Wednesday, August 13, 2008

जनता और अर्थशास्त्री

- क्या कर रहे हो?

- इन्फ्लेशन नाप रहे हैं.

- मंहगाई कब नापोगे?

- मंहगाई नापने का काम जनता का है. हमारा काम केवल इन्फ्लेशन नापना है.

- अच्छा, नाप लिया?

- हाँ.

- कितने मीटर का है?

- इन्फ्लेशन को मीटर में नहीं व्यक्त किया जाता.

- तो गज में व्यक्त किया जाता है?

- नहीं उसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है.

- प्रतिशत में क्या शुद्धता बढ़ जाती है?

- इन्फ्लेशन में कैसी शुद्धता?

- क्यों नहीं? जनवरी में जब प्रतिशत में नापते थे और हमेशा चार प्रतिशत से नीचे आता था, वह शुद्ध था?

- उसका जवाब वित्तमंत्री देंगे.

- उनसे सवाल कौन पूछेगा?

- तुम जनता हो. तुमने वोट दिया है. तुम पूछो.

- क्यों, तुम जनता नहीं हो?

- नहीं.

- तो क्या हो तुम?

- हम तो अर्थशास्त्री हैं.

- हाँ. मैं तो भूल गया था कि तुम जनता नहीं हो, तुम तो अर्थशास्त्री हो.

- ऐसे भूलोगे तो कैसे चलेगा?

- चल ही तो रहा है. सब कुछ भूल जाने के बाद भी चल रहा है. वैसे और क्या करते हो?

- हमारी हैसियत केवल यही तक है.

- अपनी हैसियत बढाते हुए और कुछ करो न जनता के लिए.

- और क्या करें? इन्फ्लेशन नाप रहे हैं, यही क्या कम है?

- मेरा मतलब अर्थशास्त्र का कोई सिद्धांत लगाकर जनता का कुछ भला करो.

- अर्थशास्त्र के सिद्धांत पढने के लिए होते हैं.

- चलो सिद्धांत को छोड़ो, कोई मन्त्र ही दे दो मंहगाई रोकने के लिए.

- हमें क्या ओझा समझ रखा है.

- नहीं, तुम्हें ओझा समझने की भूल कैसे करें? तुम ओझा जैसे गुनी कभी नहीं थे.

10 comments:

  1. .

    आह, एक और मधु आवेष्टित पादुका प्रहार..
    अर्थ का अनर्थ करते इन शास्त्रियों को तो अभयदान दो, मित्रवर !
    क्या करें शास्त्री भी, यदि उनके बताये कदम इतने ठोस होते हैं, कि किसी भी प्रकार उठाये ही नहीं उठते, ईहिहीही..ही ही ही..हाहः
    अरे बाप रे...आओ जरा जोर लगाओ !

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  2. bahut achhe ji.. vyangya ke mamle mein aapka jawab anhi.. bahut sahi

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  3. क्यों, तुम जनता नहीं हो?
    - नहीं.
    - तो क्या हो तुम?
    - हम तो अर्थशास्त्री हैं.
    अब समझे बंधू की आप जनता नहीं हो...जनता तो हम से गैर अर्थशास्त्री हैं...मां बाप ने हमें ये सोच कर इंजीनियर बनाया की बेटा हैसियत में ऊंचा रहेगा...आम जनता की श्रेणी में नहीं आएगा होनहार हमारा...हुआ ठीक उल्टा..हम जैसे जनता रह गए और अर्थशास्त्री जैसे इस श्रेणी से बाहर निकल गए...(अर्थ शास्त्री याने जिस के शास्त्र का कोई अर्थ न हो, अब आप ही बताईये जब इन्फ्लेशन पाँच प्रतिशत था तब कौनसी दाल आप को मुफ्त में मिल रही थी?.)
    नीरज

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  4. नापने का औजार एक घंटे के लिये उधार लिया था अब दो दिन हो गये है तुरंत लौटाये हमे यहा दिल्ली मे हर घंटे मे चार छै बार नापना पडता है ,

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  5. wah kya likha hai...mere ko padhne mein maza aaya lakin mujhe eco jyada samjh mein nahin aata....phir bhi achaa laga ye conversation

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  6. अजी क्यो हमारे ईमानदार शास्त्री जी से हिसाब किताब पुछ रहे हे, अब उन जेसे सीधे साधे आदमी को पुरी दुनिया ही पुछ रही हे हिसाब किताब, कभी मेडम तो कभी स्कालर शिप वाले की बेटा हमारा करार भी पुर कर , बेचारा ....
    बहुत ही अच्छी कविता हे, धन्यवाद

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  7. नापे रहिये. पहले एक सरदार जी भी नापा करते थे. कालांतर में प्रधान मंत्री भये, शायद आपका नम्बर भी लग जाये. जे सही कहा कि आप जनता तो कतई नहीं हैं..अडे़ रहियेगा काहे कि जनता प्रधान मंत्री नहीं बनती.

    बेहतरीन!! सटीक!! पैना!!

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  8. शास्त्री जी क्या करें. उनसे बड़े शास्त्री वित्तमंत्री हैं. कठिन समय में
    भी हंसी चेहरे पर रहती है. मंहगाई कहाँ है. सब तो इनफ्लेशन है.
    कविता अच्छी है.

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  9. अर्थशास्त्र तो पढने पढाने के लिए ही होता है. नापने वाला काम अच्छा लगा... और ये भी पता चला की ओझा गुनी होते हैं :-)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय