मुंबई में हुआ आतंकवादी हमला ख़त्म हो चुका था. नेता जी पुलिस मुख्यालय के सामने हलकान से घूम रहे थे. कभी इधर जाते तो कभी उधर. पता नहीं उनकी कौन सी चीज खो गई थी. हाथ में एक कागज़ था. उस कागज़ को देखते और फिर इधर-उधर घूमने लगते. कभी कोई पुलिस वाला मिल जाता तो उससे बात करते और उदास हो जाते.
एक पत्रकार टकरा गया. नेता जी ने उसे नमस्ते कहा. पत्रकार ने उनके नमस्ते का जवाब दिया. जवाब मिलते ही नेता जी पूछ बैठे; "आपके पास शहीदों की लिस्ट है क्या?"
पत्रकार ने उन्हें अजीब नज़र से देखा. शायद सोच रहा था कि इन्हें अचानक शहीदों की इतनी फ़िक्र क्यों होने लगी?
उसने सवाल दाग दिया. उसने पूछा; "क्या हो गया? आपका कोई रिश्तेदार शहीद हो गया क्या?"
नेता जी ने भी पत्रकार को अजीब नज़र से देखा. जैसे कह रहे हों; " बड़ा बकलोल आदमी है. किसने इसे पत्रकार बना दिया? नेता का रिश्तेदार कैसे शहीद हो सकता है?"
फिर उन्होंने कहा; "नहीं, वो बात नहीं है. मेरे पास शहीदों की एक लिस्ट है. मैं बस ये चाहता था कि आपके पास भी कोई लिस्ट हो, तो मैं टैली कर लूँ."
पत्रकार नेता जी को घूरने लगा. उसके मन में फिर वही सवाल आया कि इन्हें अचानक शहीदों की फ़िक्र क्यों होने लगी? खैर, उसने नेता जी से दुबारा सवाल किया; "लेकिन आप शहीदों की लिस्ट देखकर क्या करेंगे?"
नेता जी को लगा कि अब इसने सवाल ठीक किया है. लिहाजा उन्होंने शहीदों की लिस्ट देखने का कारण बताया. बोले; "बात ये है कि मैं बहुत देर से कोशिश कर रहा हूँ लेकिन पुलिस का कोई बड़ा अफसर मिल ही नहीं रहा जो शहीद हुआ हो लेकिन उसके परिवार वालों को इनाम न मिला हो."
पत्रकार को नेता जी की परेशानी समझ में आ गई. उसने कहा; "लेकिन बड़े अफसर तो शहीद हुए ही हैं. आप अगर इनाम देना ही चाहते हैं तो घोषणा कर दें."
नेता जी पत्रकार को देखने लगे. फिर बोले; "अरे क्या घोषणा कर दूँ? मैं यहाँ आता उससे पहले ही नेताओं ने शहीद हुए बड़े पुलिस अफसरों के परिवार वालों को इनाम की घोषणा कर दी. अजीब बात है. जरा सा देरी हो जाए तो यहाँ लोग गला काटने को खड़े हैं. ऊपर से दूसरे राज्य के नेता महाराष्ट्र के शहीद पुलिस अफसरों को इनाम दे रहे हैं. ये कहाँ तक ठीक है?"
पत्रकार बोला; "आपका कहना भी ठीक है. होना तो ये चाहिए कि जिस राज्य में हमला हुआ है पहले वहां के नेता इनाम की घोषणा कर दें, उसके बाद अगर कोई शहीद बचे तो दूसरे राज्य के नेताओं को इजाजत मिले. दिल्ली में हमला हुआ था तो भी यूपी के एक नेता ने इनाम की घोषणा की थी. यहाँ हुआ तो गुजरात के नेता ने इनाम की घोषणा कर दी."
पत्रकार द्बारा अपनी बात का समर्थन होता देख नेता जी पुलकित हो गए. बोले; "मैं तो कहता हूँ कि शहीद पुलिस वालों को इनाम घोषणा के मामले में राज्य के नेताओं को फिफ्टी परसेंट का रिजर्वेशन मिलना चाहिए. मैं ये बात असेम्बली में उठाऊँगा."
पत्रकार नेता जी की दूरदृष्टि से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. फिर भी उसने नेता जी को समझाया; "चलिए कोई बात नहीं. जो हुआ सो हुआ. शहीद हुए बड़े पुलिस अफसरों के परिवार वालों को इनाम मिल चुका है तो आप किसी कांस्टेबल के परिवार वालों को इनाम की घोषणा कर दें."
पत्रकार की बात सुनकर नेता जी बोले; "और कर ही क्या सकते हैं? अब तो मुझे किसी छोटे-मोटे कांस्टेबल के परिवार को ही इनाम देकर संतोष करना पड़ेगा."
पत्रकार उनकी बात सुनकर बोला; "ठीक है. अब अगली बार याद रखियेगा. अगली बार जब आतंकवादी हमला होगा तो जल्दी वारदात की जगह पहुंचियेगा ताकि इनाम की घोषणा कर सकें."
पत्रकार की बात सुनकर नेता जी बोले; "आप वारदात की जगह पर पहुचने की बात कर रहे हैं? मैं तो मुठभेड़ शुरू होने से पहले ही इनाम की घोषणा कर दूँगा. मैं तो पहले ही कह दूँगा कि हमले में जो भी पुलिस वाला शहीद होगा उसके परिवार वालों को मैं इनाम दूँगा."
इतना कहकर नेता जी शहीद हुए पुलिस कांस्टेबल का नाम नोट करने लगे. साथ में मन ही मन सोच रहे थे कि 'जल्दी ही कोई आतंकवादी हमला हो तो मुझे इनाम घोषणा करने का मौका मिलेगा.'
चलते-चलते:
आर आर पाटिल, गृहमंत्री हैं. महाराष्ट्र जैसे राज्य के. भारत में हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले को "बड़े शहरों में इस तरह की छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं" बता गए. कह रहे थे कि आतंकवादी तो पॉँच हज़ार लोगों को मारने आए थे. हमारी कोशिश की वजह से केवल दो सौ लोग मारे गए. अढतालीस सौ का फायदा देखिये न आप. दो सौ का नुक्शान क्यों देखते हैं?
उनके सर में बहुत बाल हैं. उसी का असर है कि मुंह से ऐसे बाल-सुलभ कमेन्ट निकलते रहते हैं. जय(?) महाराष्ट्र?
sundar vyangya, lekin chamdi itni moti ki asar hona jara mushkil
ReplyDeleteबाल सुलभ नही जी खाल सुलभ कमेंट्स करते है नेता अब इत्ती मोटी खाल के लिये कमेंट्स भि तो मोटा ही चाहिये ना आप तो तुरंत इन्हे शर्ड्ढांजली दे डालिये अगर कुछ टुच्चे घटिया सेकुलर संप्रदाय के लोगो का दिल जले तो जले
ReplyDeleteसमय का फेर है! इसी प्रान्त ने कभी आदरणीय बालगंगाधर तिलक दिये थे। अब बालसुलभ कमेण्टर दे रहा है।
ReplyDeleteहुर्रे.....इस मंदी में भी अडतालीस सौ का फायदा....कमाल है। इन नालायक, बेवकूफ नेताओं को इसीलिये भगवान भी अपने पास जल्दी नहीं बुलाते....सोचते होंगे कि कौन आफत मोल ले।
ReplyDeleteऎसे कमीने नेताओ के घर का कोई क्यो नही मरता, फ़िर इन्हे दिखे दो मरे बाकी घर तो बच गया,
ReplyDeleteआर आर पाटिल साहब से क्षमा मांगता हूँ कि हमने उन्हें गलत समझा. उनके मथ्थे ४८०० लोगों को बचा ले जाने का ताज धरता हूँ.
ReplyDeleteइनाम तो इनको भी देने को दिल चाहता है मगर पहले ये मरें तो!!
अरे.. मिश्राजी.. आप कुछ समझा करिए... कुछ देर बाद पाटिल साहब को ध्यान आया ..तो कहा था..की मेरी हिन्दी कमजोर है...मैं अन्ग्रेज़ी में जो कहना चाहता था वो हिन्दी में नही कह पाया..आप ग़लत अर्थ मत निकालिए...मेरी भावना वो वाली नही थी.....
ReplyDeleteअब समझ आया आपको..ताऊ हरयाणवी ही क्यों बोलता है ?
पाटिल साहब आप मंत्री हो ..सही बात बोलना हो तो आपकी शायद मातृभाषा अन्ग्रेज़ी होगी..उसमे बोलते... किस अहमक ने कहा था की..ये सड़े लोगो की भाषा हिन्दी बोलो और थू थू करवाओ...आगे से ध्यान रखियेगा ! नही तो ताऊ वाली पालिसी पर आजावो...आपको कहना चाहिए था..इंग्लिश से अनुवाद में ग़लती हो तो सुधार कर समझ लीजियेगा....पर आप ये मंजूर करने को तैयार नही हैं ...कैसे नेता हो आप...?
इनाम की घोषणा बडे धडल्ले से हो जाती है परंतु परिवार वालों के चप्प्ल घिस जाते हैं और राशि नहीं मिलती। हो सकता है कि किसी मंत्री का भाई भतीजा पहले ही हडप लिया हो!!
ReplyDeleteपाटिल जी (जी कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन शराफत का तकाजा है बंधू...लिख रहे हैं, ...आप लेकिन इसे हटा कर पढ़ें.) तो हँसते हँसते रुखसत हो गए...चेहरे पर जान बची और लाखों पाये का भाव था...हम लोग हैं ही ऐसे...कुछ होता है तो थोड़ा विचलित हो जाते हैं हवा में मुठ्ठियाँ तानते हैं और थोड़े दिनों बाद सब भूल भाल कर वो ही करने लगते हैं जो अब तक करते आए हैं...आराम....जब तक हम कठपुतलियां बने रहेंगे तब तक नचाने वाले छोडेंगे थोड़े ही....
ReplyDeleteनीरज
bahut besharam ganit he...
ReplyDeleteपाण्डेय जी बहुत अच्छा लिखा है.....
ReplyDeleteवैसे छोटी सोच के लोगों को हर चीज छोटी ही नज़र आती है.
गुलशन की बर्बादी के लिए एक उल्लू ही काफी है,
ReplyDeleteयहाँ हर साख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ऐ-गुलिस्ता क्या होगा ?
कौन कहेगा कि कुछ साल पहले यही पाटिल एक संवेदनशील उसूलों का पक्का इंसान था, ये मंत्री की कुर्सी कोड़ की बिमारी से कम नहीं, आदमी को अंदर से ही खोख्ला बना देती है, रह जाता है उसके पास कोरा गणित।
ReplyDeleteये तो फ़िर से कहने की जरूरत ही नहीं कि व्यंग एकदम धमाकेदार है…:)
इस तमाचे की गूँज पाटिल तुझे सालो सुनाई देगी.
ReplyDeleteअरे भाई आपको उनका शुक्रगुजार होना चाहिये। उन्होंने आपको एक पोस्ट लिखने का मसाला दिया!
ReplyDeleteNo Pusadkarji, not Patil but India is slapped,
ReplyDeletejehadi: इस तमाचे की गूँज हिंदुस्तान तुझे सालो सुनाई देगी.
india: पर हम तो बहरे हैं. हेssssss.......हेssssss.....हेssssss कैसा चूतिया बनाया, तुमने बम फोडे हमने तो सुना ही नही
जय(?) महाराष्ट्र?
ReplyDeleteबहुत सही सटीक लिखा.........बहुत ही बढ़िया......
ReplyDeleteअजी काश पाटी जी भी २०० मे शामील हो जाते तो मुनाफ़ा बढकर २०१ हो जाता !!
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