प्रत्यक्षा जी ने रपट लिख डाली. ईस्टर्न इंडिया रीजनल ब्लागर्स मीट की. रपट के शीर्षक के बहाने उन्होंने एक सवाल कर दिया. सवाल है; "ब्लागरों में क्या सुर्खाब के पर लगे होते हैं?" पता नहीं ये सुर्खाब का पर क्या होता है. पता होता तो आर्डर देकर बनवा लेता और उसे लगाकर फोटो खिंचा लेता. प्रत्यक्षा जी के सवाल का जवाब देती उस फोटो को अपने ब्लॉग पर चिपकाता और लिख मारता कि; "बाकियों का तो नहीं मालूम लेकिन मुझमें सुर्खाब के पर लगे हैं. फोटो हाज़िर है. कृपया देख लें."
अनूप जी ने प्रत्यक्षा जी की पोस्ट पर कमेन्ट किया. लिखा; "अब इंतजार है इसकी रनिंग कमेंट्री का." अब अनूप जी के कमेन्ट के जवाब में क्या किया जाय? रनिंग कमेंट्री तो ये होती कि ऐन मीट के मौके पर नवजोत सिंह सिद्दू कमेंट्री कर रहे होते; "ओये गुरु छा गए यार, छा गए. कलकत्ता निवासी दोनों ब्लॉगर कॉफी टेबल पर बैठ चुके हैं. गुरु अब दिल्ली निवासी ब्लॉगर प्रत्यक्षा जी अपने कैमरे से फोटो खींच रही है. टेबल पर रखे सूरजमुखी के फूल की सुगंध हवाओं में वैसे ही रच-बस गई है जैसे हरभजन के उस थप्पड़ की आवाज़ गुरु, जो उसने श्रीसंत को जमाया था....... ब्लॉगर मीट करना उतना ही बड़ा काम है गुरु जितना संजीवनी बूटी से पटे हिमालय को उठा लंका में रखना. लेकिन ख़ुद महापुरुषों ने कहा है कि जहाँ चाह है, वहां राह है. गुरु इन ब्लागरों ने इस बात को एक बार फिर से साबित कर दिया."
लेकिन मीट के चार दिन बाद रनिंग कमेंट्री कैसे हो?
मन में ये बात ज़रूर है कि रनिंग कमेंट्री के बारे में क्या लिखें? लेकिन मैं ठहरा ब्लॉगर. ब्लॉगर इतनी जल्दी हार मान ले, ऐसा कैसे हो सकता है? एक ब्लॉगर को इस तरह से हारते देख बाकी के ब्लॉगर के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है. इस मनोबल पर पड़ने वाले बुरे असर के सहारे एक पोस्ट ठेलने का मौका हाथ से क्यों जाने दें? नीति भी यही कहती है. ऊपर से इस बात की ललक भी मन में है कि आज से पचास साल बाद जब हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास लिखा जायेगा तो हमारा नाम भी वहां दर्ज होगा.
तो हुआ ऐसा कि मुझे चौदह तारीख को पता चला कि प्रत्यक्षा जी कलकत्ते में हैं. मैंने उनसे फ़ोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें चार बजे तक अपने काम से फुरसत मिल जायेगी. पांच बजे वे एअरपोर्ट के लिए रवाना हो जायेंगी. मैंने प्रियंकर भइया से बात की और हमदोनों इस बात पर सहमत हो गए कि चार बजे तक प्रत्यक्षा जी के होटल पहुंचें. नोट किया जाय कि दो ब्लॉगर एक ही बात पर सहमत भी हो सकते हैं.
खैर, हम दोनों चार बजे तक होटल पहुँच गए. लेकिन प्रत्यक्षा जी तब तक होटल वापस नहीं आई थीं. हमदोनो बैठे ब्लागिंग के बारे में बात करते रहे. साथ में समाज में घटती नैतिकता पर दुखी भी हुए. हमदोनो होटल के कैफे के बाहर बैठे बात कर ही रहे थे कि हमें वहां नए-नए सेलेब्रिटी बने राखी सावंत के बॉयफ्रेंड दिखाई दिए. मैं तो धन्य हो लिया क्योंकि इससे पहले मैंने किसी सेलेब्रिटी के दर्शन नहीं किए थे. वे मुझे देखकर मुस्कुराए. जैसे कह रहे हों; "मैं वही हूँ, जो तुम समझ रहे हो." साथ में याचक की दृष्टि भी थी. उन्हें लगा कि मैं हाथ में एक कागज़ लिए ऑटोग्राफ के लिए उनकी तरफ़ बढ़ने ही वाला हूँ. सच बात तो ये है कि साथ में प्रियंकर भइया न होते तो मैं उनसे ऑटोग्राफ मांग भी लेता. लेकिन मैंने उनकी तरफ़ इस नज़र से देखा जैसे कह रहा होऊँ कि; "केवल ख़ुद को सेलेब्रिटी मत समझो. हम भी सेलेब्रिटी ही हैं. हिन्दी ब्लॉगर हैं हम."
करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद प्रत्यक्षा जी आईं. हमने उन्हें नमस्कार किया. उन्होंने हमारी सराहना की. सराहना इस बात की थी कि हमदोनों ने उनका इंतजार किया. उसके बाद हम तीनों कैफे की तरफ़ बढ़ लिए. वहां जाकर हमलोगों ने एक टेबल का स्ट्रेटेजिक सेलेक्शन किया और कुर्सी पर बैठ गए. पांच मिनट तक बात हुई. मेरी और प्रत्यक्षा जी की यह पहली ब्लॉगर मीट थी. शायद यही कारण था कि मैं बहुत खुश था. थोडी देर बाद प्रत्यक्षा जी यह कह कर अपने रूम की तरफ़ चली गईं कि वे अपना सामान वगैरह बाँध लें उसके बाद वापस आयें तो बात आगे बढे.
उनके जाते ही वेटर आया और उसने अपनी अमेरिकी अंग्रेजी में कुछ पूछा. उसके कहने का मतलब निकाला तो समझ में आया कि वह यह जानना चाहता था कि हम कैसा पानी पीना चाहते हैं. टेबल पर रखी दो सौ मिलीलीटर पानी की जो बोतल थी उसका मूल्य पूरे एक सौ पचहत्तर रूपये था. सेल टैक्स, खेल टैक्स वगैरह ऊपर से. उसके कहने का मतलब यह था कि; "मुझे ये बताओ कि टेबल पर रखी पानी की इस बोतल को अफोर्ड कर सकोगे या नहीं?" मैंने उसे अपनी 'यूपोरियन अंग्रेजी' में कुछ कहा जिसका मतलब ये था कि; "भइया अभी अपने ही शहर में हम मेहमान हैं. प्रत्यक्षा जी आएँगी तब हम बताते हैं." वो वेटर ओके ओके करते चला गया. लगा जैसे कह रहा हो; "समझ गए, समझ गए. तुमलोग हिन्दी के ब्लॉगर हो."
खैर, थोडी ही देर में प्रत्यक्षा जी वापस आ गईं. उनके आने के बाद ब्लागिंग पर चर्चा हुई. जिन बातों पर चर्चा हुई, उनके बारे में प्रत्यक्षा जी ने अपनी पोस्ट में लिखा ही है. मेरे बारे में उन्होंने लिखा;
"शिवजी मेरे बनाये परसेप्शन से कहीं ज़्यादा जेंटलमैन लगे , हैं ।"
ब्लागिंग में आकर बहुत कुछ मिला है जी. यही देखिये न कि प्रत्यक्षा जी ने मुझे जेंटलमैन की मानद उपाधि से नवाजा. इतिहास गवाह है कि इतने शहरों में न जाने कितनी ब्लॉगर मीट हुई लेकिन मजाल है कि किसी ब्लॉगर को जेंटलमैन उपाधि से नवाजा गया हो. बहुत सारे ब्लागर्स को अच्छा कहा गया, महान बताया गया लेकिन जेंटलमैन किसी को नहीं कहा गया.
कल देर रात को जब पोस्ट पढ़ रहा था तो एक बार मन में बात आई; 'काश कि डिनर करने से पहले ये पोस्ट दिखाई दी होती. कम से कम दो रोटी ज्यादा खाता. आख़िर जेंटलमैन कहे जाने का गौरव कितने ब्लॉगर को मिलता है?' खैर, इस खुशी को मैंने सुबह नाश्ते में एक पराठा ज्यादा खाकर मनाया. ऊपर से प्रत्यक्षा जी की पोस्ट पर मनीष भइया का कमेन्ट देखा. उन्होंने भी मुझे जेंटलमैन मान लिया. मन तो कर रहा है कि इस उपाधि का एक सर्टीफिकेट बनवा लूँ और दोनों से साइन करवाकर रख लूँ. क्या पता भविष्य में ये सर्टिफिकेट किस-किस काम में आए. हो सकता है अगर अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर महासभा के अध्यक्ष पद का चुनाव लडूं तो चुनावी पोस्टर के साथ ये सर्टिफिकेट चिपकाने का मौका मिलेगा.
अब तो ये लगने लगा है कि आगे से किसी ब्लॉगर मीट में गए और अगर कोई नया ब्लॉगर मेरी तरफ़ इशारा करते हुए किसी पुराने ब्लॉगर से पूछ बैठे; "ये कौन हैं?" पुराना ब्लॉगर कहेगा; "अरे तुम्हें नहीं मालूम? यही तो हैं वो जिन्हें कोलकाता ब्लॉगर मीट में जेंटलमैन की मानद उपाधि से नवाजा गया था." मन में तो ये भी आता है कि अपना उपनाम "जेंटलमैन" रख लूँ. बहुत खुश हूँ. खुशी इस बात से और बढ़ गई है कि मैंने और प्रियंकर भइया, दोनों ने प्रत्यक्षा जी से पंगे लिए लेकिन उन्होंने जेंटलमैन केवल मुझे माना.
प्रत्यक्षा जी ने ये भी लिखा;
"प्रियंकर जी और शिव जी से जितने मेरे पंगे हुये उसका तफ्सील से हिसाब किया । कुछ लोगों को गालियाँ दी और कुछ की तारीफ की । फोटो खींची और ब्लॉगर मीट के विधि विधान का पालन किया ।"
पंगों की बात हुई. हमें इस इस पंगे की खूब याद आई. ये वही पंगा था जब हम 'चिरईबुद्धि' नामक उपाधि से नवाजे गए थे. आगे बात ये है कि ब्लॉगर बंधु इस बात पर सोचकर दिमाग खपा सकते हैं कि इन तीनों ने किसे गालियाँ दी और किसकी तारीफ़ की? अब इसके जवाब में क्या कहें. आज सुबह प्रत्यक्षा जी की पोस्ट पढ़कर बालकिशन मुझसे पूछ रहे थे; "मुझे भी गाली दी है क्या?" समझ में नहीं आया कि क्या कहें? हमने तो ये कहकर पल्ला झाड़ लिए कि; "हम नहीं बताएँगे. हमने ब्लॉगर बनते समय पद और गोपनीयता की शपथ खाई थी. अच्छा होगा कि ब्लॉगर बंधु अनुमान लगाते रहें."
हाँ, ये फोटो खीचने के लिए मैं प्रत्यक्षा जी का बहुत आभारी हूँ. उनके पास कैमरा था तो फोटो में हम उतार लिए गए. नहीं तो ऐसा नहीं होता. हमारे फ़ोन का कैमरा काम नहीं करता. प्रत्यक्षा जी के कैमरे ने बचा लिया नहीं तो ये ब्लॉगर मीट बिना फोटो के वैसे ही लगती जैसे सलमान खान शूट पहनकर लगते हैं. प्रियंकर भइया जो पत्रिका लेकर आए थे, उसे मैंने हाथ में लेकर देखा. पत्रिका तो क्या, पूरी किताब थी. उन्होंने मुझे उस पत्रिका की एक प्रति देने का वादा किया है. अगली बार उनसे मिलूंगा तो शायद पत्रिका के साथ लौटूं.
उपसंहार में जी हम तो यही कहेंगे कि ब्लागर्स को मिलते रहना चाहिए. मिलने के मौके मिलें, तो हाथ से निकलने नहीं चाहिए. जिन्हें हम उनके लेखन से जानते हैं, उनसे बात करके उनके बारे में सही-सही जानने का मौका मिलता है. और जैसा कि प्रत्यक्षा जी ने लिखा है;
"और लोगों से मिलने के बाद का कम्फर्ट लेवेल अलग ही होता है । इस लिहाज़ से भी ये मिलना बेहद ज़रूरी रहा."
उन्होंने ये भी लिखा है कि; "फिर फिर साबित हुआ कि पहला इम्प्रेशन हमेशा सही नहीं होता ।"
प्रत्यक्षा जी, मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ. यह भी कहना चाह्ता हूँ कि ब्लागिंग में आने के बाद आपसे मिलना मेरे लिए सबसे अच्छी बात रही.
humne to yahi baithe baithe meet ka maza le liya.. photo mein to aap bade smart nazar aaye hai..
ReplyDeletenote : gentleman ke sath smart bhi likhna mat bhuliyega..
रनिंग कॉमेंट्री भी हो गई....क्या खाया-पीया, यह नहीं बताया :)
ReplyDeleteआप जेंटलमेनत्व को प्राप्त हुए.
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई.
कई दिनों बाद ब्लागेर्स मीट के बारे में पढने को मिला.
आनंद आ गया.
तभी हम कहें कि हमको समय देकर आप कहाँ गायब हो गये.... खैर हम तो डाब पिलाते और सिंघाड़ा जलेबी खिलाते .. 175 रुपये का पानी तो नहीं ही पिला पाते.
ReplyDeleteवैसे जंटीलमैन बनने की बधाई....
इधर हमलोग भी मिले थे अरुण जी, मैथिली जी, आलोक पुराणिक जी, मसिजीवी जी, अजित वडनेकर जी, प्रशांत जी और मैं :) .... प्रशांत ने रुन्निंग कमेट्री नही दी.... उससे गुजारिश करूँगा एक रुन्निंग कमेंट्री दे ही दे.... :)
ReplyDeleteबहुत बधाई "जेंन्टलमेन" बनाने की :-)
ReplyDeleteजेंन्टलमेन बनने की बधाई और रनिंग कमेंट्री देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteरोचक मुलाकात और जेंन्टलमेन कहलाने की बहुत बहुत बधाई ....:)
ReplyDeleteसिद्धू स्टाइल का तर्ज-ए-बयां जमताऊ है . पूरी पोस्ट इसी शैली में होनी चाहिए थी . 'पेशे से अर्थ सलाहकार' हो यह तो परिचय की पहली पंक्ति में लिखा है . पर जिस सफाई से मिनरल वाटर की कीमत स्कैन की वह काबिल-ए-तारीफ़ है . अच्छा हुआ अब बताया वरना हमसे तो पानी पिया नहीं जाता . हिंदुस्तान में दो सौ रुपए लिटर पानी ,कितने हिंदुस्तान हैं एक हिंदुस्तान में . इतने में तो भैंस का सात-आठ किलो शुद्ध दूध आता .
ReplyDeleteउपाधियों के क्षेत्र में तरक्की -- आवंटित और प्राप्त और जमा उपलब्धियां आशातीत हैं . कुछ ही माह के भीतर 'चिरईबुद्धि' से 'जेंटलमैन' तक की यात्रा का आरोही ग्राफ़ आपके भलेमानस होने का प्रमाण तो है ही,प्रत्यक्षा जी की इस बात की भी तस्दीक है कि 'मिलने के बाद का कम्फर्ट लेवेल अलग ही होता है ।' आप से कई बार संवाद के पश्चात अब तो स्वामी प्रमोदानंद राउरकेलवी भी यह महसूस कर चुके होंगे .
कहानी का 'मॉरल' यही है कि मिलना चाहिए . मित्रता के नाम पर मिलना चाहिए . सहज मानवीय ऊष्मा के बचाव और रचाव के लिए मिलना चाहिए . बिना किसी हेतु के भी मिलना चाहिए . मतभेद होने पर भी मिलना-बतियाना चाहिए . और मिलने के अवसर सृजित करने चाहिए. थोड़ी-बहुत तकलीफ़ उठाकर भी . ताकि हम सब एक-दूसरे के भीतर के बेहतर मनुष्य की शिनाख्त कर सकें और उस प्रेत को देशनिकाला दे सकें जो सिर्फ़ दूर से दिखाई देता है .
प्रत्यक्षा के पास कैमरा था . आपके पास कैमरे वाला फोन . हमारे पास तो दोनों में कुछ भी नहीं था . हमारे फोन से तो सिर्फ़ वही काम हो सकता था मूलतः जिसके लिए वह बना है . कर हम यह सकते थे कि प्रत्यक्षा जी से कैमरा लेकर दो-चार फोटो ले लेते . पर चूक गए . कोई बात नहीं . अन्ततः हम फोटू उतरवाने आदमी साबित हुए फोटू उतारने वाले नहीं .
इसे 'साग-मीट' जो भी कहें . मिलना अच्छा रहा . बहुत-बहुत अच्छा . खेद इस बात का रहा कि समय कम था . बहुत-सी बातें थी करने को जो रह गईं . अगली बैठक की प्रतीक्षा है जो ज्यादा समय की होनी चाहिए .
आप जेंटलमैन तो हो गये और ढेर सारी बधाई भी पा ली लेकिन, यह नहीं बताया कि उस पानी की बोतल का क्या हुआ...:)
ReplyDeleteआप तो जेन्टलमैन हईये हो-अब डिक्लेयर भी हो गये.शाबाश. :)
ReplyDeleteईस्टर्न इंडिया रीजनल ब्लागर्स मीट ये क्या बला है मिश्रा जी...आप शेत्रियवाद फैला रहे है ब्लॉग जगत में ........ ओर सोचिये ढेरो लोगो ने आपको जेंटलमैन कहा तब तो आपने इतरा कर कोई पोस्ट नही लिखी ...खैर कोई बात नही.....आख़िर में एक सवाल .......
ReplyDelete.दूसरा इम्प्रेशन सही नही हुआ तो ?
हमारे यहाँ मसूर की दाल नहीं खाते। उस का रंग लाल होता है और नाम में पीछे सूर(सूअर)। अब आप समझ गए होंगे कि हम किस किसम के शाकाहारी हैं। भैया ये ब्लागर मीट कैसा होता है? पता ही नहीं लगा। न कुछ खाया न पिया।
ReplyDeleteये कोटा में होता तो हवाई जहाज का चक्कर नहीं होता। बडे़ स्नेह से मिलते। कोटा की कचौड़ियाँ खिलाते और साथ में पैक भी करवाते। ज्यादा वक्त होता तो कत्त-बाफले खिलाते। वैसे ऐसे क्षणिक मिलन में आनंद कहाँ? हम तो जिस दिन बुलाएँगे, न्यौता दे कर, पूरा सम्मेलन न कराएँ तो कोटा का नाम बदल दें। हाँ थोड़ी ब्लागरों की आबादी बढ जाए। अभी तक चार-पाँच का पता लगा है, बस।
क्या शिव जी अकेले अकेले महफिल सजा ली, वैसे सही कहा है कि मिलते रहना चाहिए। और दो चार बार मिलेंगे तो आपको और भी कई उपाधी मिल ही जाएंगी।
ReplyDeleteभाई हम भी जेंन्टलमेन जी को बधाई देने पहुच ही गये, थोडा देर से ही सही, ओर इसी खुशी मे हो जाये जोर दार पार्टी :)
ReplyDeleteनोट किया जाय कि दो ब्लॉगर
ReplyDeleteएक ही बात पर सहमत भी हो सकते हैं.
नोट क्या करना...
सहमत ही समझिये साहब.
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हर बार की तरह ये पोस्ट भी रोचक.
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
ब्लोगर मीट तो बढिया रही -
ReplyDeleteऔर आप जेन्टलमेन हो
ये अब जग विख्यात हो गया है !:)
- लावण्या
आप तो पहले से ही जैन्टलमेन है जी सिर्फ़ उपाधी अभी मिली है सर्टिफ़िकेत में हम भी हस्ताक्षर कर देते हैं। बधाई।
ReplyDeleteबधाई हो भाई, उपाधि देने वालों का घराना सम्माननीय ब्लागर घराना (जैसे संगीत में होते हैं)है इस कारण इस उपाधि का विश्वस्तरीय मान है ।
ReplyDeleteये जेंटल मैनी क्या होती है जी ? ये क्या उन लोगो को कहते है जो जेंटल साबुन से नहाकर आते है ? ये कलकतिया पानी इत्ता महंगा होता है क्या ? इत्ते पैसे मे तो हम यहा छबील लगा लेते है ठंडे पानी की . जरा मामला साफ़ किया जाये ? वैसे हम आयेगे तो अपने अलावा आपके लिये भी दो ठो पैतीस लीतर का कैन लेते आयेगे जी :)
ReplyDeleteतारीफ बुराई का सस्पेंस बना रहे :-)
ReplyDeleteबाकी , आप और प्रियंकर दोनों भद्रपुरुष .. मैंने खाली वेरिफिकेशन स्टैम्प लगा दिया । (बने बनाये को कौन बनाये :-))
फुरसतिया जी ने वैसे हमारी पुनर्विचार की क्षमता का पोल भी खोल दिया है , आपको बकायदा फुरसत में लिखी गई चिट्ठी के ज़रिये ।
लेकिन आपसे एक शिकायत रही .. हम जिरह बख्तर लैस तैयार बैठे थे ..आपने एक भी गोली नहीं दागी ?
अगली दफे की तैयारी रहे ।
एक बार फिर ..आपसे और प्रियंकर से मिल कर बहुत बहुत अच्छा लगा । बातें बहुत सी हैं , फिर बैठेंगे ज़रूर ।
.
ReplyDeleteज़ेन्टलमैनों से तो मेरी वइसे भी बनती ही नहीं...
सो, अपण ये दोसती कब तोड़ेंगे..
गाने का मन कर रहा.. और गा भी नहीं पा रहे हैं..
गला रुँध रुँध जा रहा है..
अपना ये क्या हाल बना लिया, प्रिय मित्र शिवकुमार ?
aakhir milne me burai hi kya hai
ReplyDeleteजेंटलमैन,जेंटलमैन,जेंटलमैन…………
ReplyDeleteनिश्चिंत रहिए कुछ नही कह रहा मैं, सिर्फ़ एक पुराना हिंदी गाना याद कर रहा ;) ।
वईसे हजूर आपको इस मामले में तौ कौनो के कहे कि जरुरत नईये है लेकिन उपाधियों का एक अलग ही महत्व होता है
जैसे राष्ट्रपति को कोई विवि एक मानद उपाधि दे दे ;)
इस मीट में किसे किसे गरियाया गया यह जानने की उत्सुकता बढ़ा दी है आपने।
अरे डाक्टर अमर कुमार कह रहे हैं कि गला रुंध रुंध जा रहा है आपका। पर आपकी इतनी सर्टीफाइड प्रसंसा से तो मैं खुद इतना गदगदायमान हूं कि मेरा गला रुंध-रुंध जा रहा है।
ReplyDeleteबहुत प्रसन्न हूं मैं आपकी इस उपलब्धि पर।
बहुत बधाई!
शिवकुमार जी,आपकफम जितना ही पढ़ते जाते हैं उतना ही आपके मुरीद होते जाते हैं। यह ब्लॉगर मिलन वृत्तान्त भी कम रोचक नहीं था। हाँ, इसके आकार और प्रकार को देखकर काना-फूसी तो होनी ही थी। सो, हो ली। अब एक जबर्दस्त आयोजन हो तो हमें भी जरूर बुलाएं। आप ‘इतिहास-पुरुषों’ को देखकर हम भी धन्य होना चाहते हैं। सचमुच...इसे मजाक न समझें।
ReplyDeleteham to sochte the ki kewal raju hi gentleman hai....ab to aap bhi ban gaye.
ReplyDeleteजो हुआ सो हुआ। अब क्या किया जा सकता है। ठाठ से झाड़िये जैंन्टेलमैनी!
ReplyDeleteआप "बेहतरीन" इंसान हैं [ :-)] - जेंटलमैन होते तो फोटू खींचते - [प्रमाणपत्र सत्यापन के लिए गया है - अंगूठा लगाय दिया है [ :-)] ] - अगली बार पानी पी के / ले के जाईयेगा [ :-)] - मनीष [ कोटा की कचौड़ी की याद से भूख लग आई - कसम कोलेस्ट्रोल की - कभी जाईयेगा तो ज़रूर खाईयेगा - हमारे तो दिन लद गए.. आह..]
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteप्रत्यक्षा जी ने आप को जेंटलमैन कहा इस से एक बात तो साफ़ हो गयी की प्रत्यक्षा जी इंसान हैं क्यूँ की गलती इंसान से ही होती है. अंग्रेज़ी में कहते हैं की "TO ERR IS HUMAN " किसी की गलती से ग़लतफहमी पाल लेना ठीक नहीं होता...आप जो नहीं हैं उसे प्रमाणित करने के लिए आप द्वारा प्रत्यक्षा जी की आड़ में किए गए इस भागीरथी प्रयास की हम सराहना करते हैं.
नीरज
गड़े मुर्दे उखाड़ रहा हूँ, अर्थात पुरानी पोस्ट को पढ़ रहा हूँ पुरानी ही सही अच्छी पोस्ट पड़ने की आदत जो है।
ReplyDeleteइस पोस्ट की बहुत सी बाते बहुत अच्छी लगी।