अमेरिका ने इस बात का खुलासा किया है कि उसके एक कानून के मुताबिक वह दुनिया के किसी भी व्यक्ति को अगवा कर सकता है। यह कानून करीब डेढ़ सौ साल पहले बनाया गया था. मजे की बात है कि इस कानून का प्रयोग कर अमेरिका ने १९९० में मेक्सिको के एक नागरिक को अगवा भी किया था।
मतलब ये कि अमेरिका में पहले से ही ऐसा है. अपराध करने की प्रवृत्ति का विकास बाकी के अपराधियों जैसा ही हुआ है.
अर्थव्यवस्था के मामले में भी अमेरिका ने विश्व के ज्यादातर देशों को अगवा कर रखा है. इन देशों की अर्थव्यवस्था इनके अपने आंकडों पर नहीं चलती. चलती है तो अमेरिका में पैदा किए जाने वाले आंकडों पर.डेढ़ सौ साल पहले अगवा करने से शुरू हुई आपराधिक प्रवृत्ति आगे चलकर युद्ध में परमाणु बम के इस्तेमाल से होते हुए पूरे विश्व पर शासन करने की महत्वाकांक्षा तक जा पहुँची. अपराध विज्ञान के शोधकर्ता इस बात से निश्चिंत हो सकते हैं कि आपराधिक प्रवृत्ति का विकास हर अपराधी के केस में एक जैसा ही होता है, फिर वो चिमन टुंडा हो या अमेरिका.
मतलब ये कि अमेरिका में पहले से ही ऐसा है. अपराध करने की प्रवृत्ति का विकास बाकी के अपराधियों जैसा ही हुआ है.
अर्थव्यवस्था के मामले में भी अमेरिका ने विश्व के ज्यादातर देशों को अगवा कर रखा है. इन देशों की अर्थव्यवस्था इनके अपने आंकडों पर नहीं चलती. चलती है तो अमेरिका में पैदा किए जाने वाले आंकडों पर.
वैसे भी अमेरिका को ये सब बताने की जरूरत क्या थी. जो अमेरिका विश्व के ज्यादातर देशों को अगवा किए है, उसे किसी देश के नागरिक को अगवा करने की जरूरत ही नहीं है. किसी देश के एक नागरिक को अगवा करना कितना टुच्चा काम लगता है. अब अमेरिका जैसा देश केवल एक आदमी को अगवा करेगा तो फिर अमेरिका और चम्बल के हरिया डाकू में फर्क ही क्या रह जायेगा? अमेरिका समर्थ है. उसको तो चाहिए की वह उस देश को उठाकर अपने यहाँ ले जाए और फिर जिस नागरिक को पकड़ना है, उसे हाजिरी लगाने का आर्डर दे डाले. दो-चार हजार लोगों को रिज़र्व कोटा में पकड़ ले. क्या पता भविष्य में किसकी जरूरत पड़ जाए. इस मामले में अमेरिका को हनुमान जी से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने सोचा कि कहाँ खोजते फिरेंगे संजीवनी, सो पर्वत ही उठाकर ले चलो. लेकिन ही-मैन, सुपरमैन वगैरह को सबसे बलशाली मानने वाला अमेरिका 'हनु-मैन' से सीख लेगा, इस बात की संभावना कम है.
अर्थव्यवस्था के मामले में भी अमेरिका ने विश्व के ज्यादातर देशों को अगवा कर रखा है. इन देशों की अर्थव्यवस्था इनके अपने आंकडों पर नहीं चलती. चलती है तो अमेरिका में पैदा किए जाने वाले आंकडों पर. देखिये न, अमेरिका में सब-प्राईम लोन को लेकर जो हंगामा खडा हुआ है, उसने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को सकते में डाल दिया है. वहाँ के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को ऐसे लोन से बहुत नुकसान हुआ. लेकिन यहाँ एक लोचा हो गया. पूरे विश्व को मैनेजमेंट के गुर सिखाने वाले अमेरिका को अब पता चल रहा है कि उसके देश के मैनेजर तो दो कौडी के हैं. सिटी ग्रुप के हेड चार्ल्स प्रिन्स को हटाया जाना इसका एक उदाहरण है. सबसे मजे की बात ये है कि उनकी जगह लेने के लिए जो लोग सबसे आगे चल रहे हैं, वे भारत और पाकिस्तान से हैं. इस घटना पर सबसे बढ़िया कमेंट मेरे सहयोगी विक्रम ने किया. बोला; "भैया, पूरा अमेरिका ही सब-प्राईम नेशन हो गया है."
लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई. उन्नीसवीं शताब्दी में बने इस अमेरिकन कानून को बाकी के देशों में कैसे चलाया जायेगा. हमारे देश में हमारे देश का कानून ही नहीं चलता तो फिर अमेरिकन कानून कैसे चलेगा. इराक और अफगानिस्तान जैसे देश में अमेरिका का कानून चलता है, सो वहाँ तो समस्या नहीं होगी. लेकिन चीन, और उत्तरी कोरिया में क्या करेंगे? बर्मा में क्या करेंगे? संयुक्त राष्ट्र ऐसे कानून के बारे में क्या करेगा? ये सारे सवालों का जवाब समय देगा. वैसे भी संयुक्त राष्ट्र की बात चली है तो मुझे एक पाकिस्तानी शायर का कहा गया शेर याद आ गया. शायर ने लिखा था:
अब पाकिस्तानी शायर की बात चली तो पाकिस्तान की याद आ गई. और पाकिस्तान की याद आई तो जनाब ओसामा बिन लादेन की याद आना भी लाजमी है. लादेन साहब को अब सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि उन्हें अगवा भी किया जा सकता है.है अमन के वास्ते दुनिया में बना U N Oइसमें U S A का U है, बाकी सब का NO ही NO
अब लादेनजी कहीं थाने में रपट लिखा के जेड कैटेगरी की सुरक्षा मांगेगे।
ReplyDeleteयह कानून तो मुझे बहुत पसन्द आया।
ReplyDeleteभारत परिवारवाद-तुष्टिकरणवाद-मानवतावाद के चलते क्वात्रोक्की, दाऊद, सलेम जैसों के लिये जमाने से टिलटिलाता रहा है। हमारा प्रजातांत्रिक देश शरीर के विशिष्ट अंग का जोर लगा कर भी बाल बांका नहीं कर पाता ऐसे अपराधियों का।
ऐसा कानून इस देश में सम्भव नहीं लगता। पर कभी इस प्रजातंत्र की बजाय विद्वत परिषद का नायकत्व हो जाये इस देश में तो शायद इन दुर्दांत अपराधियों को अगवा करने की सम्भावनायें बनें।
अब अमेरिका जैसा देश केवल एक आदमी को अगवा करेगा तो फिर अमेरिका और चम्बल के हरिया डाकू में फर्क ही क्या रह जायेगा?
ReplyDeleteबहुत फर्क है साहब, हरिया अपराध के लिये आदमी उठाता है और अमेरिका अपराधी को सजा देने के लियें।
बीके
सही पंगा लिये हो, अब बस खुदा करे अमरीका आपके लिखे को पढ कर चिढ जाये तो बिना वीसा और पासपोर्ट के अमरीका पहुच जाओगे जी,..:) बधाई हो,अमरीका जाने का सही रास्ता चुनने पर
ReplyDeleteआपकी हर पोस्ट की तरह ये पोस्ट भी धांसू च फांसू है. आपकी चिन्ताए भी जायज है. इस अमेरिका का कुछ करना पड़ेगा.
ReplyDeleteमैं अरुण से सहमत हूँ । बोरिया बिस्तरा तैयार रखिये ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मजेदार है जी
ReplyDeleteमस्त है।
ReplyDeleteऔर उस पर पाकिस्तानी शायर का शेर जबरदस्त।
@ अरुण जी,
ReplyDeleteबुश साहब ने पढ़ा है. बहुत खुश हैं. मुझे धन्यवाद दिया है, अमेरिका के बारे में अच्छी-अच्छी बातें लिखने के लिए.
(मुझे आश्चर्य नहीं हुआ. बुश साहब के सामान्य-ज्ञान के बारे में सारा संसार जनता है. इसलिए मुझे भी थोड़ा-थोड़ा पता है.)
बॉस अपने अमेरिका जाने का जुगाड़ तो बिठा लिया आपने, हमारे लिए फलां फलां चीज ले आना ;)
ReplyDeleteमस्त लिखा है, शायर साहब का शेर तो सटीक है!!
लेकिन ही-मैन, सुपरमैन वगैरह को सबसे बलशाली मानने वाला अमेरिका 'हनु-मैन' से सीख लेगा, इस बात की संभावना कम है.
ReplyDeleteबिल्कुल कम है जी अगर अमेरिका को पता होता तो उनकी नामक लंका न बच जाती?
माना भईया कि वो लादेन को अगवा कर लेगा पर फिरौती में मांगेगा क्या और लादेन देगा क्या, हम तो टिप्पणियों में भी खोज रहे थे । (फिरौती में बुश को मोनिका लोवेंसकी चाहिए क्या जिंदा या मुर्दा ।)
ReplyDeleteजय हो शिव भैया की.....
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