Friday, February 22, 2008

अच्छा ई बताईये, सेल टैक्स और भैट-वैट मिलाकर धोनी का फाईनल दाम का रहा

कल रतीराम की पान दुकान पर गया था. मैंने जाते ही कहा; "एक पान दीजिये." मैंने उनसे पान लगाने को कहा लेकिन देख रहा हूँ कि वे अखबार पढने में व्यस्त हैं. पूरी तन्मयता के साथ लीन. मैंने फिर से कहा; "रतीराम भइया, एक ठो पान दीजिये."

मेरी तरफ़ देखे बिना ही बोले; "तनी रुकिए, लगा रहे हैं." ये कहकर अखबार पढ़ने में फिर से लग गए.

मैंने कहा; "अरे ऐसा क्या छप गया है जो पढ़ने में इतना व्यस्त हैं."

बोले; "अरे ओही, खिलाड़ी सब केतने-केतने में बिका, वोही देख रहे हैं." तब मेरी समझ में आया कि क्या पढ़ रहे हैं.

मैंने कहा; "अब पढ़ने से क्या मिलेगा. टीम तो आप खरीद नहीं सके."

बोले; "हाँ लेकिन हम देखना चाहता हूँ कि ई लोग का केतना दाम लगा."

मैंने कहा; "बहुत पैसा मिला है सबको. देखिये न धोनी ही छ करोड़ में बिके. तेंदुलकर चार करोड़ में. ऐसा पहली बार हुआ कि खिलाड़ी भी बिक गए."

मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "अरे आप भी बड़े भोले हैं. ई लोग का पहला बार बिक रहा है. का पहले नहीं बिका है. काहे, भूल गए अजहरुद्दीन को, जडेजा को."

उनकी बात सुनकर मैं चुप हो गया. क्या करता, कोई जवाब भी तो नहीं था. फिर सोचते हुए मैंने कहा; "बहुत ख़बर रखते हैं क्रिकेट की."

अब तक वे अखबार छोड़ चुके थे. उन्होंने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा; "अरे ई जो लोग टीम खरीदा है न, उनसे तो ज्यादा ही जानकारी रखते हैं. आपको का लगता है, मुकेश अम्बानी अपना काम करते-करते क्रिकेट देखते होंगे का? ऊ दारू वाले, का नाम है उनका, हाँ माल्या जी, ऊ देखते होंगे का. हम तो काम करते-करते कमेंट्री सुनते हैं. पूरा-पूरा जानकारी रखते हैं क्रिकेट का."

मैंने कहा; "ये बात तो है. ऐसे में एक टीम आपको जरूर मिलनी चाहिए थी."

बोले; "जाने दीजिये, अब का मिलेगा उसपर बात कर के. ओईसे एक बात बताईये, छ करोड़ में तो धोनी बिक गए लेकिन सेल टैक्स, भैट-वैट मिलकर केतना दाम पडा होगा, इनका?"

उनकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई. मैंने कहा; "अरे महाराज आप भी गजबे बात करते हैं. ये लोग आदमी हैं, कोई सामान नहीं कि इनके ऊपर भी सेल्स टैक्स लगे."

मेरी बात से कन्विंस नहीं हुए. बोले; "आदमी हैं तो फिर आलू-गोभी का माफिक काहे बिक रहा है ई सब?"

मैंने कहा; "आलू-गोभी की माफिक नहीं बोलिए हीरा-जवाहरात की तरह. बोली लगाकर खरीदे गए हैं."

मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "बोली लगाकर बिके हैं, इतना त हमहू जानते हैं. सुनने से कैसा लगता है न. ऊ जो फिलिम में देखाता है कि कौनो सेठ का सबकुछ बरबाद हो गया और ऊ कर्जा में डूब जाता है तब उसका घर-दुआर जैसे हथौड़ा मार के बिकता है. ओईसे ही तो?"

मैंने कहा; "एक दम ठीक पहचाने. वैसे ही बिके हैं सब."

बोले; "एक बात बाकी गजबे होई गवा."

मैंने पूछा; "क्या?"

बोले; "विदेशी तेल, साबुन, शेम्पू वगैरह तो ठीक लगता है. ऊ का वास्ते हमरे देश का लोग सब बहुत पैसा पेमेंट कर देता है लेकिन विदेशी खेलाड़ी सब तो बहुत सस्ता में खरीद लिया सब. खिलाडी लोगों का वास्ते ज्यादा पईसा नहीं दिया कोई भी. सुने कि पार्थिव पटेल भी पोंटिंग से जादा दाम में बिक गए."

मैंने कहा; "ऐसा होता है. किस खिलाड़ी का कितना महत्व है, वो तो टीम वाले ही बता सकते हैं. वो लोग जिन्होंने टीम खरीदे है."

मेरी बात सुनकर उन्होंने मेरी तरफ़ कुछ ऐसे देखा जैसे मुझे बेवकूफ साबित करने पर तुले हैं. फिर बोले; "हम पाहिले ही बोले रहे न, आप बहुते भोले हैं. अरे ई सब चाल है टीम का मालिक लोगों का. नहीं तो आप ही कहिये, पार्थिव पटेल का इतना दाम. लगा जईसे बँगला पान खरीद रहा है लोग ऊ भी बनारसी पान का दाम देकर."

उनकी बात सुनकर मुझे लगा एक पान खाने आए थे और इतनी देर लग गई. बात खिलाड़ियों की बिक्री से होते हुए कहाँ-कहाँ से आखिर पान तक आ रुकी. मुझे लगा रतीराम जी से बात करते रहेंगे तो पता नहीं और कहाँ-कहाँ से होकर गुजरना पड़े. उनकी पार्थिव पटेल और बँगला पान वाली बात पर मैंने झट से कहाँ; "एक दम ठीक बोले हैं. इसी बात पर एक ठो बनारसी पान लगा दीजिये."

सुनकर हंस दिए. बोले; "ये लीजिये, अभिये लगा देते हैं."

चलते-चलते

सुनने में आया है कि अर्थशास्त्रियों के एक दल ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक को एक ज्ञापन दिया है. इस ज्ञापन में इन्फ्लेशन के लिए बनाए गए होलसेल प्राईस इंडेक्स में बाकी चीजों के साथ-साथ क्रिकेट खिलाड़ियों को भी शामिल करने का आग्रह किया गया है. जब कुछ जानकारों ने क्रिकेट खिलाड़ियों के शामिल करने का विरोध यह कहकर किया कि; आख़िर आम जनता तो क्रिकेट खिलाड़ी खरीदती नहीं. ऐसे में उन्हें होलसेल प्राईस इंडेक्स में शामिल करने का औचित्य क्या है तो अर्थशास्त्रियों का जवाब था; "जिन लोगों ने टीम और खिलाडी खरीदे हैं, उन्हें इन्कम तो आम जनता की जेब से ही आनी है. ऐसे में पूरा भार जनता के ऊपर ही तो पड़ेगा."

आप का इस ज्ञापन के बारे में क्या विचार है?

16 comments:

  1. बंधू
    हमारे ज़माने में खिलाड़ियों का ईमान बिका करता था अब ससुरे ख़ुद ही बिक रहे हैं...इसे कहते हैं तरक्की...क्या समझे? हम और आप भी तो क्रिकेट खेलते हैं आड़ा तिरछा बल्ला चला लेते हैं हाथ घुमा के बाल फैंक लेते हैं ये अलग बात है की वो तीन डंडा को छोड़ बाकि सब जगह लगती है...लेकिन हमारी और आप की बोली लगाने तो कोई आगे नहीं आया...आप क्या समझते हैं अपने जैसों का कोई फयूचर भी है या नहीं या ऐसे ही एक दूसरे की पोस्ट पर टिपिया कर के ही ज़िंदगी काटनी पड़ेगी? रति राम जी को चरण वंदन...अब उनके भरोसे ही ये देश टिका है.
    नीरज

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  2. खिलाडियों पर 'भैट-वैट' काहे नहीं लगता, इसका कारण नहीं बताया तुमने रतीराम जी को. वैसे ये बताओ कि चिट्ठाकारों का 'ट्वेन्टी-ट्वेन्टी' पोस्ट टूर्नामेंट नहीं हो सकता क्या? सोचकर बताईये, कोई जल्दी नहीं है. अगर सम्भावनायें हों तो फिर बोली लगाई जाय. क्या पता पार्थिव पटेल की ही तरह कोई हमें भी खरीद ले.

    इस आईडिया पर सोचिये और जवाब दीजिये. अगर ऐसा हो गया तो नीरज भैया की शिकायत भी दूर हो जायेगी........:-)

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  3. जी बचपन में क्रिकेट खेला था. अभी हम भी बिकने को तैयार हैं. तनि बोली लगावा हो.. ;-)

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  4. "वैसे ये बताओ कि चिट्ठाकारों का 'ट्वेन्टी-ट्वेन्टी' पोस्ट टूर्नामेंट नहीं हो सकता क्या? "

    @ बाल किशन

    ट्वेन्टी-ट्वेन्टी पोस्ट टूर्नामेंट तो शायद शुरू है भाई. कई टीमें ३-४ पोस्ट तक खेल चुकी हैं.

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  5. :) बहुत सही...लॉयल्टी डिस्काऊन्ट भी लगवा लो. :)

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  6. शुरुआती ज्वार उतरने दीजिए बाद में डिस्काउंट पर भी बिकेंगे और जगह-जगह मेले लगेंगे . बिक्री के लिए मेले -- जहां ये खड़े रहेंगे और लोग देखकर-छूकर-थपथपाकर-दांत गिनकर बोली लगाएंगे,भाव-ताव करेंगे .

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  7. जल्द ही टीमें बी एस सी में लिस्टेड होगी. शेयर खरीदने के लिए तैयार हैं ना?

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  8. बी.सी.सी.आई. जो ना कराये सो थोड़ा।
    क्या इतेफाक है कि हमने भी आज इसी पर पोस्ट लिखी है।

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  9. ब्लॉगर गण तो बोली लगवाने को उत्सुक प्रतीत होते हैं। पर बोली कौन लगायेगा? गूगल एडसेंस का आमदमनी का आंकड़ा तो सब का जड़वत है!

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  10. फिलहाल तो मैं यह पढ़ कर मुस्कुरा रहा हूँ।

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  11. मैच फिक्सिंग लीगलाईज हुआ.

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  12. मैच फिक्सिंग..चिट्ठाकारों का 'ट्वेन्टी-ट्वेन्टी' पोस्ट टूर्नामेंट नहीं हो सकता क्या.....हमारे ज़माने में खिलाड़ियों का ईमान बिका करता था अब ससुरे ख़ुद ही बिक रहे हैं.......वाह वाह....

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय