Thursday, November 29, 2007

ब्लॉगिंग पर कविता



जब भी 'कविता' लिखने के लिए जरूरी मात्रा में तुकबंदी करने बैठा, पचास ग्राम से ज्यादा तुकबंदी नहीं कर सका. आज पहली बार हुआ कि तुकबंदी की मात्रा सौ ग्राम पहुँच गई. इसीलिए ये कविता लिख डाली. झेलिये:


ब्लॉग खोलकर बैठ गए हैं
पोस्ट ठेलकर खुश हो जाते
दिन में बीसों बार देखते
पाठक कितने आते-जाते

बने निवेशक टिप्पणियों के
बिना मांग के भी दे देते
अगर मिले ना वापस भी तो
दिन कट जाता पीते-खाते

तीन के बदले एक मिले जो
चेहरा उसपर भी खिल जाता
कभी-कभी ऐसा भी होता
नहीं मिले फिर भी टिपियाते

मिले टिपण्णी यही जरूरी
नाम दिखे या हो बेनामी
कभी-कभी गाली पाकर भी
ब्लॉगर कितने खुश हो जाते

विषयों की भी कमी नहीं है
नेता, जनता, रेल, खेल में
कविता हो या गजल, कहानी
खोजें जहाँ वहीं पर पाते

लेकिन मोदी बिना अधूरी
ब्लागिंग की ये अमर कहानी
जहाँ मिले मौका खुश होकर
उन्हें कोसते और गरियाते

और एक उपलब्धि हमारी
हमने मेहनत से पाई है
तन्मयता से गुटबाजी कर
अपनी बातों को फैलाते

भाषा की ऐसी की तैसी
हम तो 'लिक्खें' नूतन भाषा
हिन्दी में अंग्रेजी जोडें
और अंग्रेजी में 'हिन्दियाते'

बड़े निराले नाम ब्लॉग के
और अनूठे ब्लॉगर के भी
सब में दर्शन रहे खोजते
कुछ में बिन खोजे ही पाते

ऐडसेंस में बड़ा सेंस है
जिनको बात समझ में आई
पोस्टों की बस झड़ी लगाकर
पाठकगण को बहुत सताते

गाली लिक्खें, कसें फब्तियाँ
दुखी अगर कोई हो जाता
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का
टूटा हुआ रेकॉर्ड बजाते

ये सारी बातें हैं फिर भी
कोई डोर हमें बांधे है
मिलकर हमसब गिरते-पड़ते
चिट्ठापथ पर चलते जाते
चिट्ठापथ पर चलते जाते

12 comments:

  1. शिव भईया सौ ग्राम नहीं पूरे किलो भर है, अब तो हिन्‍द युग्‍म वालों को आपकी अनुशंसा भेजनी होगी कि हमारे एक और गद्य के ब्‍लागर कविता लिख रहे हैं ।
    वाह वाह ।

    आरंभ
    जूनियर कांउसिल

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  2. भैया, दाल में काला लग रहा है। व्यंग का निशाना हमें तो नहीं बना रहे! :-)

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  3. सत्य वचन………अनोखी है ये ब्लागिंग की दुनिया ,फ़िर भी…………

    ये सारी बातें हैं फिर भी
    कोई डोर हमें बांधे है
    मिलकर हमसब गिरते-पड़ते
    चिट्ठापथ पर चलते जाते
    चिट्ठापथ पर चलते

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  4. तुकबन्दी में चिट्ठाजगत की माया
    इसका रूप बखान बड़ा मन भाया !

    व्यंग्य हास्य में 'किलो' भर आया
    सत्य 'शिव' का सुन्दर बन पाया !

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  5. अच्छी तुकबंदी करते हैं जी..यह क़्या ज्ञान जी के ऊपर व्यंग्य है...:-)

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  6. बहुत खूब लिखा है बंधू. गध्य पर तो आप की पकड़ थी ही अब पद्य पर भी बना रहे हैं. ग़ज़ल के क्षेत्र में कब कूदेंगे महाराज?

    मिले टिपण्णी यही जरूरी
    नाम दिखे या हो बेनामी

    "बिना टिपण्णी सब ब्लॉगर की यही कहानी
    दिल जैसे शमशान और आंखों में पानी"
    नीरज

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  7. समझ गया. ये व्यंग्य ज्ञान भइया पर नही साफ-साफ मेरे ऊपर किया गया है. देख लें :-
    मिले टिपण्णी यही जरूरी
    नाम दिखे या हो बेनामी
    कभी-कभी गाली पाकर भी
    ब्लॉगर कितने खुश हो जाते
    लेकिन मैं भी संजीव जी और वड्डे वाप्पाजी की बात से सहमत हूँ.

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  8. शिव भाई
    अच्छी कविता है....

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  9. कित्थे कित्थे नज़र डाल रेले हो भैय्या!!
    मस्त लिखा है!!

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  10. मज़ा आ गया जनाब. ये तो समझ में नहीं आया कि निगाहें किधर हैं और निशाने पे कौन है ... लेकिन बात तो दो टूक कह ही दी आपने. और हाँ, पचास ग्राम भी हो जाये तो ठेल दिया करें, झेलने वाले हम जैसे कई बैठे हैं ... एक श्रेणी यह भी तो है !

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  11. एकदम सरसराती चली गई कविता। सौ ग्राम की बात तो विनम्रता ही है। वज़न तो कहीं से भी दो ढाई किलो से कम नहीं । ये आप भी जानते होंगे।

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  12. जी खुश हो गया वाकई. आपमे काव्य प्रतिभा तो है ही. पहले पैदा हुए होते तो मैथिली शरण गुप्त वगैरह भी हो सकते थे . पर खैर देर की है तो भुगतो. अरे कान पुर कवि सम्मेलन मे विपुल जी के साथ आप ही थे कया. 24 नवम्बर को?

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय