पहले देश में दो तरह के लोग रहते थे. अमीर लोग और गरीब लोग. अब भी देश में दो तरह के ही लोग रहते हैं. लेकिन थोड़ा बदलाव है. अब निडर लोग और डरे हुए लोग हैं. जैसे अमीर कम और गरीब ज्यादा थे वैसे ही निडर कम और डरे हुए ज्यादा हैं. अनुपात लगभग वही है. निडर लोग डरे लोगों को डरा रहे हैं और डरे हुए लोग डर रहे हैं. जो निडर हैं, वे परम निडरता की तरफ़ बढ़ रहे हैं. और जो डरे हुए हैं वे 'डरता' की नई ऊंचाइयां छू रहे हैं.
पिछले दिनों जिस रफ़्तार से बमबाजी और चर्च पर हमले हुए हैं, मैं इन निडर लोगों की कर्मठता पर दंग हूँ.
कभी-कभी लगता है जैसे बम फोड़ने वाले अपने उस्ताद के पास जाकर कहते होंगे; "बाज़ार जा रहा था टूथब्रश लेने. मैंने सोचा दो-चार बम लेता जाऊं. लगे हाथ फोड़ने का काम भी हो जायेगा. शाम का भी वक्त है सो बाज़ार में पब्लिक की किल्लत भी नहीं रहेगी. आप क्या कहते हैं?"
उस्ताद उनकी बात सुनकर खुश हो जाता होगा. कहता होगा; "कितना ध्यान रखते हो तुम अपने काम का. कर्मठता इसी को कहते हैं. ठीक है उधर जा रहे हो तो फोड़ ही दो. और सुनो, इस बार थोड़ा भीड़ वाली जगह फोड़ना, पिछली बार केवल दस मरे थे. इस बार कम से कम पन्द्रह तो मरने ही चाहिए."
वैसा ही हाल उनका है जो चर्च वगैरह पर हमले कर रहे हैं. दोपहर का खाना खाकर बैठे तो याद आया कि पास के गांव में चर्च पर अभी तक हमला नहीं हुआ है. अपने उस्ताद के पास ये भी चले जाते होंगे. कहते होंगे; " अभी खाना खाकर बैठा था. याद आया कि पास वाले गांव के चर्च पर अभी तक हमला नहीं हुआ है. आप कहें तो ये काम अभी निबटा दूँ. वैसे भी शाम को पीने का प्रोग्राम है. ऐसे में काम ठीक से न हो पायेगा."
इनका उस्ताद भी इनकी कर्मठता देखकर परम प्रसन्न होता होगा. बीस-पचीस लोगों को साथ भेज देता होगा. ये कहते हुए कि जाओ और तोड़-फोड़ कर के आ जाओ. काल करे सो आज कर आज करे सो अब की तर्ज पर.
हाल ये हो गया है कि घर के लोग अम्मा से साफ़-साफ़ कहते हुए बरामद हो रहे हैं; "अम्मा, शाम को सब्जी लाने बाज़ार नहीं जाऊँगा. अब तो सुबह ही मार्निंग वाक से लौटते हुए सब्जी ला दूँगा. शाम को सब्जी लाने के लिए बाज़ार जाना ठीक नहीं. पता चला लेने गए थे सब्जी और मिला बम."
अम्मा भी चिंतित हैं. ब्रत-उपवास के बाद मन्दिर जाना है. बम तो वहां भी मिल सकता है. बम की सप्लाई न भी रही तो कोई भगदड़ ही करवा देगा. बम फोड़ने से पचीस-पचास मरते हैं लेकिन भगदड़ करवा देने से कम से कम सौ का मरना पक्का रहता है.
साम्प्रदायिकता से जनता चिंतित है. नेता चिंतित होने का ढोंग कर रहे हैं. प्रधानमंत्री जी से फ्रांस के राष्ट्रपति ने कह दिया; "आप अपने देश में ईसाईयों के ऊपर हो रहे हमले रोकिये."
प्रधानमंत्री बेचारे क्या करते? देश में रहते तो ये कहकर निकल लेते कि कानून-व्यवस्था राज्य का मामला है. लेकिन सरकोजी बाबू को केन्द्र और राज्य के बारे में क्या बताते? कुछ नहीं. सो बोल दिए;" आप चिंता न करें. हम वापस जाकर ही रोकते हैं हमलों को."
वापस आकर क्या तीर मारेंगे? अब तो सोचने से लगता है कि इनके तरकश में तीर हैं! या पूरा तरकश ही कंधे से गायब है. मैं सोचने लगा कि वे वापस आकर कैसे रोकेंगे साम्प्रदायिकता को? शायद ऐसे;
प्रधानमन्त्री वापस आकर साम्प्रदायिकता को रोकने वाली कैबिनेट कमिटी की मीटिंग बुलायेंगे. गृहमंत्री, गृह राज्य मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, कानून मंत्री, माईनारिटी मामलों के मंत्री, मेजारिटी मामलों के मंत्री, जरूरी मंत्री, गैरजरूरी मंत्री वगैरह-वगैरह, एक जगह बैठेंगे.
इस तरह से बैठेंगे कि उसे मीटिंग की संज्ञा दी जा सके. मतलब ये कि बड़ी सी मेज होगी. मेज पर मिनरल वाटर की बोतलें सजी होंगी. मंत्रियों को चिन्हित करने वाली पट्टियां होंगी. दो मंत्री गंभीर दिखेंगे. चार हँसते हुए दिखेंगे. प्रधानमंत्री हर दो मिनट पर अपने पास बैठे मंत्री से कान में कुछ कहते हुए दिखेंगे. मतलब ये कि पूरा माहौल ही मीटिंगजनक रहेगा.
बातचीत शुरू हो गई है. प्रधानमंत्री बताएँगे; "साम्प्रदायिकता पर चिंतित होने का समय आ गया है."
कोई मंत्री उनकी इस बात का अनुमोदन करेगा. मेजारिटी मामलों के मंत्री बोलेंगे "बहुत बड़ी समस्या हो गई है, साम्प्रदायिकता भी. नहीं?"
"वो तो हो ही गई है. और फिर अब तो फ्रांस के राष्ट्रपति ने भी कह दिया है. इसका मतलब समस्या बड़ी ही है"; माईनारिटी मामलों के मंत्री कहेंगे.
इनलोगों की बातें सुनकर गृहमंत्री भी कह उठेंगे; "मेरा तो मानना है कि भारत की विविधता में ही एकता है. लेकिन ये विविधता...."
अभी वे बोल ही रहे होंगे कि माईनारिटी मामलों के मंत्री बोलेंगे; "हमें समस्या की जड़ तक जाने की आवश्यकता है. हमें ये पता लगाने की ज़रूरत है कि ऐसा क्यों है? हमारे नौजवान इस राह पर क्यों चल पड़े हैं? हमें ये देखना होगा कि इसके पीछे सामाजिक कारण क्या हैं. हमारा मानना है कि..."
उनकी बात सुनकर प्रधानमंत्री उन्हें बीच में ही रोक देंगे. ये कहते हुए कि; "ये सारी बातें आपको टीवी के पैनल डिस्कशन में बोलने के लिए कही गई हैं. ये कैबिनेट कमिटी है. आप ये सारी बातें यहाँ तो मत कीजिये."
माईनारिटी मामलों के मंत्री के मुख पर 'सॉरी-भाव' उभर आयेंगे.
कुछ देर बाद मीटिंग बर्खास्त. बाहर आने पर पत्रकार पूछेंगे तो जवाब मिलेगा; " कैबिनेट कमिटी ने फैसला किया है कि साम्प्रदायिकता को रोकने पर सुझावों के लिए एक कमीशन बैठाया जाय. हमने एक निहायत ही बृद्ध और अनुभवी सांसद का सेलेक्शन कर लिया है. सांसद जी की अध्यक्षता में कमीशन कल से ही काम शुरू कर देगा."
दस दिन बीत जायेंगे. कैबिनेट कमिटी की मीटिंग फिर से होगी. पूरी कमिटी ही चिंतित है. चिंता इस बात की है कि कमीशन ने दस दिन के अन्दर अपने सुझाव दे दिए हैं. कहाँ कैबिनेट ने सोचा था कि अब कमीशन बैठा दिया है तो कम से कम एक साल की छुट्टी. लेकिन ये कमीशन वाले तो बड़े कर्मठ निकले जो इनलोगों ने दस दिन में ही रिपोर्ट दे दिया.
कमीशन के सुझाव का कागज़ खोला जायेगा. क्या सुझाव दिया है कमीशन ने? कागज़ खोला गया. पूरे पचास पेज की रिपोर्ट है. रिपोर्ट में लिखे गए मुख्य सुझाव होंगे;
"कमीशन ने साम्प्रदायिकता को रोकने के तरीकों पर अध्ययन के लिए समग्र चिंतन किया. तरह-तरह से मामले पर सोचने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि देश में साम्प्रदायिकता रोकने के उद्देश्य से हाल के वर्षों में नए नारे नहीं लिखे गए. यही कारण है कि साम्प्रदायिकता की समस्या अनवरत फैलती जा रही है. हमारे देश में साम्प्रदायिकता रोकने के लिए लिखा गया नारा
हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई
आपस में हैं भाई-भाई
अब निहायत ही पुराना हो गया है. हम सराहना करते हैं उस कवि की और उस सरकार की जिसने ये नारा लिखवाया था. लेकिन हमसे भूल ये हुई कि हम नए नारे लिखने में असफल रहे. अगर नए नारे लिख लिए गए होते तो साम्प्रदायिकता की समस्या को रोक लिया जाता. हम इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे हैं कि देश की समस्याओं का समाधान नारे में ढूढने की हमारी संस्कृति धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है.
अगर हम अध्ययन करें तो पायेंगे कि अनुशासन ही देश को महान बनाता है नामक नारा देकर सत्तर के दशक में अनुशासन की पुनर्स्थापना हुई थी. गरीबी हटाओ नामक नारा देकर गरीबी हटाने का कार्यक्रम शुरू किया गया था. ऐसे में सरकार को हम सुझाव देते हैं कि नए-नए नारे लिखवाये जाँय. साम्प्रदायिकता रोकने का इससे बढ़िया तरीका हमें दिखाई नहीं देता.
हम तो यह भी सुझाव देते हैं कि सरकार नारे लिखने के लिए एक नारा मंत्रालय की स्थापना कर ले. इस मंत्रालय का पूरा काम दो मंत्रियों के जिम्मे सौंप दिया जाना चाहिए. नारा मंत्री और नारा राज्य मंत्री. ये मंत्री तमाम अलग-अलग मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करें. जिस मंत्री को अपने मंत्रालय की समस्याओं का समाधान करना हो, वो सीधा नारा मंत्रालय से संपर्क साधेगा. नारा मंत्रालय समस्याओं के समाधान के लिए उचित नारे लिखवाकर देगा. हर महीने लिखे गए नारे और समस्याओं के निदान का एक रिकॉर्ड सीधा प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जायेगा.
ऐसा करने से देश की समस्याओं का निदान त्वरित गति से होगा. अगर नारा मंत्रालय जैसे और मंत्रालयों की स्थापना की गई तो सरकार उनलोगों को दिए गए वादों को निभा सकेगी जिनसे विश्वास मत प्राप्ति कार्यक्रम में मिनिस्टर बनने के वादे किए गए थे........................."
देशवासियों की चिंता थोडी कम होगी....आख़िर नारा मंत्रालय जो खुल जायेगा.
यहाँ सरकार गंभीर समस्या में धंसी है आपको व्यंग्य सूझ रहा है? जहाँ तहां बम पर बम फूट रहे हैं. सर फूट रहे हैं. न्यूक्लीयर डील को बचाने के लिए अपनी पूरी इज्जत दांव पर लगानी पडी. वामपंथियों ने एक झटके में पतलून से नाड़ा खींच लिया. वो तो गनीमत है मुलायम और अमर सिंह ने सही वक्त पर पतलून थाम ली वरना सरे आम डॉ अम्बर कुमार हो गए होते. तो इसे भीषण वक्त में पाटिल साहब से कुछ सहानुभूति जताने वाला लेख लिखिए. आप तो उनकी उतारने पर तुले हैं.
ReplyDeleteनारा नहीं नाड़ा मंत्रालय चाहिए अभी.
नारा\मंत्रालय से काम जमेगा नहीं। फिर समस्या यह होगी कि नये और प्रभावी नारे तुरत-फुरत लागू क्यों नहीं किये जा रहे! जवाबदेही सरकार/मन्त्रिमण्डल की ही बनी रहेगी।
ReplyDeleteएक नारा सुझाऊ कमीशन बिठा दिया जाये जिसकी समयावधि २०० दिन की हो और जो पूरी छान-बीन के बाद ही रिपोर्ट दे - १८० दिन से पहले नहीं।
समस्या सरक जायेगी।
"इनके तरकश में तीर हैं! या पूरा तरकश ही कंधे से गायब है..."
ReplyDeleteइनका तो पता नही पर आपके तरकश में व्यंग्य के कई असरदार तीर है जो कभी निशाने से नही चूकते.. बहुत शै लिखा है आपने.. लगे हाथ एक दो नारा ही सूझा देते जी. क्या पता अगले मंत्रिमंडल में आप भी नज़र आ जाते हमे..
एक किस्म ओर होती है
ReplyDeleteउस्ताद आज क्या चलायेगे ?सुबह से कोई बम नही फटा ?किसी ने किसी का चुम्मा नही लिया ?चुटकुले सुनाने वाले बिग बॉस में चले गए है ?
उस्ताद- बेटे चिंता मत करो अगर कोई बम शाम तक नही फूटा तो हम कहेगे कल वाला बम था ही नही ,फ़िर देखना सारे आपस में लड़ मरेगे ,एक आध मानवाधिकार वालो का भी इंटरव्यू ले लेना आप महान हो उस्ताद
जबरा व्यंग्य किया है.
ReplyDeleteनारा मंत्रालय के बाद "गर्जना" मंत्रालय भी बनेगा, जहाँ सुबह-शाम गरजाया जायेगा, 1)"हम आतंकवाद को कुचल कर रहेंगे" 2) आतंकवादियों को बख्शा नहीं जायेगा, 3) कानून-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया जायेगा, आदि-आदि…
ReplyDeleteनेट पर टहल रहा था तो पोस्ट दिख गई सोचा टिपियाते चलें। नारा मंत्रालय के लिये कुछ नारा-वारा भी सुझाना चाहिये था। हो सकता है आपै को नारा मंत्री चुन लिया जाता!
ReplyDeleteक्यूँ करते हो उनको नंगा
ReplyDeleteजिनके कारण भड़का दंगा.
--गजब का करारा आईटम है मगर यह भी सच है कि नारे तो सजेस्ट करना चाहिये थे. एक नारा कॉम्पटिसन धरवा दो ब्लॉगरएस में-काफी जमा हो जायेंगे.
गजब का लेखन है आपका ! व्यंग हो तो ऐसा ! पर नारा की कमी अखर रही है ! आख़िर आपसे इसकी
ReplyDeleteतो उम्मीद है की एक ठो नारा तो देते ! वैसे कम्पीटीसन का आइडिया भी बुरा नही है !
मिश्रा जी .....आपके कलकत्ते में तो सुना है इतनी हड़ताल होती है की बस तख्तिया बदलने की जरुरत पड़ती होगी लिखने वालो को .कि आज किसका बंद है ?
ReplyDeleteवैसे सच कहूँ मन अशांत है.
nice.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेख लिखा हे आप ने , लेकिन अभी तक किसी भाई ने नया नारा नही दिया.
ReplyDeleteधन्यवाद
ऐसी कर्मठता पर कौन न मर जाए.....लेकिन हाय क्या बतायें तोडू-फोडू सामान, सीसा-कील, गोला-बारूद इतना महंगा हो गया है कि नाक में दम हो गया है बम बनाते-बनाते.....अभी पीछे वाली गली में देखा दो लडके कंचे खेलते बतिया रहे थे.....साले निशाना ऐसा लगा जैसा उस दिन गली में बम लगाया था....जहाँ बम रख वो तो साफ हो ही.....अगल बगल के दस बारह अवैध मकान भी चपेट में आ जायं..... Atleast लागत तो वसूल हो बम बनाने की ।
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य ।
आप ने इतने सारे विषयों पर बहुत कुशलता से अपनी कलम एक ही पोस्ट में चला दी है की समझ नहीं आ रहा किस विषय पर कमेन्ट करूँ...इसलिए सिर्फ़ "बेहतरीन पोस्ट...बहुत बढ़िया...शानदार" लिख के छोड़ देता हूँ...
ReplyDeleteनीरज
SAHI LIKHA HAI.
ReplyDeleteSAMEER JI KI SALAH MANKAR EK NARA PRATIYOGITA AYOJIT KARWA LO. KYA PATA KAL TUMHI NARA MANTRI BAN JAO. TAB NAARE KAM AYENGE.
नारा-नारा सब करें, नारा लिखे न कोय।
ReplyDeleteलाज छोड़ नारा लिखे,सब काहें को सोय॥
सब काहें को सोय, देश की चिन्ता कीजै।
संकट कटै-मिटै, ऐसा नारा दे दीजै॥
शिवकुमार ने यहाँ रास्ता ग़जब निकारा।
ब्लॉगर निकल पड़े देखो खोजन को नारा॥
वाह वाह वाह.......बहुत बहुत जबरदस्त,करारा,खरा, उच्चस्तरीय अद्भुद व्यंग्य.
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