(सं) वैधानिक अपील: जैसा कि मैंने कहा था, होली के मौसम पर मौसम बूझने के लिए मैंने कोटा बढ़वा लिया है. ये पोस्ट उसी बूझने का नतीजा है. इसलिए ऐसी बौड़म पोस्ट को ऐसे वैसे ही देखा जाय. इसे फील न किया जाय.
होली आ पहुँची है. होली मनाने के बारे में हमारे मूर्धन्य चिट्ठाकार क्या सोचते हैं? अगर उसपर पोस्ट लिखें, तो शायद कुछ ऐसा लिखेंगे
काकेश जी
होली आ पहुँची. वैसे आजकल व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि साँस लेने की भी फुरसत नहीं है. आज परुली से मुलाक़ात नहीं हुई होती तो पता भी न चलता कि होली आ गई है. आज आफिस से घर लौट रहा था तो देखा, कि परुली रंग, अबीर और गुलाल खरीदने के बारे में अपनी सहेलियों से बात कर रही थी. मुझे देखा तो मुस्कुरा दी. मैंने पूछा; "क्या परुली, बेटा किस बात का प्लान बना रही हो?"
बोली; "मैं न, अपनी सहेलियों के साथ होली खेलने का प्लान बना रही हूँ." उसकी बात सुनकर मुझे ध्यान आया कि होली आ पहुँची है.
मैंने कहा; "बेटा, तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. तुम्हें डॉक्टर जो बनना है."
मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी. बोली; "तो क्या हुआ, डॉक्टर भी तो होली खेलते हैं."
उसकी बात सुनकर मुझे लगा कितनी सहजता है इस बच्ची के अन्दर. हर बात को सहज ढंग से कह लेना सचमुच बहुत बड़ा गुण है. ये बच्ची अपने बाबू से भी जब कुछ कहती है तो बड़े सहजता से अपनी बात कह जाती है. जब यह कहती है कि "मैं ब्या नहीं करूंगी", तो भी कितनी सहजता होती है इसकी बातों में.
परुली के बारे में सोचते-सोचते मैं घर में दाखिल हुआ. उसकी मासूमियत और सहजता से इतना प्रभावित कि मैंने भी गोल्ज्यू से मन ही मन कहा; "गोल्ज्यू, परुली के ऊपर अपनी कृपादृष्टि रखियेगा. उसे इतनी शक्ति दीजियेगा कि वो रास्ते में आई सारी रुकावटें टाल कर डॉक्टर बन जाए. अगर ऐसा हो गया तो मैं आपके थान आकर आपको सवा रुपये का प्रसाद चढाऊंगा."
मैं यही बुदबुदाते घर में घुसा. पत्नी ने पूछा; "क्या ख़ुद से बात कर रहे थे? क्या हुआ?"
मैंने कहा; "नहीं, ऐसी बात नहीं है. मैं तो भगवान से कुछ मांग रहा था."
अरुण अरोरा जी (पंगेबाज)
होली आ गई जी. बिल्कुल आ गई जी. इस बार होली अलग तरीके से मनाऊँगा. अब तो मुझे कोई टेंशन भी नहीं है. जब से शिव कुमार जी को दुर्योधन की डायरी सौंपी है, तब से केवल तरह-तरह के शोधकार्य में लगा हूँ. हाल ही में तमाम शोध समाप्त किए और उसकी जानकारी भी आपलोगों को पोस्ट लिखकर दी. रसिक बलमा के ऊपर मेरा शोध तो पढ़ा ही होगा आपने. अब अगर रसिक बलमा होली खेल सकता है तो ऐसे बलमा पर शोध करने वाला किस तरह की होली खेलेगा, आप अंदाजा लगा ही सकते हैं.
इस बार ऐसी होली खेलने का प्लान बनाया है जो मुझे प्रसिद्धि भी दिला सके. प्रसिद्धि के बारे में शोध करते हुए मुझे पता चला की कबीर और रहीम जी ने केवल 'चमचत्व' पर ही नहीं बल्कि होली खेलने की विधियों पर भी दोहे लिखे. ऐसे दोहों का समग्र संकलन करने के बाद मुझे ख्याल आया कि ऐसे दोहों के सहारे ब्लॉग की मार्केटिंग की जाय तो ब्लॉग उद्योग को बहुत आगे ले जाया जा सकता है.
मैंने 'बड़े भइया' सुयोधन के सपने में आने की बात आपको बताई थी. जब से उन्होंने सपने में मुझे बताया है कि अलोक पुराणिक जी मेरे लिखे हुए कितने ही निबंध अपने ब्लॉग पर छापते रहते हैं, और उसके लिए मुझे क्रेडिट नहीं देते, तब से मैंने सोच लिया है कि मैं निबंध प्रतियोगिता में भाग तो लूंगा लेकिन फर्स्ट नहीं आऊँगा. इसका फायदा यह होगा कि मैं अपने निबंध अपने ब्लॉग पर पब्लिश कर सकूंगा.
ये तो गड़बड़ हो गया. कहाँ से शुरू किया था और कहाँ पहुँच गया. हाँ तो मैं आपलोगों को बता रहा था कि कबीर और रहीम के ऐसे दोहे भी लिखे जिनमें होली खेलने की विधि बताई गई है. प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ दोहे...
रहिमन होली वहि भली, जो एकहि दिन की होय
सुबह लगा के रंग सब, शाम भये तो धोय
कह रहीम पक्का वही, जेहि रंग प्रीति समाय
रंग लगा के भंग पी, साथ में गुझिया खाय
कबीर लिखते हैं;
ऐसी होली खेलिए, जो कभी सके न भूल
हॉकी की एहि हार को, न दे ज्यादा तूल
खेलन होली मैं चला, मन का आपा खोय
जिसके रंग लगाय दिन, रहे सदा वो रोय
होली को त्यौहार में, जीत-जीत नहि हार
रंग बिके, रौनक दिखे, बना रहे बाज़ार
कबीर और रहीम जी ने होली पर जितने भी दोहे लिखे, उसे मैं पूरा का पूरा नहीं लिख रहा हूँ. कॉपीराईट की बात अभी चल रही है. हो सकता है शिव कुमार जी की तरह कोई और ब्लॉगर अगर ये दोहे लेना चाहे, तो उससे वसूली करने का चांस तो रहेगा.
मस्त है जी.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ने मुझे भी होली पर लिखने के लिये बाध्य कर दिया.अब मैं भी कुछ सोचता हूँ.
वैसे हम झुमरी तलैया शिफ्ट हो गये हैं जी.
ReplyDeleteये क्या हो रहा है..? रात ही तो मैने सपना देखा था कि आप फ़रीदाबाद रायलटी की बात करने आये हुये है और बातो ही बातो मे आपको मै जो दोहे सुना गया आपने सुबह उठते ही टीप डाले..? मतलब सपने मे भी दोहे सुनाने का जमाना नही रहा..रायलटी के बिना ही माल पराया हो जाता है..? आज से सपने भी अकेले के ही देखूगा..मुझे तो रायलटी ना मिलने के नाम से ही रोना आ रहा है बूहू हू हू ःउ ःउ
ReplyDeleteबेहतरीन........शिवजी. दोहे बड़े ही मज़ेदार है :)
ReplyDeleteक्या ओरिजिनल टच है भाई...!!!! आनन्द आ गया...इन सबकी अच्छी खिंचाई चल रही है...कल भी पढ़े थे ज्ञानजी और दिनेश जी की शोभायात्रा,,, तब भी पेट पकड़ कर हंसे थे..मगर कहीं बाहर थे तो टिपाणी न कर पाये.
ReplyDeleteऔर दिजिये तबियत से सब को...छेकड़ी याद आ जये होली पर सबको. मुझे तो बहुत मजा आ रहा है...हा हा हा हा!!!
काकेशजी झुमरीतलैया शिफट हो लिये हैं। और ऊहां से उन्होने लालूजी को एक पत्र लिखे हैं। कल हमरे ब्लाग पर बांचिये।
ReplyDeleteऔर जमाये रहिये।
हम तो राजधानी में हूं ही नहीं।
हम तो गाजियाबाद में रहता हूं।
सही है। मौज जारी रहे। :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteजारी रखें इसे
क्या दोहे रहे ; क्या धोए रहे [:-)] - लगे रहें - थोड़ा रुक रुक के पढ़ाई चालू है - कारण आपको मालूम है - मनीष
ReplyDeleteजमाए रहिए रंग अखाड़ा।
ReplyDeleteकाकेश जी और अरुण जी का तो पूरा हो गया....लेकिन अरुण जी के इन्टरव्यू का क्या हुआ?
ReplyDeleteऔर लिस्ट खत्म हुई या कोई और भी है?
इतने सूक्ष को देख; इतना विस्तृत आयाम दे कर होली के विषय में लिखा है कि आश्चर्य होता है। एक नहीं छ लोगों के लेखन विधा को ज्यों का त्यों उतार दिया है। आगे भी शायद और लोगों का विवरण आये।
ReplyDeleteक्या कहा जाये? यह कहना कि यह बहुत इम्प्रेसिव है - अपने भावों को सबड्यूड तरीके से व्यक्त करना होगा।
अद्भुत है यह लेखन!
बाल किशन कितने भोले हैं पूछते हैं..."और लिस्ट खत्म हुई या कोई और भी है?"
ReplyDeleteअब बताईये ऐसे कैसे लिस्ट खत्म हो जायेगी? बात "कबीर" "रहीम" की निकली है तो "नीरज" तलक जायेगी...ऐसे नहीं खत्म करने देंगे ये श्रृंखला...
खूब लिख रहे हो बंधू...मानना पड़ता है की आप ब्लॉग कितने ध्यान से पढ़ते हैं... सबकी लेखन शैली और शब्दों का हुबहू खाखा खींच देते हैं आप...अरे अगर इतने ध्यान से कोलेज में पढाई करी होती तो आज अमृत्य सेन की जगह आप का नाम होता दुनिया में...
नीरज
वाह भाई!
ReplyDeleteआपका कई पोस्टों का होली पुरान एक साथ पढ़ गया. मजा आ गया.