Friday, September 26, 2008

रेडियो गाता रहा......

जानकार लोग बताते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है. साहित्य रुपी इस दर्पण में समाज अपनी तस्वीर देखता होगा. तस्वीर में ख़ुद को देखकर तकलीफ होती होगी इसीलिए साहित्य को समाज ने देखना ही बंद कर दिया. साहित्यकार कहते रह गए कि; "हम दर्पण लाये हैं, देख लो." लेकिन समाज कहाँ सुनने वाला? उसे मालूम था कि दिनों-दिन उसका चेहरा ख़तम होता जा रहा है. ऐसे में देखना उचित नहीं रहेगा. डर जाने का चांस रहता था.

उन दिनों के दर्पण भी ऐसे थे कि झूठ बोलना जानते नहीं थे. समाज को भी मालूम था कि ये विकट ईमानदार दर्पण हैं, झूठ नहीं बोलते. असली शीशे के बने थे. पीछे में सॉलिड सिल्वर कोटिंग. ऐसे में इसे देखेंगे तो तकलीफ नामक बुखार के शिकार हो जायेंगे.

साहित्यकार भी ढिंढोरा पीटते रहते थे. बताना नहीं भूलते कि वे ख़ुद ईमानदार हैं. समाज को लगता था कि ईमानदार साहित्यकार ईमानदार दर्पण लेकर आया होगा. इस दर्पण को घूस देकर हम इससे झूठ नहीं बुलवा सकते. अब ऐसे में ये दर्पण तो हमें सुंदर दिखाने से रहा. हटाओ, क्या मिलेगा देखने से? कौन अपना ख़तम होता चेहरा देखना चाहेगा? दर्पण की बिक्री बंद. साहित्य का साढ़े बारह बज गया.

बजेगा क्यों नहीं? नदी के द्वीप बनाने में रात-दिन एक करेंगे तो साढ़े बारह बजना तय.

वैसे साहित्य समाज का दर्पण है, ये बात पहले के जानकार बताते थे. बाद के जानकारों ने बताया कि अब भारत आगे निकल चुका है. अब सिनेमा समाज का दर्पण है. अब इतिहास गवाह है कि हर थ्योरी की काट भी पेश की जाती है. काट पेश न की जाए तो इतिहास का निर्माण नहीं हो सकेगा. इसी बात को ध्यान में रखकर बड़े ज्ञानियों और जानकारों ने बताया कि सिनेमा समाज का नहीं बल्कि समाज सिनेमा का दर्पण होता है. विकट कन्फ्यूजन. जानकारों का काम ही है कन्फ्यूजन बनाए रखना.

बाद में सिनेमा के गानों को समाज का दर्पण बनाने की कवायद शुरू हुई. मनोरंजन का साधन? आकाशवाणी. बिनाका गीतमाला. रात का खाना खाओ और रेडियो लेकर तकिया के पास रख लो. मनोरंजन होता रहेगा.

खटिया पर आकर जानकार जी बैठ गए. देश में भ्रष्टाचार की बात शुरू ही होती कि तीन हफ्ते से तीसरे पायदान पर बैठा गाना बज उठता; "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती. मेरे देश की धरती."

सुनने वाला भौचक्का! सोचता; "देश की धरती इतना सोना और हीरा-मोती उगल रही है तो वो जा कहाँ रहा है?' लेकिन किससे करे ये सवाल? अब ऐसे में कोई जानकार आदमी आ जावे तो उससे पूछ लेता; " अच्छा ई बताओ, ये देश की धरती इतना सोना, हीरा वगैरह उगल रही है तो ये कहाँ जा रहा है?"

जानकार के पास कोई जवाब नहीं. कुछ देर सोचने की एक्टिंग करता होगा और बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे कह देता होगा; "अरे सोना, हीरा वगैरह उगल रही है, यही क्या कम है? तुमको इस बात से क्या लेना-देना कि किसके पास जा रहा है. तुम तो यही सोचकर खुश रहो कि उगल रही है. आज जाने दो जिसके पास जा रहा है. कल तुम्हारा नंबर भी आएगा. रहीम ने ख़ुद कहा है कि; रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन के फेर...."

सवाल को दफना दिया? नहीं. डाऊट करने वाले इतनी जल्दी हार नहीं मानते. अगला सवाल दाग देता होगा; "अच्छा, ये गेंहूं की बड़ी किल्लत है. अमेरिका से जो गेहूं आया है, वो खाने लायक नहीं है. क्या होगा देश का?"

जानकार कुछ कहने की स्थिति में आने की कोशिश शुरू ही करता होगा कि रेडियो में दूसरे पायदान का गाना बज उठता होगा; 'मेरे देश में पवन चले पुरवाई...हो मेरे देश में.'

जानकार को सहारा मिल जाता होगा; "ले भैये गेहूं की चिंता छोड़ और इस बात से खुश हो जा कि तेरे देश में पुरवाई पवन चलती है. बाकी के देशों में पछुआ हवा धूम मचाती है. वे साले निकम्मे हैं. भ्रष्टाचारी हैं. पश्चिमी सभ्यता वाले. देख कि हम कितने भाग्यवान हैं जो हमारे देश में पुरवाई पवन चलती है. ये गेंहूं की चिंता छोड़ और इस पुरवाई पवन से काम चला. इसी को खा जा."

डाऊट करने वाले के पास एक और सवाल है. पूछना चाहता होगा कि लोगों के रहने के लिए मकान नहीं है. सरकार कुछ कर दे तो मकान मिल जाए. सोच रहा है कि जानकार से ये बात पूछे कि नहीं? अभी सोच ही रहा है कि रेडियो का रंगारंग कार्यक्रम चालू हो गया. गाना सुनाई दिया; 'जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा...' वगैरह-वगैरह.

डाऊट करने वाला हतप्रभ. मन में सवाल पूछ रहा है कि गुरु भारत देश में चिड़िया डाल-डाल पर बसेरा करती है. और बाकी के देशों में? वहां क्या चिड़िया के रहने के लिए दस मंजिला इमारत होती है?

ये वे दिन थे जब भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा रहा था. लेकिन देशवासी गाने सुनकर खुश थे. देश में पवन पुरवाई चलती थी और देश की धरती सोना वगैरह उगल रही थी. किसी को नहीं मालूम कि उगला हुआ इतना सोना वगैरह कौन दिशा में गमनरत है?

कोई अगर किसी दिशा की तरफ़ तर्जनी दिखा देता तो चार बोल उठते; "छि छि. ऐसा सोचा भी कैसे तुमने? जिस दिशा को तुमने इंगित किया है, उस दिशा में सारे ईमानदार लोगों के घर हैं. उनकी गिनती तो बड़े त्यागियों में होती है. तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसे त्यागियों को इस तरह से बदनाम करते? देशद्रोही कहीं के."

उसी समय रेडियो पर बज उठता होगा; 'है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ.........'

ऐसे ही रेडियो गाता रहा और हम ..........आज भी गा रहा है.

23 comments:

  1. BAHUT SAHI KAHA AAPNE.
    MAIN SAHMAT HOO.
    BAHUT UMDA LIKHA AAPNE.
    MAIN SAHMAT HOO.
    RADIO, SONA-HIRE, GEHU, PURVAAI,
    WAAH BAHUT KHUB.
    AANAND AAGYA.
    JAARI RAHE.

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  2. वाह.........सटीक बेहतरीन व्यंग्य है.बहुत बहुत बढ़िया.

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  3. ||अथः भारतव्यथा कथा||
    बदहाली का सुंदर चित्रण ...

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  4. भई हम तो कहेंगे ब्लॉग समाज का दर्पण है.

    लगता है चिट्ठा लिखाने का काम आउट सोर्स करते हुए पुरानिकजी के किसी विद्यार्थी को फोड़ लिया है आपने. :)

    मस्त लिखा है.

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  5. बढ़िया व्यंग कसा है आपने इस रचना के द्वारा ..

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  6. "ले भैये गेहूं की चिंता छोड़ और इस बात से खुश हो जा कि तेरे देश में पुरवाई पवन चलती है.
    बहुत मस्त लिखा ! आनंद अ गया ! धन्यवाद !

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  7. अधूरी पोस्ट!
    दर्पण दिखाने और सत्य बताने का थोक कॉन्ट्रेक्ट आजकल साहित्य/सनीमा के पास नहीं; मीडिया के पास है, और उस कॉण्ट्रेक्ट की चर्चा तक नहीं?!
    यह गाने-फाने से कुछ प्रूव नहीं होता। दकौन बाजपेई और फलाने सरदेसाई का जिक्र होना चाहिये। जरूर से; हां!
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    खैर; बिसाइड्स वक्र टिप्पणी; यह बहुत बढ़िया लिखा है। मुग्ध कर देने वाला सटायर।

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  8. कैसी-कैसी विडम्बना रेखांकित कर देते हैं आप! ...कमाल है।

    वैसे देशभक्ति के गीतों से भावनात्मक छेड़छाड़ करना बहुतों की खेती चौपट कर सकता है। गुस्सा झेलने के लिए तैयार हैं नऽ...?

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  9. बाकी बातें तो अलग हैं, पर रेडियो सचमुच गा रहा है । किसी को अच्‍छा लगे तो ठीक नहीं लगे तो जै राम जी की ।

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  10. बंधू... हमारे नाम राशी के एक प्रसिद्द कवि ने बरसों पहले दर्पण की दशा को इंगित करते हुए नायिका के लिए एक गीत लिखा था की "देखती ही रहो आज दर्पण ना तुम प्यार का ये मुहूर्त निकल जाएगा..." उन्हें मालूम था की भारत में जो दर्पण बन रहे हैं वो छवि को ख़राब दिखने वाले ही हैं , अगर नायिका उसे देख कर अपनी छवि सुधारने में वक्त जाया करेगी तो प्यार के मुहूर्त ने तो निकल ही जाना है...
    दूसरी बात: फिल्मी गाने हमेशा ग़लत बात ही बताते हैं...जानते हैं की फ़िल्म "सिकंदर" का गीत जहाँ डाल डाल पर सोने की चिडिया करती है...".वाला गाना राजा पोरस ने फ़िल्म में गाया और इसीलिए वो सिकंदर से हार गया...ग़लत गीत गाने का ये ही नतीजा होता है आप सत्य से विमुख हो स्वप्न लोक में विचारने लग जायें तो येही होता है... आप भी पोस्ट में सत्य ही लिखें हैं और सत्य के सिवा कुछ नहीं लिखे हैं...इसलिए आप की ही हर तरफ़ जय जय कार हो रही है.
    नीरज

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  11. क्या केने क्या केने

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  12. वैसे देश में पुरवाई पवन ही चलता रहे तो गेहूं की चिंता ही नहीं गेहूं भी छोड़ना पड़ेगा। पछिया हवा में ही गेहूं की बालियां थ्रेसिंग लायक होती हैं :)

    बढि़या व्‍यंग्‍य लिखा है आपने।

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  13. युनुस जी से सहमत.. गानों को जो कहना है कह लिजिये, मगर रेडियो पर इलजाम ना आने पाये.. और वैसे भी सेक्सी-सेक्सी वाले गानों कि लिस्ट छूट गई है आपसे.. कुछ उस पर भी लिखिये.. :D

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  14. साधा हुआ सटीक व्यंग है भाई हम भी सोचने को मजबूर हो गए की आख़िर सोना किस दिशा में गमनरत है

    वीनस केसरी

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  15. क्या बात हे एक सटीक व्यंग , बिलकुल सही...
    सुना है
    अब रेडियो वालो ने भी
    हेराफ़ेरी का काम
    शुरु कर दिया हे.
    तभी तो
    युनुस भाई ने अभी
    घोषित किया हे
    यह गीत हमने
    हेराफ़ेरी से लिया हे.
    धन्यवाद

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  16. आपने जो भी लिखा वो शत-प्रतिशत सच है,मेरे देश की धरती …………………। छत्तीसगढ मे हीरे की खदानों को लेने के लिये डिबीय्रर्स जैसी कंपनिया मर रही है मगर आठ सालों मे सिवाय तस्करी के वहा कुछ नही हो रहा है,यहां सोना भी है,और कोयले से लेकर यूरेनियम तक है,मगर अफ़्सोस आज ये देश मे मज़दूरों कि सब से बडी मण्डी बन गयी है,आपने सटीक लिखा आपको नमन करता हूं

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  17. Too much information होगी तो कमफ्यूजन तो होग ही । अब तय करलें आप कि साहित्य, सनीमा, मीडिया या ब्लॉग क्या है समाज का दर्पण ?

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  18. bahut sahi ji.. bahut sahi..

    pata nahi aur kab tak chalega ye radio.?

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  19. आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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    सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


    शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
    (हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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  20. Bollywood & Cricket are too banes of the Indian Soceity. Minus both of them, India can become Bharat in record time

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  21. आज ऐसे रेडियो व्यक्तिगत चॉइस पर ही उपलब्ध हैं, अगर कोई चाहे तो अपनी मर्जी के चैनल सुन सकता है।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय