मेरे एक मित्र को लालू प्रसाद यादव जी ने अपना फैन बना लिया है. मित्र पिछले दस दिनों में करीब पचहत्तर बार लालू जी का गुणगान कर चुके हैं. जब-तब शुरू हो जाते हैं; "मान गए यार. है लेकिन गट्सी आदमी. क्या भाषण दिया विश्वास प्रस्ताव में. हंसा-हंसा कर लोट-पोट कर दिया. देखो तुम मानोगे नहीं लेकिन ऐतिहासिक भाषण था वो." मैं हूँ कि सुनने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता.
उठते-बैठते बोर करते रहते हैं; देखा कि नहीं गुरुदास दासगुप्ता को क्या बोले?....बोले; "आ एक गुरुदास गुप्ता जी हैं. कहते हैं रोटी चाहिए, रोटी चाहिए. पता नहीं केतना दिन से भूखा हैं? रोटी कहाँ से आएगा? रोटी आसमान से टपकेगा? बरसेगा? नै...देशवासियों, रोटी आएगा इन्फ्रास्ट्रक्चर से."
सचमुच इन मित्र महोदय ने बहुत परेशान कर दिया है. लेकिन फिर सोचता हूँ तो लगता है जैसे यही क्यों, पूरा भारत ही फैन बन गया है लालू जी का. टीवी न्यूज चैनल पर केवल लालू जी का भाषण बार-बार दिखाया जा रहा है. जैसे बाकी किसी ने भाषण दिया ही नहीं. कहीं आधे घंटे का प्रोग्राम दिखाया जा रहा है तो कहीं एक घंटे का. किसी चैनल वाले को दया आजाती है तो ओमर अब्दुला का भाषण भी दिखा देता है.
इस भाषण के बारे में लोगों का उत्साह देखकर लगता है जैसे आज से सौ साल बाद यह भाषण इतिहास की किताबों में पढ़ाया जायेगा. चैप्टर का नाम होगा पिछले तीन सौ साल के दस सबसे महान भाषण. सोचिये जरा क्या सीन होगा. विवेकानंद जी के शिकागो में दिए गए भाषण, गांधी जी द्बारा आजाद मैदान में दिया गया भाषण और नेहरू जी द्बारा पन्द्रह अगस्त १९४७ की रात दिए गए भाषण के साथ लालू जी का संसद में विश्वास मत के दौरान दिया गया भाषण चैप्टर में रखा जायेगा. बच्चे परीक्षा की तैयारी करते हुए भाषण को कुछ इस तरह से याद करेंगे;
और फिर लालू जी लोकसभा के स्पीकर से बोले; "स्पीकर महोदय, ..और एक बात बोलना था हमको. रुकिए हमको याद आ गया है. हम लिख कर लाये हैं. हम संसद के माध्यम से कहना चाहता हूँ कि तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं....आ तुम किसी और को चाहोगी तो? का...तो मुश्किल होगी."
इतिहास की किताब ही तो है. कहीं कोई यह भी लिख सकता है; 'लालू जी के भाषण से यह पता चलता है कि सरकार को विश्वास मत इसलिए मिला कि प्रस्ताव पर चर्चा सोमवार को शुरू हुई थी जो कि भोले बाबा का दिन है. और इस प्रस्ताव पर वोटिंग मंगलवार को हुई जो कि महावीर का दिन है. इससे इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सरकार बचाने के लिए धर्मनिरपेक्ष दल भी संसद के पटल पर देवताओं का सहारा लेते थे.'
ऐसा भी हो सकता है कि भविष्य में जब लालू जी के इस भाषण की गिनती भारत के दस सबसे महान भाषणों में होने लगेगी तो कोई न्यूज चैनल इन दस सबसे महान भाषणों पर एस एम एस वोटिंग करवा कर इन भाषणों को नंबर दे दे. हो सकता है कि लालू जी का भाषण प्रथम स्थान प्राप्त कर ले. अगर ऐसा हो गया तो फिर चैनल उनके इस भाषण को विश्व के दस सबसे महान भाषणों में डालने के लिए अभियान शुरू कर दे. जरा सोचिये. अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा? उनके इस भाषण की गिनती जॉन ऍफ़ कैनेडी, अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर किंग, नेल्शन मंडेला और चर्चिल के भाषणों के साथ होगी.
क्या कहा आपने? ऐसा नहीं हो सकता. एक बार फिर से सोचिये. बेशर्मी का स्वर्णकाल कितने सालों का होगा कोई नहीं जानता.
बेशर्मी के स्वर्णकाल में सब कुछ संभव है।
ReplyDeleteबेशर्मी का स्वर्णकाल कितने सालों का होगा कोई नहीं जानता.
ReplyDeleteथोड़ा जल्दी है कमेण्ट करना। अगले चुनाव-परिणाम तक प्रतीक्षा कर सकते हो क्या शिव?
बेशर्मी का काल तब तक रहे गा, जब तक वोट बिकते रहे गे,ओर यह नीच उसे खारीदते रहेगे, जिस दिन आम भारतीया जागेगा, उसी दिन बेशर्मी का स्वर्णकाल खत्म होगा
ReplyDeleteमसखरा पन हमेशा था, है और रहेगा। अब ये अलग बात है कि विकल्प के अभाव में उसको कब तक प्रमुखता मिलती रह्ती है।
ReplyDeleteबेशर्मी का स्वर्णकाल कितने सालों का होगा कोई नहीं जानता.
ReplyDelete--और न ही कोई जान पायेगा, भाई. आप भी कहाँ किस बात का इन्तजार कर रहे हैं.
अनन्तकाल तक।
ReplyDeleteहमलोग तो इसी काल में पैदा हुए थे, इसी में जी रहे है और विश्वास है कि इसी में मर खप जायेंगे.
ReplyDeleteइस स्वर्णकाल से बाहर निकलने कि इच्छाशक्ति भी तो नहीं बची हम में.
त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत |
ReplyDelete(जिसने लजाना छोड़ दिया है, सुखी रहेगा..)
.
ReplyDeleteज़वाब मिलेगा.. बरोबर ज़वाब दिया जायेगा ।
देख लो आपके टिप्पणी बक्से से निकाल कर लिये
जा रहा हूँ । अपने ब्लाग पर ठेलूँगा, देखते जाओ
कि कब ठेलता हूँ !
ई सब बेफ़ालतू बिषै इहाँ ला-लाकर काहे से इस
लाला के विष बो रहे हो ?
बेशर्मी का स्वर्णकाल?? ख़तम नही हुआ क्या?
ReplyDeleteबबुआ....ई बहुत बड़ी बुराई है आप में. आप में ही क्या पूरे देश में...जो हंसाता है उसका कोई बेलयु ही नहीं है, कोई ससुरी इज्जत नहीं है...मसखरा लोग को तुम बेकार समझता है...तभी ना इस देश का ऐसा हाल है...हर कोई मुर्दनी लिए घूमता है हियाँ....धत् तेरे की... लालूजी का भाषण दुनिया के सबसे बढ़िया दस भाषणों में पहला नंबर अगर पा जाएगा तो आप को क्या परेशानी है...??? कम से कम किसी भारतीय को तो उसका ड्यू इज्जत मिलेगा...आप हैं की उसका मजाक उडा रहे हैं...एक ठो व्यंग लेखक से ऐसा सोचा नहीं ना जा सकता है...पर क्या करें आज के युग में बबुआ जो हो जाए वो कम है....लगता है आप को उनसे प्रोफेशनल जेलेसी है...एक व्यंग वाले को दूसरा व्यंग वाला नहीं ना जमता है....
ReplyDeleteनीरज
यह स्वर्णकाल अभी हीरककाल में जायेगा, अभी किस मुगालते में हैं आप.
ReplyDeleteजब तक सूरज चाँद रहेगा.....आगे ख़ुद जोड़ लीजिये
ReplyDeleteइतिहास में राखी सावंत जैसो की श्रेणी में स्थान पाएंगे लालूजी.
ReplyDeleteजे का कह रहे हो ,चाहते का हो ? का लोग पप्पू कांट डास , लालू कांट भांस मल्लब भाषण का गाने गाता रहे ? .खुदै देख्बे करो कि अमरसिंह जैसा शायर आदमी को किस्का जरूरत परा है . नही देखबे करो . वाऊ लालू के संगै मीडिया के सामने आओ हतो . जे बाते नीक नही है दिल्ली आओगे तब देखेगे. :)
ReplyDeleteबेशर्मी के भाव ऊपर हैं। वोटर इसका दीवाना है। लोकतंत्र में भीड़ का बोलबाला है। लालू जी ने भीड़ को हँसाने, बेवकूफ़ बनाने और उसको वोट मे बदलने की कला में महारत हासिल की है। जबतक यह भेड़चाल का लोकतंत्र है, तबतक बेशर्मी की संभावनाएं अनंत हैं।
ReplyDeleteभाई शिव जी,
ReplyDeleteरेल विभाग में अपमे साथी ज्ञान दत्त जी के होते हुए भी आपने उनके ही नही देश के भी रेल मंत्री के रोटी पर दिए उवाच को ऐतिहासिक बताने की जो भ्रष्ट कोशिश की कशिश की है वह व्यंग साहित्य की असीम धरोहर साबित होगी , ऐसा मेरा मन्ना है. आपके निम्न कथन
"बेशर्मी का स्वर्णकाल कितने सालों का होगा कोई नहीं जानता"
पर मेरा तो यही कहना है की जब तक बेशर्मों का बहुमत रहेगा , तब तक ही उनका स्वर्णकाल चलेगा.
चन्द्र मोहन गुप्त