ये दु:शासन तो हाथ से निकला जा रहा है. मेरी ही गलती है, इसे छूट नहीं देनी चाहिए थी. हमलोगों के साथ जब तक रहता है तो कंट्रोल में रहता है. बाहर गया नहीं कि कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा कर आता है. जब से जयद्रथ के साथ में ज्यादा रहना शुरू किया है, आदतें ख़राब होती जा रही हैं इसकी. कल जयद्रथ के साथ बिना बताये निकल गया. रात को जयद्रथ हांफते हुए आया. बता रहा था कि शेर-ए-पंजाब ढाबा पर भीम से कहा-सुनी हो गई और भीम ने दु:शासन की पिटाई कर दी है. मुंह और नाक से खून बह रहा है.
जयद्रथ ने यह भी बताया कि गलती दु:शासन की नहीं बल्कि उस भीम की थी. जयद्रथ भी कम झूठा नहीं है. मुझे पता है न. जब वो ये घटना बयान कर रहा था तो उसके मुंह से मदिरा की दुर्गन्ध आ रही थी. मेरे धमकाने पर उसने असली बात बताई कि कैसे वहाँ पहुँच कर दु:शासन ने बीयरपान किया. थोडी देर बाद भीम वहाँ आ पहुँचा. भीम को देखते ही दु:शासन ने फब्ती कस दी. दु:शासन ने भीम को भिखारी कहा तो भीम को गुस्सा आ गया. उसके बाद बीयर के नशे में चूर दु:शासन ने भीम को गालियाँ दीं. भीम का गुस्सा बढ़ा तो उसने दु:शासन की जम कर धुनाई कर दी.
मुझे चिंता हो रही है. दु:शासन के साथ घटी इस घटना का पता अगर हस्तिनापुर के लोगों को चला तो वे कहेंगे कि भीम ने जो किया ठीक किया. दु:शासन यही डिजर्व करता है. लोगों को अगर पता चलेगा कि दु:शासन ने भीम को गाली दी है तो लोगों के मन में हमारे लिए घृणा बढ़ जायेगी और भीम के लिए सहानुभूति. समझ में नहीं आ रहा था कि इस घटना का विवरण बाहर जाने से कैसे रोका जा सके. लेकिन एक बात और है. अगर दु:शासन ख़ुद बाहर गया तो उसके मुंह और नाक के घाव को देखकर लोग पूछेंगे ही कि क्या हुआ?
मैं अभी सोच ही रहा था कि मामाश्री आ पहुंचे. मुझे चिंतित देख मेरी चिंता का कारण पूछ लिया. मैंने उन्हें अपनी समस्या के बारे में बताया तो बोले कि मैं दु:शासन के बारे में इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए. वो राजपुत्र है तो राजपुत्रों के गुण उसके अन्दर रहेंगे ही. जब मैंने मामाश्री से इस घटना को लेकर ये सलाह मांगी कि प्रेस वाले पूछेंगे तो क्या बोलना है तो मामाश्री ने कहा कि प्रेस को बता दिया जाय कि पास वाले राज्य के जासूसों ने दु:शासन के ऊपर हमला कर दिया था.
लेकिन यहाँ एक समस्या है. पिछली बार जब दु:शासन किसी लड़की को छेड़ने के चक्कर में पिटा था तब भी यही बहाना बनाया गया था. एक ही कारण बार-बार बताने से तो लोगों को शक हो जायेगा.काफी सोच-विचार के बाद मामाश्री की बुद्धि का ज्वालामुखी फूटा. बोले; "ऐसा करो, प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर पत्रकारों को बता दो कि दु:शासन के ऊपर अज्ञात लोगों ने हमला किया है और हम उन अज्ञात लोगों की तलाश कर रहे हैं." मामाश्री की सलाह मुझे पसंद आई. कल सुबह ही प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर पत्रकारों को यही बता दूँगा. ऐसा करने से कम से कम लोगों की सहानुभूति तो मिलेगी.
दु:शासन को सहानुभूति तो मिलेगी ही, जनता के मन में कन्फ्यूजन भी बढेगा. राज परिवार को और क्या चाहिए?
सही जा रहे हैं. दुशाशन से बच के रहियेगा.मामा श्री तो बड़े काम की चीज है.क्या गजब आइडिया दिये थे. लेकिन यह गलत बात है आप इस डायरी को पहले ही कुछ लोगों को पढ़ाकर आइडिया लीक करवा दिये.यह ठीक नहीं है जी.
ReplyDeleteक्या बात है जी - ये तो "जो घर फूंके आपना" टाइप लिख दिया [ वैसे - दुर्योधन जी खुल्ली जीप ले के उसी टाइम चले जाते तो ऐसी नौबत नहीं आती] - मनीष
ReplyDeleteसही!!
ReplyDeleteजारी रखें
दुर्योधन ने ही बढ़ावा दिया था दु:शासन को.
ReplyDeleteअब पछताये होत क्या जब चिड़िया .....
इस अल्प ज्ञात (दुर)घटना की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाने का शुक्रिया. हम सब कौरव बंधुओं को इससे बहुत सदमा पहुँचा है. हमारी प्रतिक्रिया कुछ इस टाइप है जी:
ReplyDeleteमरेगा मारने वाला साला.
तमंचे वाला कौरव बनना पड़ेगा.
ये घोस्ट बस्टर जी तो कौरव कहीं से नहीं लगते। कौरवीय माहौल का सेण्टीमेण्टल लाभ लेने वाले लगते हैं। "मरेगा मारने वाला साला" सच बात है। पर तमन्चा लेलें या तोप; अन्तत: कौरव ठिकाने ही लगेंगे। यह हमारा विश्वास है।
ReplyDeleteइतिहास रीपिट होता है...
ReplyDeleteया डायरी लीक हुई थी? :)
ये आप किताब को छपवाने के चक्कर मे काहे प्रेस वालो को दिखाते है,आपको पता नही कि अखबार वाले और प्रिंटिंग प्रेस अलग अलग चीज होती है, अब डायरी कितनी लीक हुई क्या पता..? सोच तो रहे है आपको एम सील भिजवादे पर इसका भी कोई फ़ायदा होगा,या नही पता नही...:)
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteसमझ नहीं आ रहा की दुर्योधन ने कितना वक्त लगाया होगा डायरी लिखने में...आप ३३५५ पेज पढ़वा रहे हैं...अगर इतने पेज उसने लिख डाले हैं तो वो महाभारत की लडाई लड़ा कब होगा...कोरवों की हार का कारण अब समझ में आ रहा है...दुर्योधन लड़ा ही नहीं ...डायरी लिखने में ही व्यस्त रहा...
नीरज
बहुत सारगर्भित , बहुत सुंदर !!जारी रखें
ReplyDeleteमुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा कि दुर्योधन को महात्मा गांधी कहाँ मिल गए। जिन से ऐसी सच्ची डायरी लिखना सीखा। और शास्त्री जेसी फिलिप क्यों नहीं मिले जिन से सीखता कि डायरी में क्या नहीं लिखना चाहिए।
ReplyDeleteराजपुत्रों के दुर्गुण जानकर अच्छा लगा। दुर्योधन को भड़ास निकालने के लिए डायरी लिखनी पड़ रही है ये उसका अच्छा संस्कार है।
ReplyDeleteये डायरी हमारे बड़े भाई सुयोधन (कुछ राजपुत्रोचित कार्यों के कारण आप उन्हें दुर्योधन कैसे कह सकते हैं?)की नहीं हो सकती क्योंकि उन्होंने तो विदुर जी के डर से कुछ दिन बाद ही डायरी लिखनी बंद कर दी थी. इतने पृष्ठ लिखने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. ये पृष्ठ प्रक्षिप्त प्रतीत होते हैं.
ReplyDeleteअत: मैं इस दुष्प्रचार का विरोध करता हूँ (ठीक वामपंथी स्टाइल में) अब शिवकुमार जी इस पर स्पष्टीकरण दें अन्यथा मैं उनके चिट्ठे से समर्थन वापस ले लूँगा.
- अजय यादव
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