(सं) वैधानिक अपील: जैसा कि मैंने कहा था, होली के मौसम पर मौसम बूझने के लिए मैंने कोटा बढ़वा लिया है. ये पोस्ट उसी बूझने का नतीजा है. इसलिए ऐसी बौड़म पोस्ट को ऐसे वैसे ही देखा जाय. इसे फील न किया जाय.
होली आ पहुँची है. होली मनाने के बारे में हमारे मूर्धन्य चिट्ठाकार क्या सोचते हैं? अगर उसपर पोस्ट लिखें, तो शायद कुछ ऐसा लिखेंगे
श्री दिनेश राय द्विवेदी
हमारा परिवार होली मनाता है. मैं भी मनाता हूँ. मेरे होली मनाने के दो कारण हैं. पहला कारण यह कि ये त्यौहार हमारी संस्कृति का हिस्सा है. दूसरा कारण है होली मनाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. वैसे मेरा मानना है कि होली मनाते समय हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे इस कर्म की वजह से कॉपीराईट कानून का उलंघन न हो.
मेरा मानना है कि किसी ख़ास तरह की होली पर उनलोगों का कॉपीराईट है जिनके क्षेत्र में ऐसी ख़ास तरह से होली मनाई जाती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं, होली मनाने के लिए हम भारतीय तमाम चीजों का इस्तेमाल करते हैं. जैसे रंग, गुलाल, अबीर, कीचड़, गोबर, फूल, लाठी वगैरह वगैरह. इन चीजों के साथ हम गानों का इस्तेमाल करते हैं.
ऐसी स्थिति में होली मनाने से पहले हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम होली मनाकर कॉपी राईट कानून का उल्लंघन तो नहीं कर रहे. जैसे अगर मथुरा और वृन्दावन में फूलों से होली मनाई जाती है तो बाकी की जगहों और क्षेत्रों के लोगों को फूलों से होली नहीं मनानी चाहिए. अगर वे ऐसा करते हैं तो निश्चित तौर पर कॉपीराईट क़ानून का उलंघन होगा. कॉपी राईटकानून केवल लेखन, कला की तमाम विधियों और वैज्ञानिक आविष्कारों तक सीमित नहीं है. ये होली मनाने के तमाम तरीकों पर भी लागू होता है. जैसे बरसाने की होली केवल वहाँ के लोगों के लिए है. ऐसे में अगर बंगाल के लोग बरसाने की विधि से होली मनाते हैं तो कॉपीराईट कानून का उल्लंघन तय है. उदाहरण के तौर पर बिहार और यूपी के कई इलाकों में होली मनाने में रंग की जगह गोबर और कीचड़ का इस्तेमाल होता है. लेकिन अगर कीचड़ और गोबर का इस्तेमाल उड़ीसा और राजस्थान के लोग करें तो ऐसे में कॉपीराईट कानून का उल्लंघन होना तय है. होली मनाने के कुछ तरीके केवल एक-दो लोगों के लिए बने हैं. जैसे भगवान शिव श्मशान में होली मनाते हैं. होली मनाने के उनके तरीके को हम पंडित छन्नूलाल मिश्र के गीत 'खेलें मशाने में होली दिगंबर खेले मशाने में होली' से जान सकते हैं. ज्ञात हो कि हमें भगवान शिव के तरीके का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ठीक वैसे ही जैसे पंडित मिश्र के गाए गीत को अगर हम अपने ब्लॉग पर पॉडकास्ट में चढाते हैं तो ऐसे में कॉपीराईट कानून के उल्लंघन का चांस बढ़ जाता है.
ऐसे स्थिति में हमें क्या करने की जरूरत है? शायद ये कि हम ऐसी विधि से होली मनाएं जो अब कॉपीराईट कानून के दायरे से बाहर हो. उदाहरण के तौर पर रंग, अबीर और गुलाल से मनाई जाने वाली होली कॉपीराईट कानून के दायरे से बाहर है. इसका कारण यह है कि ये विधि इतनी पुरानी हो गई है अब ये विधि इस कानून के विधानों से बाहर है. मैं बताना चाहूँगा कि मैं और मेरा परिवार होली मनाते समय कॉपीराईट कानून का ध्यान हमेशा रखता है.
ज्ञान भैया (ज्ञान दत्त पाण्डेय)
होली आनेवाली है. कह सकते हैं, आ गई है. होली मनाना वर्षों से हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है. संस्कृति में रचे-बसे ऐसे ही पर्व हमें जीवन को नए तरह से देखने की प्रेरणा देते हैं. पहले होली मनाने में एक अलग तरह की आत्मीयता का अनुभव होता था. कालान्तर में इस त्यौहार को मनाने के तरीके में आत्मीयता की कमी दृष्टिगोचर हुई. जब मेरी पोस्टिंग रतलाम में थी तो वहाँ श्री नन्दसाधन दास के आश्रम में लोगों को होली मनाते हुए देखना एक सुखद अनुभव रहा.
मित्रों, होली के इस एक दिन हम सभी अपने कष्टों को थोड़ी देर के लिए ही सही, भूल जाते हैं. पढाई के दिनों में हॉस्टल में रहता था तब होली मनाने में बड़ा आनंद मिलता था. लेकिन शिक्षा प्राप्त करके कार्यक्षेत्र में उतरने के बाद नित्य की जो आपा-धापी शुरू हुई तो लगा जैसे जीवन से होली मनाने का आनंद कुछ कम हो गया. समय बदल जाए, हमारे जीवन जीने का तरीका बदल जाए, लेकिन हमारा प्रयत्न यही रहना चाहिए कि हमसे जितना बन सके, हम अपनी संस्कृति और अपने त्योहारों को वैसे ही रखें जैसा हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया.
मेरा भृत्य भरतलाल होली के दस दिन पहले से ही बहुत खुश है और होली मनाने का इंतजाम कर रहा है. कल बाज़ार से अबीर और रंग खरीदकर लाया. अम्मा से कह रहा था " अम्मा, पर साल राजेशवा हमरे ऊपर अईसन रंग डालि देहे रहा कि पन्द्रह दिन तक छुटा नाही. हम त यांह बार सोचि लेहे हई, ओके अईसन रंग लगाऊब कि जीवन भर बिसरे न." (अम्मा पिछले साल राजेश ने मुझे ऐसा रंग लगाया था कि पन्द्रह दिन तक छूटा नहीं. मैंने भी इस बार सोच लिया हई, उसको ऐसा रंग लगाऊँगा कि जीवन भर याद रखेगा.)
सही है। सबको रंग लगाइये। दुई-दुई करके काहे निपटा रहे हैं।
ReplyDeleteदेखिये ही होली के बारे आप कोटा बढ़ा कर लिख रहे हैं ये गलत है..दिनेश जी कोटा में ही रहते हैं..कहीं आप किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं कर रहे देख लीजिये ..क्योकि कानून का ज्ञान ना होने के कारण आप अपराधमुक्त नहीं होते हैं...
ReplyDeleteवैसे हमें पता चल रहा है कि चिट्ठाकार अपने पोस्टों की आउटसोर्सिंग कहाँ करवाते हैं..हम भी आउटसोर्स करवाना चाहते हैं..कृपया प्रपोजल भेजें...
ज्ञान जी ने अपनी पोस्ट में राखी सावंत के साथ होली का जिक्र किया था..कृपया उसे भी पब्लिश करें...नहीं तो आलोक जी बुरा मान जायेंगे...
तो ये रही हमारी व्यस्त टिप्पणी...
ये और इससे पहले वाली पोस्ट दोनों ही अपने आप में बड़ी रोचक और होली के रंगों से सरोबार हैं, खूब अबीर गुलाल लगायें हैं आप इन लोगों को। इस श्रृंखला को जारी रखें, एक बात पता चलती है कि आप पोस्ट बड़े ध्यान से पढ़ते हैं।
ReplyDeleteहंसा ही दिया आपने, दोनो ही शानदार लिखा आपने!!
ReplyDeleteकॉपीराईट तो मस्त लेकिन ज्ञान जी का रतलाम और भरतलाल की डिक्टो कॉपी!!
बहुत खूब!!
वाकई इसे जारी रखिए और सब को लपेटिए!!
आपकी ग्राह्य क्षमता बहुत उभर कर दिख रही है इस तरह के लेखन से!!
काकेश जी सही तो कह रहे हैं ज्ञान जी होली का जिक्र करें और उसमे राखी सावंत न हो ऐसा कैसे हो सकता है, भई वो राखी सावंत को ऐसे उदास कैसे कर सकते हैं ;)
सबकी होली के बारे मे तो लिख रहें हैं. कुछ अपनी होली के बारे मे बता दीजिये इससे पहले की कोई और बता दे.
ReplyDeleteबढ़िया है. बहुत बढ़िया है.
जो नहाये रंग में " नीरज" तेरे
ReplyDeleteउसकी होली रोज़ समझा कीजिये.
आप की खोपडिया पॉप कोर्ण बनाने की मशीन जैसे है जिसमें से आईडिया फुदक फुदक के बाहर गिरते रहते हैं....
तनिक बाल किशन जी की बात पे भी गौर फ़रमाया जाए..बचुआ बहुत पते की बात कर रहा है...
नीरज
होली मनाते समय कापीराईट का उलंघन ना हो इस का ध्यान रखॆगें:)
ReplyDelete1. आप या तो कॉपीराइट बचालें या होली मना लें। दोनो काम एक साथ कैसे कर सकते हैं। कॉपीराइटों का उल्लंघन ही तो होली है। कोई वर्जना नहीं!
ReplyDelete2. यह लेख श्री दिनेशराय जी से लिखवाया हो तो ठीक है; वर्ना उनके कॉपीराइट का उल्लंघन तो है ही।
3. हमारा तो सारा पासवर्ड/यूजरनेम आपके पास है। लिहाजा आप ने लिखा, मैने लिखा बराबर है! :-)
और जो हमरा इण्टर्भियू लिये थे कि होली पे छापे छापेगे वो काहे नही छापा का ? होली के बाद छापेगे जब सारे भंग पिये पडे होवेगे..:)
ReplyDeleteअच्छा तो आप होली के पूरे मूड मे है। :)
ReplyDeleteबढ़िया है।
जारी रखिये।
आप ने बिना पूछे ही हमरा आलेख छाप लिया।
ReplyDeleteहोली है, हम ने इस पर कॉपीराइट माफ किया।।
पर सेंसर किया और महत्वपूर्ण अंश काट लिया।
होली की विजया को खुद अकेले ही छान लिया।।
विजया मगर छुपाए-छुपाए, नहीं छुपेगी मिसर जी।
आप होंठ सिलवा लें, कलम से बोलेगी मिसर जी।।
भोले की परसादी है, हर राज खोलेगी मिसर जी।
छूटे रंग होली का तब तक सर डोलेगी मिसर जी।।