Saturday, March 8, 2008

होली मनाने के बारे में वो लिखते हैं....

सं) वैधानिक अपील: जैसा कि मैंने कहा था, होली के मौसम पर मौसम बूझने के लिए मैंने कोटा बढ़वा लिया है. ये पोस्ट उसी बूझने का नतीजा है. इसलिए ऐसी बौड़म पोस्ट को ऐसे वैसे ही देखा जाय. इसे फील न किया जाय.

होली आ पहुँची है. होली मनाने के बारे में हमारे मूर्धन्य चिट्ठाकार क्या सोचते हैं? अगर उसपर पोस्ट लिखें, तो शायद कुछ ऐसा लिखेंगे....


प्रमोद जी (अज़दक)

आज ई बिसंभरा पूछ रहा था; "अ भईया, ई बार होली कईसे मनाएंगे भईया?" सुनके मन में किया कि गरिया दें. का करेगा होली मना के? आ कभी मन में विचारा है कि मनाना है तो थोड़ा मेहनत कर. प्रीती जेंटा के मना. बाकी मानेगा नहीं न. चिरकुट होली मानायेगा. चिरकुटई का हद है..हद का बेहद है... चल देगा रंग लगाके... भांग पिएगा और पान से ओठ लाल करके निकलेगा....पब्लिक को बतायेगा कि होली मना रहा है....बट लेट हिम डू ह्वाट ही वांट्स टू डू..हू केयर्स..केतना बार पता किए लेकिन आज तकही कौनौ रेकॉर्ड नही मिला उनके होली मनाने का..क्या कहा? किनके? अरे ओही, माओ का..नॉट अ सिंगल इन्स्टेन्स ऑफ़ हिम सेलेब्रेटिंग होली....अरे हम कहते हैं चिरकुट, जब वोही नहीं मनाये तो तोर कौन औकात है?...ऊपर से ई कहता है भईया फस्ट आए हैं, सो होली मनाने का पर्योजन भी है..कौन समझाये चिरकुट को कि ई फस्ट-वस्ट कुछ नही होता है...फस्ट आए हैं त का उखाड़ लिए..और फिर जे नहीं आया, ऊ भी का उखाड़ा?

सुनियेगा? त फिर सुनिए..होली पर एगो पाडकास्ट...


अनूप शुक्ला (फुरसतिया जी)

चिठेरा: अरी रंग, अबीर, गुलाल का इंतजाम किया कि नहीं?

चिठेरी: पागल हो गया है इस मौसम में. अभी कुछ दिन पहले ही चेहरे से रंग गायब था और आज रंग की बात कर रहा है.

चिठेरा: तू भी न. अरे चेहरे से रंग कल गायब हुआ था. छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी. अब तो मैं मौसम को बूझ चुका हूँ.

चिठेरी: आय हाय. क्या गाना गाया है. तुझे गाने की लत कब से पड़ गई?

चिठेरा: अरे सोच-समझ कर बोला कर. गाने का शौक होता है. लत नहीं पड़ती.

चिठेरी: अरे जान दे जान दे. शौक तो अच्छे लोगों को होता है. लम्पटों को तो लत ही पड़ती है.

चिठेरा: अरे जान तो मैं देता ही हूँ तुझपर. ये गाने का शौक तेरी वजह से ही तो शुरू हुआ.

चिठेरी: झूठ मत बोल. मुझे क्या मालूम नहीं है? मैं सब जानती हूँ. होली आ रही है न, इसलिए मुहल्ले के लम्पटों के साथ गाना गाने की प्रैक्टिस शुरू की है तूने. मुझे सब पता है.

चिठेरा: अरी इतनी भी क्या नाराजगी? और फिर ये क्यों सोचती है कि मुहल्ले में सब लम्पट ही हैं. देख तेरी बात से लग रहा है जैसे मन में कोई भड़ास है मेरे मुहल्ले वाले दोस्तों के लिए.

चिठेरी: मेरे मन में भड़ास क्यों रहेगी? और फिर तेरी इच्छा, जो करना चाहे कर. मुझे इससे क्या?

चिठेरा: अच्छा ये सब बातें छोड़ और ये बता कि होली मनाने का क्या प्रोग्राम है?

चिठेरी: होली मनाने के लिए कैसा प्रोग्राम? रंग उडायेंगे, गुलाल लगायेंगे. गुझिया खाएँगे. ऐसे ही होली मनायेंगे.

चिठेरा: बस! अरी गाना तो गायेंगे. नहीं तो रंग लगाने का मजा ही क्या? देखती नहीं, जब से होली के महीने में घुसें हैं,अज़दक जी के ब्लॉग पर पॉडकास्ट की संख्या बढ़ गई है.

चिठेरी: ठीक याद दिलाया तूने. मैं एक पोस्ट भी लिखूँगी. उसके साथ में एक पॉडकास्ट डालूँगी. और तू तो गाना गा रहा है, मैं गाना बजाऊँगी. मेरा फेवरिट गाना, होली आई रे कन्हाई रंग बरसे, बजा दे ज़रा बांसुरी.

चिठेरा: आय हाय. क्या गाना है. एक काम कर, रंग लगाते हुए हम दोनों इस गाने को गायेंगे.

चिठेरी: ये डुयेट नहीं है. चला है गाना गाने. और अभी से कहे देती हूँ. रंग लगाने हो तो दूर से लगाना. पास में हिरकने की कोशिश भी मत करियो.

चिठेरा: अच्छा बाबा अच्छा. दूर से ही लगाऊंगा. इतना नाराज होने की भी बात नहीं है.

चिठेरी: तब ठीक है. अच्छा अभी मैं जाती हूँ. ब्लॉगवाणी खोलकर आई थी. तीन-चार कमेंट करना है. चल फ़ोन करूंगी.

मेरी पसंद
होली के मौके पर कवि सम्मेलन में
मंच संचालक अशोक चक्रधर ने कहा;
अभी आप सुन रहे थे मोर हैदराबादी को
अब सुनिए चोर मुरादाबादी को

चोर कवि स्टेज पर आया
और उसने दोहा सुनाया;

चलती चाकी देखकर दिया है चौरा रोय
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय

श्रोताओं की तरफ़ से आवाज आई
कि; बैठ जाओ भाई
बैठ जाओ भाई
ये दोहा तो संत कवि कबीर दास का है

श्रोताओं की बात सुनकर चोर कवि बोला;
मैंने तो सिर्फ़ एक दोहा चुराया है
यहाँ कई ऐसे महाकवि हैं
जो दूसरे की पूरी की पूरी रचना ठेल देते हैं
आप लोग भी झेल लेते हैं

उनकी हर रात गुजरती है दिवाली की तरह
हमने एक बल्ब चुराया तो बुरा मान गए

बगल में बैठा एक कवि हंसा
उसने फिकरा कसा;
क्या यार? क्या भांग खाकर आ रहे हो?
होली के मौके पर
दिवाली की रचना सुना रहे हो

चोर कवि बोला;

इतने आंसू दिए हैं दुनिया ने, भांग खाते नहीं तो क्या करते
लकडियों की कमी थी होली में, घर जलाते नहीं तो क्या करते

संचालक डर गया
अब किसे बुलाया जाय
किसे शहीद कराया जाय

तो उसने मंच पर कोने में बैठे एक सज्जन से पूछा;
"आप कवि हैं क्या?"
वो घबराकर बोला; "नहीं मैं आदमी हूँ"
संचालक बोला; "तो फिर आपने कुर्ता क्यों पहन रखा है?"
आपने बाल भी जरूरत से ज्यादा बढाए हुए हैं
निश्चित तौर पर आप रचना सुनाने आए हुए हैं

वो घबराकर बोला; "मैं तो माईक वाले के साथ आया था
संचालक ने कहा; "जैसे भी आए हों, मंच पर आना पड़ेगा
कवि सम्मेलन उखड़ रहा है, ज़माना पड़ेगा

वो बोला; ठीक है, आप कहते हैं तो आता हूँ
जो कुछ भी बन सकता है, सुनाता हूँ

अब उसने कविता शुरू की

मेरे घर के सामने, एक हैं दौराहा
दौराहे के सामने, एक है चौराहा
चौराहे के सामने, पहली गली है
पहली गली में, दूसरी गली है
दूसरी गली में तीसरी गली है
और तीसरी गली में...

संचालाक चीका, ये आप क्या सुना रहे हैं
वो बोला, मैंने तो आपसे पहले ही कहा था
मैं कवि नहीं हूँ
पूरी एक सौ पचहत्तर गलियां हैं, सुनाऊं?

संचालक चीखा, "भगवान के लिए बैठ जाइये"
वो बोला, "बैठने के एक हज़ार रूपये दिलवाईये"

------हुल्लड़ मुरादाबादी

13 comments:

  1. मजेदार है. होली के रंगों की तरह इस पोस्ट में भी व्यंग के विविध रंग दिखा दिए आपने.

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  2. शानदार!!
    इस पे तो श्रृंखला ही बना डालिए सबको लपेटते हुए!!

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  3. जमाये रहिये जी।

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  4. हमें नहीं पता था मिश्र जी होली पर चकल्लस भी चलाते हैं।

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  5. वाह! वाह!! वाह!!!
    होली का हमारा भी कोटा ले लो; और इस तरह कस कर रंग जमाये रखो। ऐसा रहे कि रंग पक्का भी रहे और अगली होली तक चले!

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  6. पुनश्च: - और यह अज़दकिया पॉडकास्ट श्रवणार्थ कहां क्लिक करना है?

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  7. हा हा!!! अति उम्दा...आनन्द आ गया..खूब लपेटा है...मजा आया.

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  8. अच्छा, तो होली मना रहे हो...वैसे ये बताओ, और कौन- कौन है हिट लिस्ट में? वैसे ज्ञान भइया की बात का जवाब दो...पॉडकास्ट सुनाने के लिए कहाँ क्लिकियायें...

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  9. दोनों को पढ़ा हूँ .कहा जा सकता है कि मस्त होली खेली है दोनों महानुभाव से . बांकी बहुतों को देर तक कतार मे न रखा जाए .होली की गोली चलाते रहिये .

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  10. देखिये दो दिन से बाहर था इसलिये टिपियाने में देरी हो गयी पढ़ तो तभी लिया था. आपने हमें नहीं खींचा आखिर क्यों ...क्या हम आपके काम का कूड़ा नहीं लिखते...चलिये कल कोशिश करते हैं फिर से.

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  11. अरी बंधू बहुत बढ़िया बहुत याने बहुत ही बढ़िया...पूरा होली के मूड में ला दिए हैं आप तो...भगवान् जाने किस किस को लपेटेंगे आप...जगजीत जी की गायी ग़ज़ल याद आ गयी "जाने किस किस की मौत आयी है....आज रुख पर कोई नकाब नहीं "
    नीरज

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  12. शिवकुमार जी आपने अपने परिचय में लिखा है आप विशुद्ध रूप से रेल परिचालन में ही हैं। गलत बात है। असली काबिलियत आप बता नहीं रहे। इलाहाबाद में होली पर होने वाले कवि सम्मेलन के लिए मैं अभय अवस्थी से आपको कोहड़ा सम्मान के लिए सिफारिश करूंगा। गजब मजा आ गया।

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  13. शिवकुमार जी आपने अपने परिचय में लिखा है आप विशुद्ध रूप से रेल परिचालन में ही हैं। गलत बात है। असली काबिलियत आप बता नहीं रहे। इलाहाबाद में होली पर होने वाले कवि सम्मेलन के लिए मैं अभय अवस्थी से आपको कोहड़ा सम्मान के लिए सिफारिश करूंगा। गजब मजा आ गया।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय