क्लब की छत पर रखा लाऊडस्पीकर आस-पास के वातावारण में देशभक्ति का संचार कर रहा है. कारण है उससे निकलनेवाला गाना, मेरे देश की धरती सोना उगले...हीरा-मोती वगैरह भी उगले... भोंपू के पास ही लहरा रहा तिरंगा क्लब वालों की देशभक्ति को हवा दे रहा है. क्लब के सर्वे-सर्वा सुमू दा अपने लड़कों के साथ बैठे पन्द्रह अगस्त का प्रोग्राम फिक्स कर रहे हैं. दस लड़कों को आना था लेकिन पाँच ही आए. तीन तो सिंह इस किंग देखने गए हैं. बाकी के दो चंदा इकठ्ठा करके अभी तक नहीं लौटे. जो पाँच आए हैं, वे एक बात पर अड़ गए हैं कि शाम के खाने में ड्रिंक के साथ चिकेन बिरियानी रहना चाहिए. सुमू दा चाहते हैं कि मटन बिरियानी रहे. मामला यहीं पर बहुत देर से अटका पड़ा है......कल पन्द्रह अगस्त है.
जनता से निकलकर कुछ लोग गृहमंत्री के कार्यालय के सामने खड़े हैं. ये लोग शिकायत लेकर आए हैं. हर साल पन्द्रह अगस्त आते-आते कम से कम चालीस-पचास आतंकवादी अरेस्ट हो लेते हैं. लेकिन इस बार अभी तक एक भी अरेस्ट नहीं हुआ. जनता को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि पन्द्रह अगस्त पहुँच गया है. वे ज्ञापन देकर गृहमंत्री से पूछना चाहते हैं कि कहीं सरकार भूल तो नहीं गई कि पन्द्रह अगस्त के चार-पाँच दिन पहले से आतंकवादी अरेस्ट होने लगते हैं? ...कल पन्द्रह अगस्त है.
सुबह से ये तीसरी बार है कि प्रधानमंत्री का मुख्य सचिव प्रधानमंत्री द्बारा कल पढ़े जाने वाले भाषण को रिजेक्ट कर चुका है. पहली बार रिजेक्ट करने का कारण था भाषण में किसान शब्द का इस्तेमाल केवल चौदह बार होना. सचिव चाहता है कि किसान शब्द की पुनरावृत्ति कम से कम पैंतीस बार होनी चाहिए. दूसरी बार रिजेक्ट करने का कारण था समाज के कमजोर और गरीब लोगों से किया जानेवाला वादा. मुख्य सचिव चाहते थे कि भाषण में कम से कम आठ मौके ऐसे आयें जब प्रधानमंत्री कमजोर और गरीब लोगों से वादा करें. तीसरी बार रिजेक्ट करने का कारण था देश की विकास दर और मंहगाई जैसे शब्दों का आठ बार आना. सचिव जी चाहते थे कि इन शब्दों की पुनरावृत्ति दो से ज्यादा बार न हो....कल पन्द्रह अगस्त है.
पूरे साल टैक्स की चोरी का प्लान बनाने वाले मित्तल साहब सुबह-सुबह बेटे को एक थप्पड़ लगा चुके हैं. कल शाम की ही बात है. जब एक ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी खड़ी थी तो उन्होंने तिरंगा बेचने वाले हाकर से एक जोड़ी तिरंगा खरीद कर कार में गाड़ा था. सुबह-सुबह बेटे ने तिरंगे की ऐसी-तैसी कर दी. मित्तल साहब की देशभक्त आत्मा ऐसी रोई कि उन्होंने बेटे को थप्पड़ जड़ दिया....कल पन्द्रह अगस्त है.
न्यूज चैनल के विद्वान संवाददाता हाथ में माइक लिए सड़क पर उतर चुके हैं. हर आते-जाते को पकड़ कर सवाल दाग देते हैं. गांधी जी का पूरा नाम क्या था? नेहरू जी की माँ का क्या नाम था? भारत का पहला राष्ट्रपति कौन था?...कल पन्द्रह अगस्त है.
म्यूजिक चैनल के वीजे टाइप प्राणी तिरंगे की टी-शर्ट पहने देशभक्ति की धारा बहाए नाच रहे हैं....कल पन्द्रह अगस्त है.
चलिए उदय प्रताप सिंह जी की ये कविता पढिये....
कोई खुशबू, न कोई फूल, न कोई रौनक
उसपर कांटों की जहालत नहीं देखी जाती
हमने खोली थीं इसी बाग में अपनी आंखें
हमसे इस बाग की हालत नहीं देखी जाती
बुलबुलें खुश थीं उम्मीदों के तराने गाये; कि
लेकर पतझड से बहारों को चमन सौंप दिया
अब तो मासूम गुलाबों की ये घायल खुशबू
शीश धुनाती कि खारों को चमन सौंप दिया
रात बस रात जो होती तो कोई बात न थी
उसका आकार मगर दूना नजर आता है
कितने चमकीले सितारे थे, कहां डूब गये
सारा आकाश बहुत सूना नजर आता है
कवि की आवाज बगावत पर उतर आई है
दल के दलदल से हमें कोई सरोकार नहीं
तुमने इस देश की तस्वीर बिगाडी ऐसे
जैसे इस देश की मिट्टी से तुम्हें प्यार नहीं
तुमने क्या काम किया ऐसे अभागों के लिए
जिनकी मेहनत से तुम्हें ताज मिला, तख्त मिला
उनके सपनों के जनाजों में तो शामिल होते
तुमको शतरंज की चालों से नहीं वक्त मिला
तुमने देखे ही नहीं भूख से मरते इन्सान
सिलसिले मौत के जो बन्द नहीं होते हैं
इनके पैबन्द लगे चिथडे ये गवाही देते; कि
इनके किरदार में पैबन्द नहीं होते हैं
जिस जगह बूंद पसीने की गिरा देते हैं
ठौर सोने के उसी ठौर निकल आते हैं
किंतु बलिहारी व्यवस्था की है जिसमे बहुधा
मुंह में बच्चों के दिये कौर निकल आते हैं
पूछता हूं मैं बता दो ऐ सियासत वालों
आदमी अपने ही ईमान का दुश्मन क्यों है
एक ईश्वर है पिता उसपर सगी दो बहनें
आरती और नमांजों में ये अनबन क्यों है
इनकी आदत में नहीं खून से कपडे रंगना
कोई मजबूरी रही होगी यंकीदा तो नहीं
अपने दामन में जरा झांक कर तुम ही कह दो
अपने मतलब के लिये तुमने खरीदा तो नहीं
बात करने को उसूलों की सभी करते हैं
वोट लेने का ये नाटक हैं इसे खत्म करो
ऐसी आजादी, गुलामी से बहुत बदतर है
ये वो चिंतन है, जो घातक है, इसे खत्म करो
वर्ना अंजाम वही होगा, जो पहले भी हुआ
कुर्सी तो कुर्सी, निगाहों से उतर जाओगे
मौत जब आयेगी तब आयेगी तुम्हारी खातिर
वक्त से पहले, बहुत पहले ही मर जाओगे।
aapne likh rakha hai ki angreji me bhi tippani ka swagat hai isliye lijiye:-
ReplyDeletebahi sab uaday partap ji ki kavita ek baar fir padh kar man prasan ho gaya. tippani karne ka samay bilkul nahin hai. bahut vyasat hun,-
kal 15 august hai.
जोरदार व्यंग्य के बाद कविता ने लाजवाब कर दिया.
ReplyDeleteबात करने को उसूलों की सभी करते हैं
ReplyDeleteवोट लेने का ये नाटक हैं इसे खत्म करो
ऐसी आजादी, गुलामी से बहुत बदतर है
ये वो चिंतन है, जो घातक है, इसे खत्म करोआपने बहुत सही लिखा है। हम लोग अतीत का गुणगान करते है पर वर्तमान को नहीं सुधारते। एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
जय हिंद :) आपका लिखा यह व्यंग अच्छा लगा ..और उदय जी की कविता बहुत ही अच्छी खासकर यह पंक्तियाँ
ReplyDeleteपूछता हूं मैं बता दो ऐ सियासत वालों
आदमी अपने ही ईमान का दुश्मन क्यों है
एक ईश्वर है पिता उसपर सगी दो बहनें
आरती और नमांजों में ये अनबन क्यों है
ब्लॉगगार दो दिनो से बिंदास देशभक्ति पे लिखते जा रहे है... कल पंद्रह अगस्त है... :) :) :)
ReplyDeleteवह सब भी सच है जो आपने लिखा ,फ़िर भी खुशी तो मन में है ही की कल १५ अगस्त है
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteभाई इतने अच्छे ओर सटिक व्यंग वाले लेख की तारीफ़ तो मे बाद मे करंगा, क्यो कि कल पंद्रह अगस्त है, अभी तो इन जवरन चंदा मागंने वालो से छुप कर बेठा हु, ओर उदय जी की कविता का रस ले रहा हु, धन्यवाद अति सुन्दर पोस्ट के लिये
ReplyDeleteमेरे देश की धरती नेता उगले
ReplyDeleteउगले टुच्चे लुच्चे
मेरे देश की धरती
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
लाल किले पे खडे ये नेता बदमाशी का राग सुनाते है
आखो मे आसू आते है दिल मे जाले आ जाते है
सुनते ही इनकी आवाजे यू लगे कही दंगे भडके
आते ही याद चुनावो की ,देश खून से लाल लगे
मेरे देश की धरती नेता उगले
उगले टुच्चे लुच्चे
मेरे देश की धरती
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
जब चलते इस धरती पर ये खुन्दक अगडाईया लेती है
क्यो ना तोडे इनकी टांग को हम ये सोच हमे दुख देती है
जिस थाली मे खाया इसने उसमे ही इसने छेद किया
राम रहीम मे भी इसने, बस वोट के मारे भेद किया
मेरे देश की धरती नेता उगले
उगले टुच्चे लुच्चे
मेरे देश की धरती
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आ आ आ आ~ ~
आज की टिप्पणी आजे निपटा देते हैं--कल पन्द्रह अगस्त है.
ReplyDeleteआज उदय प्रताप जी की रचना बहुत पसंद आई-कल पन्द्रह अगस्त है.
जबरदस्त कटाक्ष-कल पन्द्रह अगस्त है.
फिर लिखियेगा-कल पन्द्रह अगस्त है.
फिर आयेंगे-कल पन्द्रह अगस्त है.
देश की नब्ज पकड़े शिवकुमार जी हाल-चाल बता रहे हैं...कल पंद्रह अगस्त है।
ReplyDeleteसलाम यार आपको!
ReplyDeleteआप को आज़ादी की शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteवँदे मातरम !
ReplyDeleteआपकी कलम की धार और भी धारदार बने -
- लावण्या
ये सुमू दा के लड़कों में कोई शाकाहारी नही?कल ही छ्ठे वेतन आयोग की सिफ़ारिश लागू करने का एनाउसमेंट सुन कर पी एम का सचिव जोश में आ गया है इस लिए किसानों, गरीबों का चूना तो लगाना ही पड़ेगा न भाषण में, आई ए एस की अपनी चोरी न नजर आवेगी नही तो?
ReplyDeleteबड़िया पोस्ट- एक ही पोस्ट में गध्य भी और पध्य भी, मतलब खोंमचा फ़ुलटूस फ़ुल्ल जो चाहिए ले जाओ, भैया हम तो कविता लिए जा रहे है, बड़िया कविता और कोल्हापुरी मिर्ची सा तीखा व्यंग…सी सी सी
सुन्दर, दर्दीला व्यंग्य।
ReplyDeleteशुभकामनायें... केवल शुभकामनायें ही, इससे आगे...
ReplyDeleteऔर हम कूश्श नेंईं बोलेगा ।
जैसे अब तक काम चलाते आये हैं,
वैसे ही सिरिफ़ शुभकामनाओं से अपना काम चलाइये नऽ !
ऒईच्च..हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है,
ईशलीए हम कूश्श नेंईं बोलेगा ...
बहुत ही सुंदर और तीक्ष्ण भी. बधाई.
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteबहुत धारदार व्यंग और उदय जी की बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद.
नीरज