान को. अत: सेतु अगर अप्रासंगिक होगा तो जायेगा ही.

ramdarbar
मुझे विश्वास है, राम भी - जो खुद अपने समय से आगे चले, हमें इतिहास/मिथक से मात्र चिपके रहने को विवश नहीं करेंगे.

पर वह है, जब हम राम को आदर्श मानें तब न! हम तो यह देख रहे हैं कि उन्हें नकारा जा रहा है. उनकी उपेक्षा की जा रही है. अपमान किया जा रहा है. और यह सब किया जा रहा है कि धर्म निरपेक्षता के लेबल का पट्टा अपने खेमे में सिक्योर रखा जा सके.

आज शिवकुमार मिश्र ने यह मुद्दा बालकिशनजी के माध्यम से उठाया है. मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर वे आगे भी बोलेंगे. मैं उनकी ड्राफ्ट पोस्ट का अवलोकन कर रहा हूं; जो स्पष्ट नहीं है कि पब्लिश होगी या उनकी कई पोस्टों की तरह काफी समय तक लटकती रहेगी और अन्तत: विषय अप्रासंगिक हो जायेगा. खैर, वे लिखें - सेतु के पक्ष में या विपक्ष में; मुझे तो सेतु मुद्दा लगता ही नहीं. मुझे तो अपनी आहत भावना दीख रही है. यही भावना और लोगों की होगी और उसे राजनैतिक लोग/दल चुनाव में भुनाने का प्रपंच रचेंगे. प्रारम्भ हो ही गया है खेल.

पता नहीं राम क्या करने जा रहे हैं. पर जो भी वे करेंगे, उसमें उनका अपना ही विधान होगा. मेरे मन की दशा में भी उनका अपना ही विधान है.

हे राम; मेरे विचलित मन में सही और गलत की समझ बनाये रखें. वह भीड़ या उद्वेग का शिकार न बने - यह कृपा करें.


6 comments:

  1. hoi hae wahi jo raam rachii rakha
    ko karee tark badve saakha
    aur kalug ka anth bhee toh hona hee hae ram ko phir sae aanaa hee

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  2. राम,
    आओ वोटों के काम

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  3. स्पष्ट नहीं है कि पब्लिश होगी या उनकी कई पोस्टों की तरह काफी समय तक लटकती रहेगी और अन्तत: विषय अप्रासंगिक हो जायेगा-यह हुआ सही सरकारीकरण शिव जी की पोस्टों का. :)

    अरे, धड़ाधड़ छापिये. सच में, समस्या आहत मन की ही है.

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  4. ये बात तो सही है कि राम अगर होते तो आज तो शायद सेतु तुड़्वाकर मामला निपटा देते। :)

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  5. प्रभु

    हमें तो आप की पोस्ट पर टिपियाना बहुत कठिन काम लगता है ! कारण ये है की आप बहुत ज्ञान की बात लिखते हैं, अब ज्ञान की बात पर सर हिलाया जा सकता है टिपियाया नहीं जा सकता और अगर हम आप ने जो लिखा है उसके विपरीत कुछ लिखते हैं तो न सिर्फ़ अपने अल्प ज्ञान का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं अपितु अपनी नज़रों से स्वयं ही गिर के मन को आहत कर लेते हैं ! हमारे और आप के मन के आहत होने के अलग अलग कारण हैं !

    दुःख का विषय ये है की जो लोग राम के प्रति या विपरीत बोल रहे हैं वे राम को समझ ही नहीं पाये हैं !अगर हम राम को एक प्रतिशत भी समझ लें तो शायद कोई मुद्दा ही न रहे! राम आप की पोस्ट की तरह हैं जिसको समझ कर आत्मसात किया जा सकता है बहस का मुद्दा नहीं बनाया जा सकता.!

    दुःख का दूसरा विषय ये है की हमारी बात को भी लोग आपकी पोस्ट की तरह कहाँ समझ पाते हैं?
    हम दोनों आहत मन लिए प्रभु एक ही नाव पे सवार हैं !

    नीरज

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  6. क्या बात है!

    बेहतरीन पोस्ट . परम्परा के प्रति सम्मान रखते हुए भी आधुनिक हुआ जा सकता है .

    बात 'ईकोलॉजी' और 'इकनॉमिक वायबिलिटी' की होनी चाहिए . बिना बात राम को बीच में लाया जा रहा है . उसके बात शुरु होती है ' द क्लैश ऑव इग्नोरेंस' . अगणित मूर्खताओं की 'बाईपोलर' फूहड़ मुठभेड़ .

    'द क्लैश ऑव इग्नोरेंस' -- यह मेरा दिया हुआ शीर्षक नहीं है . हटिंग्टन की पुस्तक 'द क्लैश ऑव सिविलाइजेशन' की समीक्षा करते हुए उसे यह शीर्षक सुप्रसिद्ध साहित्य-सिद्धांतकार एवम सभ्यता-समीक्षक एडवर्ड सईद ने दिया है .

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय