अखबार में छपी रिपोर्ट देख रहा था. दिल्ली पुलिस के अफसर ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि साल २००८ में दिल्ली में हत्या की जितनी वारदातें हुईं, उनमें से सत्रह प्रतिशत वारदातें छोटे-मोटे कारणों की वजह से हुईं. मतलब ये कि कारण ऐसे थे, जिनपर किसी की हत्या कर देना कुछ ज्यादा ही हो गया. पिछले साल आंकड़ा चौदह प्रतिशत था.
मतलब छोटी-छोटी बातों की वजह से हत्या की घटनाओं में ग्रोथ की ये रेट देश के जीडीपी की ग्रोथ रेट से भी ज्यादा है. ग्रोथ की ये रेट संतोषजनक है?
बातें भी कितनी छोटी-छोटी. पढ़कर मन छोटा हो गया. मसलन एक साहब अपने घर के सामने अपनी बकरी बाँधा करते थे. बकरी सूसू करती थी. बंधी बकरी और क्या करेगी? लेकिन बकरी की ये आदत उन साहब के पड़ोसी को अच्छी नहीं लगती थी. पड़ोसी ने उन साहब से शिकायत की. हर झगडे की जड़ शिकायत होती है. शिकायत नहीं तो झगड़ा नहीं. तो शिकायत के जवाब में हुए झगडे में बकरी के मालिक ने अपने पड़ोसी की हत्या कर दी.
न रहेगा पड़ोसी, न होगा झगड़ा की तर्ज पर अपना काम कर दिया.
ऐसे ही एक ढाबे पर एक साहब ने पापड़ नहीं दिए जाने पर ढाबे के एक कर्मचारी की हत्या कर दी. एक साहब ने उनके कपड़े न धोने की वजह से अपने भाई की पत्नी की हत्या कर दी. कपड़ा धुला नहीं इसलिए साहब ने हत्या का दाग अपने दामन पर लगा लिया.
अच्छा है. दाग कहीं तो लगना चाहिए. धुले हुए कपड़ों पर न सही, तो दामन पर ही सही.
समाचार तो क्या है, समाज में हो रहे क्रांतिकारी परिवर्तनों का लेखा-जोखा है. इसी रेट से छोटी-छोटी बातों पर हत्या करने का अपना कर्तव्य निभानेवाले ऐसे ही काम करते रहे तो कुछ ही सालों में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिलेगी.
सोचिये कि क्या नज़ारा होगा. घर पहुंचकर साहब देखेंगे कि बच्चा कार्टून चैनल देख रहा है. साहब रियल्टी शो देखना चाहते हैं. बच्चा रिमोट देने के लिए तैयार नहीं है. जिद कर रहा है. साहब ने आव देखा न ताव बच्चे को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया. न रहेगा बच्चा न चलेगा कार्टून चैनल.
अगर मेरी इस बात पर किसी को ऐतराज हो तो मैंने बताता चलूँ कि इसी साल हमारे शहर में एक साहब ने अपने बेटे की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उनका बेटा टेनिस खेलने में मन नहीं लगाता था. वो क्रिकेट खेलना चाहता था इसलिए साहब ने एक दिन क्रिकेट का बैट बच्चे के सर पर दे मारा. बच्चा मर गया.
अब साहब टेनिस की प्रैक्टिस शायद अकेले करते होंगे.
हत्या की सम्भावनाओं के न जाने कितने नए-नए कारण देखने को मिलेंगे. साहब बाज़ार जाने के लिए रिक्शे पर बैठे. रिक्शा वाला तेज नहीं चला पा रहा है. साहब ने गुस्से में रिक्शा रोकवाया. रिक्शा रोककर साहब ने पास पड़े पत्थर को उठाया और रिक्शेवाले के सिर पर दे मारा.
चलती बस को कोई साहब अपने घर के सामने रोकना चाहेंगे. वहां, जहाँ बस स्टाप नहीं है. कंडक्टर मना करेगा. साहब जेब से पिस्तौल निकालेंगे और चला देंगे. गोली कंडक्टर के दिल के एड्रेस पर. कंडक्टर वहीँ टें बोल जायेगा. साहब अपना कालर ऊपर करते हुए बोलेंगे; "कह रहा हूँ कि गुस्सा मत दिलाओ."
क्या-क्या कारण दिखाई देंगे. आहा...एक साहब ने अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखी. अपने पड़ोसी ब्लॉगर को उस पोस्ट पर टिपियाने के लिए कहा. पड़ोसी आज कुछ ज्यादा ही बिजी है. अपने बच्चे के साथ कंचा खेल रहा है. तीसरी बार रिमाईंड करने पर भी पड़ोसी टिपियाने के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है.
बस, पोस्ट-लेखक भाई साहब उठेंगे अपना लैपटॉप हाथ में लेकर आयेंगे और पड़ोसी ब्लॉगर के सिर पर दे मारेंगे..पड़ोसी वहीँ ढेर.
क्या कहा आपने? ऐसा नहीं हो सकता? क्या बात कर रहे हैं? अगर पापड़ न मिलने पर कोई हत्या कर सकता है तो फिर किसी वजह से कर सकता है.
बहुत ही खौफ़नाक मंज़र है, दोस्त ---- काश! किसी शॉपिंग प्लाज़ा पर यह सहनशीलता नामक दैवी गुण भी किसी फैंसी पैकिंग में मिलना शुरू हो जाए --- यह बहुत ज़रूरी हो गया है।
ReplyDeleteअब समझ आया कि हम अपना नाम पता यूँ ही ऊपर के पैसे की तरह छिपाए नहीं रखते। पड़ोसी से डरते हैं। उसका तो लैप टॉप भी पुराना व भारी है और हमारा सिर वैसे ही काफी खोखला व पुराना है। सच्ची !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
साहब ये लीजिए हमारा कमेंट.. बच्चे पे दया दृष्टि रखना..
ReplyDeleteअजी हम तो इस बार का ओर अगले लेख की टोपण्णि अभी से दे रहे है, बोलो तो पुरे साल की टिपण्णीयां अभी दे दे, बस हमारे नाजुक सर का ख्याल रखे.
ReplyDeleteधन्यवाद
हम तो सोच रहे थे कि अबकी बार कलकत्ता से होते हुये घर जाऊंगा और आपसे मिलना भी हो जायेगा.. लेकिन अब पहले पता करना होगा कि आपके पास लैपटॉप है या डेस्कटॉप.. आज से आपकी हर पोस्ट पर मेरा एक कमेंट पक्का.. अगर कभी छूट गया तो आपसे ना मिलूंगा.. ;)
ReplyDeleteहम एक रूग्ण समाज में जी रहे हैं जहाँ सहिष्णुता तो बिल्कुल ख़त्म सी होई गयी लगती है ! विचारणीय मुद्दा !
ReplyDeleteइस टिपण्णी के लिए बड़ी मुश्किल से समय निकाला है आज ! आख़िर जान का सवाल है.
ReplyDeleteये लो जी हमारी भी टिप्पणी आख़िर सिर का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा !
ReplyDeleteआपने बहुत ही सही विषय पर लिखा है लोगों में सहिष्णुता दिन प्रति दिन बहुत ही कम होती जा रही है !
ReplyDeleteशिवभाई, यह रही मेरी तिरछी टिप्पणी..
.. जिसका समय आ जाता है, मौत तो बहाना ढूँढ़ ही लेती है..
इसमें कितना विश्वास है, पंचों का ?
विचारणीय मुद्दा!!!
ReplyDeleteये लो जी हमारी भी टिप्पणी आख़िर.....????
डॉ अमर कुमार जी से सहमत . भैया जिसकी जैसे लिखी है वैसे ही आएगी और बहाना छोड़ जायेगी
ReplyDeleteaatma amar hai...deh mithya...kuch zyada hi gabhirta se le liya hai is baat ko....oh! sorry... galti ho...chalo 'agle janam' me prayshchit kar looga!
ReplyDeleteबहानों का क्या जी, बहाने तो बन जाते हैं। बस जरा टेंपर के स्क्रू ढीले हो गए हैंगे।
ReplyDeleteअरे शिव भाई इतना क्यूँ नाराज हुए जा रहे हैं? सर्दी के मारे की बोर्ड़ पकड़ मे नहीं आ रहा था इसलिए पिछली पोस्ट पर टिप्पड़ी नहीं की थे अब आगे से कम्पू बाबा की कसम ऎसी गलती नहीं होगी।
ReplyDeleteह्त्या का कारण तो क्रोध ही हुआ ! हाँ यह बात अलग है कि क्रोध का कारण छोटा रहा हो और उस छोटे कारण का भी कोई और मामूली कारण रहा हो .
ReplyDeleteहमने तो टिप्पणी भेज दी है . वैसे आपके पास तो डेस्कटॉप है न :)
मिश्राजी, प्रनाम. आपको साल भर बिना नागा टिपणियां दी हैं. एक ये ही पोस्ट हमको नही दिखी सो लेट हो गये. घणी माफ़ी मांगते हैं पर जान बख्शने का फ़र्मान जारी करिये और आगे से कसम ऊठाई कि लेट नही होंगे. और इस टीफणी को डबल पोस्ट कर रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
मिश्राजी, प्रनाम. आपको साल भर बिना नागा टिपणियां दी हैं. एक ये ही पोस्ट हमको नही दिखी सो लेट हो गये. घणी माफ़ी मांगते हैं पर जान बख्शने का फ़र्मान जारी करिये और आगे से कसम ऊठाई कि लेट नही होंगे. और इस टीफणी को डबल पोस्ट कर रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
"हे द्वय विप्र देवताओं '' आप की यह पोस्ट गीता-रहस्य के समान बड़ी ज्ञानवान [जान वान ] लगी, इसी उसी तत्व ज्ञान [जान ] के हित में साष्टांग दंडवत टिप्पणी स्वीकरें| अब तो हिट-लिस्ट से बाहर हूँ ना ?
ReplyDeleteधन्य-धन्य चिट्ठा-चर्चा गुरु के ,जान दिहो बचे
और भी उदाहरण सुनिए...एक आदमी ने सब्जी वाले को इसलिए मारा क्योंकि वो मटर के पचास पैसे कम नहीं कर रहा था! एक आदमी ने दुसरे को इसलिए चटका दिया क्योंकि वह ठंडा मतलब कोका कोला मानने को तैयार नहीं था! और इन कमबख्त भैंसों ने तो दूसरों के खेतों में घुस घुस कर न जाने कितने लोगों के मर्डर करवाए हैं!
ReplyDeleteऔर हाँ...वो तो गनीमत है की ब्लोगर सामने नहीं होता वरना....आपका भय भी निर्मूल नहीं है!
कबिरा इस संसार में भांति भांति के लोगण्;;;;
ReplyDeleteहमने तो पढ़ना प्रारम्भ करते ही सोच लिया था कि तुरन्त टिप्पनियायेंगे. बाकी पुलिस के लिये अच्छी बात कि छोटी मोटी बातों के लिये ही हत्यायें हुईं, किसी बड़ी बात के लिये नहीं हुई. अब आप भी मेरे ब्लाग पर टिप्पणी कर दीजिये वरना
ReplyDeleteटिपण्णी न मिलने पर हत्या का कारण बहुत सटीक लगा...लेकिन हत्या के लिए कोई अपना चालीस हज़ार का लेपटोप क्यूँ ख़राब करेगा? चालीस के चाकू से काम तमाम ना कर देगा...या फ़िर चारसो की सुपारी देकर (अब एक ब्लोगर की कीमत इस से ज्यादा और क्या लगायें....पढ़े लिखे अपने यहाँ फ्री में मिलते हैं...रेट तो बदमाशों का हाई होता है) काम करवा देगा. आप अपनी पोस्ट को शंशोधित करें और लेपटोप के स्थान में उचित औजार का प्रयोग करें ताकि पोस्ट यथार्थवादी लगे...
ReplyDeleteदूसरे....प्रभु हमारे सुदामा रूपी ब्लॉग पर आप की एक मुठ्ठी चावल रूपी टिपण्णी कब मिलेगी? मिलेगी या सुपारी के लिए उपयुक्त मानव की तलाश करें...????
नीरज
हम भी टिप्पणी कर दें - काहे "रिक्स" लिया जाये! :-)
ReplyDeleteलिखते रहीयेगा
ReplyDeleteशुभकामना सहित
शाँति शाँति शाँति :)
स स्नेह,
लावण्या
सशक्त और सार्थक पोस्ट के लिए बधाई..व्यक्ति के अन्दर का शैतान जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा है,व्यक्ति के धर्म धैर्य सोच समझ सबको निगलते हुए उसे विध्वंसक बनाता जा रहा है. अब तो बस रोज नए तमाशे देखना है.
ReplyDeleteबस, पोस्ट-लेखक भाई साहब उठेंगे अपना लैपटॉप हाथ में लेकर आयेंगे और पड़ोसी ब्लॉगर के सिर पर दे मारेंगे..पड़ोसी वहीँ ढेर
ReplyDeleteभगवान ये दिन कभी न दिखाए !
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आपने एक गंभीर समस्या पर सीधे-सादे
अंदाज़ में कई विचारणीय पहलू उजागर
कर दिए.....सच...सार्थक पोस्ट.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हम तो कलकत्ता आने का प्रोग्राम बना रहे थे मगर आपके तेवर--देखकर हिम्मत जबाब दे रही है भाई.
ReplyDeleteअब इस लेख को पढने के बाद काहे का मिलना कैसा मिलना , हम तो बंकर बनने मे लगे है . अगली ब्लोगिंग वही से करेगे :)
ReplyDeleteभाई साहेब बहुत ही अच्छा लिखा है ... बल्कि बहुत-बहुत अच्छा लिखा है . अजी मैं तो कहता हूँ कि क्या लिखा है ...भई वाह (इतनी तारीफ़ किये हैं आशा है कि हत्या का कोई कारण नहीं बनेगा) हा हा हा !!!
ReplyDeleteहम भी टिपिया देते हैं क्या पता हमारा हि लैपटाप हम पर पड़ जाये…तो शिव भैया आज आपने हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया मारने के इतने कारण तो हमें पता ही नहीं थे। धन्यवाद्…
ReplyDeleteप्रणब मुख़र्जी ये ग्रोथ रेट देखेंगे तो खुश हो जायेंगे
ReplyDeleteहम भी टिपिया ही देते हैं क्या पता हमारे सर पर भी कोई लैपटाप पड़ जाये। वैसे शिव भैया आपने तो हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया, हमें तो पता ही नहीं था मारने के इतने भी कारण होते हैं। धन्यवाद…
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