Friday, December 26, 2008

बापी दास का क्रिसमस वर्णन


--------------------------------------------------------------------------------

यह निबंध नहीं बल्कि कलकत्ते में रहने वाले एक युवा, बापी दास का पत्र है जो उसने इंग्लैंड में रहने वाले अपने एक नेट-फ्रेंड को लिखा था. इंटरनेट सिक्यूरिटी में हुई गफलत के कारण यह पत्र लीक हो गया. ठीक वैसे ही जैसे सत्ता में बैठी पार्टी किसी विरोधी नेता का पत्र लीक करवा देती है. आप पत्र पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे 'प्राइवेट' समझा जा सके.

पिछले साल क्रिसमस के दिन लिखा और प्रकाशित किया था...

--------------------------------------------------------------------------------
प्रिय मित्र नेटाली,

पहले तो मैं बता दूँ कि तुम्हारा नाम नेटाली, हमारे कलकत्ते में पाये जाने वाले कई नामों जैसे शेफाली, मिताली और चैताली से मिलता जुलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि अगर नाम मिल सकता है तो फिर देखने-सुनने में तुम भी हमारे शहर में पाई जाने वाली अन्य लड़कियों की तरह ही होगी.

तुमने अपने देश में मनाये जानेवाले त्यौहार क्रिसमस और उसके साथ नए साल के जश्न के बारे में लिखते हुए ये जानना चाहा था कि हम अपने शहर में क्रिसमस और नया साल कैसे मनाते हैं. सो ध्यान देकर सुनो. सॉरी, पढो.

तुमलोगों की तरह हम भी क्रिसमस बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. थोडा अन्तर जरूर है. जैसा कि तुमने लिखा था, क्रिसमस तुम्हारे शहर में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन हम हमारे शहर में घूम-घाम के साथ मनाते हैं. मेरे जैसे नौजवान छोकरे बाईक पर घूमने निकलते हैं और सड़क पर चलने वाली लड़कियों को छेड़ कर क्रिसमस मनाते हैं. हमारा मानना है कि हमारे शहर में अगर लड़कियों से छेड़-छाड़ न की जाय, तो यीशु नाराज हो जाते हैं. हम छोकरे अपने माँ-बाप को नाराज कर सकते हैं, लेकिन यीशु को कभी नाराज नहीं करते.

क्रिसमस का महत्व केक के चलते बहुत बढ़ जाता है. हमें इस बात पर पूरा विश्वास है कि केक नहीं तो क्रिसमस नहीं. यही कारण है कि हमारे शहर में क्रिसमस के दस दिन पहले से ही केक की दुकानों की संख्या बढ़ जाती है. ठीक वैसे ही जैसे बरसात के मौसम में नदियों का पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है.

क्रिसमस के दिनों में हम केवल केक खाते हैं. बाकी कुछ खाना पाप माना जाता है. शहर की दुकानों पर केक खरीदने के लिए जो लाइन लगती है उसे देखकर हमें विश्वास हो जाता है दिसम्बर के महीने में केक के धंधे से बढ़िया धंधा और कुछ भी नहीं. मैंने ख़ुद प्लान किया है कि आगे चलकर मैं केक का धंधा करूंगा. साल के ग्यारह महीने मस्टर्ड केक का और एक महीने क्रिसमस के केक का.

केक के अलावा एक चीज और है जिसके बिना हम क्रिसमस नहीं मनाते. वो है शराब. हमारी मित्र मंडली (फ्रेंड सर्कल) में अगर कोई शराब नहीं पीता तो हम उसे क्रिसमस मनाने लायक नहीं समझते. वैसे तो मैं ख़ुद क्रिश्चियन नहीं हूँ, लेकिन मुझे इस बात की समझ है कि क्रिसमस केवल केक खाकर नहीं मनाया जा सकता. उसके लिए शराब पीना भी अति आवश्यक है.

मैंने सुना है कि कुछ लोग क्रिसमस के दिन चर्च भी जाते हैं और यीशु से प्रार्थना वगैरह भी करते हैं. तुम्हें बता दूँ कि मेरी और मेरे दोस्तों की दिलचस्पी इन फालतू बातों में कभी नहीं रही. इससे समय ख़राब होता है.

अब आ जाते हैं नए साल को मनाने की गतिविधियों पर. यहाँ एक बात बता दूँ कि जैसे तुम्हारे देश में नया साल एक जनवरी से शुरू होता है वैसे ही हमारे देश में भी नया साल एक जनवरी से ही शुरू होता है. ग्लोबलाईजेशन का यही तो फायदा है कि सब जगह सब कुछ एक जैसा रहे.

नए साल की पूर्व संध्या पर हम अपने दोस्तों के साथ शहर की सबसे बिजी सड़क पार्क स्ट्रीट चले जाते हैं. है न पूरा अंग्रेजी नाम, पार्क स्ट्रीट? मुझे विश्वास है कि ये अंग्रेजी नाम सुनकर तुम्हें बहुत खुशी होगी. हाँ, तो हम शाम से ही वहाँ चले जाते हैं और भीड़ में घुसकर लड़कियों के साथ छेड़-खानी करते हैं.

हमारा मानना है कि नए साल को मनाने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं होगा. सबसे मजे की बात ये है कि मेरे जैसे यंग लड़के तो वहां जाते ही हैं, ४५-५० साल के अंकल टाइप लोग, जो जींस की जैकेट पहनकर यंग दिखने की कोशिश करते हैं, वे भी जाते हैं. भीड़ में अगर कोई उन्हें यंग नहीं समझता तो ये लोग बच्चों के जैसी अजीब-अजीब हरकतें करते हैं जिससे लोग उन्हें यंग समझें.

तीन-चार साल पहले तक पार्क स्ट्रीट पर लड़कियों को छेड़ने का कार्यक्रम आराम से चल जाता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से पुलिस वालों ने हमारे इस कार्यक्रम में रुकावटें डालनी शुरू कर दी हैं. पहले ऐसा ऐसा नहीं होता था. हुआ यूँ कि दो साल पहले यहाँ के चीफ मिनिस्टर की बेटी को मेरे जैसे किसी यंग लडके ने छेड़ दिया. बस, फिर क्या था. उसी साल से पुलिस वहाँ भीड़ में सादे ड्रेस में रहती है और छेड़-खानी करने वालों को अरेस्ट कर लेती है.

मुझे तो उस यंग लडके पर बड़ा गुस्सा आता है जिसने चीफ मिनिस्टर की बेटी को छेड़ा था. उस बेवकूफ को वही एक लड़की मिली छेड़ने के लिए. पिछले साल तो मैं भी छेड़-खानी के चलते पिटते-पिटते बचा था.

नए साल पर हम लोग कोई काम-धंधा नहीं करते. वैसे तो पूरे साल कोई काम नहीं करते, लेकिन नए साल में कुछ भी नहीं करते. हम अपने दोस्तों के साथ ट्रक में बैठकर पिकनिक मनाने जरूर जाते हैं. वैसे मैं तुम्हें बता दूँ कि पिकनिक मनाने में मेरी कोई बहुत दिलचस्पी नहीं रहती. लेकिन चूंकि वहाँ जाने से शराब पीने में सुभीता रहता है सो हम खुशी-खुशी चले जाते हैं. एक ही प्रॉब्लम होती है. पिकनिक मनाकर लौटते समय एक्सीडेंट बहुत होते हैं क्योंकि गाड़ी चलाने वाला ड्राईवर भी नशे में रहता है.

नेटाली, क्रिसमस और नए साल को हम ऐसे ही मनाते हैं. तुम्हें और किसी चीज के बारे में जानकारी चाहिए, तो जरूर लिखना. मैं तुम्हें पत्र लिखकर पूरी जानकारी दूँगा. अगली बार अपना एक फोटो जरूर भेजना.

तुम्हारा,
बापी

पुनश्च: अगर हो सके तो अपने पत्र में मुझे यीशु के बारे में बताना. मुझे यीशु के बारे में जानने की बड़ी इच्छा है, जैसे, ये कौन थे?, क्या करते थे? ये क्रिसमस कैसे मनाते थे?

24 comments:

  1. बढ़िया जी बढ़िया. क्रिसमस ही नहीं अब तो सभी त्यौहार (...डे) ऐसे ही मनाये जाते है.

    ReplyDelete
  2. नेटलिया का जवाब ठेल दूंगा कि जीशू बाबू इन दिनों कहां-कैसे रोते-गाते जीवन खींच रहे हैं तो बापी बोम उत्‍साह में ऐसा न हो कहीं फिर से उनको सूली पर चढ़ाने के लिये लड़ि‍याने लगें..
    या फिर ऐसा भी हो सकता है कि पैंट में दारुधार छोड़ने लगें, नतालदिवस पर खामखा बदरंग रंग चढ़ जाये, आपके दरवाज़े बकलोल-बोकाचो.. प्रदर्शन होने लगे?..

    ReplyDelete
  3. नेटाली हो या शेफाली, छेडना तो है क्रिसमस को ही। अब वो किसी लाट साब की बेटी हो तो यह शेर सहारा देने के लिए है ही :
    यार से मिलना है तो हर हाल में मिलना
    जूते पडे़ जूतीसती दिल खोल कर मिलना॥

    ReplyDelete
  4. main bhi aisi hi xmas manana chahta tha, lekin kabhi himmat nahi kar paaya

    ReplyDelete
  5. वाह, बहुत बढ़िया ! परन्तु बापी जी ने यह नहीं बताया कि उनके यहाँ लड़कियाँ क्रिसमस कैसे मनाती हैं। वे यह पूछना भी भूल गए कि यीशु का जन्म किस दिन हुआ था।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  6. मिश्राजी व्यन्ग गजब का है ! धन्यवाद !

    पर मुझे एक बात पढकर बडी तसल्ली हुई कि मेरा कोलकाता अब भी वही परम्पराए निभा रहा है जो हम ३६ साल पहले वहां निभाते थे ! हमको किसी भी हालत मे अपनी परम्पराएं नही छोडना चाहिये !

    पार्क स्ट्रीट तो आपने क्या याद दिलाई , विद्या माता की कसम हम भी जवान अनुभव करने लग गये !:) आखिर कौन कलकतियन होगा जो ये त्योंहार बिना पार्क स्ट्रीट गये सेलेब्रेट कर सके ?

    पार्क स्ट्रीत की लाईटिन्ग अब भी फ़िलिप्स कम्पनी करती है या कुछ बदलाव हो गया ?

    रामराम !

    ReplyDelete
  7. यह पत्र पहले लिक हुआ मालुम पड़ता है, किसी शिवकुमार ने मुल रूप से लिखा था...फिर किसी ने पढ़ कर....जाँच जरूरी है. :)

    ReplyDelete
  8. त्‍यौहार मनाने के ढंग पर अच्‍छा व्‍यंग्‍य किया गया है।

    ReplyDelete
  9. शराब, कबाब और शबाब (छेड़ना), क्या ये ही त्यौहार मनाना है? शर्म..

    ReplyDelete
  10. उत्तर प्रदेश मे इस एक्समस डे के रूप मे मनाते है इसमे लोग ऎक्स यानी कुलहाडी लेकर मस्त सडक पर निकलते है और जो मिले एक्समनी माफ़ कीजीये गलत लिख गया क्रिसमसी (ये जन्म दिन पर जैसे ईद पर ईदी ली जाती है उस तरह से )वसूलते है जो देदे उसका भला जो ना दे उसका भला इस एक्स यानी कुलहाडी के फ़ल से कर दिया जाता है . आप भी आईये कभी हमारे यू पी मे माया बाबा के जन्म दिन के शुभ अवसर पर इस त्योहार को मनाने :)

    ReplyDelete
  11. दारू और लड़कियों के बिना कोई त्योहार मनता है भला।

    ReplyDelete
  12. achchha yaad dilaye hain.. abhi tak harab nahi kharidi hai, aaj hi kharid leta hun.. kya pata out of stock ho jaaye.. :D
    agar nahi mila to naye saal ka kya hoga?

    ReplyDelete
  13. " wah, itna lenghty kht or vo bhi ek festival ke celebration ke bary mey..... ye bhi ek romanch hi rhaa isko pdhna...great"

    regards

    ReplyDelete
  14. मुझे अच्छी तरह से याद पिछले साल भी मैंने इस लेख को पढ़ कर तारीफ की थी इसलिए इस साल भी कर रहा हूँ...क्यूँ की जो पिछले साल हुआ था वो इस साल भी हुआ है....अपने यहाँ वैसे भी चीजें इतनी जल्दी कहाँ बदलती हैं...और ये बंधू सोच का मामला है जो सदियों में नहीं बदलता....बहुत खूब....
    नीरज

    ReplyDelete
  15. घुघूती जी का जवाब बापी से पूछकर या कलकत्ते का ताजा मेला देखकर बताया जाय।

    पार्क स्ट्रीट में लड़कियों को क्रिसमस मनाने में लड़कों से जो तकलीफ़ मिलती है उसे दूर कराने में सीएम की बेटी के साथ घटी छेड़खानी की घटना ने बड़ा काम तो कर दिया लेकिन वास्तव में किन-किनका मजा खराब हुआ यह भी जानना रोचक होगा।

    ReplyDelete

  16. यह सब तो लाज़िमी है, न शिव भाई !
    आखिर यह बड़ा दिन जो ठहरा, देशी त्यौहारों में ऎसी आज़ादी कहाँ ?
    अब एक दिन को तो बेगानी शादी में अब्दुला ज़वाँ होते हैं.. ईट, ड्रिंक एंड बी मेरी !
    किसी लड़की से तो नहीं कहा न, बी मेरी.. :)

    ReplyDelete
  17. शिव भाई ,
    हमेँ तो एक ही सवाल पूछना है
    आपके शहर मेँ
    सबसे बढिया केक
    कौन सी दुकान मेँ मिलता है ? बतायेँ :)
    और हाँ २००९ शुभ हो -
    आपके समस्त परिवार के लिये -
    स- स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  18. धांसू!!!
    बॉस, जगह और त्यौहारों के नाम अपने मनमाफिक रख लिए जाएं तो बस हर जगह यही होता है!!
    मजा आ गया!!

    ReplyDelete
  19. पाकिस्तान फोन कराना , किसी भले आदमी का पत्र लीक करवाना ये कोई अच्छी बात नहीं जी . जो भी ये काम करवाते हैं उनको बोल दिया जाय :)

    ReplyDelete
  20. नेटाली के सौभाग्य से ईर्ष्या कर सकती हैं भारत की लड़कियां। इतना स्तरीय पत्रलेखक कहां है नसीब में उनके। यहां तो केवल छेड़क ही मिलते हैं या प्रेम पत्र वाली किताब से नकल कर प्रेम पत्र लिखने वाले!

    ReplyDelete
  21. ये साले बापी जैसे लोग... छेड़ते हमारे यहा की लड़कियो को है और खत विदेशियो को लिखते है.. क्या होगा इस देश का...

    और ज़रा ताऊ के कमेंट पे गौर करिए... खुद को जवान अनुभव कर रहे है... ध्यान रखिएगा कही जींस वाली जेकेट पहनकर निकल नही जाए..

    ReplyDelete
  22. नया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !! नव वर्ष-२००९ की ढेरों मुबारकवाद !!!...नव-वर्ष पर मेरे ब्लॉग "शब्द-शिखर" पर आपका स्वागत है !!!!

    ReplyDelete
  23. यह तो सुपरहिट पोस्ट है...कितनी भी बार पढो,आनंद और उत्सुकता नही घटती.

    ReplyDelete
  24. यह तो सुपरहिट पोस्ट है...कितनी भी बार पढो,आनंद और उत्सुकता नही घटती.

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय