नेता जी कह रहे थे; "ये समय सरकार पर उंगली उठाने का नहीं है."
किसके ऊपर उंगली उठाएं? सूर्य पर उंगली उठा दें? या फिर वृहस्पति पर उठा दें कि उसकी चाल ठीक नहीं है इसीलिए देश में आतंकवादी घटनाएं होती हैं. या फिर शनि की महादशा ठीक नहीं है.
आप ही बताएं. आप कहें तो ग्लोबल वार्मिंग को दोषी करार दे दें. आप कहें तो सुनामी को दोष दे दें. आप बता दीजिये. आप जिसका नाम लेंगे, हम उसी को दोषी मान लेंगे.
आप ये नहीं बताते तो हम क्या करें? हम तो आपकी सरकार को ही दोष देंगे. और फिर सरकार के ऊपर उंगली क्यों नहीं उठाएं? हमसे टैक्स कौन लेता है? बस्तर के आदिवासी? हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसपर है? नेपाल की सरकार पर?
फिर बोले; "हमें एकता बनाये रखनी चाहिए."
प्रभो, आपको क्या लगता है? जनता आपसे कम समझदार है? आपकी कृपा से पढ़-लिख भले ही न पाई हो, लेकिन समझदारी में आपसे बहुत आगे है. आप जनता को एक रहने की अपील करेंगे? आप!
आतंकवाद से लड़ने के लिए आपका भरोसा सेमिनार आयोजित करने पर ज्यादा है. मीडिया का भरोसा अच्छी-अच्छी हेडलाइन पर है. बुद्धिजीवी का भरोसा नोस्टैल्जिक होने पर है. पन्द्रह साल से इसी मुंबई पर न जाने कितने आक्रमण हुए. इन आक्रमणों का मुकाबला हम कविता लिखकर कर रहे हैं.
मुंबई तुम्हारे जज्बे को सलाम
मुंबईकर ने आतंकवाद को दिखाया ठेंगा, दूसरे दिन ही काम पर निकले
वी सैल्यूट टू द स्पिरिट ऑफ़ मुंबईकर
प्रभो, आपको ये बताने के लिए हावर्ड से प्रोफेसर आयेंगे कि; "आम आदमी घर से न निकले तो उसकी रोटी का जुगाड़ नहीं हो पायेगा."
आम आदमी दूसरे दिन ही सड़क पर निकल जाए तो आप उसके स्पिरिट को सलाम मारते हुए आर्टिकिल लिखना शुरू कर देते है.
इतना सब कुछ हो जाने के बाद प्रधानमंत्री कहते हैं कि; "हम आतंकवाद के सामने नहीं झुकेंगे."
कईसी बातां करते मियां? इत्तो सालां से किसके सामने झुकते चलते?
आप जीतने की बात करते हैं? तो जीत तो आतंकवादी रहे हैं. वे जो चाहते हैं, कर लेते हैं. आपके देश की तथाकथित आर्थिक राजधानी को बंद करवा दिया. आपका शेयर बाज़ार (वही नौ प्रतिशत जीडीपी वाला) को बंद करवा दिया. आपके शहर को ठप करवा दिया. और आप हैं कि अभी भी कह रहे हैं कि आप आतंकवाद से लड़ाई जीतेंगे.
इतनी पढ़ाई-लिखाई करने के बाद नेता बनने से दिमाग इस तरह काम नहीं करता, ये नहीं मालूम था हमें. क्या अब दिमाग इतना कुंद हो गया है कि साधारण सी बात के लिए भी सोचने की शक्ति जाती रही?
आपके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्वीकार करते हैं कि; "देश के शेयर बाज़ार में आतंकवादियों का पैसा लगा है."...कि; "सेना में आतंकवादी घुस चुके हैं"...कि; "कराची में आतंकवादियों को मैरीटाइम ट्रेनिंग मिल रही है."...कि; "आसाम के आतंकवादियों की पढ़ाई का काम चीन में चल रहा है."
कि; "हमें आतंकवाद से लड़ने के लिए विशेष कानून की ज़रूरत नहीं है."
कैसे लोगों को आपने इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया है, प्रभो? ये आदमी ये भी मानता है कि आतंकवाद से बड़ा खतरा है लेकिन साथ में ये बताना नहीं भूलता कि विशेष कानून की ज़रूरत नहीं है.
अभी जो कानून हैं, उनसे आप बैंक घोटाला करने वाले को तो सज़ा दिला नहीं पाते, आतंकवादी को कैसे दिलाएंगे?
कहीं ऐसा तो नहीं कि न्यूक्लीयर डील पास करवाकर आश्वस्त हो गए. ये सोचते हुए कि; "अब आतंकवाद से देश को खतरा नहीं है?"...या फिर चंद्रयान भेजकर निश्चिंत हो गए कि; "अब स्साला आतंकवादी बच नहीं सकता. अब हमारे पास चंद्रयान है."...या फिर ये सोचते रहे कि; " आतंकवादी हमारा क्या बिगाड़ लेगा, हमारे पास तो अमर सिंह जी हैं?"
किस बात से 'गुमानित' हुए जा रहे हैं?
आप सबकुछ से सीक्योर्ड होने की एक्टिंग कितने दिन करेंगे? आपकी क्रेडिबिलिटी का हाल आपको मालूम है? कैसे मालूम पड़ेगा? आपकी इंटेलिजेंस का तो बारह बजा हुआ है.
चलिए हमी सुना देते है. सुनिए;
कल दो लोग फ़ोन पर बात कर रहे थे. एक ने कहा; "एक बार कमांडोज अपनी कार्यवाई ख़त्म कर दें तो सरकार को चाहिए कि पूरे मुंबई शहर का 'काम्बिंग आपरेशन' करवाए."
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई; "गृहमंत्री तो हमेशा ही काम्बिंग करता रहता है. सुना है दो-दो कंघी लेकर चलता है."
अपने गृहमंत्री को शेरवानी और कंघीबाजी से आगे भी सोचने के लिए कहिये. आ नहीं, त ई 'साईनिंग इंडिया' का साइन कैसे लुप्त हो जायेगा, आपको पता भी नहीं चलेगा.
दरअसल मामला ये है
ReplyDeleteहमारे शिवराज पाटिल साहब के पिताजी अपनी पत्री यानी कि शिवराज पाटिल साहब की मां साहिबा को गृहमंत्री कह कर पुकारते थे. हमारे शिवराज पाटिल साहब देखा करते थे कि मां साब दिन में दो चार बार कपड़े बदल लेती है, कंघा करती रहती हैं सो उन्होंने गृहमंत्री होने के मतलब यही समझे हैं.
आलोक तोमर कह रहे हैं कि ये उनका आखिरी कलंक है. काश ये उनका आखरी कलंक ही साबित हो...
गुमान पर गहरी चोट लगी है भैया, और चोट खा कर सिर्फ मूर्ख ही नहीं सम्भलता.
ReplyDeleteउन्होंने भारत को जंग में हरा ही दिया
ReplyDeleteअपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी...
मैं क्या कहु,, सब कुछ तो आपने कह दिया..
ReplyDeleteमजा आ गया भाई साहब, सन्तुलित शब्दों में पानी में जूता भिगोकर मारना इसे कहते हैं… यदि पाटिल साहब इसे पढ़ लें तो पहली बार हेडलाइन बनेगी "भारत के गृहमंत्री ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली…"
ReplyDeleteमतलब यह कि चाहे जो (चौपट) हो, कंघे का बाजार चमकेगा। :)
ReplyDeleteइन कायर हमलों का सख्त जबाब देना ही होगा.. आपस में लडते रहने से कुछ नहीं होगा...
ReplyDeleteबेहद विचारोत्तेजक लेख
ReplyDeleteकितने ही जूते भिगोकर मार लीजिये या सूखे मार लीजिये , पाटिल साहब आत्महत्या नही करने वाले ! आख़िर नेताओं के भी तो कुछ उसूल होते हैं की नही ?
ReplyDeleteआंखे मुंह कान बन्द कर लो, आंख मूंद कर वोट डालो, धर्मनिरपेक्षता की जय बोलो.
ReplyDeleteआपने कभी सोचा है की अमेरिका पे दुबारा हमला करने की हिम्मत क्यों नही हुई इनकी ?अगर सिर्फ़ वही करे जो कल मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा है तो काफ़ी है.....अगर करे तो....
ReplyDeleteफेडरल एजेंसी जिसका काम सिर्फ़ आतंकवादी गतिविधियों को देखना ....टेक्निकली सक्षम लोगो को साथ लाना .रक्षा विशेषग से जुड़े महतवपूर्ण व्यक्तियों को इकठा करना ....ओर उन्हें जिम्मेदारी बांटना ....सिर्फ़ प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करना ,उनके काम में कोई अड़चन न डाले कोई नेता ,कोई दल .......
कानून में बदलाव ओर सख्ती की जरुरत .....
किसी नेता ,दल या कोई धार्मिक संघठन अगर कही किसी रूप में आतंकवादियों के समर्थन में कोई ब्यान जारीकर्ता है या गतिविधियों में सलंगन पाया जाए उसे फ़ौरन निरस्त करा जाए ,उस राजनैतिक पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए .उनके साथ देश के दुश्मनों सा बर्ताव किया जाये .......इस वाट हम देशवासियों को संयम एकजुटता ओर अपने गुस्से को बरक्ररार रखना है .इस घटना को भूलना नही है....ताकि आम जनता एकजुट होकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाये ओर शासन में बैठे लोगो को भी जिम्मेदारी याद दिलाये ....उम्मीद करता हूँ की अब सब नपुंसक नेता अपने दडबो से बाहर निकल कर अपनी जबान बंद रखेगे ....
इन मोटी खाल वालों को कोई असर नही होने वाला।वैसे जूते अच्छे मारे हैं।
ReplyDeleteदिमाग शून्य हो चला है ! क्या कहें.
ReplyDeleteजिस आदमी को एक लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के काबिल नहीं समझा जनता ने, उसी को विदेशियों ने जबरन गृहमन्त्री मनोनीत कर दिया . कोई हिसाब किताब ही नहीं है . उसकी तो अम्मा की सरकार है . उसकी जबाबदेही जनता के प्रति नहीं अपनी अम्मा के प्रति है .कंघी नहीं करें तो क्यों ?
ReplyDeleteहम बहुत गुस्से में हूँ...जो हो रहा है उसपर...आप पर नहीं...इसलिए टिपिया नहीं सकेंगे....ताली बजा सकते हैं जो आप लिखे हैं उसपर...सो बजा रहे हैं...( हम लोग अब सिर्फ़ ताली बजाने वाले ही तो रह गए हैं.....)
ReplyDeleteनीरज
यह धार सही है।
ReplyDeleteबहुत ही सधे हुये शव्दो मै आप ने, अच्छी अच्छी सुनी, शुकर भगवान का...कि यह...
ReplyDeleteइन की बात इन के मुख से ही अच्छी लगती है,आलोक तोमर कह रहे हैं कि ये उनका आखिरी कलंक है. काश ये उनका आखरी कलंक ही साबित हो...अमीन
यदि पाटिल साहब इसे पढ़ लें तो पहली बार हेडलाइन बनेगी "भारत के गृहमंत्री ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली…" अरे नही कभी बेशर्म भी ऎसा करते है, ओर शर्म तो इज्जत दार लोगो का काम है.
सही कह रहे हैं । यह समय उंगली उठाने का नहीं है दोनों हाथ उठा देने का है !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
हमारे कांग्रेसी गांधीवादी हैं - वे गांधीजी के तीन बंदरों में आस्था रखते हैं जो आतंकवाद पर मुंह बंद् रखते हैं, आतंकवाद उन्हें दिखाई नहीं देता और आतंकवाद के धमाके उन्हें सुनाई नहीं देते।
ReplyDelete@ सुरेश भाई:
ReplyDeleteयदि पाटिल साहब इसे पढ़ लें तो पहली बार हेडलाइन बनेगी "भारत के गृहमंत्री ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली…"
--किस गुमान में हैं आप. आपको लगता है कि उनमें कुछ भी शर्म बाकी है.
॒शिव भाई,
हर प्रश्न जायज है और इनमें से एक का भी जबाब इस सरकार से न देते बनेगा.
---अति दुखद स्थितियाँ!!!!
गुस्से से लाल-पीले है हम भी !! हम तो खुले आम खने को तैय्यार है कि -ना तो इस ईटली चालीसा पढने वाली इस सरकार मे दम है ना इस सरदार मे दम है और पाटील को हम नालायकी पुरस्कार मे अव्वल नंबर देते है !!
ReplyDeleteताजे ज़ख्मों को सहलाता सा है यह आलेख अतः अच्छा कहना ही पडे़गा।मुझे लगता है समस्या का केंद्र कहीं और है।क्या आपको लगता है कि प्र०म०मनमोहनसिंह कोई स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं?नहीं!!तो शिवराज पाटिल की क्या औकात?सत्ता की चाभी राजमाता के पास है।कैबिनेट के सारे मंत्री प्रधानमंत्री नहीं सोनियागांधी से आशीर्वाद पाये हुए हैं और रिपोर्टिंग सेन्टर भी वहीं है।मनमोहन सिंह तो फ्रन्ट्मैन है बलि का बकरा,कमाण्डिंग आफिसर सोनियागांधी हैं(और उनकी कोर्टरी-टाम बड्ड्कन,ए के एन्थोनी,एदुअर्द फ्लेरो वीरप्पा मोईली,वी जार्जऔर अहमद पटेल),जिनकी पब्लिक के प्रति जवाबदेही नहीं है।आज रात हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की इमर्जेंसी मींटिग में निर्णय हुए १-शहीदों को श्रद्धाँजलि २-आतंकवाद के सामनें नहीं झुकेंगे ३-जनता संयम और सौहार्द बनाये रखे। ये है इमर्जेंसी मींटिग का हाल।कुछ गुलाम टाइप लोग देश को नेहरू खानदान की बपौती बनाए रख कर अपना हित साधन करनें को ही देश का हित समझते हैं। अभी भी नहीं संभले तो ५ साल बाद समझनें समझानें लायक स्थितियाँ नहीं रहेंगी।शहीद हुए जवानों को नमन।
ReplyDeleteगुरुदेव,
ReplyDeleteजो हलके हलके अंगारा सुलग रहा था यह पढ़ कर एकदम भड़क गया.
तीन साल पहले की घटना पर लिखा गया था, जब इतनी शर्मनाक घटना हुई थी. और अब तीन साल बाद भी बहाने वही के वही हैं.
ना कोई सुरक्षा के इन्तेजामात पुख्ता किये गए, ना पिछले चोरो को पकडा गया और ना ही ब्लास्ट के बाद के तमाशे में कोई बदलाव.
वही स्क्रिप्ट पूरी की पूरी दोहरा दी गयी है, जैसे की ब्लास्ट करना भी इसी स्क्रिप्ट में शामिल हो.
पानी सर के ऊपर जा चुका है. लगता है जैसे अपनी सुरक्षा अपने हाथ है वैसे ही आतंकवादियों को पकड़ना और सजा देना भी अपने हाथ में ही लेना पड़ेगा.
भगवान् हमे सद्बुद्धि दे और आपके कलम को ऐसी ही धार!
नमन!