पूछने पर जो बातें सामने आईं उसे सुनकर भौचक्का रह गया. पिताश्री ने विद्यार्थियों के लिए 'मिड डे मील' पर इतना पैसा खर्च किया लेकिन सुनने में आया है कि सारा पैसा पाठशाला में काम करने वाले तमाम कर्मचारियों की जेब में चला जाता है.
शाम को मैंने साफ तौर पर बता दिया कि मैं राजा का पुत्र इस तरह का खाना नहीं खा सकता. लेकिन जब मैंने कर्मचारियों से चिकेन खाने की मांग रखी तो उन्होंने बहाना बनाया कि मुर्गियों को बर्ड फ्लू हो गया है इसलिए चिकेन की सप्लाई बंद है. पता नहीं बात कितनी सच है, लेकिन मैंने निश्चय किया है कि सच्चाई का पता लगाकर रहूँगा.
भ्रष्टाचार की बात पर शक एक और वजह से उपजा. आज जब गुरुदेव मुझे और भीम को गदा चलाने की 'नैट प्रैक्टिस' करवा रहे थे तो भीम के एक प्रहार से मेरी गदा पूरी तरह से टूट गई. मुझे शक है कि गदा बनाने
के लिए इस्तेमाल किए गए धातु में स्टील और तांबे का मिश्रण ठीक नहीं है.
दु:शासन ने शक जाहिर किया कि पैसा बचाने के लिए हथियार निर्माता ने धातु में स्टील की मात्रा ज्यादा कर दी होगी. मुझे शक है कि रक्षा सचिव, जिन्हें हथियारों की खरीद-फरोख्त की जिम्मेदारी सौंपी गई है, कुछ घपला कर रहे हैं.
मैंने सोचा है कि कुछ दिन और देख लूँ. अगर तलवार, भाले और धनुष-बाण के केस में भी ऐसी कोई बात नज़र आई तो मैं विदुर चाचा को इस बात की जानकारी दूँगा. फिर सोचता हूँ कि उन्हें बताकर भी क्या होना है. इन बातों को सुनकर ऐसा न हो कि वे एक कमीशन बैठा कर अपना पल्ला झाड़ लें.
आज मुझे भीम पर बड़ा क्रोध आया. गुरु द्रोण हम दोनों को गदा भाजने की 'नेट प्रैक्टिस' करवा रहे थे. लेकिन मुझे लगा कि भीम किसी न किसी बहाने गदा का प्रहार जानबूझ कर मेरे ऊपर कर रहा था. अगर इस भीम को नहीं रोका गया तो इसकी तो हिम्मत बढ़ जायेगी. अभी से इसका ये हाल है तो आगे चलकर क्या करेगा? आगे चलकर तो ये भीम मुझे और मेरे भाइयों की धुलाई करता ही जायेगा।
इसीलिए पाठशाला से अपने रूम में आकर मैंने भीम को मारने की योजना बनाई. दु:शासन ने रास्ता सुझाया कि ये भीम बड़ा पेटू टाइप है. इसे अगर खीर खाने का लालच दे दिया जाय तो उस खीर में जहर मिलाकर इसको सलटाया जा सकता है. जब मैंने दु:शासन से कहा कि कल किसी केमिस्ट की दुकान से पोटैसियम सायनायड खरीद ले आए तो दु:शासन ने बड़ा बढ़िया आईडिया दिया. बोला; "भ्राताश्री क्या जरूरत है भीम को जहर देकर मारने की. अरे खीर तो हमलोग दूध में ही बनायेंगे. आजकल जिस तरह से दूध में यूरिया की मिलावट हो रही है, ऐसे में अगर हम भीम को शुद्ध दूध में पकाई गई खीर खिला दें तो वह ऐसे ही सलट लेगा."
पुनश्च:
आज बड़ी अजीब घटना घट गई. भृगु मिले थे. मुझे देखते ही कहा; "तो डायरी लिख रहे हो वत्स." उनकी बात सुनकर मैं अचंभित हो गया. मेरे मन में एक बात आई कि; "इन्हें कैसे मालूम कि मैं डायरी लिखता हूँ." जब मैंने उनसे पूछा कि मैं डायरी लिखता हूँ, इस बात का पता उन्हें कैसे चला तो बोले; "वत्स दुर्योधन, मेरा नाम भृगु है. जो हो चुका है और जो हो रहा है, उसे तो मैं जानता ही हूँ लेकिन भविष्य में जो कुछ भी होगा उसकी जानकारी भी मुझे है. इसिलए मैंने निश्चय किया है कि मैं दुनिया में होने वाली सभी घटनाओं की एक लिस्ट बनाकर और उसका वर्णन करके एक किताब लिख डालूँगा."
उनकी बात पर एक बार तो मुझे विश्वास नहीं हुआ. लेकिन फिर मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं सका और उनसे पूछ बैठा; "अच्छा अगर ऐसी बात है तो बताईये कि मेरी लिखी हुई डायरी का क्या होगा?"
मेरी बात सुनकर हंसने लगे. कुछ देर तक हंसने के बाद मुझसे बोले; "तो सुनो वत्स, तुम्हारी लिखी हुई डायरी का क्या होगा. कलयुग में एक हिन्दी टीवी न्यूज़ चैनल को तुम्हारी ये डायरी मिलेगी. जिसे ये डायरी मिलेगी, उस मनुष्य से यह डायरी एक ब्लॉगर उड़ा लेगा. फिर तुम्हारी इस डायरी के अंश वो अपने ब्लॉग पर छापेगा."
उनकी बात सुनकर मेरी उत्सुकता और बढ़ गई. मैंने उनसे पूछा; "ऋषिवर एक बताईये, ये ब्लॉग क्या है?"
मेरी बात सुनकर उन्होंने अपने कमंडल के पानी में झाँका और आँख बंद किए ही बोलना शुरू किया; " वत्स दुर्योधन, कलयुग में ब्लॉग एक ऐसा माध्यम होगा जहाँ लोग अपने मन में आने वाली बातों को लिखेंगे. ठीक वैसे ही जैसे तुम यह डायरी लिखते हो. ब्लॉग शब्द सुनकर हड़क मत जाना वत्स. असल में लिखने वाले दूसरों को यह बताएँगे कि वे अपने मन की बातें लिखते हैं लेकिन यह सच नहीं है."
उनकी बात सुनकर मैंने सोचा; 'मुझे हड़कने की क्या जरूरत? मैं वैसे ही सबको हड़काता रहता हूँ. फिर मैंने उनसे पूछा; "ऋषिवर, यह बताईये, अगर कोई ब्लॉगर मेरी डायरी अपने ब्लॉग पर छाप ही देगा तो इससे मुझे कोई रायल्टी मिलने की उम्मीद दिखाई देती है क्या?"
मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा; "हाँ. एक काम करो अपनी डायरी का कॉपीराईट अभी से अर्जुन को सौंप दो. ये अर्जुन कलयुग में अरुण अरोरा के नाम से जाना जायेगा. जब तुम्हारी डायरी के अंश कोई ब्लॉगर छापेगा तो उसे अरुण अरोरा को रायल्टी देनी ही पड़ेगी. अगर उस ब्लॉगर ने आना-कानी की तो अरुण उस ब्लॉगर से तुरंत पंगा लेकर रायल्टी वसूल कर लेगा......:-)"
मुझे उनकी बात ठीक तो नहीं लगी. मेरा इतना बड़ा ईगो
लेकर मैं अर्जुन के पास कैसे जाऊँगा? फिर भी इस बात पर पुनः विचार करने की जरूरत है मुझे. आख़िर पैसे का मामला है.....:-)
बहुत बढ़िया है साहेब। शीर्षक से उलझाव लगा। डायरी में ब्लागजगत की चिंताएं भी शामिल कर लीं, खूब...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत जानदार और शानदार व्यंग्य है.
बस एक ही गलती इसमे रह गई है. वो ये कि कोपी-राइट अरुणजी के पास नहीं मेरे पास है.
जल्द ही प्रमाण पेश कर दिया जायेगा.
किधर से किधर पहुंच गए, अच्छा लपेटे ब्लॉग को!!
ReplyDeleteशिव, मुझे पक्का विश्वास नहीं, कि आपको पूरा अहसास है कि, आप एक अद्भुत विधा का ब्लॉग-साहित्य सृजन कर रहे हैं।
ReplyDeleteदुर्योधन की डायरी तो सटायर में एक नायाब ब्लॉग प्रयोग है। और यह ब्लॉग लेखन में बहुत सी सम्भावनायें खोलता है।
नियमित टिप्पणियां नहीं कर रहा। पर इस और पिछली दो पोस्टों पर मुग्ध सा हूं।
बंधू
ReplyDeleteबहुत सही जा रहे हो...ऐसा करो पूरी डायरी की एक ठो पाण्डुलिपि की कोपी मुझे भेज दो. मैं यहाँ मुम्बई में किसी बी.आर. चोपडा टाइप के इंसान को पकड़ता हूँ जों "महाभारत के नेपथ्य में" नाम का २०० एपिसोड का टी.वी. सीरियल बनाने का जिम्मा ले. बाद में २०० का ३०० भी किया जा सकता है.जितनी रोयल्ती बनती है डायरी की देदो अरुण को बाद में टी.वी. सीरियल के राईट के नाम पे कुछ नहीं देंगे. अब भ्रिग्हू महाराज ने टी.वी. सीरियल
का जिक्र तो कहीं किया भी नहीं है...दुर्योधन के रोल के लिए हम ठीक रहेंगे, हमने अपना थोबड़ा आईने में भली प्रकार से देख लिया है... दुशाशन तो आप हैं ही, बाल किशन भीम के रोल में ठीक रहेंगे, ज्ञान भैय्या तो भीष्म के रोल के लिए ही अवतरित हुए हैं धरा पर, बाकि की कास्टिंग के बारे में बाद में सोचेंगे...नहीं? जल्दी कीजिये...देर ना हो जाए कहीं देर ना होजाये...ऐसा ना हो की कोई और ये विचार ले उडे और हम से पहले ही मैदान मार ले...ज़माना ख़राब है बाबू ....
नीरज
अद्भुत विचारशीलता और कल्पनाशीलता का नायाब नमूना. वाह!!! गर्व है कि आपसे मित्रता है. वैसे मित्रता तो अरुण अरोरा से भी है इसलिये रॉयल्टी शेयर करने की बात वहीं कर लूँगा. :)
ReplyDeleteभृगु कहते हैं तो - इसकी एक किताब बनती ही है - जोर लिखे रहें गुरुवर - मनीष [तर्जनी ओ तर्जनी अलविदा तर्जनी [:-) ]]
ReplyDeleteमुग्ध तो हम भी हो रहे हैं. अरुण जी को रॉयल्टी दे दें...हम पाल्टी और अपना हिस्सा ले लेंगे.
ReplyDeleteहूं मतलब अगर कॊइ ब्लोगर इमानदार बन कर चुपचाप रायलटी दे रहा है तो इन लोगो को मिर्ची कयू लग रही है ..मुझे अभी इन सारे ब्लोगर्स के बारे मे छान बीन करा कर आस्ट्रेलियन जज बुला कर पूरा न्याय कराता हू इन्हे तभी पता चलेगा की पंगेबाज से पंगा लेना असंभव है..:)आप डरे नही रायलटी सिर्फ़ और सिर्फ़ यही रायलटी भेजे ,वरना आपको पता है ना हमे मछली की आखं (आज कल सिर्फ़ रायलटी और उसे देने वाले आप) ही दिखाई देती है..:)
ReplyDeleteआपका यह प्रयोग बहुत धांसू है। आशा है आगे इसी तरह के और नये प्रयोग भी देखने को मिलेंगे।
ReplyDeleteमुग्ध तो हम भी हो रहे है, बड़िया जा रहा है
ReplyDeleteमैं भी अपने मन की बात लिखता हूँ
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