Monday, June 23, 2008

पोस्टर पर चिपकी खुशी

हमारी गिनती देश के जागरूक नागरिकों में होती है. अब ये मत पूछियेगा कि कौन करता है? किसी और को करने की क्या जरूरत है, हम ख़ुद ही कर लेते हैं. ऐसे महत्वपूर्ण गिनती के लिए दूसरों पर आश्रित क्यों रहें? और फिर, कोई दूसरा करे, उससे अच्छा है हम ख़ुद ही कर डालें. ठीक वैसे ही जैसे सब कर लेते हैं. सुबूत के तौर पर आपको हिसाब दे सकते हैं कि रोज हम देश की राजनीति, क्रिकेट और फिल्मों पर कितने घंटे चर्चा करते हैं. अब आप ही बताईये, जो आदमी क्रिकेट, राजनीति और फिल्मों पर चर्चा करता हो, उसे जागरूक नहीं कहेंगे तो किसे कहेंगे?

अक्सर ऐसा होता है कि बीती रात पूरी दुनियाँ में घटने वाली घटनाओं पर हम सुबह-सुबह चर्चा करके फारिग हो लेते हैं. हर सुबह इन घटनाओं पर चर्चा करते हुए हम अपनी हैसियत के हिसाब से सुखी और दुखी हो लेते हैं. आखिर सुखी और दुखी होने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं? अब देखिये न, कच्चे तेल का दाम बढ़ गया. उसके वजह से देश में पेट्रोल और डीजल का दाम बढ़ गया. रसोई गैस का दाम बढ़ गया. अब इसपर तो हम केवल दुखी हो सकते हैं. अपनी हैसियत केवल दुखी होने की है क्योंकि मंहगाई बढ़ गई है. जिनकी हैसियत बड़ी है वे चिंतित होते हैं. जैसे प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री दुखी होने की बजाय चिंतित होते हैं क्योंकि उनकी हैसियत बड़ी है.

रोज सुबह सात बजे सुदर्शन घर से निकलता है तो मुझे फ़ोन कर लेता है. बात शुरू होती है तो दुनियाँ भर की बातें होती हैं. आधा घंटा का समय लगता है उसे आफिस पहुँचने में. उस आधे घंटे के अन्दर तरह-तरह की बातें होती हैं. एक नमूना देखिये;

"अरे सर, आप तो सौ रुपया हार गए. कल तो इटली हार गया स्पेन से. बड़ा ही उलट-फेर हो रहा है. नहीं? वैसे एक बात पूछनी थी आपसे. सौ रुपया लेने के लिए स्टाफ भेज दूँ?"; सुदर्शन ने कहा.

उसकी बात सुनकर मुझे याद आया कि मैंने इटली की जीत पर सौ रूपये की शर्त लगाई थी. मैंने कहा; "अरे पूछो मत यार. सारा का सारा उलट-फेर हो रहा है. वैसे रूस ने हॉलैंड को हराया था तो मेरा पचहत्तर रुपया क्रेडिट था तुम्हारे पास. इसलिए तुम्हें केवल पच्चीस रूपये मिलेंगे."

"लेकिन मुझे लगता है मैंने पचहत्तर दे दिए थे पहले ही. हा हा हा. हम लोग भी पापी हैं. नहीं? लेकिन सर, ये क्रूड आयल तो फिर से भाग गया ऊपर. क्या लगता है? आज मार्केट कैसा रहेगा?"; सुदर्शन ने पूछा.

"अरे यार, पूछो ही मत. जरा भी राहत नहीं है. वैसे सुना है चिदंबरम साहब गए हैं ओपेक वालों को समझाने-बुझाने"; मैंने कहा.

"क्या सर, आप भी न. चिदंबरम की यहाँ कोई सुन ही नहीं रहा है, वहां कौन सुनेगा. यहाँ लेफ्ट वाले रोज धो रहे हैं. ऐसे में ये किंग अब्दुल्लाह के सामने जाकर पता नहीं क्या बोलेंगे?"; मेरी बात सुनकर सुदर्शन ने कहा.

सुदर्शन की बात सुनकर मुझे हँसी आई. लेकिन उसका कहना सही था. जिसे अपने ही देश में कोई नहीं सुन रहा है, उसे वहां पत्ता देगा? मैंने कहा; "अब देखो, गए हैं तो कुछ न कुछ तो बोलना ही था. सुना है कि ओपेक वालों को क्रूड में मंहगाई रुके, इसके लिए प्लान बता दिया है उन्होंने."

"अरे मंहगाई रोकने का इतना फूलप्रूफ़ प्लान है तो पहले अपने देश में ही आजमाना चाहिए था न. खैर छोडिये. ये बताईये, आज शेयर मार्केट कैसा रहेगा?"; सुदर्शन ने पूछा.

मैंने कहा; "क्या कहें, बहुत 'गिरा हुआ मार्केट' है. लेकिन कर ही क्या सकते हैं? जो दिखायेगा, देखना पड़ेगा."

अचानक ड्राईवर ने ब्रेक लगा दिया. दूसरी तरफ़ से सुदर्शन की आवाज़ आई; "क्या कहें, कैसे-कैसे लोग हैं. जरा भी डिसिप्लिन नहीं है. अभी कुछ हो जाए, तो लोग आकर ड्राईवर की धुनाई शुरू कर देंगे. वैसे सर, आरुशी मर्डर केस में ऐसा क्या हो गया कि पता ही नहीं चल रहा है कि मर्डर किसने किया. क्या लगता है आपको?"

"क्या कहा जाए. पता नहीं क्या हो रहा है. जंगल में भी मर्डर हो जाता है तो पुलिस खोज लेती है. लेकिन यहाँ शहर में मर्डर हो गया है लेकिन पता नहीं चल रहा है. टेस्ट पर टेस्ट...."; मैं अपनी बात पूरी करने वाला था कि सुदर्शन दाहाडें मार कर हंसने लगा.

मैंने पूछा; "क्या हुआ?"

बोला; "सर, पिक्चर का नाम सुनेंगे? 'एगो चुम्मा दे द राजा जी'. बाप रे बाप, क्या नाम है सर."

मुझे समझ में आ गया कि उसकी गाड़ी भवानी सिनेमा के सामने पहुँच चुकी थी. जो लोग कलकत्ते में रहते हैं, उन्हें पता होगा कि टालीगंज से धरमतल्ला जाते समय रास्ते में भवानी सिनेमा है. कुछ साल पहले तक बंद रहता था. लेकिन जब से भोजपुरी फिल्मों ने एक बार फिर से 'धूम मचाई' है, तब से ये सिनेमा हाल फ़िर से खुल गया है. केवल भोजपुरी फिल्में लगती हैं यहाँ. इसके पहले भी भोजपुरी की धूम मचाती कितनी ही फिल्में दिखा चुका है ये सिनेमा. मुझे याद है, पिछले साल 'दरोगा बाबू आई लव यू' खूब चली थी. हाल ही में 'निरहुआ चलल ससुराल' खूब चली.

सुदर्शन की हँसी सुनकर मुझे भी हँसी आ गई. मैं इस बात से दंग था कि दुनियादारी की इतनी तकलीफों का तोड़ फिल्मों के नाम में छिपा है. पहली बार इस बात का एहसास हुआ.

मैं सोच रहा था कि सुदर्शन की आवाज आई; "वैसे सर, क्या लगता है आपको? किसने मारा होगा आरुशी को?"

मैंने कहा; "अब क्या कहें यार? सी बी आई वाले लगे हैं. कुछ न कुछ तो निकलेगा ही. अच्छा, तुमसे एक बात पूछना भूल ही गया. सरकार ने जीडीपी का टार्गेट तो रिवाईज कर दिया. क्या लगता है, आठ परसेंट भी अचीव कर सकेंगे, या इसमें भी कोई डाऊट है?"

मेरी बात सुनकर सुदर्शन थोड़ी देर के लिए चुप था. फिर बोला; "देखिये सर. हमलोग बोलते थे वही हुआ. अरे सर, साल दर साल ऐसे ही नौ परसेंट के रेट से ग्रो कर नहीं सकते. इस तरह से अगर चले तो एक दिन दुनियाँ ही हमारी होगी. लेकिन इनलोगों को लगता है सबकुछ ऐसे ही चलेगा. जापान का उदाहरण सामने है. अमेरिका का उदाहरण सामने है."

मैंने कहा; "वो तो है ही. रघुराम राजन ने भी तो वही कहा था. यही ग्रोथ रेट सस्टेन करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में बहुत बड़ा बदलाव चाहिए. खैर, अब तो क्या कर सकते हैं. देखो, अगर अभी भी नींद से जागें तो कुछ हो."

हम अभी अपना रोना रो रहे थे कि सुदर्शन का ठहाका फिर से सुनाई दिया. बोला; "सर, एक और पिक्चर का नाम सुनिए. 'होके तू रहबू हमार'. मजा आ गया सर. जो जो नाम. अच्छा देखिये सर, अभी हमलोग रो रहे थे. अब पिक्चर का नाम पढ़कर खुश हैं."

मुझे पता चल गाया कि सुदर्शन आफिस के पास पहुँच चुका था. गली में घुसते ही सिनेमा के पोस्टर चिपके दिखाई देते हैं. शायद वही देखकर हंस रहा था. मुझे लगा इस दुनियादारी से परेशान व्यक्ति के लिए खुशी दिखाई भी दे रही है तो सिनेमा के पोस्टर पर.

24 comments:

  1. क्या बात है जी ये इधर उधर की बाते काहे सुनाय रहे हो , जो पिक्चर देखी है उस्की स्टोरी बताई जाये :)

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  2. ह्धाई हो जी , आपकी बात सरकार तक पहुच गई है .अभी अभी चिदंबरम जी ने कहा है कि देश मे जगह जगह पिकचरो के पोस्टर लगाने के लिये केंद्र सरकार राज्य सरकारो को मदद देने के बारे मे सोच रही है ताकी लोग पोस्टर देख कर खुश रहे महंगाई या और किसी बारे मे सोच कर चिंतित नाहो :)

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  3. फिलम के पोस्टर से जियादा खुसी कहां मिलेगी? जब फिलम न देख पाते थे तब सिनेमा रिसेप्शन में पोस्टर देख चले आते थे।

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  4. क्या बात है सर जी? आज मिजाज कुछ हट कर है?? सब बढिया है ना? :)

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  5. सच कहा भाई,हमारे सर धुनने या दुखी होने से कुछ भी बदलने की कोई गुंजाईश नही.इनमे डुबो तो दुःख ही दुःख,लेकिन यदि आस पास देखो ढूंढों तो हंसने मुस्कुराने के भी सौ बहाने बिखरे पड़े हैं.
    परसों तबियत ठीक नही थी सो व्यथित एक डाक्टर साहब से दिखाने गई. इपनी परी के इन्तजार में बैठी थी तो नजर सामने चिपकी एक फेयर एंड लवली के विज्ञापन पर गई और हठात मेरी हँसी छूट गई.दिमाग में एक दृश्य घूम गया कि कैसा हो यदि ये विज्ञापन एक दिन कुछ पल को चमत्कारी रूप से सत्य हो जाए और एक श्यामा सुंदरी का वह भाग(चेहरा और गला.अब इतनी मंहगाई में इससे अधिक भाग पर तो कोई क्रीम का लेप करता नही)जिसपर वह बड़े ही उम्मीद से कि डब्बे पर अंकित सुंदरी सा उसका भी रूप ढूध सा उजला हो खिल उठेगा प्रतिदिन लेपन करती है,वह सचमुच ही धवल मर्मर हो उठे और बाकी का सारा शरीर उसी तरह स्याम वर्ण रह जाए तो कैसा दिखेगा.................
    देखो न तो हास्य अपने चारों ओर बिखरा पड़ा है बस समेट लेने की देर है.

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  6. प्रसन्नता तो मन में है! अन्यथा इन्ही पोस्टरों पर शुद्ध साम्यवादी या धुर शुचितावादी ऐसे लिखते कि सब कुछ गर्त में चला गया है!

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  7. पोस्टर देखकर ही खुशी होती है.. क्योंकि अगर फिल्म देखली तो समझो गये..

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  8. ऐसे में आपका फोन का बिल कितना आता है?
    अब यह हमारे लिए चिंता सॉरी चिंतन का विषय हो गया है. चर्चाते है, किसी से...

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  9. न्यूज़ चैनल वाले समाज शास्त्री को बिठा लेते हैं. एक की गलती पर पूरा समाज ग़लत हो जाता है... मैंने भी तो समाजशास्त्र ले लिया है और देखिये ना आपने इस पोस्ट का नाम भी समाज दे दिया... ये समाज बड़ा हिट वर्ड हो गया है. वैसे पेशे को आप पोस्ट में ठेल गए. अच्छा लिखा है...

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  10. इश्तेहार ही चलाते है दुनिया....रंजना जी की बात आगे बढाता हूँ...आजकल के ज़माने में...सब फेयर एंड लवली लगाते है पर कोई गोरा नही होता फ़िर भी लड़किया सोचती है शायद मै गोरी हो जायुंगी...वैसे आपके दोस्त मजेदार इन्सान है...

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  11. बंधू
    हमारी खोपोली में एक भी सिनेमा हाल नहीं है इसलिए हम सुखी होने की इस शर्तिया तरकीब से वंचित हैं. सोचते हैं आप का ब्लॉग राज भाई को भेज दें जिनकी ठुकराई की वजह से हम भोजपुरी फ़िल्म के पोस्टर मुंबई में भी नहीं देख पाते हैं. उन्हें मालूम पढ़ना चाहिए की उनकी हठधर्मी की वजह से वे यहाँ की जनता को खुश करने की इस सस्ती और आसान सुविधा का लाभ भी नहीं दे पा रहे हैं.
    एक काम करें जब भी सुदर्शन का फोन आप के पास आए आप हमें कान्फेरेंस में ले लें, हम चुपचाप आप की बातें सुनेगे और फ़िर दिन भर हँसते रहेंगे.आप से परिचय का और आप के ब्लॉग पढने का इतना फायदा तो होना ही चाहिए.
    नीरज

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  12. arth bhi achcha hai aur bunavat bhi.

    .....is tarah hum cinema ko dukhi logon ki rajya sabha bhi kaha ja sakta hai!

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  13. wonderful, descriptive Filmi posters
    &
    inspiring conversation ..
    Rgds,
    L

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  14. बहुत'गिरा हुआ मार्केट'है.'एगो चुम्मा दे द राजा जी'बाप रे बाप सब बढिया है ना.....

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  15. आप इतना पब्लिकली सब चीज मत डिक्लेयर किया किजिये. सरकार परेशान है, बस रास्ते खोज रही है. अगर उनको मालूम चल गया कि पोस्टर देखकर आपका मनोरंजन होता है तो अभी तो फिल्मों पर है, तब पोस्टर देखने पर भी इन्टरटेनमेन्ट टैक्स न लगा दें.

    चर्चाऐं तो आप और पाक दोस्त बहुत ही उच्च स्तरीय करते हैं सुबह सुबह. :)

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  16. समीर भाई, अभी चिंता की बात नहीं। सरकार को अपना पोस्‍टर भी तो दिखाना है। इलेक्‍शन करीब आ रहा है। हां, इलेक्‍शन के बाद पोस्‍टरदर्शन पर मनोरंजन कर तो लगना ही लगना है।

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  17. sahi me picture ki story bhi batayi jaaye.... humne bhi ye post parke apni ginti jaagrukon me karwa li

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  18. सही में चिंतित होने वाली बाते हैं लेकिन मुस्करा रहे हैं। का करें जी मजबूरी है। पोस्टै ऐसी है।

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  19. सही में चिंतित होने वाली बाते हैं लेकिन मुस्करा रहे हैं। का करें जी मजबूरी है। पोस्टै ऐसी है।

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  20. कितनी बार कहा मैंने कि गणेश टाकीज में
    भोजपुरी पिक्चर देखने चलोगे, तो मन कर दिया.
    भवानी सिनेमा के पोस्टर के बारे में बात करते हो.
    आज समझ में आया तो कि पोस्टर पढने में अगर
    ये मजा है तो पिक्चर देखकर कितना मज़ा आएगा.

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  21. अच्छा एक बात बताइये कि क्या सुदर्शन जी से आप इसी तरह रोज आधे घंटे बात करते है। :)

    वैसे पोस्टर देख कर खुश होना बढ़िया है।

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  22. पहले पोस्ट शानदार,
    फ़िर टिप्पणियाँ एक से बढकर एक्

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  23. फूल सारे खार हो गए
    चेहरे अखबार हो गए
    =========================
    ऐसे ही इश्तहारों का सिलसिला है.
    लेकिन आपने तो
    उनके पीछे की दरारों को
    बेनकाब कर दिया है !

    धारदार-वज़नदार पोस्ट.
    आभार
    चन्द्रकुमार

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  24. वोह मारा, पापड़ वाले को ,
    सही जा रहे हैं, यह कहना रस्मी होगा ।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय