Thursday, September 25, 2008

सिंगुर ...माने उर में सींग

सूचना:

आज मेरे ब्लॉग के गेस्ट राईटर हैं रतीराम चौरसिया 'पानवाले'. देश, काल, समाज पर दृष्टि रखे रहते हैं. पान के साथ-साथ चूना भले लगायें, लेकिन हर मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करने से नहीं चूकते. आज सिंगुर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं.

आप पढिये.
.....................................................................................


उर में सींग घुस गया. उर का टुकड़ा-टुकड़ा हो गया. ऊ भी एक-दो नहीं, न जाने केतना. एतना कि कोई हिया गिरा आ कोई हुआं. सिंगुर में मनई आते-जाते रस्ता पर बचाकर चल रहा है सब. न जाने किसका उर का टुकड़ा किसका तलुआ तरे आ जाए.

पुराना मुख्यमंत्री का उर छोटा हो चुका था. मुख्यमंत्री बदला गया. पचीस साल में आक्सीजन का कमी से नया मुख्यमंत्री के उर का कंडीशन भी कोई बहुत अच्छा नहीं था. आकार छोटा हो गया था. उनका पार्टी वाला बोला सब कि उर बढ़ा लो. पचीस साल से हम लोगन का उर इतना छोटा हो गया है कि साँस रुकने का चांस है.

मुख्यमंत्री प्राणायाम वगैरह करके उर थोड़ा बड़ा किए. चार-पाँच साल में उका उर का आकार बढ़ा. आकार बढ़ गया तो लगा कि साँस का तकलीफ अब नहीं होगा. फिर भी डॉक्टर का दरकार तो होइबे करेगा. ऊ टाटा जी से बोले; "हमरा उर तो बड़ा हो गया है. तुम भी अपना उर बड़ा कर ल्यो त दोनों का उर एक साथ काम करे अऊर दुन्नो मिल के 'सिंग-उर' में कुछ करें."

टाटा तो जनमजात उर वाले. ऊ बोले; "हमरा उर त १९१० से बड़ा ही है. बड़ा आक्सीजन है हमरा उर में. बोलो त कुछ तुम लोगन का दे दें."

मुख्यमंत्री बोले; "ई भी पूछने का बात है? नेकी और पूछ-पूछ के?"

टाटा जी आक्सीजन लेकर आए. मुख्यमंत्री के लगा कि अब चिंता है नाही. अब आक्सीजन का कमी होगा नाही. अब त दस साल में इन लोगन के एतना आक्सीजन मिलेगा कि अगला पचास साल तक जियेंगे. पूरा बंगाले का उर आक्सीजन से भर जायेगा. उका पार्टीवाला सब भी उर फुलाए घूमने लगा.

किंतु 'बोंधुगोन' जे मनई सब पहले फेफड़ा से काम चलाता था, ऊका अब खाली उर से चलने से रहा. पाहिले ई लोग फेफड़ा फाड़कर चिल्लाता था. ई चिल्लाने वाला धरम अब ममता जी को ट्रान्सफर कर दिया त मुसीबत होइबे करेगा.

ई सी पी एम पार्टी वाला भूल गया सब कि बिधानचंद हों आ चाहे सिद्धार्थ शंकर, ई लोग केहू को छोड़ा था नाही. अब ई लोग भले ही भगवान पर विशबास न करे, बाकी होता एही है कि सबकुछ एहिं पर भोग के जाना पड़ता है. एही धरा पर.

जो ई लोग पहिले करता था सब, अब ऊ काम ममता जी उर आ फेफड़ा, दुन्नो लगाकर कर रही हैं. अऊर वोईसे भी, ममता जी त हैं बर्तमान में जीने वाली. पब्लिक सब भले ही कहे कि इलेक्शन में उनका हालत ख़राब हो जायेगा, लेकिन इलेक्शन त भाभिश्यत में होगा.

अभी त ममता जी सिंगुर का उर में सींग घुसा दिए हैं. अऊर ई सींग घुसाने से सब गड़बड़ा गया है. जो टरक सब खड़ा था छोटकी गाड़ी ले जाने के लिए ओही टरक सब में फैक्टरी का फोडन सब भर के निकल रहा है. कहाँ जायेगा उहो मालूम नहीं है.

ई एक सिंगुर न जाने केतना के उर में सींग घुसा दिया. का मुख्यमंत्री, का टाटा अऊर का सी पी एम पार्टी, सबका उर का टुकड़ा बिखरा पड़ा है सिंगुर में. आ जे लोग भारी-भारी कीमत देकर ज़मीन सब खरीद लिया था, ऊ लोगन का त सबकुछ बिखरा पड़ा देखा हम.

का कहें ई सब देख के त मन में एक ही बात आता है....कभी-कभी उर के हटा के दिमाग से काम लेना चाहिए.

15 comments:

  1. ससुरा चुना लगाता है की पान खूद हे खा जाता है, बहुते ही बुद्धीवाली बाते करता है, पनवाड़ी.

    ई इलायची वाली टिप्पणी उ'को थमा देना जी, साबासी के साथ.

    ReplyDelete
  2. ई एक सिंगुर न जाने केतना के उर में सींग घुसा दिया. का मुख्यमंत्री, का टाटा अऊर का सी पी एम पार्टी, सबका उर का टुकड़ा बिखरा पड़ा है सिंगुर में. आ जे लोग भारी-भारी कीमत देकर ज़मीन सब खरीद लिया था, ऊ लोगन का त सबकुछ बिखरा पड़ा देखा हम.

    बहुत सटीक लिखा आपने ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  3. भाई इ रतीरामजी तो बड़का प्रकांड राजनितिक तत्त्व चिन्तक हैं.इनको तो बस अपना पार्टनर बनालो.व्यंग और राजनीति दुनो चमक जायेगी.क्या जबरदस्त सोच रखते हैं,मान गए.
    इ अपनी गंवई भाषा पढ़ हमरा तो उर जुड़ा गया.रतिराम जी का उत्तम विचार /लेख पढ़वाते रहना.

    ReplyDelete
  4. सही कह रहे हो. सिंगुर ने बहुतों के उर में सींग घुसा दिया.
    अब तो सुन रहे हैं कि कर्णाटक से नैनो निकलेगी.
    रतीराम जी से भी गेस्ट पोस्ट लिखवाने लगे हो.
    अच्छा रहेगा अगर रतीराम का एक ब्लॉग खुलवा दो.

    ReplyDelete
  5. पुनश्च:
    रतीराम तुमसे अच्छा लिखते हैं. मघई पत्ता पान के लिए तो फेमस
    थे ही. अब लेखन के लिए भी फेमस हो जायेंगे.

    ReplyDelete
  6. चौरसिया त छा गए भइया !

    ReplyDelete
  7. वाह-वाह शिवकुमार मिश्र और रतीराम चौरसिया ’पानवाले’ का ब्लॉग बनाया जाये।

    ब्लॉग नाम भले ही थोड़ा लम्बा होगा पर ब्लॉग चलेगा बहुत! :-)

    ReplyDelete
  8. ई कोलकाता का तो का पनवाड़ी, का कबाड़ी, सब कोई बुद्धिजीवी ही लगता है. जय ज्योति जय बुद्ध.

    ReplyDelete
  9. शानदार, जानदार, धाँसू च फाँसू। बधाई हो ।

    ReplyDelete
  10. भाई लोग उर तो बड़ा कर लिए लेकिन शऊर वही रहा। ई हालत में उर में सींग होना ही था :)

    ReplyDelete
  11. आप ने रतीराम जी के साथ मिल कर बडा खुब सुरत चुना लगाया हे इस लेख मे बिलकुल चकाचक चमक रही हे.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  12. शीर्षकै लिख के पोस्ट कर देते हो जाता। धांसू :)

    ReplyDelete
  13. बंधू... रतिराम जी को हमारा दंडवत प्रणाम. एक बात साफ़ हो गई...रति राम जी बहुत अधिक समझदार हैं...बहुत खरी खरी बात बताई है उन्होंने...कभी हमारा कलकत्ता आना हुआ तो उनके हाथ के पान के साथ साथ उनके ज्ञान का सेवन भी किया जाएगा और अपने उर का क्लेश भी मिटाया जाएगा.
    नीरज

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय