"मे को बाईट के लिए मत बोलो. बाईट के लिए जाओ उस खली के पास. उसी से बाईट मांगो"; हिन्दी न्यूज़ चैनल वालों से नाराज राखी सावंत पत्रकारों को झिड़क रही थीं. उन्हें शिकायत है कि पिछले एक महीने से हर न्यूज़ चैनल पर उनकी जगह खली को दिखाया जा रहा है. उनकी शिकायत सही भी है. सुबह खली, शाम को खली, रात को खली. सिर्फ़ खली खली खली.
न न, सुनकर ये मत समझियेगा कि राखी जी सरसों के तेल निकालने के बाद उसके बायप्रोडक्ट खली की बात कर रही हैं जिसे भिगोकर गाय और भैसों को खिलाया जाता है ताकि वे ज्यादा दूध दें. राखी जी तो इस पृथ्वी के नौवें अजूबे खली पहलवान की बात कर रही हैं. उनका कहना ठीक भी है. पिछले एक महीने से हर चैनल खली को ही दिखा रहा है. ये चैनल नहीं होते तो हमें तो पता ही नहीं चलता कि खली न सिर्फ़ नूरा-कुश्ती लड़ता है बल्कि खाना खाता है. हंसता है. कपड़े पहनता है. पहलवानी की रिंग में नाचता है. अमेरिका में रहता है.
कुछ दिन पहले ही एक टीवी न्यूज़ चैनल खली को दिखाते हुए भीम के पुत्र घटोत्कच के बारे में बता रहा था. ये जानकारी दे रहा था कि घटोत्कच का जन्म भी हिमाचल प्रदेश में ही कहीं हुआ था. जी हाँ, वही सुखराम जी वाला हिमाचल प्रदेश. मुझे लगा कि कहीं चैनल का इशारा इस बात की तरफ़ तो नहीं कि ये खली घटोत्कच का अवतार है. इससे पहले कि एंकर इसका रहस्योद्घाटन करता, मैं आगे बढ़ लिया.
खैर, राखी जी की बात से परेशान संवाददाता अपने न्यूज़ एडिटर को समझा रहा है. "देखिये सर, राखी ने तो मना कर दिया. कह रही थी, टीवी कैमरा के सामने कुछ नहीं बोलेगी. जो बोलना होगा, अब से केवल घर में बोलेगी."
"लेकिन घर में उसकी बात सुनेगा कौन? और फिर घर में बोलकर उसे भी कोई फायदा नहीं होगा और हमें भी. तुमने पूछा नहीं, घर में उसकी बात कौन सुनेगा"; न्यूज़ एडिटर ने संवाददाता से जानकारी मांगी.
"मैंने पूछा था सर. राखी ने कहा कि उसने नर्सरी में पढ़ा था कि दीवारों के भी कान होते हैं. इसलिए वो दीवारों को अपनी बात सुनाएगी लेकिन टीवी न्यूज़ चैनल वालों को नहीं"; संवाददाता पूरी बात बताते हुए बोला.
न्यूज़ एडिटर सोच में पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद मुस्कुराने लगा और बोला; "लेकिन एक बार तुम्हें राखी को मनाना चाहिए था. उसे समझाना हाहिये था कि खली भी तो हमारे लिए इम्पार्टेन्ट है. कुछ दिन हम उसे और चलायेंगे फिर उसे ड्राप कर देंगे."
"मैंने कहा था सर. मैंने उसे मनाया भी था. लेकिन वो बहुत गुस्से में थी. मेरी बात सुन ही नहीं रही थी. कह रही थी, 'आज तुम लोग भी जानते हो. राखी के अन्दर जो अदा है वो उस खली के अन्दर नहीं है. राखी के अन्दर आग है आग. मे को मालूम है, तुम लोग वापस मे पास ही आओगे. ये खली से कितने दिन धंधा चलेगा तुमलोगों का? ख़ुद शाहरुख़ कह रहा था कि मेरे अन्दर अदा है. ये राखी जहाँ जाती है, सबको अपने बस में कर लेती है. जाओ खली को दिखाओ, लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं दिखा सकोगे. वापस मे पास ही आना पड़ेगा"; संवाददाता ने सारी बात एडिटर को बताई.
सारी बात सुनकर एडिटर सोच में पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा; "अच्छा, क्या किया जा सकता है कि राखी को वापस चैनल पर ला सकें. आख़िर उसका कहना भी ठीक ही है. हालांकि हम वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है लेकिन जनता जिस दिन हमें चिट्ठी लिखकर बता देगी कि वो खली को देखकर बोर हो चुकी है, तो हमें तो ये खली-दर्शन बंद करना ही पड़ेगा"
"हां सर, आपकी बात सोलह आने सच है"; संवाददाता ने जानकारी दी.
एडिटर कुछ देर तक सोचता रहा. फिर अचानक बोला; "अच्छा, अगर हम राखी सावंत को खली के बारे में बात करते हुए एक प्रोग्राम बना डालें, तो कैसा रहेगा?"
संवाददाता का चेहरा खिल गया. उसने कहा; "मान गए सर आपको. क्या दिमाग चलता है आपका. वाह, क्या धाँसू आईडिया दिया है आपने. हमारे राईवल चैनल वालों के दिमाग में ये आईडिया आ ही नहीं सकता. और फिर सर, राखी ही तो है. इतना बोलती है कि उसे पता ही नहीं कि क्या बोल रही है. क्या पता, बात बात में अपने चैनल पर ही खली को चैलेन्ज कर दे. ये कहते हुए वो खली से कुश्ती लड़ेगी. सोचिये सर, अपनी तो निकल पड़ेगी."
दोनों ने एक दूसरे को देखा और खुश होते हुए उठ गए. जा रहे थे ऐड बनवाने कि "टेलीविजन के इतिहास में पहली बार, देखिये राखी सावंत को खली के बारे में बोलते हुए........सबसे पहले हमारे चैनल पर."
आपको बेहतरीना आइडियाज के लिये सबसे तेज चैनल के मार्केटिंग हैड के लिये नामांकित किया जा रहा है.
ReplyDeleteएक धांसू गाना ..अमिताभ जी का गाया हुआ...
खली खली खली खली ...
राखी से आगे निकला खली..
ओ हो ..या...ओ...या ...
आपसे अपने ब्लॉग में कुछ डिमांड रखी है कृपया उसे पूरा करने की कोशिश करें.
आपने हम चैनल वालों की बुरी तरह भद्र पिट दी है। खैर सही भी है
ReplyDeleteलगता है आपसे कोई चैनल वाला पटा नही..:)
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteखली अपने शरीर से बलि है और आप अपनी बुद्धि से खली हैं...क्या दिमाग पाया है आपने...एक से बढ़ कर एक धांसू अईडियास आपके खोपडी में आते हैं की देख कर दांतों तले ऊँगली दबानी पड़ती है...और अब तो इतनी बार ऊँगली दबा चुके हैं की की दब दब के तिनके सी पतली हो गयी हैं. ऐसा क्यों न करें की खली के साथ उसका जो पिद्दी मरियल सा चमचा रहता है अरे भाई उसका P.R.O., उसकी जगह राखी को लेलें, बोलने का काम राखी करे और लड़ने पिटने का खली...याने एक पंथ दो काज...खली भी खुश राखी भी खुश और चॅनल वालों की तो बांछे ..वो कहाँ होती हैं पता नहीं, हमेशा खिली रहेंगी.
नीरज
ये आईडियावान एडिटर सही कहता है.
ReplyDeleteवैसे खली तो कभी-कभी कुश्ती लड़ता है. लेकिन राखी जी हमेशा जुबान से लड़ती रहती हैं.
कहीं खली हार न जाए.
अरे आपने आलोक पुराणिक से कहा होता. वे आपको होली के मौके पर राखी से मिलवा देते और उन्हें मनाने के दो-चार फंडे भी बता देते. ऐसे कि घर में किसी को कुछ पता भी न चलता. ये फालतू में चैनल, रिपोर्टर और एडिटर के झमेले में क्यों पड़ते हैं जी!
ReplyDeleteकाकेश जी की सलाह ही हमारी सलाह है,
ReplyDeleteवाकई साल खली खली का राग अलापते रहते हैं ये चैनल वाले!!
ReplyDeleteएक बात मिल बस जाए इनको कोई नई, फ़िर तो ऐसा घिस देते हैं उसे कि दर्शक उकता जाए!
वाह! राखी सावंत न हुयी कैसियस क्ले की बेटी लैला अली हो गयी! उनका एक बॉक्सिंग/कुश्ती मैच खली से करा दिया जाये! पुराणिक जी की भाषा में कहें तो घणे पइसे मिलेंगे! :D
ReplyDeleteक्या आईडिया है महाराज..कोई चैनल क्यूँ नहीं ज्वाईन कर लेते. :) चल निकलेगी...आपकी भी, चैनल की भी... :)
ReplyDeleteभाई राखी और खली से भाग कर तो इधर ब्लॉग पढ़ने को आए थे। यहाँ भी वही। लगता है दोनों सर्वव्यापी हैं।
ReplyDeleteक्या बात है, एक ही तीर से तीन शिकार मार डाले - राखी, खली और चैनल। सबको लपेटे में ले लिया। मजेदार
ReplyDeleteभाई जी,
ReplyDeleteक्या मेरी राय भी यहाँ कुछ महत्व रखती है ?मुझे तो खली से ज़्यादा राखीं ही खली हैं, और उसके रिमेन इन न्यूज़ के सूत्र को जिलाये रखने में सफलता दिलाने में हमारा सहयोग भी एक खली हैव्हाई कांट वी इग्नोर सच ईश्यूज़ ? इट हैज़ बिकम ए टेन पैसा क्वेश्चन ! और दस पैसे की किल्लत हमेशा की तरह बरकरार है क्योंकि हम बदले में टाफ़ी पाकर संतुष्ट हो लेते हैं !
भैये ये तेहरवीं टिप्पणी का अंक अशुभ लग रहा था इस लिये चौहदवें नंबर से टिपिया रहे हैं!
ReplyDeleteराखी -खली और शिव कुमार मिश्र कुछ दाल में काला जरूर है,आप टी.वी पर राखी रिंग में और खली ब्लॉगजगत में क्या अंडरस्टैंडिंग है भाया
राखी मय होने की बधाई......
ReplyDelete@ डा अमर कुमार
ReplyDeleteसर, आपकी गंभीर टिपण्णी के लिए धन्यवाद. आपका सवाल है; "कांट वी इग्नोर सच इस्यूज?"
हम क्यों इग्नोर करें? आपको नहीं लगता कि ऐसी बातों को इग्नोर करने से ऐसे लोगों का हौसला बढ़ता है. दूसरी बात है राखी सावंत जैसे लोगों की टू रीमेन इन न्यूज वाली सोच को बढावा देने में हमारा भी हाथ है.
आपको लगता है कि ऐसा है? हम तो शिष्टाचार के नाते ऐसी बातों को इग्नोर कर देते हैं. लेकिन ऐसे लोगों को शिष्टाचार की बातें समझ में आती हैं? दिनकर जी ने लिखा है;
चुराता न्याय जो रण को बुलाता भी वही है
युधिष्ठिर स्वत्व की अन्वेशणा पातक नहीं है
नरक उनके लिए जो पाप को स्वीकारते हैं
न उनके हेतु जो रण में उसे ललकारते हैं
सहज ही चाहता कोई नहीं लड़ना किसी से
किसी को मारना अथवा स्वयं मरना किसी से
नहीं दु:शांति को भी तोड़ना नर चाहता है
जहाँ तक हो सके निज शांति प्रेम निबाहता है
मगर यह शांतिप्रियता रोकती केवल मनुज को
नहीं यह रोक पाती है, दुराचारी दनुज को
दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है?
विनय को नीति कायर की सदा वह मानता है
समय ज्यों बीतता त्यों-त्यों अवस्था घोर होती
अनय की श्रृंखला बढाकर कराल-कठोर होती
किसी दिन तब महाविस्फोट कोई फूटता है
मनुज ले जान हाथों में दनुज पर टूटता है
मेरी इस टिपण्णी का ध्येय केवल आपको मेरे विचार से आगाह करना है. बात इतनी सी है कि मैं ऐसे मसले पर क्या सोचता हूँ और क्यों मैंने ऐसी पोस्ट लिखी.
चुराता न्याय जो रण को बुलाता भी वही है
ReplyDeleteयुधिष्ठिर स्वत्व की अन्वेशणा पातक नहीं है
नरक उनके लिए जो पाप को स्वीकारते हैं
न उनके हेतु जो रण में उसे ललकारते हैं
इस कविता की ये लाइनें तो, मैं भी गुनगुनाया करता था ! धन्यवाद मित्र, स्मरण दिलाने के
लिये ! गोचर में ललकार आपकी !,इस कविता से भी अधिक खूबसूरत है ! बधाई हो,
चलो , आप राखी के साथ ही बने रहो ,
हमको तो यह खली भी यहाँ पर खल रहा है !
नमस्कार !
बड़ा अजीब लग रहा है डॉक्टर साहब. आपकी बात कि 'मैं राखी के साथ बना रहूँ, समझ में नहीं आई'.
ReplyDeleteपता नहीं आपको मेरी किस लाइन से लगा कि मैंने अपनी पोस्ट में राखी सावंत की तरफदारी की है. खली का विरोध किया है, या फिर टीवी न्यूज़ चैनल की तरफदारी की है....बड़ी दुविधा में डाल दिया आपने. सोच रहा हूँ अपना 'दस पैसा' का सवाल या फिर दस पैसा का लेखन जारी रखूँ, या फिर बंद कर दूँ.
लेकिन आप कह रहे हैं तो कुछ तो बात होगी जरूर. आख़िर आप राम चरितमानस के ज्ञानी हैं और मैं नहीं.
अमें फंडितजी,
ReplyDeleteछोड़ो यार, कुछ ज़्यादा ही सीरियस किसिम के मानुष लगते हो तुम ?
यह तू तड़ाक प्यार की तू तड़ाक है, उखड़ न जाना!
जिस मूड से तूने पोस्ट लिखी है,
मैंने भी तो उसी मूड से टिप्पीयाया है,
और तुम पसीने पसीने हो गया, वा भई !
वक्रोति तो समझा कर, और यहाँ मैं सर नहीं,
केवल एक ब्लागर हूँ,
पद या नाम पर मत जा
तू तो घुटे हुए ब्लागर का चेला और मेरा गुरुभाई है
अब तेरे को क्या बताना, क्योंकि तू तो वह सब भी जानता है, जो मैंने कभी सोचा ही नहीं !
इस होली की शाम में आ दोस्ती कर ले,
कुट्टी मिल्ली करने को बहुत टाइम बाकी है
ज़िंन्दे रह !
मान गए डॉक्टर साहब...कमेंट लिखने के बाद आप ये भी देखते हैं कि बन्दा आगे क्या लिखता है...
ReplyDeleteये 'फंडित' वाला संबोधन बहुत खूब लगा...बरसाने की होली नहीं खेल सकते, सो हम दोनों ने मिलकर 'हड़काने' की होली खेल ली...और फिर दोस्ती तो है ही.
आइडिया कमाल का है साहब.आप को तो चैनल वालों का फ़्रीलांसिन्ग सलाहकार बन ही जाना चाहिये.
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