Saturday, December 6, 2008

'टोकेनिज्म इंडस्ट्री' को भी मंदी ने धर दबोचा.

करीब पाँच-छ दिन हुए रतीराम जी ने अपना बिजनेस 'डाईभर्सीफ़ाई' करते हुए चाय की दूकान भी खोल ली है. कल मैं दूकान पर गया तो वहां माहौल पहले से और सुंदर लगा. ढेर सारे लोग. पूरा मेला लगा हुआ था. खुश लोग, दुखी लोग, चिंतित लोग, वंचित लोग, ईजी लोग, बिजी लोग, खड़े लोग, बैठे लोग, साम्यवादी, समाजवादी, क्रियावादी, प्रतिक्रियावादी...सब विचारधारा के लोग मौजूद थे.

चाय दूकान पूरे देश की तस्वीर दिखा रही थी.

मैंने रतीराम जी को चाय की दूकान खोलने पर बधाई देते हुए पूछा; "अच्छा किया आपने चाय की दूकान भी खोल ली. इसे कहते हैं बैकवर्ड इंटीग्रेशन."

मेरी बात सुनकर रतीराम हँस दिए. बोले; " एतना-एतना सिद्धांत जानते हैं, आ फिर भी अर्थ-व्यवस्था का ई हाल है?"

मैंने कहा; "अर्थ-व्यवस्था की तो जाने दीजिये, कौन सा व्यवस्था का हाल अच्छा है?"

मेरी बात सुनकर बोले; "एही वास्ते त चाय दूकान खोले हैं. जब सारा व्यवस्था डगमगाता है त चाय और पान उद्योग का ग्रोथ होता है."

मैंने कहा; "वैसे ये बताईये कि चाय की दूकान खोलने का प्लान पहले से ही था या अचानक ही खोल लिया आपने?"

मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "असल में मुलुक में जब से आतंकवादी घटना बढ़ा है, तभिये से महसूस कर रहे थे कि पर्याप्त मात्रा में चिंता व्यक्त करने के लिए मोहल्ला में उचित 'प्लेटफारम' का कमी है. अब देखिये न, पान लगवाना और उसे खाने में ज्यादा बखत नहीं लगता. लेकिन चाय बनने में बखत लगता है. अईसे में डिस्कशन आ चिंता व्यक्त करने के लिए ज्यादा टाइम मिलता है."

उनकी बात से लगा कि मैनेजमेंट कालेज वाले रतीराम जी से कुछ ज्ञान ले सकते हैं.

पान लगवा कर मुंह में रखा तो मनोहर भैया मिल गए. चाय का कुल्हड़ हाथ में लिए खड़े थे. चाय की चुस्की लेते हुए कुछ सोच रहे थे. माथे पर चिंता की रेखायें साफ़ दिखाई दे रही थी.

मनोहर भैया पूरी तरह से चिंता-धर्म के पालन में लीन थे.

मेरी तरफ़ देखा और दुआ-सलाम हुआ. मैंने पूछा; "क्या हाल है?"

बोले; "क्या बताएं, क्या हाल है? देश की हालत से चिंता हो रही है."

मैंने कहा; "देखिये, जो देश के बारे में सोचता है, उसे तो चिंता होगी ही."

मेरी बात सुनकर मनोहर भैया ने माथा झटका. कुछ सोचते हुए बोले; "देखिये बात वो नहीं है. बात ये है कि आजकल के नौजवान बात नहीं समझते. आप कुछ भी कहें तो आपकी सोच पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं."

मैंने पूछा; "ऐसा कुछ हुआ क्या आपके साथ?"

बोले; "अब आपसे क्या कहें? ऐसा ही हुआ है. मेरा भतीजा ही मेरी बात पर सहमत नहीं है. कहता है कि मेरे जैसे लोगों की वजह से ही देश की हालत ख़राब है."

मैंने पूछा; " ये तो बहुत बड़ी बात कह दी उसने. ऐसा क्या हो गया?"

मनोहर भैया बोले; "असल में जब मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ तो मैं और वो बात कर रहे थे. मैंने उससे कहा कि आज देश को एक-जुट रहने की ज़रूरत है तभी आतंकवादियों को पछाड़ा जा सकेगा. मेरी बात सुनकर बोला कि मैं नेता की तरह से हमेशा क्यों बात करता हूँ.? कह रहा था देश तो एक-जुट है ही."

मैंने कहा; "ठीक ही तो कह रहा था. देश की एकता में आतंकवादी हमलों की वजह से कोई समस्या तो नहीं आई अभी तक."

वे बोले; "लेकिन ये बात हमेशा बताते रहना पड़ेगा न. ऊपर से मैंने जब कहा कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता तो बोला ये तो सभी को मालूम है. मुझे तकलीफ तो तब हुई जब बोला कि मैं केवल आदर्शवादी बातें करता हूँ. कह रहा था कि मैंने टोकेन बेचने की दूकान चला रखी है. कभी समाजवाद का टोकेन, कभी आदर्शवाद का टोकेन तो कभी साम्प्रदायिक सद्भाव का टोकेन बेचता रहता हूँ. ....कह रहा था ज़रूरत नहीं रहती तो भी बेचते रहता हूँ. कभी-कभी ओवरसप्लाई हो जाती है....कहता है मेरे जैसे लोग साठ साल से यही कर रहे हैं....बताईये, ये कोई बात है?"

मैंने कहा; "आपको भी उसकी बात सुनने की ज़रूरत है."

वे बोले; "आजतक किसी ने मेरे विचारों पर मुझे नहीं टोका. लेकिन आज की पीढ़ी अपने बुजुर्गों की बात सुनने को तैयार नहीं है. ऐसे में देश का क्या होगा, यही सोचकर चिंतित हूँ."

मुझे लगा मनोहर भैया के विचारों को उनका भतीजा ही खारिज कर दे रहा है. कहीं देश में बदलाव की स्थिति तो नहीं पैदा हो रही है? मुझे लगा उनके भतीजे द्बारा कही गई टोकेन वाली बात को सच मान लिया जाय तो टोकेनिज्म इंडस्ट्री को भी मंदी ने धर दबोचा.

आर्थिक मंदी की मार झेल रहे देश पर 'वैचारिक मंदी' की मार भी आन पड़ी?

13 comments:

  1. मनोहर भैया और उनका भतीजा राकापति (उर्फ रिंकू) दोनो मिले थे। छुट्टे बकरों की तरह गन्हा रहे थे। दोनो अलग अलग विचारधारा में काहे सिर भिड़ा रहे हैं। असल में दोनो अ-स्नानवादी हैं। पच्चीस दिन से नहीं नहाये।
    दोनो पीढ़ियां समानता पर क्यों प्रसन्न नहीं होतीं - मसलन दोनो यत्र-तत्र-सर्वत्र पेशाब करने में संकोच नहीं करतीं। दोनो टिकट की लाइन तोड़ने में यकीन रखती हैं। दोनो बड़ा-बड़ा बोलती हैं पर प्राइवेटली करती अपोजिट हैं।
    न मनोहर भैया से देश का कुछ हिला है, न रिंकू से हिलेगा। बाकी देश कैसे चलेगा? हमें नहीं मालुम!

    ReplyDelete
  2. इसलिए कहते है की दूसरो के फटे में टाँग नही अड़ानी चाहिए.. इस से आदमी तीसरे के बारे में कुछ जान नही पाता.. जो की हमारी केटेगरी है. हम ना मनोहर भैया है ना रिंकू.. हम ज़रा टिन्कू किस्म के प्राणी है.. पहले तो हम सड़को पर आवारा घूमते ही नही.. की सुस्वाने की समस्या हो.. कभी आ भी जाए तो भला हो मॉल संस्कृति का.. जगह जगह पर मॉल बने है.. अंदर घुसे की चमकते हुए शौचालयो में लघु शंका निवारण करके आ जाते है..

    रही बात लाइन तोड़ने की तो टिन्कू केटेगरी के लोग ऑनलाइन हर चीज़ की बुकिंग करवा लेते है.. अजी हम तो सनिमा की टिकटवा भी ऑनलाइन ही करवाते है...

    मनोहर भैया और रिंकू परेशान हो रहे है.. उनकी परेशानी से साहब लोग परेशान हो रहे है..
    टिन्कू जी बिंदास जी रहे है.. कॉफी पी रहे है.. माउस को हिला रहे है.. और निश्चिंत है ये सोचकर की देश को राम जी चला रहे है..

    कभी परेशानी हुई कुछ तो 'डाईभर्सीफ़ाई' कर देंगे..

    वैसे इस 'डाईभर्सीफ़ाई' के लिए आप भोजपुरी स्टाइल में चुम्मे के हक़दार है..

    ReplyDelete
  3. भइया तुम जैसे व्यंगकार न होते तो हम तो टेन्सनिया टेन्सनिया के पगलाय गए होते.सो बहुत बहुत आभारी हैं भइया कि पढ़कर बहुते रिलेक्स हो जाते हैं.
    रतिराम जी तो हइये हैं लाजवाब ,बाकी तुम्हारा सारगर्भित व्यंग्यालेख तो जबरदस्त लाजवाब है.
    इसके साथ साथ ज्ञान भइया और कुश जी की टिपण्णी भी कमाल का है..हमको तो लग रहा है क्यों न लेख और इन दोनों टिप्पणियों को मिक्स कर रिमिक्स बना दिया जाए.............. यह धंधा भी खूब चलेगा .नही ?????

    ReplyDelete
  4. अरे भाई मंदी में विचार कुंद हो जाते हैं। अब देख लेओ सब बड़े बड़े छंटनी पर उतर आए हैं। मंदी गहरायेगी कि नहीं।

    ReplyDelete
  5. सही है. शायद सबसे बड़ा काम फ़ि‍लहाल यह होगा कि मोहल्‍ला-मोहल्‍ला हर हाउसिंग सोसायटी में लोग अपनी राजनीतिक यूनिट बना लें जिसका पहला काम हो कि पहले से चली आ रही, खा रही राजनीतिक पार्टियों को सिरे से खारिज करें, मुंह पर कहें सालो, तुम्‍हें वोट नहीं देंगे, किसे देंगे उसे फिर नयी सामूहिकता से तय करें, भले शुरू में वह महज़ नेगेटिव वोटिंग का एक लघु जेस्‍चर भर बनकर रह जाये, लेकिन दलाली के बने-बनाये विकराल खाजखाये एस्‍टेबलिशमेंट को बेमतलब करने के शुरुआती तरीके संभवत: इन्‍हीं रास्‍तों से निकलेंगे. सबके सोचने की, फिर उसे सीरियसली लागू करने की ज़रूरत है. वर्ना इस देश का राम-नाम सत्‍य ही समझिये.
    यूएन में रजिस्‍ट्रेशन खोजने की ज़रूरत होगी- ए कंट्री ऑफ़ पिंप्‍स. हद है. लात लगाओ सालों को जूतियाओ दलालों को!

    ReplyDelete
  6. "लेकिन ये बात हमेशा बताते रहना पड़ेगा न. ऊपर से मैंने जब कहा कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता तो बोला ये तो सभी को मालूम है. मुझे तकलीफ तो तब हुई जब बोला कि मैं केवल आदर्शवादी बातें करता हूँ. कह रहा था कि मैंने टोकेन बेचने की दूकान चला रखी है. कभी समाजवाद का टोकेन, कभी आदर्शवाद का टोकेन तो कभी साम्प्रदायिक सद्भाव का टोकेन बेचता रहता हूँ. ....कह रहा था ज़रूरत नहीं रहती तो भी बेचते रहता हूँ. कभी-कभी ओवरसप्लाई हो जाती है....कहता है मेरे जैसे लोग साठ साल से यही कर रहे हैं....बताईये, ये कोई बात है?"

    मिश्राजी आज तो जबरदस्त व्यंग लिखा है आपने ! तीसरी बार आया हूँ पढने ! अभी भी टिपणी करने के लिए शब्द नही मिल रहे हैं ! अब टिपणी नही सिर्फ़ तारीफ़ ! बस आज मजा आगया ! सिर्फ़ लाजवाब की कह पाउँगा ! मेरे पास तारीफ़ का इससे कोई सुंदर शब्द आज नही है ! बहुत बहुत बधाई !

    राम राम !

    ReplyDelete
  7. मनोहर भैय्या का दर्द "इन्फेक्शीयस् " है ओर ऐसा की उन्हें मालूम नही चलता की उन्हें कोई रोग भी है ...ख़ास तौर से उनकी उम्र के लोगो को फ़ौरन पकड़ लेता है ....वे बेचारे हमेशा दुखी रहेगे .... .कि भतीजे ने नमस्ते नही की ?अगर की भी तो दोनों हाथ जोड़कर नही की .....हाथ भी जोड़े तो मुंह से आवाज नही निकाली .....साथ में " सेलेक्टिव कलर ब्लाइंडनेस " मुद्दे खोजेगे ओर चाहेगे की लोग उन्हें फुल मालाये पहनाये .समस्या ये है कोई उन्हें भाव नही दे रहा ....

    ReplyDelete
  8. हम भी मनोहर भैय्या के भतीजे की गैंग के ही हैं।

    ReplyDelete
  9. 'टोकेनिज्म इंडस्ट्री' को भी मंदी ने धर दबोचा. और बोली चलो यार जरा चाय पिलाओ रतीराम की दुकान पर!

    ReplyDelete
  10. ... लेख बहुत ही प्रभावशाली, रोचक, पठनीय है।

    ReplyDelete
  11. गुरु जी, साझीदार ने फोटू बदल दिया है . आप भी अपडेट कर दो . फायदे में रहोगे . फिर मत कहना कि चेले ने चेताया न था :)

    ReplyDelete
  12. लिखते क्या हैं कमाल करते हैं

    ReplyDelete
  13. यह चाय की दूकान अब वर्चुअल वर्ल्ड में खुल गयी है, बस चाय की ही कमी है.
    बहुत से चाचे और भतीजे दोनों यहाँ दिखते हैं. उसके अलावा कुछ चाचा-ज्यादा भतीजे-कम एवं भतीजे-ज्यादा चाचा-कम भी. मिश्रित केटेगरीज़ भी है.

    परन्तु गुरुदेव बढे पते की बात आपने बहुत ही रोचक ढंग से कही.
    देश तो एकजुट ही रहता है, बस बार बार ऐसा कह के उसके एकजुट न रहने का डर जताया जाता है.
    समाधान तो अब भी नहीं मिला, पर समाधान ढूढने के कुछ रोढ़े ज़रूर हट गए.

    यह गहन वार्तालाप पढवाने का धन्यवाद!

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय