जैसा कि हम जानते हैं, ये बजट का मौसम है. हाल ही में एक आर्थिक संस्था द्वारा बजट पर निबंध लेखन प्रतियोगिता आयोजित की गई. प्रस्तुत है इसी प्रतियोगिता में शामिल एक प्रतियोगी द्वारा लिखा गया निबंध. सूचना मिली है कि इस प्रतियोगी को सबसे कम नम्बर मिले. आप निबंध पढ़िये.
बजट एक ऐसे दस्तावेज को कहते हैं, जो सरकार के इन्कम और उसके खर्चे का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है. इसके साथ-साथ बजट को सरकार के वादों की किताब भी माना जा सकता है. एक ऐसी किताब जिसमें लिखे गए वादे कभी पूरे नहीं होते. सरकार बजट इसलिए बनाती है जिससे उसे पता चल कि वह कौन-कौन से काम नहीं कर सकती. जब बजट पूरी तरह से तैयार हो जाता है तो सरकार अपनी उपलब्धि पर खुश होती है. इस उपलब्धि पर कि आनेवाले साल में बजट में लिखे गए काम छोड़कर बाकी सब कुछ किया जा सकता हैं. सरकार का चलना और न चलना उसकी इसी उपलब्धि पर निर्भर करता है. इसीलिए कह सकते हैं कि सरकार है तो बजट है. और बजट है तो सरकार है.
सरकार के तमाम कार्यक्रमों में बजट का सबसे ऊंचा स्थान है. बजट बनाना और बजटीय भाषण लिखना भारत सरकार का एक ऐसा कार्यक्रम है जो साल में सिर्फ़ एकबार होता है. सरकार के साथ-साथ जनता भी पूरे साल भर इंतजार करती है तब जाकर एक अदद बजट की प्राप्ति होती है. वित्तमंत्री फरवरी महीने के अन्तिम दिन बजट पेश करते हैं. पहले बजट की पेशी शाम को पाँच बजे होती थी. बाद में बजट की पेशी का समय बदलकर सुबह के ११ बजे कर दिया गया. ऐसा करने के पीछे मूल कारण ये बताया गया कि अँग्रेजी सरकार पाँच बजे शाम को बजट पेश करती है लिहाजा भारतीय सरकार भी अगर शाम को पाँच बजे बजट पेश करे तो उसके इस कार्यक्रम से अँग्रेजी साम्राज्यवाद की बू आएगी. कुछ लोगों का मानना है कि बजट सरकार का होता है. वैसे जानकार लोग यह बताते हैं कि बजट पूरी तरह से उसे पढ़ने वाले वित्तमंत्री का होता है.
बजट लिखने से ज्यादा महत्वपूर्ण काम बजट में कोट की जाने वाली कविता के सेलेक्शन का होता है. ऐसा इसलिए माना जाता है कि बजट पढ़ने पर तालियों के साथ-साथ कभी-कभी गालियों का महत्वपूर्ण राजनैतिक कार्यक्रम भी चलता है. लेकिन बजट के बीच में जब मेहनत करके छांटी गई कविता पढ़ी जाती है तो केवल तालियाँ बजती हैं. बजट में कोट की जाने वाली कविता किसकी होगी, ये वित्त मंत्री के ऊपर डिपेण्ड करता है. जैसे अगर वित्तमंत्री तमिलनाडु राज्य से होता है तो अक्सर कविता महान कवि थिरु वेल्लूर की होती है. लेकिन वित्तमंत्री अगर उत्तर भारत के किसी राज्य का हुआ तो कविता या शेर किसी भी कवि या शायर से उधार लिया जा सकता है, जैसे दिनकर, गालिब वगैरह वगैरह.
नब्बे के दशक तक बजटीय भाषण में सिगरेट, साबुन, चाय, माचिस, मिट्टी के तेल, पेट्रोल, डीजल, एक्साईज, सेल्स टैक्स, इन्कम टैक्स, सस्ता, मंहगा जैसे सामाजिक शब्द भारी मात्रा में पाये जाते थे. लेकिन नब्बे के दशक के बाद में पढ़े गए बजटीय भाषणों में आर्थिक सुधार, डॉलर, विदेशी पूँजी, एक्सपोर्ट्स, इम्पोर्ट्स, ऍफ़डीआई, ऍफ़आईआई, फिस्कल डिफीसिट, मुद्रास्फीति, आरबीआई, ऑटो सेक्टर, आईटी सेक्टर जैसे आर्थिक शब्दों की भरमार रही. ऐसे नए शब्दों के इस्तेमाल करके विदेशियों और देश की जनता को विश्वास दिलाया जाता है कि भारत में बजट अब एक आर्थिक कार्यक्रम के रूप में स्थापित हो रहा है.
वैसे तो लोगों का मानना है कि बजट बनाने में पूरी की पूरी भूमिका वित्तमंत्री और उनके सलाहकारों की होती है लेकिन जानकारों का मानना है कि ये बात सच नहीं है. जानकार बताते हैं कि बजट के तीन-चार महीने पहले से ही औद्योगिक घराने और अलग-अलग उद्योगों के प्रतिनिधि 'गिरोह' बनाकर वित्तमंत्री से मिलते हैं जिससे उनपर दबाव बनाकर अपने हिसाब से बजट बनवाया जा सके. जानकारों की इस बात में सच्चाई है, ऐसा कई बार बजटीय भाषण सुनने से और तमाम क्षेत्रों में भारी मात्रा में किए गए उत्पादों की जमाखोरी का पता चलने से होता है. कुछ जानकारों का यह मानना भी है कि सरकार ने कई बार बजट निर्माण के कार्य का निजीकरण करने के बारे में भी विचार किया था लेकिन सरकार को समर्थन देनेवाली पार्टियों के विरोध पर सरकार ने ये विचार त्याग दिया.
बजट के मौसम में सामाजिक और राजनैतिक बदलाव भारी मात्रा में परिलक्षित होते हैं. 'बजटोत्सव' के कुछ दिन पहले से ही वित्तमंत्री के पुतले की बिक्री बढ़ जाती है. ऐसे पुतले बजट प्रस्तुति के बाद जलाने के काम आते हैं. कुछ राज्यों में 'सरकार' के पुतले जलाने का कार्यक्रम भी होता है. पिछले सालों में सरकार के वित्त सलाहकारों ने इन पुतलों की मैन्यूफैक्चरिंग पर इक्साईज ड्यूटी बढ़ाने पर विचार भी किया था लेकिन मामले को यह कहकर टाल दिया गया कि इस सेक्टर में चूंकि छोटे उद्योग हैं तो उन्हें सरकारी छूट का लाभ मिलना अति आवश्यक है. पुतले जलाने के अलावा कई राज्यों में बंद और रास्ता रोको का राजनैतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होता है. बजट का उपयोग सरकार को समर्थन देने वाली राजनैतिक पार्टियों द्वारा समर्थन वापस लेने की धमकी देने में भी किया जाता है.
बजट प्रस्तुति के बाद पुतले जलाने, रास्ता रोकने और बंद करने के कार्यक्रमों के अलावा एक और कार्यक्रम होता है जिसे बजट के 'टीवीय विमर्श' के नाम से जाना जाता है. ऐसे विमर्श में टीवी पर बैठे पत्रकार और उद्योगपति बजट देखकर वित्तमंत्री को नम्बर देने का सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाते हैं. देश में लोकतंत्र है, इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण बजट के दिन देखने को मिलता है. एक ही बजट पर तमाम उद्योगपति और जानकार वित्तमंत्री को दो से लेकर दस नम्बर तक देते हैं. लोकतंत्र पूरी तरह से मजबूत है, इस बात को दर्शाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों में बीच-बीच में 'आम आदमी' का वक्तव्य भी दिखाया जाता है.
भारतीय सरकार के बजटोत्सव कार्यक्रम पर रिसर्च करने के बाद हाल ही में कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों ने अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम भारतीय बजट के नाम से एक नया अध्याय जोड़ने पर विमर्श शुरू कर दिया है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है बजट एक ऐसा सरकारी काम है जिसका देश और देश की जनता के जीवन में व्यापक महत्व है.
इस निबन्ध पर प्रतियोगी को सबसे कम नम्बर देने वाला कोई ब्लॉग जगत का बुद्धिजीवी-समाज-साम्यवादी विद्वान रहा होगा। अन्यथा इतना यथार्थपरक बजट प्रक्रिया विवेचन बहुत जमाने से नहीं पढ़ा। यह निबन्ध फिर से चेक कराया जाना चाहिये और पहले चेक करने वाले को बैन कर देना चाहिये।
ReplyDeleteयह पढ़ कर और भी गहराई से लगता है - बजट वास्तव में उतना महत्व पाता है, जितने का वह हकदार नहीं है।
बंधू
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ के लगा कहीं आप ही तो बजट बनने की प्रक्रिया में सरकार को अपना सहयोग नहीं देते वरना कोई आम इंसान बजट पर इतना सारगर्भित लेख कैसे लिख सकता है...आप की समझदारी का रोब अब हम पर इतना चढ़ चुका है की मिटे न मिटाया जा सकेगा...जैसे काली कामरिया पर चढ़े न दूजा रंग.
नीरज
हम अपने घर का बजट बनवाने के लिये जल्दी ही आपके पास आने वाले हैं जी. आशा है निराश ना करेंगे. इस पोस्ट को देशी पंडित से भी लिंक किया जा रहा है.
ReplyDeleteबजट निर्माण के कार्य का निजीकरण
ReplyDeleteक्या उर्वर विचार है. फूल मार्कस...
बाप रे बाप। ढ़ाई पेज, 78 पंक्तियाँ, 1015 शब्द, 4096 वर्ण और 1027 रिक्तिकाऐं गजब का कलेजा है लिखने वाले विद्यार्थी का। ज्ञान भाई, दुबारा जंचवाने से कोई फायदा नहीं मिले नम्बर भी कम हो जाएंगे। पांच सौ शब्दों की लिमिट थी।
ReplyDeleteइस बिना मात्रा के शब्द 'बजट' का वजन इतना है। पहले पता नहीं था। अब समझ आया कि शोभा बार बार क्यों कहती है कि ये ले आओ, वो ले आओ, बजट आने वाला है।
ज्ञान भैया का कमेंट पढ़कर मैं तो छात्र को कहने वाला था कि निबंध पुस्तिका की जांच फिर से करवाने का आवेदन दे डाले. लेकिन दिनेश जी का कमेंट पढ़कर तो मुझे रुकना पड़ गया. सही बात है. ५०० शब्दों की लिमिट तोड़कर छात्र इंडियन कान्ट्रेक्ट एक्ट का उलंघन पहले ही कर चुका है. दिनेश जी के अनुसार कोई मामला नहीं बनता है. दोबारा जांच कराने का वैसे भी कोई फायदा नहीं है.....................:-)
ReplyDeleteबजट पर इतनी व्यापक दृष्टि शायद ही किसी ने डाली हो. धन्य हो तुम जो इस तरह की वक्र दृष्टि डाली बजटोत्सव पर. वाह!
ReplyDelete@ दिनेशराय/शिवकुमार - यह तो है। पुराणिक जी का टॉपर छात्र ५०० शब्दों की सीमा क्रॉस नहीं करता। तभी वह टॉप करता है?! :-)
ReplyDeleteमान गये दिनेशराय जी को - बिल्कुल बच्चों सी चपलता है इस उम्र में। पूरे लेख को MS Word में चिपकाना; फिर Word Count पता लगना! बहुत पसन्द आयी यह चुहुल!
आपको प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण घोषित किया जाता है और मान कर चलिये कि मेरे वित्त मंत्री बनते ही आपको भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के मुख्य सलाहकार के पद पर चिपका दिया जायेगा. बहुत ज्ञानी निकले आप तो,वित्तिय मामलों में. :)
ReplyDeleteधन्य है वह छात्र जिसने ऐसा सटीक निबंध लिखा ;)
ReplyDeleteअगली बार बजट पर निबन्ध लिखने को आया तो हम यहॉं का लिंक लिख देगें :)
ReplyDeleteटीवीय विमर्श बहुत सही पहचाना है। :)
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