रोज दो या तीन मेल मिलते हैं. सब में वही सूचना; "बधाई हो, आपने हमारी लॉटरी जीत ली है." कोई दस मिलियन पाउंड देने के लिए तैयार है तो कोई बीस मिलियन. एक-दो मिलियन तो जैसे इनके लिए कुछ है ही नहीं. शायद एक-दो मिलियन पाउंड लॉटरी में देना इनलोगों के देश में कानूनन जुर्म माना जाता होगा.
जो थोड़े गरीब टाइप हैं वे बेचारे भी पाँच मिलियन से कम में नहीं मानते. एक बार ऐसी ही एक लॉटरी कंपनी ने मेल लिखकर मुझे बताया कि मुझे बीस मिलियन पाउंड का ईनाम मिला है. मेल पढ़कर मैं सोचने लगा कि इस कंपनी ने अपने जिस एम्प्लाई को पैसे देने के लिए अप्वाईंट किया होगा, अगर उसके साथ मुलाक़ात हो जाए तो कैसा दृश्य होगा? शायद कुछ ऐसा;
लॉटरी कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर सामने खड़ा है. हमें बीस मिलियन पाउंड देने के लिए बेचैन है. देखकर लग रहा है कि वो पूरे दिन में जब तक एक हज़ार मिलियन पाउंड लोगों को नहीं थमा देता, तब तक उसे बेचैनी घेरे रहती है. सोच रहा है कि मैं अपना ईनाम लेकर जल्दी वहां से निकलूँ तो वो किसी और को पचास मिलियन देकर धन्य करे.
मैं उनसे कह रहा हूँ; "जॉन साहब (एक भारतीय के लिए जॉन साहब से बड़ा अँगरेज़ कोई नहीं हो सकता. वैसे भी भारत में इससे ज्यादा पॉपुलर और कोई अंग्रेजी नाम नहीं है) आपको नहीं लगता कि बीस मिलियन पाउंड बहुत ज्यादा हो जायेंगे मेरे लिए?"
जॉन साहब मेरी बात सुनकर बोले; " कुछ जास्टी नई है. वैसे भी टुम बीस मिलियन पाउंड जीता है. तो टुम कम कैसे ले सकता है? हमारा डेश में कम मनी लेना अन-लाफुल है."
"लेकिन जॉन साहब, आप मेरी बात समझने की कोशिश कीजिये. इतना पैसा एक साथ देखकर हम कहीं सटक न लें. कहीं हार्ट फेल हो गया तो?"; मैं जॉन साहब के सामने गिडगिडा रहा हूँ.
वे बहुत गुस्सा हुए. बोले; "यू फूल...टुम इंडियन लोग कैसा है? टुमको देखा तो हमको ख़याल आया कि टुम इंडियन लोग पैसा को वो क्या बोलता है...हाँ..हाँ..हाथ का मैल क्यूं कहता है? अच्छा ठीक है, टुमको बीस मिलियन पाउंड से अपच होने का चांस है तो हम कम करने का वास्ते तैयार है. बट टुम ध्यान रखना. अब टुम लाख कम करने का वास्ते बोलेगा, बट हम डस मिलियन से कम नहीं देगा."
मैंने उनसे कहूँगा; "लेकिन सर, हमारा काम दो मिलियन में चल जायेगा."
और वे बोलेंगे; "अच्छा चलो, न टुम्हारा न हमारा. मैटर को फाइव मिलियन पर ख़तम करो. अभी डेखो, और बहस नहीं सुनेगा हम. फाइव मिलियन से कम में हम राजी नहीं होगा. टुम जो कुछ भी कर लो, हम पाँच से कम पर नहीं मानेगा. पाँच मिलियन तो टुमको लेना ही पड़ेगा."
मेरे पास कोई चारा नहीं रहेगा सिवाय इसके कि मैं पाँच मिलियन पाउंड लेकर वहां से निकलूँ. वैसे भी क्या भरोसा इनका? ये भलाई करने वाले बड़े विकट लोग होते हैं. उन्हें अगर कोई भलाई करने का मौका न दे तो कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं. मार-पीट तक.
आज की ही बात लीजिये. यूके का कोई लॉटरी वाला मुझे दस मिलियन पाउंड देने का मन बनाए बैठा है. मेल लिखकर उसने मुझे बधाई भी दे डाली. बोला; "अपना ईनाम क्लेम करें."
उनका मेल देखकर मुझे वो शेर याद आ गया;
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम
क्या कहा आपने? ये शेर नहीं दोहा है? एक ही बात है. हिंदू जिसे दोहा कहते हैं, मुस्लिम उसे शेर कहते हैं. हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई. प्लीज समझें, हम अभी धर्म निरपेक्षता को मज़बूत कर रहे हैं. इसी अभियान के तहत हम दोहा को शेर बता रहे हैं. ऐसा करने से भारत की एकता दुरुस्त होती है. ओफ्फो..हम कौन से रस्ते हो लिए?
खैर, वापस आते हैं. हाँ तो मैं कह रहा था कि लॉटरी कंपनी के इस मेल में, जिसमें हमें दस मिलियन पाउंड देने की कसम खाई गई थी, उसे पढ़ते हुए मैं सोच रहा था कि ऐसे ही पैसे आते रहें. क्या लाइफ होगी. क्लेम फॉर्म भरो और पैसे ले आओ. फॉर्म भरना, पैसे लाना. और कोई काम ही नहीं.
लेकिन मैं ठहरा आलसी. इतना आलसी कि क्लेम फॉर्म तक भरने के लिए तैयार नहीं. मेल देखा नहीं कि डिलीट का बटन अपने आप दब जाता है. मन में ख़ुद को शाबासी देते हुए छाती दो इंच चौड़ी कर लेते हैं. लेकिन जब भी ऐसा करते हैं, लगता है जैसे जैसे लैपटॉप मुझे निहारते हुए कह रहा होता है; "सकल पदारथ एहि जग माही, कर्महीन नर पावत नाही."
फिर सोचता हूँ कि अमेरिका और यूरोप वगैरह में पैसे की बड़ी मारा-मारी है. टीवी वाले बता रहे हैं कि क्रेडिट क्रंच ने सारा धंधा ही चौपट कर दिया है. बैंकों के पास पैसा नहीं है कि शेयर खरीद सकें या क्रूड आयल को फिर से डेढ़ सौ डॉलर पहुँचा दें. कमोडिटी मार्केट की हालत भी दुरुस्त नहीं है.
अब ऐसे विकट क्रेडिट क्रंच के दौर में अगर ये सारे ईनाम क्लेम कर लेता तो एक-दो बैंको को सहारा दे देता. सहारा से मेरा मतलब हेल्प कर देता. इसका सहारा इंडिया परिवार से कोई लेना-देना नहीं है. वे तो ख़ुद डूब-उतरा रहे हैं. लीमैन ब्रदर्स को नहीं तो बीयर स्टर्न को डूबने से ज़रूर बचा लेता.
फिर सोचता हूँ कि कहीं इसी तरह के पैसे के चलते तो ये बैंक नहीं डूबे? छ..छ..ये मैं क्या सोच रहा हूँ?
लेकिन अब सारे मेल डिलीट हो चुके हैं. मैं चाहकर भी इन बैंकों की कोई मदद नहीं कर पा रहा हूँ. इसी बात पर एक और शेर सुनिए;
बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछताय
काम बिगाडे आपना, जग में होई हसाय
क्या कहा आपने? ये शेर नहीं दोहा है. एक ही बात है...........
पांच मिलियन क्या लेना! हाथ में और मैल चढ़ाने से क्या फायदा?
ReplyDeleteखैर शेर ठीक कर दूं, असली शेर जो टुलसी जी नें लिखा वह है -
सकल पदारथ एहि जग माही,
नर हेर फेर बिन पावत नाहीं!
विषय की नवीनता के लिए बधाई स्वीकार करे.. बढ़िया रहा इस बार तो..
ReplyDeleteहम भी आलस के मारे कितने ही करोड़ो का नुकसान करा बैठे है.. पर क्या करे एक शेर या दोहा कह लीजिए.. हमे बड़ा पसंद है..
आज करे सो काल कर.. काल करे सो परसो..
इतनी भी क्या जल्दी प्यारे जब जीना है बरसो..
Aap bhi kahan chillaro main phas gaye..chodiye, ab kya 10-20 million ke liye pareshan hona..yahan to roj hi aise log hamara pichaa nahi chodte..
ReplyDeletehath ka mail..na na..hath ka email hai ji..
देने वालों का नाम भी दे देते पूण्य ही मिलता :) , कोई माइक्रोसोफ्ट तो कोई याहू के नाम पर दे रहा है. एक तो यू.एन. के नाम पर ही टीका रहा था, बस आलस कर गए और हाथ से हाथ का मेल निकल गया.
ReplyDeleteशेर खुब मारे है. आशा है इससे देश की एकता मजबुत हो गई है :)
टुम भी कित्ता छोटा बाट से घाबरता है मैन...टुम डिलीट किया तो क्या हुआ हम के मेल में हैं ना आफर...हम टुम को फारवर्ड करटा हूँ... टुम बस फार्म भरो...फिफ्टी फिफ्टी में सौदा करो...टुम भी खुश हम भी खुश...बोले तो टुम भी टुन्न हम भी टुन्न...क्या बोलटा है मैन? टुम कलकत्ता वाला साला टूमारो की सोचता है हम मुंबई वाला अभी की सोचटा है...क्या???
ReplyDeleteपोस्ट लिख लिख के टाइम कईकू खोटी करने का रे...पैसा ले कर मजा मारने का...समझा क्या...हाँ.
नीरज
ये दुर्योधन की डायरी की रौयल्टी की रकम तो नहीं जो दानवीर कर्ण के कोई वंशज आपको सौंपने के लिए कमर कसे हों?
ReplyDeleteहम तो पांच मिलियन के चक्कर में आए थे, लेकिन यहां शेर और दोहा सुनाए जा रहे हैं :)
ReplyDeleteमिश्रा जी ...बस कुछ लाख इधर टिका दे....ज्यूँ ही मामला सुलटे ..
ReplyDeleteकुछ ज्यादा हो तो इधर ट्रांसफर कर दीजिये... मेल नहीं... मिलने के बाद पैसे, मेल चाहिए तो कुछ मैं ही भेजे देता हूँ :-)
ReplyDeleteमैन टुमको हमारा पान्च मीलियन टन बढाई लेना पडेगा
ReplyDeleteबहुत परेशान है भई इनसे..सब के सब लन्दन से ही जितवाते हैं..आप को बधाई तो दे ही देता हूँ इनका चहेता होने के लिए. :)
ReplyDeleteमिश्रा जी.... पार्टी पक्की देखो अब मुकरना नही, जिसे बुलाओ इस पार्टी पर उसे आने जाने का किराया भी देना...
ReplyDeleteलो जी......कौन कहता है की ब्लॉग से कमाई नही होती....... :D
ReplyDeleteअजी सर, हमे भी बिलियनपति बना चुके हैं ये लोग.. अब आपके पास आये हैं.. एक एक करके सभी के पास जा रहे हैं.. :)
ReplyDeleteभाई हम भी लाइन में लगे हैं ! हमको ज़रा देर से ख़बर लगी ,
ReplyDeleteकहीं हमारा हिस्सा इधर उधर नही हो जाए ! :)
ज्यादा मनौना ठीक नहीं है। जो दे रहा है लै लेव। काम आयेगा।
ReplyDeletemaja aa gaya!!
ReplyDeleteवाह,आनंद आ गया.एकदम सटीक लिखा है,लाटरी कथा..
ReplyDeleteलेकिन ज्ञान भइया की कविता तो दिमाग में चिपक गई.क्या लाजवाब लिखा है......
" सकल पदारथ एहि जग माही,
नर हेर फेर बिन पावत नाहीं! "
एकदम असली दोहा......
मेरे मेल बॉक्स जितना आया था सब है. सारा क्लेम कर लें क्या?
ReplyDelete