Wednesday, August 20, 2008

एक चिट्ठी अनूप भइया के नाम

आदरणीय अनूप भइया,

प्रणाम

ज्ञात हो कि प्रणाम शब्द का उपयोग (प्रयोग नहीं) इसलिए किया क्योंकि हमारा हाथ संस्कृत में उतना ही तंग है जितना अंग्रेजी, उर्दू और फ्रेंच में. आपका लिखा हुआ 'अत्र कुशलम तत्रास्तु' लिख देते तो लोग कहते कि चिट्ठी का जवाब दे रहा है वो भी नक़ल करके. इसीलिए मैंने ऐसा नहीं किया. मैंने सोचा पहली चिट्ठी तो असल लिखें, सिलसिला अगर आगे बढ़ा तो नक़ल करने के लिए मौकों की कमी थोड़े न रहेगी..

आपकी चिट्ठी की पहली लाइन पढ़कर ही लगा कि आगे खतरा है. अब देखिये न, एक तरफ़ तो आपने लिखा है परम प्रिय भाई और उसके आगे शिवजी टिका दिया. इसे पढ़कर पता चल गया कि नाम के आगे जी लगाने का मतलब ही है कि चिट्ठी में आगे जी का जंजाल भरा मिलेगा. लिहाजा पहली लाइन पढ़कर कलेजा कड़ा कर लेना पड़ा.

मुझे मिले इस ऐतिहासिक उपाधि 'जेंटलमैन' से कानपुर में ऐसा हंगामा मचेगा, इसकी आशा नहीं थी. मुझे अगर इस बात का जरा भी आभास होता तो मैं प्रत्यक्षा जी से कहता कि वे इस उपाधि को अपने साथ वापस ले जाएँ और किसी ऐसे ब्लॉगर को दे दें जो कानपुर का हो. हाँ ऐसा होने से जेंटलमैन की कानपुरी व्याख्या के बारे में जानने का मौका हाथ से निकल जाता.

वैसे भी आज की ताजा ख़बर के अनुसार इंग्लैंड और अमेरिका सरीखे देशों में इस व्याख्या को लेकर हंगामा मच गया है. ब्रिटिश पार्लियामेंट ने तो एक प्रस्ताव पारित करके बताया कि जेंटलमैन के बारे में कानपुरी व्याख्या की वजह से इतिहास में दर्ज बहुत बड़े-बड़े जेंटलमैनों की बखिया उधड़ सकती है. लिहाजा किसी बड़े आदमी के नाम के साथ जेंटलमैन शब्द को न जोड़ा जाय. अब जब इतने बड़े-बड़े लोग धरासायी हो गए तो मेरी क्या विसात? इस एक व्याख्या की वजह से मेरी जेंटलमैनी एक दिन में ही टें बोल गयी.

वैसे मुझे खुशी इस बात की है कि एक दिन के लिए ही सही, मैं जेंटलमैनत्व को प्राप्त हो गया. लेकिन मुझे नहीं पता था कि इस उपाधि प्राप्ति कार्यक्रम के बाद इस तरह की बातें होंगी जिससे इस महान उपाधि को छोटा बताने के तर्क खोजे जायेंगे. इस छोटा बताने के कार्यक्रम के तहत इस उपाधि को जेंटील तक से धो डाला गया. नतीजा ये हुआ कि उपाधि लत्ता बन गयी. अब मैंने फैसला किया है कि इस लत्ते को ओढ़ने से कोई फायदा नहीं है.

जहाँ तक जेंटलमैन उपाधि के बारे में आपके द्बारा दिए गए कानपुरी तर्क की बात है तो मेरा यही कहना है कि आपको हमारे प्रियंकर भइया के पोएटिक जस्टिस वाली तलवार के वार की चिंता नहीं करनी चाहिए. आख़िर प्रियंकर भइया पोएट हैं. और पोएटिक जस्टिस की तलवार चलाने का हक़ एक पोएट से ज्यादा किसी को नहीं है. वैसे आपकी चिट्ठी के बारे में जब उन्हें जानकारी मिली तो उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि उन्होंने इसबार तलवार न उठाने का फ़ैसला कर लिया है. ऐसे में इस कानपुरी तर्क के बचे रहने की उम्मीद कायम है. हाँ, एक बात जरूर कहनी है कि ये उम्मीद तभी तक कायम है जब तक किसी और दिशा से तलवार नहीं उठ जाती.

कैसे-कैसे सपने संजोये थे. जब से ब्लागिंग में आए हैं, हर दो महीने पर इस बात की चर्चा होती रहती है कि हिन्दी ब्लागिंग में राजनीति होती है. इस राजनीति पर होने वाले चर्चे और लिखी गई पोस्ट से हमें बड़ा हौसला मिला था. जेंटलमैन की उपाधि से लैस हम भविष्य में होनेवाले अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर महासभा का चुनाव लड़ने के सपने संजो रहे थे और एक व्याख्या की वजह से सब गुड़ गोबर हो गया. कहाँ मैंने सोचा था कि जेंटलमैन उपाधि का सर्टिफिकेट चमकाते हुए प्रचार करेंगे. और भी हथकंडे अपनाते और इलेक्शन जीत लेते. आख़िर माना हुआ जेंटलमैन अगर धांधली न करे तो दो कौड़ी का जेंटलमैन. लेकिन एक व्याख्या ने सारे सपने चकनाचूर कर दिए.

एक बार फिर से साबित हो गया कि व्याख्या करने वालों और तर्क देने वालों ने इतिहास के बड़े-बड़े महापुरुषों, नेताओं, कवियों, लेखकों, प्रशासकों और यहाँ तक कि ब्लागरों की जेंटलमैनी धूल में मिला दी है. अब देखिये न, इस जेंटलमैनी व्याख्या के बहाने कितने लोग जमीन पर हैं. व्याख्या से साबित कर दिया गया कि समीर भाई की श्रृगाररस की कविता पॉडकास्टित होकर रौद्ररस को प्राप्ति कर लेती है. ये व्याख्या की वजह से ही हुआ है. धन्य हैं व्याख्या करनेवाले जिन्हें दूसरों की जेंटलमैनी जरा भी नहीं भायी.

जहाँ तक बालकिशन को निपटाने की बात है तो मैंने परम्परा का हवाला देकर उन्हें निपटाने की कोशिश की थी. लेकिन समस्या ये है कि बालकिशन अभी तक ख़ुद को यंग जनरेशन का समझता है. पैंतीस साल पार करने के बाद भी बन्दे पर अचानक कम्यूनिष्ट बनने का धुन सवार है. उसने मेरी परम्परा वाली बात को यह कहकर मानने से इनकार कर दिया कि वह यंग जनरेशन का है और यंग जनरेशन को परम्पाराओं पर जरा भी भरोसा नहीं है. उसने तो यहाँ तक कहा कि पैंतीस साल का होने के बाद उसने हर स्थापित परम्परा को तोड़ने का फैसला कर लिया है. अब ऐसे में इस यंग ब्लॉगर को कौन समझाता?

आपकी लिखी चिट्ठी पर प्रत्यक्षा जी ने कमेन्ट नहीं करते हुए लिखा है कि "शिव जी पहले टिप्पणी कर लें ..फिर हम". प्रत्यक्षा जी, मैंने टिप्पणी की जगह पूरी चिट्ठी ही लिख दी है. अब आप मेरी इस चिट्ठी पर कमेन्ट कीजियेगा.

बाकी क्या लिखूं? इस चिट्ठी को तार समझियेगा और एक टिप्पणी जरूर दीजियेगा.

आपका अनुज
शिव

16 comments:

  1. कौन कहता है की यंग जनरेशन परंपरा का पालन नही करती.. हमने आपकी ब्लॉग पर टिप्पणी करते हुए सदियो से चली आ रही 'कुछ भी लिखा हो टिप्पणी दो' परंपरा का निर्वाह किया है.. बाकी आप जानो और अनूप जी..

    ReplyDelete
  2. एक तो मैं परेशान हो गया हू.. तुम ब्लॉगरो की चिट्ठिया पहुँचाते पहुँचाते.. अमा यार तुम लोगो को कोई काम धाम है या नही.. बैठे बैठे चिट्ठिया लिखते रहते हो. और हमे बेवजह धूप में आना पड़ता है.. एक तो आधे घंटे बाद दरवाज़ा खोलते हो.. उपर से एक गिलास पानी तक नही पूछ्ते...

    अब अगर एक भी चिट्ठी किसी ने लिखी तो मा कसम चिट्ठी में आग लगा दूँगा..

    ReplyDelete
  3. ye bhi acchhi rahi...vaisey shiv ji aapney hamarey KANPUR ka naam bahut gussey me liya hai baar baar:(

    ReplyDelete
  4. हे जेंटलमैनेत्व को प्राप्त जीव तू इन इन जलोकडे दिलजले क्षण भंगुर सामान्य जीवो के कहे मे मत आ.वत्स ये तो जल कुकडे जीव कुए मे रहने वाले जीव है जिन्होने हमेशा दूसरे की टांग खीचने के अलावा कुछ किया ही नही है ,ये हमेशा दूसरो की उन्नति से जल कर ही जीवन यापन करने को अभिशिप्त है.इसलिये हे जैंटिलमैनत्व प्राप्त जीवात्मा श्रेष्ट पुरुषोचित गुणो का प्रदर्शन करते हुये इन की और ध्यान मत दे

    ReplyDelete
  5. चिट्ठी पत्री चालू रहे, कुछ हो न हो डाकिये की किस्मत तो फिरेगी :) असली जेंटलमेन तो वही है.

    ReplyDelete
  6. आपकी चिट्ठी को सुकुल जी तार बाद में समझेंगे पहले हम ही लोहे की रॉड समझ लेते हैं. चुनाव लड़ना आपका अधिकार क्षेत्र है, आप लाख तैय्यारी करें, आप स्वतंत्र हैं. हराना और जीताना तो बकियों के साथ है और फिर चुनाव के समय कैसी सेटिंग बैठती है, वो तब देखेंगे. मगर घोर आपत्ति दर्ज कर लेवें कि यह 'अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर महासभा ' नाम गलत है और जिसकी तैय्यारी करना है और मैं भी कर रहा हूँ वो है 'अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर महासभा'. काहे का चुनाव लड़ना है वो पता नहीं तो जीतेंगे कैसे?

    आपने भी काफी शरमाते हुए खत लिखा है, जरा भी खुल कर नहीं लिख पाये. हम लाइनों के बीच में पढ़कर भाँप गये कि आप सोच कुछ रहे हैं और संस्कृत के ज्ञाता न होते हुए भी सुसंस्कृत होने की वजह से एवं हाल में प्राप्त जेन्टलमैन की उपाधि की झूठी गरिमा की लाज रखते हुए लिख कुछ और रहे हैं-ऐसा क्यूँ?

    ReplyDelete
  7. हमारी समझ मे तो कुछ भी मामला नही आया, बस मुझे तो पोस्टमेन का फ़िक्र हे, अगर चिठ्ठी पत्र नही डालो गे तो वो बेचारा बेरोजगार हो जाये गा, धन्यवाद

    ReplyDelete
  8. हा हा , अब आया मैच का मजा, ये है नहले पर देहला, अब कल क्या शॉट लगता है देखते हैं। वैसे आप दोनों जेन्टील साबून वालों से स्पोंसरशिप तो ले ही लो, उनके साबून का इतना प्रचार जो हो रहा है। अजी आप चुनाव में उतरिए तो हम पीछे पीछे झंडा ले कर चलेगे जिस पर मारूती बना होगा और लिखा होगा एक थोरो जैन्टलमेन

    ReplyDelete
  9. गाँव में एक कहावत सुनी थी- “एक हाथ के काँकर (ककड़ी), आ नौ हाथ के बीआ (बीज)”
    कलकत्ते की ब्लॉगर मीट का किस्सा अब इसी राह पर चल पड़ा है।
    यह जुगाली बताती है कि हमारे देश में सब कुछ ठीक चल रहा है... कोई टेंशन की बात नहीं है।

    ReplyDelete
  10. .

    बहुत खूब, लगे रहिये, जमाये रहिये...इत्यादि इत्यादि
    क्षमा करना शिव,
    ( शिव तो वैसे भी क्षमाशील हैं )
    इससे अधिक एक शब्द भी कुछ और कह न पाऊँगा..
    क्योंकि.. संप्रति ताला लगा भया है..
    ' अभी वक्त गुणवत्ता की कसौटी कसने का नहीं है - संख्या बढाने का है '
    स्वामी टिप्पणी संहिता से - साभार

    ReplyDelete
  11. कौन कहता है की यंग जनरेशन परंपरा का पालन नही करती.. मैंने टिपटिपा दिया अब आपकी बारी.

    ReplyDelete
  12. आप लोग चिट्ठी-चिट्ठी खेल रहे हैं या ब्लॉग-ब्लॉग या फिर टिपण्णी-टिपण्णी... :-) थोड़ा लैग चल रहा है.. मैं पीछे हूँ थोड़ा...

    वैसे थोडी देर पहले ही अनूप जी के ब्लॉग से पढ़ के आ रहा हूँ वो चिट्ठी जिसका जवाब है... दोनों चिट्ठियाँ हैं तो मजेदार :-)

    ReplyDelete
  13. थोड़ी डिले यूनिट लगी है अब थोड़ा समझने में देर लग रही है क्योंकि वाक्या का हिस्सा कहीं गायब हो जा रहा है सिरा हाथ ही नहीं आ रहा। वैसे तार पर राड़ लंबी चलेगी ये मान लीजिए शिव बाबू।

    ReplyDelete
  14. ऐसा संवाद ?

    वाह भाई वाह

    ReplyDelete
  15. समीर भाई से सहमत. पढ़कर लगा जेंटलमैनी अभी तक कायम है.
    मैं कम्यूनिष्ट बन रहा हूँ, तुम्हें बड़ी जलन हो रही है. लेकिन मैं
    तो ये मानकर बन रहा हूँ की जीवन में बदलाव होते रहे.

    ReplyDelete
  16. बंधू
    ये तो होना ही था...स्वतंत्रतता संग्राम की तरह ये आग कानपुर से पूरे देश में फैलने वाली है...आप के जेंटल मेन होने का समाचार लोग सहज कैसे पचा पाएंगे...मैंने जयपुर के ब्लोग्गर्स में इसकी सुगबुगाहट सुनली है...मुंबई आज लौटा हूँ, दो तीन ब्लोग्गर इस पर विचार विमर्श के लिए चर्चा करने चाहते हैं...कुछ ने मेघा पाटकर और ममता जी से विचार करने की बात भी चलाई है जो शायद टाटा की नैनो के किस्से को और उलझा कर इस पर बात करने को तैयार हो जाएँगी...आसार ठीक नहीं हैं...देखिये क्या होता है.
    (बाल किशन जी से कहिये की वो अभी बच्चे ही हैं क्यूँ की जवान तो हम भी कहाँ हुए हैं अभी)

    नीरज

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय