Thursday, June 12, 2008

हम ईर्ष्या सप्ताह मना रहे हैं

कल बाल किशन आफिस में आए. बिना किसी पूर्व सूचना के. पहले बताते तो आफिस में ही सही, कैमरे का इंतजाम करके रखते. तीन-चार फोटो-सोटो खींचते और चिट्ठाकार सम्मेलन कर डालते. ब्लॉग के लिए एक पोस्ट लिख मारते. लेकिन ये बन्दा शायद चाहता ही नहीं कि मैं इस तरह की कोई पोस्ट लिखूं. पहले भी एक बार अपील की थी, कि कलकत्ते के चिट्ठाकार एक बार तो कहीं मिलकर सम्मेलन कर डालते. तब भी किसी ने ध्यान नहीं दिया.

खैर, आफिस में बिना बताये पधारे तो मैंने शिकायत कर दी. मैंने कहा; "भइया, पहले बताते तो हम कैमरा का जुगाड़ कर के रखते."

मेरी बात सुनकर बोले; "क्यों? कैमरा किसलिए?"

मैंने कहा; "अरे भइया कैमरा से फोटो खींचते. सम्मेलन की तस्वीरें लगाकर एक पोस्ट लिख डालते."

बोले; "चिट्ठाकार सम्मेलन अब आऊटडेटेड बात हो गई. अब तो कोई नई बात खोजो जिसे चिट्ठाकारिता का टॉनिक कहा जा सके."

मैंने काफी सोच-विचार किया लेकिन कोई नई बात नहीं मिली जिसे टॉनिक कहा जा सके. टॉनिक की खोज हर बार विवादों तक जाकर रुक जाती. खैर, मैंने खोज बंद की. हम चाय पी रहे थे तो बातें होने लगी. बातों की बीच में बाल किशन बोले; "और, क्या कर रहे हो?"

मैंने कहा; "पिछले तीन-चार दिनों से करने के लिए कुछ नहीं था. जब और कुछ नहीं मिला तो मैंने सोचा बैठे-बैठे क्या करेंगे, चलो कुछ ईर्ष्या कर लेते हैं."

मेरी बात सुनकर उछल पड़े. बोले; "क्या बात कर रहे हो? ईर्ष्या भी पूरा प्लान बनाकर करते हो?"

मैंने कहा; "हाँ. मैंने ईर्ष्या करना शुरू किया तो लगा कि लिस्ट लम्बी हो रही है. फिर मुझे लगा कि एक दिन में पूरी तरह से ईर्ष्या कर नहीं पाऊंगा इसलिए ईर्ष्या सप्ताह मना लेता हूँ."

मेरी बात सुनकर बोले; "वाह, ईर्ष्या सप्ताह! माने पूरा सप्ताह भर ईर्ष्या करोगे?"

मैंने कहा; "अब क्या करें? एक-आध दिन में मामला पूरा होते नहीं दिख रहा था, सो मैंने सोचा पूरा सप्ताह ही ईर्ष्या के नाम समर्पित कर देते हैं."

बोले; "तो लिस्ट में किसका नाम है?"

मैंने कहा; "सबसे पहला नाम तुम्हारा है. जिस तरह से तुम्हें पोस्ट पर टिप्पणियां मिल रही हैं, उसके लिहाज से तुम्हारा नाम लिस्ट में सबसे ऊपर है."

सुनकर मेरी तरफ़ बड़े तिलमिलाहट के साथ देखने लगे. बोले; "मतलब ये कि मुझे मिली दस-बीस टिप्पणियां भी तुमको हजम नहीं हुई? वैसे ये बताओ, और किसका नाम है लिस्ट में?"

मैंने कहा; "तुमको इतनी टिप्पणियां मिल रही हैं, तो हजम कैसे होगी. वैसे भी यहाँ एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर से बात कर रहा है. मैं पहले ब्लॉगर हूँ उसके बाद तुम्हारा दोस्त."

मेरी बात सुनकर बोले; "बाप रे बाप. कम्पीटीशन इतना बढ़ गया हिन्दी ब्लागिंग में! हमें पता नहीं था. वैसे लिस्ट में और कौन-कौन है, ये नहीं बताया तुमने."

मैंने कहा; "तुम्हारे बाद दूसरे नंबर पर प्रधानमंत्री हैं."

बोले; "बड़ी लम्बी छलाँग लगा दी. मेरे बाद सीधा प्रधानमंत्री तक जा पहुंचे. मतलब ये कि मेरे और प्रधानमंत्री के बीच में और कोई नहीं है?"

मैंने कहा; "नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है. तुम्हारे और प्रधानमंत्री के बीच मंहगाई है न."

बोले; "हाँ यार, वो तो है. वैसे प्रधानमंत्री से ईर्ष्या क्यों कर रहे हो?"

मैंने खुलासा करते हुए उन्हें बताया; "अरे उनसे ईर्ष्या नहीं करूंगा तो और क्या करूंगा. देखो न, कितना कंट्रोल है उनका अपने लोगों पर. मंहगाई बढ़ गई तो तो उन्होंने झट से खर्च कम करने के लिए आर्डर दे डाला. और सुना है कि लोगों ने उनकी बात भी मान ली है. एक मैं हूँ कि मंहगाई बढ़ने के बाद भी खर्च कम करने का आर्डर नहीं दे सका. एक बार दिया था लेकिन घर वालों ने कहा कि खर्च कम करने का मतलब ये है कि हम खाना न खाएं, बस में न चढें, बच्चों को स्कूल से वापस बुला लें. अब तुम्ही बताओ, ऐसे में प्रधानमंत्री जी से ईर्ष्या नहीं होगी?"

मेरी बात सुनकर बोले; "अच्छा, तो ये बात है. मतलब ऐसे भी लोग हैं भारतवर्ष में जो प्रधानमंत्री जी से भी ईर्ष्या कर सकते हैं. अब मुझे समझ में आ रहा है कि जो आदमी प्रधानमंत्री से ईर्ष्या करने की हैसियत रखता हो, वो कितना बड़ा चिरकुट होगा. वैसे आगे कौन-कौन है लिस्ट में?"

मैंने कहा; "बहुत सारे लोग हैं बाल किशन. एक तो मिसेज एंड मिस्टर झुनझुनवाला हैं. उनके अलावा शेयर मार्केट के एक्सपर्ट हैं जो लैपटॉप सामने रखकर मार्के के बारे में फटाफट बता देते हैं. मुझे इन लोगों से प्रोफेशनल ईर्ष्या होती है."

मेरी बात सुनकर बोले; "प्रोफेशनल ईर्ष्या तो होगी ही. तुम उस तरह से नहीं बता पाते होगे जिस तरह से ये लोग बताते हैं. लेकिन ये मिसेज एंड मिस्टर झुनझुनवाला कौन हैं?"

मैंने बाल किशन से कहा; "ये झुनझुनवाला दम्पति का नाम आजकल बहुत चर्चा में है. इन दोनों ने महान संत किरीट भाई और उनके चेलों का करीब सौ करोड़ रुपया मार्केट में डूबा दिया. केवल संत किरीट जी का ही चार करोड़ रुपया डूब गया."

मेरी बात सुनकर बोले; 'लेकिन तुम्हें झुनझुनवाला दम्पति से क्यों ईर्ष्या हो रही है?"

उनकी बात सुनकर लगा जैसे जले पर नमक छिड़क दिया हो. मैंने कहा; "अब तुम्ही बताओ, ईर्ष्या नहीं करूंगा तो और क्या करूंगा? एक मैं हूँ कि अपने क्लाइंट को शेयर मार्केट में निवेश करने से पहले कम्पनी का पूरा इतिहास-भूगोल बताता हूँ. सारा रेकॉर्ड देता हूँ. और पचास हज़ार इन्वेस्ट करने के लिए कहता हूँ तो लोग मानते ही नहीं. और ये लोग हैं कि इनलोगों को सौ-सौ करोड़ मिल जाते हैं मार्केट में इन्वेस्ट करने के लिए. ऊपर से तुर्रा ये भारत गरीबों का देश है. तुम्हें पता है संत किरीट के भक्तों में से किसी-किसी का तो सात करोड़ रुपया तक डूब गया."

मेरी बात बाल किशन की समझ में आई. बोले; "तुम्हारी ईर्ष्या जायज है गुरु. वैसे ये बताओ ये किरीट भाई से किसी ने पूछा नहीं कि बाबा आप तो भक्तों को मोह-माया से दूर रहने की बात करते हैं और ख़ुद पैसे इतनी माया किए बैठे हैं."

मैंने कहा; "किया था. किसी ने ये सवाल किया था. लेकिन ये संत लोग बड़े चंट होते हैं. किरीट भाई ने जवाब दिया कि पैसे से मोह-माया नहीं थी तभी तो शेयर मार्केट में पैसा लगाया. नहीं उसी पैसे का बैंक में ऍफ़डी नहीं कर लेते."

मेरी बात सुनकर बाल किशन मुझसे सहमत हुए. बोले; "सही कहा यार संत जी ने. वैसे तुम्हारा प्लान देखकर लग रहा है कि पूरा सप्ताह ईर्ष्या में गुजारने का मन बना लिए हो. इस तरह से तो लिस्ट खत्म ही नहीं होगी."

मैंने कहा; "हाँ यार. अब तो ईर्ष्या करके पेट भर जाए, तब कोई और काम शुरू करूं. वैसे भी ज्ञानियों ने कहा है कि कोई काम अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए."

बातचीत करते-करते हम दोनों आफिस से निकल रहे थे. सामने से शर्मा जी आते दिखाई दिए. बोले; "आज जल्दी जा रहे हैं घर?"

मैंने कहा; "हाँ. असल में मैंने सोचा कि आज घर जल्दी जाऊं तो कुछ घर का काम कर लूंगा."

मेरी बात सुनकर शर्मा जी बोले; "आपसे कभी-कभी बड़ी ईर्ष्या होती है. हमें देखिये हम तो रात को आठ बजे निकलकर फैक्ट्री जायेंगे उसके बाद घर का नंबर आएगा."

उनकी बात सुनकर लगा जैसे पूरी दुनियाँ ही ईर्ष्यामय है.

14 comments:

  1. सही है - ईर्ष्या सत्यम, जगन्मिथ्या!
    और बाल किशन से कौन न ईर्ष्या करेगा?! भतीजा पोस्ट लिखे टिप्पणी बालकिशन पायें!

    ReplyDelete
  2. यह व्यंगकार ही कर सकता है कि लालच को विमोह की संज्ञा दे दे।
    आप ईर्ष्या सप्ताह को रिपोर्ट तो कर रहे हैं ना सातों दिन।

    ReplyDelete
  3. हमें तो खुद ही बाल किशन जी से ईर्ष्या हो रही है कि आपने हमसे काहे नहीं ईर्ष्या की, इसलिये.

    बहुत सही, मजा आया पढ़कर.

    ReplyDelete
  4. वाह भाई अपन तो बहुते खुश है आपकी आजकी पोस्ट पढ़ कर.
    पहले हमसे तुम ईर्ष्या कर रहे वो फ़िर पी.एम. से कर रहे हो भाई वाह.
    औए सम्मेलन तो ही गया भले ही फोटो-सोटो ना खींची गई हो.
    हमने ये भी सुना है की जिससे ईर्ष्या की जाती है उसकी और उन्नति होती है तो तुम क्या सभी करो भाई हमसे ईर्ष्या.
    लेकिन असल ईर्ष्या की वस्तु तो ये महान संत महात्मा है भाई साब.

    ReplyDelete
  5. कम से कम प्रोफेशनल ईर्ष्या और ईर्ष्या सप्ताह के बारे मे तो जानकारी मिली और इनके बारे मे जाना. पढ़कर बड़ा आनंद आया और हँसी भी आ रही है कि ईर्ष्या सप्ताह के दौरान बहुत कुछ आपसे जानने का मौका मिलेगा .

    ReplyDelete
  6. हमें तो आपसे सच में ईर्ष्या हो रही है.. इत्ती जल्दी घर जो जाते हैं..
    ईर्ष्या इस बात से भी है कि आप हमसे ईर्ष्या क्यों नहीं कर रहें हैं.. :)

    ReplyDelete
  7. इस परम पुनीत पवान ईर्ष्या सप्ताह उत्सव को मनाने और सफलता पूर्वक समपान के लिए मेरी शुभकामनाये स्वीकार करो. ऐसे दुर्लभ व्रत का अनुष्ठान जीवन को पावन करने और शुभ दिशा देने के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है और सबके बस का भी नही होता.आशा है तुम्हारे इस महान व्रत का प्रसाद प्रतिदिन किसी न किसी को मिलता ही रहेगा.हम तो इसके दिग्दर्शन की प्रतीक्षा मे रहेंगे.बाकी लोगों को राम बचाएं,लपेटे मे कौन कौन आयेंगे ,पता नही.

    ReplyDelete
  8. हुम्म !
    काफ़ी लोग ईर्ष्या कर रहे है :)

    जारी रक्खें अपना ईर्ष्या सप्ताह। :)

    ReplyDelete
  9. चलिए एक टिपण्णी ठोक के हम आपकी ईर्ष्या थोडी कम किए देते हैं. :-)

    ReplyDelete
  10. बंधू
    "नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है. तुम्हारे और प्रधानमंत्री के बीच मंहगाई है न."
    ऐसे गज़ब के संवाद लिख देते हो अपनी पोस्ट पर और चाहते हो की हम इर्षा न करें... ये नाइंसाफी है.....बहुत मजा आया इस बार आप की पोस्ट पढ़ कर. कारण एक तो इस बार आप की शैली और कथ्य दोनों ही समझ में आ गए और दूसरे ये की हम दोनों की इर्षा का कारण और स्तोत्र भी एक ही है प्रातः भुलानिये श्री बाल किशन जी महाराज. जब से श्रीमान जी ने ग़ज़ल कविता नुमा शायरी शुरू की है हमें तभी से उनसे इर्षा हो गयी है और ये एक सप्ताह मनाने से नहीं पूरी होगी शायद "इर्षा का माह" मनाने से भी बात न बने. उनको साम दाम दंड भेद सभी तरह से समझा लिया है लेकिन हुजूर के कानो में जूँ ही नहीं रेंग रही.
    ज्ञान भैय्या की टिपण्णी ने आप को भी हमारी इर्षा के घेरे में ला खड़ा किया है...कहीं आप ही तो बाल किशन की आड़ में हम पर वार नहीं कर रहे? जमाना इतना ख़राब हो गया की समझ में ही नहीं आ रहा की किससे इर्षा ना करें?
    नीरज

    ReplyDelete
  11. @वड्डे पाप्पजी

    "मैं मूरख अज्ञानी
    किरपा करो भरता."

    ये सब शिव की चाल और छल है. वरना खाकसार किस काबिल और लायक है ये आप भी अच्छे से जानते हैं.
    इसलिए मुझपर तो प्रभो कृपा दृष्टि बनाये रखें.
    आपका अज्ञानी लघु भ्राता
    बालकिशन.

    ReplyDelete
  12. हमे भी इस देश के राष्टपति से इष्या है .sign करने के लिए देख ले कितने बड़े महल मे इत्ते साल अकेले ठाठ से गुजारते है.....वैसे बाल किशन जी पांडे जी बात पर जरा गौर फरमाये .....

    ReplyDelete
  13. आपकी पोस्ट का शीर्षक पढ़कर चौंक गए... पहले पढ़कर चले जाते थे...अब रुक गए...सोचा हम भी तो जानें कैसे ईर्ष्या सप्ताह मना रहें हैं... ईर्ष्या करने का यह अंदाज़ अच्छा लगा... शुभकामनायें

    ReplyDelete
  14. शानदार। धांसू च फ़ांसू ईर्ष्याजनक लेख। :)

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय