टीवी न्यूज चैनलों की वजह से देश में चर्चा को एक नई दिशा मिल गई है. न जाने कितने लोग चर्चा की वजह से चर्चित हुए जा रहे हैं. ये चर्चित लोग अपने रख-रखाव पर खूब खर्च कर रहे हैं. दो चर्चा में भाग लेकर विशेषज्ञ का सर्टीफिकेट लिए घूम रहे हैं. नए शूट सिलाए जा रहे हैं. इनके जो कपड़े सप्ताह में एक बार धुलते थे, अब तीन बार धुल रहे हैं. टाई की विक्री बढ़ गई है. नए कालेज खुल गए हैं जिनमें विशेषज्ञ तैयार किए जा रहे हैं ताकि चर्चा संस्कृति विकसित हो. देखकर लग रहा है जैसे आनेवाले दिनों में विकास का एक पैमाना इसे भी माना जायेगा कि चर्चा संस्कृति में विकास की दर क्या रही. वो दिन दूर नहीं जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय हर महीने एक रिपोर्ट जारी करेगा जिसमें उस महीने में हुई चर्चाओं पर एक समीक्षा करते हुए बतायेगा कि इस महीने में पिछले महीने की तुलना में चर्चा की विकास दर क्या रही. ठीक वित्त मंत्रालय की तर्ज पर जो हर हफ्ते मंहगाई के आंकड़े जारी करता है.
चर्चा के लिए चर्चित विषयों की भी कमी नहीं है. वैसे आजकल जितनी चर्चा ब्लागिंग के ऊपर चल रही है उतनी अमेरिका के साथ खटाई में पड़ी न्यूक्लीयर डील को लेकर भी नहीं हो रही. अखबारों में, टीवी चैनल पर, पत्रिकाओं में और न जाने कहाँ-कहाँ. हाल ही में ब्लागिंग के ऊपर चर्चा एक टीवी चैनल पर हुई. निहायत ही जरूरी लोगों को बुला रखा था चैनल वालों ने. इन जरूरी लोगों में एंकर के अलावा एक ब्लॉगर, एक साहित्यकार और एक आलोचक हैं. दूर मुम्बई स्टूडियो में बैठे एक विज्ञापन गुरु भी हैं. चर्चा शुरू हुई. एंकर ने सबसे पहले साहित्यकार से सवाल किया; " ब्लॉग के बारे आपकी क्या राय है?"
छूटते ही साहित्यकार बोले; "देखिए ब्लॉग साहित्य नहीं है. ब्लागिंग अनुपयुक्त चीज है."
साहित्यकार की बात सुनकर आलोचक जी खीज गए. बोले; "ब्लागिंग अनुपयुक्त चीज है, ये कहने का अधिकार मुझे है, आपको नहीं. आप अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर बोलिए."
साहित्यकार सहम गए. उन्हें याद आया कि उनकी हाल ही में छपी किताब इन आलोचक के पास है जो उन्होंने आलोचना के लिए भेजी थी. कहीं इनका दिमाग घूम गया तो किताब की ऐसी-तैसी तय है. कोर्स में लगाने के लिए जो हिसाब बैठा रखा है, वो भी बिगड़ जायेगा. वे चुप हो लिए.
उसके बाद एंकर ब्लॉगर से मुखातिब था. उसने सवाल किया; "अच्छा, ब्लॉगर जी ये बताईये, क्या ये सही है कि ब्लॉग साहित्य नहीं है."
"खबरदार, अगर किसी ने ब्लॉग को साहित्य कहा तो. जहाँ भी चर्चा होती है ये साहित्यकार शुरू हो जाते हैं. शोर मचाने लगते हैं, ये कहते हुए कि ब्लॉग साहित्य नहीं है, ब्लॉग साहित्य नहीं है. अरे मैं पूछता हूँ कि किसने कहा कि ब्लॉग साहित्य है?"; ब्लॉगर जी नाराज होते हुए बोले.
उनकी बात सुनकर एंकर बोला; "तो आप मानते हैं कि ब्लॉग साहित्य नहीं है?"
"अरे इसमें न मानने का सवाल ही कहाँ है? हम ब्लॉगर तो कभी नहीं चाहते कि ब्लॉग को साहित्य माना जाय. ऐसा हो गया तो हमारा ब्लॉग कोई पढेगा ही नहीं. ठीक वैसे ही जैसे साहित्य नहीं पढा जाता"; ब्लॉगर जी ने तैश में जवाब दिया.
"अच्छा-अच्छा, मैं आपकी बात मानता हूँ. वैसे आप ब्लागिंग को क्या मानते हैं? क्या ब्लॉग पर जो कुछ भी लिखा जाता है, वो सब दिल की भडास है?"; एंकर ने दोबारा सवाल किया. अभी एंकर अपना सवाल कर ही रहा था कि आलोचक बोल पड़े; "देखिये, मैं बीच में टोक रहा हूँ लेकिन ब्लॉगर जी की ये बात सच नहीं है कि साहित्य कोई पढता ही नहीं."
आलोचक जी की बात सुनकर ब्लॉगर जी हंस दिए. साथ ही साथ फब्ती कस दी. बोले; "हाँ, हाँ पढ़ते हैं न. साहित्य को आलोचक पढ़ते हैं." उन्होंने साहित्यकार जी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा; "ये लिखते हैं और आप पढ़ते हैं साहित्य."
"नहीं, देखिये मैं आपके पास आऊंगा"; एंकर ने आलोचक जी को बताया. उसके बाद उन्होंने ब्लॉगर जी से फिर वही सवाल किया; "क्या ब्लॉग-लेखन को दिल की भड़ास माना जाय?"
उनकी बात सुनकर ब्लॉगर जी तैश में आ गए. बोले; "पहले तो आप मुझे ये बताईये कि भड़ास से आपका क्या मतलब है?"
"देखिये भड़ास से मेरा मतलब था कि दिल में जमा हुआ आक्रोश तो नहीं है जो ब्लॉगर हर दिन अपने ब्लॉग पर उतरता फिरता है"; एंकर ने अपने आशय को स्पष्ट करते हुए कहा.
"तब ठीक है. मैंने भड़ास का मतलब कुछ और ही निकाल लिया था. कोई बात नहीं. देखिये, ब्लॉग-लेखन को भड़ास न मानकर आप ये कहिये कि ब्लॉग-लेखन अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता लिए ब्लागर के हाथ में एक ऐसा हथियार है जिससे वो अपने दिल की बात करता है"; ब्लॉगर ने समझाते हुए कहा.
उनकी बात से संतुष्ट एंकर ने इस बार साहित्यकार की तरफ़ सवाल दागा; "आपको ब्लॉग-लेखन से आपत्ति क्यों है?"
साहित्यकार जी ने अपनी बात सामने राखी. बोले; " अब मैं क्या कहूं? इस बार दिसम्बर के पहले सप्ताह में मैं ब्लॉग-विचरण कर रहा था. एक भी कविता नहीं दिखाई दी जो बाबरी मस्जिद के ऊपर लिखी गई हो. एक भी लेख नहीं दिखाई दिया जो गाजा में इसराईली हमले की निंदा करते हुए लिखा गया हो. अब आप ही बताईये, अगर ये सब कुछ नहीं कर सकते तो फिर ब्लागिंग का क्या औचित्य?"
अभी साहित्यकार जी बोल ही रहे थे कि आलोचक जी ने कमान संभाल ली. बोले; "आज देश में किसानों की हालत ख़राब है. बिजली नहीं है. पीने का पानी नहीं है. देश की सत्तर प्रतिशत आबादी के पास कम्यूटर नहीं है. ऐसे में ब्लॉग लिखना कहाँ तक जायज है?"
उनकी बात सुनकर ब्लॉगर जी बोल पड़े; "वैसे तो देश की वही आबादी साहित्य की मंहगी किताबें भी नहीं खरीद पाती. तो आपलोग साहित्य लिखना क्यों नहीं बंद कर देते?"
ब्लॉगर जी की ये बात सुनकर साहित्यकार और आलोचक खीज गए. अभी आलोचक जी कुछ बोलते तभी मुंबई में बैठे विज्ञापन गुरु बोल पड़े; "हा हा हा. ये ब्लॉगर और साहित्यकार की लड़ाई केवल अपने देश में होती है. एंड दैट इज नॉट विजिबल एनी ह्वेयर एल्स इन दिस वर्ल्ड." विज्ञापन गुरु अपनी बात कह ही रहे थे कि उनका कनेक्शन काट दिया गया.
एंकर ने हँसते हुए कहा; " जी मैं आपके बात को और आगे बढाता लेकिन हमारे पास समय बहुत कम है. हमें कार्यक्रम यहीं ख़त्म करना पड़ेगा. आप सब का धन्यवाद जो आपलोग समय निकाल कर यहाँ आए. शायद ब्लागिंग के ऊपर चर्चा के लिए हमें और समय चाहिए."
टीवी पर एक और चर्चा अध्याय समाप्त हो चुका था.
वैसे सुनने में आया है कि जब चर्चा में भाग ले रहे ब्लॉगर से उसके एक मित्र ने पूछा कि; "तुम इतना तैश में क्यों बोले जा रहे थे?" तो उनका जवाब था; "टीवी चैनल ने कमिट किया था कि चर्चा के दौरान वे लोग मेरा ब्लॉग स्क्रीन पर आठ बार दिखाएँगे लेकिन उन्होंने केवल चार बार दिखाया. इसलिए मुझे बहुत गुस्सा आ गया था."
शिव जी,
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है आपने, सच में मजा आ गया। वैसै इन तमाम जन का खुलासा भी करते तो रस जरा ओर बढ जता।
ब्लॉगर को मौका मिला और उसने साहित्यकार की धुलाई ( मैं धुनाई नहीं कह रहा हूँ) कर दी। हा,…हा,…
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट। साधुवाद!
देखिये जी एक बात तो तय है की साहित्यकार कभी भी ब्लॉग्गिंग को तवज्जो नही देंगे ओर आलोचक भी..
ReplyDeleteदोनों की अपनी वजहे है ,वैसे भी यहाँ उनका रोब ग़ालिब होता नही है...अब नामवर सिंघ जी इसलिए तो रो रहे है पर जरा उनसे कहिये तो हमने तो किसी से नही कहा की भाई ब्लोगिंग को साहित्य में शामिल करो ...भले ही बिहार में लिखी बात अमेरिका में बैठा नौजवान पढ़े .........अब ग़ालिब को देखिये कहाँ कहाँ पढ़े जा रहे है बेचारे शेर लिखते वक़्त कभी सोचा था उन्होंने की .....घर में ए.सी कमरे में बैठ जर्मनी में कोई बटन दबा कर उन्हें पढ़ लेगा......बादशाह मुशायरा करवाते थे ओर अब यहाँ बटन दबाया ओर पढ़ लिया ....बुरा हो इस ब्लॉग्गिंग का....
आपलोग क्या बेकार की चर्चा में खर्चा कर रहे हैं.
ReplyDeleteअरे भाई कोई पढ़े या ना पढ़े साहित्य हो या ब्लाग अपन तो दोनों लिखते है.
अपना काम लिखना है सो लिखते है. और पढने वाला अपना काम करे या नहीं अपन क्यों सर खपायें?
लेकिन गुरु एक बात है सभी को जमा के दिए हो. पर लगता है ये चर्चा अभी अधूरी है, कुछ और हो जाए?
बहुत बढ़िया लिखा है. यही फायदा है ब्लॉगिंग का. अभी मामला पूरी तरह ठंडा भी नहीं पड़ा कि आप पोस्ट लेकर हाजिर हैं. भला कोई साहित्यकार क्या खाकर इस स्पीड का मुकाबला करेगा?
ReplyDeleteयह तो व्यंग हो गया और जमा भी खूब!
ReplyDeleteबाकी टीवी छाप साहित्यकार और आलोचक, जो अपने को सवर्ण और अन्य को मुसहर समझते हैं, और ब्लॉगरी में ग्राहक तलाश रहे हैं - जायें जहां उनका बिल हो।
यह अवश्य है कि मुझे विकल्प मिले कि मैं संसार का बेस्ट ब्लॉगर या १/१०००० भाग बाबा तुलसी बन सकता हूं तो निसंकोच दूसरा विकल्प चुनूंगा।
पर जिस स्तर का साहित्य दूसरे को मुसहर समझ रहा है, वह तो वाहियात चीज है। हिन्दी ब्लॉगरी से कहीं ज्यादा वाहियात!
सही कहा है जी..
ReplyDeleteकहां ब्लौग और कहां साहित्य.. ब्लौग कि ये मजाल कि इत्ते सारे लोग इसे पढें..
ना जी ना..
ये तो लोग ही मूर्ख हैं जो इत्ते सारे महान साहित्य को छोड़कर ब्लौग को पढने में समय बरबाद कर रहें हैं..
मज़े मज़े में आपने बढ़िया बात कह दी..ये चर्चाएँ किस चैनल पर और कब प्रसारित होती हैं अगर पहले से पता चल जाया करे तो हम भी लाभान्वित हो लें....
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य लिखा आपने पढ़कर मज़ा आया।
ReplyDeleteमजेदार व्यंग्य, साहित्य फेल है।
ReplyDeleteवाह बचवा,बहुते बढ़िया लिखे.पर जरा अधूरी अधूरी सी लगी जैसे शो के बीच में ही बिजली गुल हो गई हो.पुरे कार्यक्रम का पुनरप्रसारण एक बार फ़िर देखाओ न.
ReplyDeleteसाहित्य क्या होता है इस के मापदंड का भी खुलासा मांगता जी। अगली चर्चा कब और कौन से चैनल पर है बताये हम भी साड़ी वाड़ी तैयार कर के बैठे है।
ReplyDeleteये ब्लॉगर केवल मुस्करा सकता है। :))
ReplyDelete(वैसे कहॉं दिखाया चार बार- एकहू बार नहीं दिखाया ब्लॉग का पता :)))
सटीक कटाक्ष. सीधी सीधी-खरी खरी. बेहतरीन.
ReplyDeleteकौन कब क्या पढे या ना पढे जैसी हीटलरी बातेँ किसी का क्या कर लेँगीँ ?
ReplyDeleteहर इन्सान वही करेगा जो उसे पसँद है -
आपने लिखा बढिया -
मन की बात कही -
- लावन्या
हमे इस महीने अब तक आठ ब्लोग चर्चा आयोजित करने की जिम्मेदारी दी जा चुकी है अगडम से लेकर इंड झंडिया चैनल तक पर , हम आपको इन सभी मे बुलाने की सोच रहे थे पर ये सब देखने के बाद अब हमने अपना इरादा बदल दिया है आपको तो दूर जिस जिस ने यहा टिपियाया है किसी को नही आने देंगे जी.हम अब अपने चिंपुओ के साथ की इन कार्यक्रमो का क्रियाकरम करेगे :)
ReplyDeleteसामयिक...सधा हुआ...रोचक....चुटीला
ReplyDeleteसहज...सरल...फिर भी ब्लागर्स के
महत्त्व को रेखांकित करती हुई प्रस्तुति,
साहित्य विरुद्ध ब्लॉग-लेखन के बहाने.
साहित्य को समय के अनुरूप ढलना पड़ेगा.
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आपकी शैली का पैनापन अद्भुत है.
आभार
चन्द्रकुमार
जिस चर्चा में मुझे महान ना बताया जाये, उस चर्चा को मैं कुचर्चा मानने को भी तैयार नहीं जी।
ReplyDeleteभाईजी पढ़ कर दिल को चैन मिला.
ReplyDeleteआहाहाहा क्या धोया है जी. मजा आ गया.
अब इस लेख को किसी आलोचक के पास भेजो जी, अप्रूवल के लिए :)
गुल्लू जी कुमारी गुलाटी पे फिदा थे.. और हमेशा उसे पाने की कोशिश करते.. पर गुलाटी कभी उनके हाथ आई नही... तो गुल्लू जी सबको कहने लग गये.. गुलाटी से हम शादी नही करेंगे.. गुलाटी से हम शादी नही करेंगे... जब गुलाटी से इस बारे में पूछा तो वो बोली हमने तो कभी उस से कुछ कहा नही खुदी मन के लड्डू खा रहा है... अब हाथी के पीछे कुत्ते भौंकते रहते है.. हाथी कहा मूड के देखता है.. और अंत में गुलाटी जी ने कहा आपको एक लाइन में जवाब देती हू..
ReplyDelete"खिस्यानी बिल्ली खंबा नोचे "
साहित्यकारों की खबर ली आपने । शानदार व्यंग्य..
ReplyDeletehar cheej ki apni
ReplyDeleteek ahmiyat hai..
blog par sahitya bhi hai...
main to sahmat hun.
बंधू
ReplyDeleteआप की टिप्पणियों के नक्कार खाने में मेरी तूती सी टिप्पणी की आवाज़ कौन सुनेगा? पर क्या करें बिना टिप्पणी के गुज़ारा भी तो नहीं है. आप को तो पतंगबाज़ होना चाहिए था क्या खूबसूरती से पहले तो विपक्षी की कभी खींच में तो कभी ढील दे के काटते हैं और फ़िर भी मजे से लपेट भी लेते हैं. बहुत बढ़िया लिखा है बंधू....लगे रहो.
नीरज
क्यों चुके हुये नामवर की चर्चा करके उनको चर्चित बना रहे हैं ?
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