टीवी पर न्यूज़ देख रहा था. पंजाब में एक शादी के दौरान शराब पीकर नाचते हुए एक साहब की पिस्तौल चल गई. अपने आप नहीं चली, साहब चला रहे थे. अब पिस्तौल चली तो गोली भी निकलेगी ही. निकल पड़ी और शादी की विडियो रेकॉर्डिंग कर रहे युवक के दिल के पते पर पहुँच गई. नतीजा, युवक मारा गया. चैनल ने यह भी बताया कि शादी हाई-प्रोफाईल थी. हाई-प्रोफाइल इस लिए कि शादी अटेंड करते हुए एक मंत्री को देखा गया.
मुझे लगा कितनी टुच्ची बात है. अरे शादियों में पिस्तौल-बंदूक तो यूपी-बिहार में चलती है. लेकिन पंजाब में भी पिस्तौल ही चलती है, ये आईडिया नहीं था. सुना है पंजाबी ज्यादा खुश रहने वाले लोग हैं. भारत में खुशी के जितने गाने हैं, आजकल पंजाबियों के मुंह से ही सुने जाते हैं. शेर की तरह जीते हैं. लेकिन शादी में केवल पिस्तौल बजाते है. शेर की तरह जीने वालों को तो शादियों में तोप बजाने चाहिए. लेकिन बजाई भी तो केवल पिस्तौल. लानत है. हाल ही में यह ख़बर भी आई थी कि पंजाबियों को शादियों में दिखावा न करने की हिदायत शिरोमणि अकाली दल वगैरह से मिली है. अब दिखावा न करने की हिदायत दे रहे थे तो साथ-साथ ये भी कह देते कि बंदूक, पिस्तौल और तोपों की सलामी पर भी रोक लगे. ऐसी हिदायत नहीं दी गई तो बाराती बेचारे क्या करें. वे तो बजायेंगे ही.
लेकिन ये बाराती भी क्या करें. अब पिस्तौल ली है तो उसका भी तो मन रखना पड़ेगा. हो सकता है कि पिछली शादी में पिस्तौल लेकर नहीं गए हों. वापस आने पर पिस्तौल ने शिकायत की होगी कि आजकल आप अकेले ही शादियाँ अटेंड कर आते हैं, मुझे नहीं ली जाते. साथ में इस पिस्तौल ने परिवार के लोगों से शिकायत भी कर डाली हो कि; "साहब बदल गए हैं. आजकल हमें शादियों में नहीं लेकर जाते." ये भी हो सकता है कि पिस्तौल ने इन्हें ब्लैकमेल करने की धमकी दी हो. कहा हो कि; "अगर अगली शादी में मुझे नहीं ले गए तो आपके मित्र की पिस्तौल से शिकायत कर दूँगी कि अब आप में वो दम नहीं रहा." बस, बेचारा बाराती क्या करे, ले जाना पडा होगा.
शादियों में नृत्य-प्रतिभा का नज़ारा तो मिलता ही है. हर शादी में दो-चार पप्पू भइया टाइप लोग होते हैं जिनका भांगडा से लेकर नागिन डांस तक पर समान अधिकार रहता है. वे नाच नाच कर जमीन तक हिला डालते हैं. कई बार तो बाकी के बाराती पचास मीटर दूर चले जाते हैं, ये सोचते हुए कि भूकंप आ जाए तो कम से कम एपीसेंटर से कुछ दूरी पर तो रहे, नहीं तो बचने की उम्मीद कम ही रहती है. मैं सन २००४ में एक शादी में जौनपुर गया था. वहाँ ऐसे ही तीन-चार पप्पुवों को देखा डांस करते हुए. लगभग एक घंटे डांस किया इन लोगों ने. दुल्हे के दोस्त थे. जब डांस खत्म हुआ तो मैंने एक से कहा; "भाई बहुत अच्छा नाचते हैं आप. कमाल कर दिया. लेकिन थोड़ा और नाचते तो अच्छा लगता. दुल्हन की बहुत सारी सहेलियां अभी तक पंहुची नहीं थीं."
मुझे लगा मेरी बात सुनकर थोड़ा शर्मायेंगे. लेकिन उन्होंने तुरंत जवाब दिया; "क्या है भैया कि जगह थोडी छोटी थी. नहीं तो और मज़ा आता." उनका जवाब सुनकर मैं चारों खाने चित. फिर उन्होंने पिछले तीन साल में किए गए अपने शादी-डांस का पूरा व्यौरा सुनाया. मुंह से शराब नामक पेय पदार्थ की गंध ऊपर से. मुझे लगा कहाँ चला जाऊं कि इनसे बचूं. डांस करते हुए एपीसेंटर से काफ़ी दूर था लेकिन इनके साथ बात करके तो वैसा ही महसूस हुआ जैसे सीधा-सीधा ज्वालामुखी में उतर गए हैं.
जिस तरह से शादियाँ आयोजित की जा रही हैं, उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में शादी के कार्ड में लिखा मिलेगा कि; 'फलां की शादी में आयोजित होने वाले सर्कस में आप आमंत्रित हैं.' ये भी लिखा मिल सकता है कि; 'आप साथ में पत्नी को लायें या न लायें लेकिन अपनी पिस्तौल या बंदूक लाना मत भूलियेगा. नृत्य-प्रतिभा में पारंगत लोगों को प्रेफेरेंस दिया जायेगा.'
चलते-चलते
ख़बर आई है कि एक समाजवादी को लोगों ने समाजवादी मानने से इनकार कर दिया है. लोगों का मानना है कि अब उसके अन्दर पर्याप्त मात्रा में कन्फ्यूजन नहीं रहा. इस समाजवादी की पार्टी ने इसे हिदायत दी है कि अगले एक महीने तक वो रोज तीन घंटे अपने अन्दर कन्फ्यूजन पैदा करने की प्रैक्टिस करे. ठीक जयप्रकाश बाबू की तरह.
भाई, आपके शादी के वर्णन को पढ़ अबतक अटेंड की हुई लगभग सभी शादियाँ सचित्र आंखों के सामने घूम गई(इन्क्लुडिंग अपनी शादी भी, जिसमे बारातियों ने शामियाने को गोलियों से भून मच्छरदानी बनादिया था).पर भाई एक बात अखर गई .आपने एक सबसे पवित्र आइटम का जिक्र न कर बड़ी नाइंसाफी की है.लगता है शादियों मे जाकर केवल इन्ट्री फी देने और भोजन करने भर से मतलब रखते हैं आप.अरे भाई,सबसे मेन आइटम जिसे कहीं बाई जी का नाच और कहीं आइटम डांस के रूप मे आयोजित किया जाता है,उसके बिना विवाह सम्भव है क्या.दूल्हा दुल्हन हो न हो पर इसकी अनिवार्यता तो शाश्वत है,भूल गए??जितनी बड़ी शादी उतना बड़ा आइटम..........................................
ReplyDeleteतुरंत हमें दमदम से खरीद कर एक तोप भेजें. हमको एक शादी अटेंड करनी है. :-)
ReplyDeleteजो शादी में शामिल होने आये हैं उनके लिए ३ -४ घंटे का सर्कस है और जो शादी कर रहे हैं उनके लिए जिंदगी सर्कस हो जाती है.
ReplyDelete1. पिस्तौल की गोली कभी कभी दुलहे के पार भी हो जाती है।
ReplyDeleteवैसे राजपूती शान मेँ शादी दुलहे की अनुपस्थिति में तलवार से हो जाती थी। अब पिस्तौल से हो सकती है। क्या (अप)सांस्कृतिक सीन होगा - मण्डप में दुलहन फेरे ले रही है (3X रम+पिस्तौल+डनहिल-सिगरेट) के साथ!
2. समाजवादी कंफ्यूजन में श्री जयप्रकाश नारायण जी को तो नहीं लपेटा जा रहा?
शानदार!!
ReplyDeleteअजी हमारे भी कुछेक मित्र है जो ऐसे ही पप्पू है डांस के मामले में बराता किसी की भी हो बस बैंड और म्यूज़िक सुनते ही वे थिरकना शुरु कर देते और फिर फ़ुल फार्म में आ जाते थे तो घंटो बिना रुके नाचते रहते थे।
गोलियाँ चलती तो बहुत है पर लगती कम है। वे भी शेर से पंगा लेने से डरती है। :)
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteहमें याद आ रहा है कोई ८-१० साल पेहले राजस्थान में, राजपूतों की शादी मैं दुल्हे के ताऊ जी ने नशे में गोली चली दी और लगी जाके दुल्हे को जो कोई छे माह तक हस्पताल में पड़ा रहा अब क्या करें भाई जो कारतूस खरीद के रखे हैं वो पड़े पड़े ख़राब नहीं हो जायेंगे? अगर दंगे झगडे चुनाव न हो रहे हों तो गोली कहाँ चलायें बताईये...शादी सबसे सुविधा जनक जगह होती है क्यों की बारात में शामिल लोग अचानक इस दुनिया को अपने बाप का माल समझने लगते हैं. सारी सड़क उस पर चलने वाले वाहन इनके रहमो करम पर होती है.
अभी हमको मुम्बई जाना है वरना आप की पोस्ट से लम्बी टिपण्णी लिखने के मूड में थे आज. ये भड़ंस फ़िर कभी निकालेंगे.
नीरज
वाह भाई. बहुत खूब.
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य लिखा तुमने.
मुझे भी कुछ बातें याद हो आई. जब एक शादी मे मेरी बंदूक की गोली दुल्हे के चाचा को लगते-लगते बची थी. तुम भी तो थे वंहा. याद तो होगा ही.
वैसे लगता है कि अब वो बंदूक लेकर ब्लॉग जगत मे भी उतरना पड़ेगा.
क्यों क्या ख्याल है?
और हाँ तुम्हारे बनाये हुए बम और हाथगोले तो अब भी याद आते है.
अव्वल तो हर शादी अपने आप में सर्कस ही होती है. आजकल शादियों का यह सर्कसपना लगातार बढ़ता ही जा रहा है.
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