सं)वैधानिक अपील: ब्लॉगर मित्रों से अनुरोध है कि अगड़म-बगड़म पोस्ट को सीरियसता के साथ न लें.
जाड़े के मौसम से हड़ताल का मौसम आ जुड़ा है. हड़ताल सुनकर मन में भाव उत्पन्न होते हैं जैसे कुछ लोग ताल ठोंककर बाकी लोगों को हड़का रहे हैं. अब देखिये न, ट्रक वाले हड़ताल पर हैं. सब्जी, आटा, चावल वगैरह की किल्लत तो थी लेकिन राहत की बात थी कि तेल मिल रहा था.
ऐसा नहीं है कि तेल मिल रहा है तो लोग तेल ही पी जायेंगे और सब्जी आटा वगैरह को भूल जायेंगे. बात दरअसल ये है कि तेल मिल रहा है, इस बात पर संतोष कर सकते थे कि कुछ तो मिल रहा है. लेकिन तेल मिलने से आम आदमी को मिल रही खुशी इन तेल अफसरों को नहीं भायी और इन्होने भी हड़ताल का नगाड़ा बजा दिया.
कल टीवी न्यूज़ चैनल वाले बता रहे थे कि तेल-वेल की बड़ी किल्लत है. इसके प्रमाण में उन्होंने पेट्रोल पम्पों पर खड़े लोगों का इंटरव्यू दिखाया. इंटरव्यू देने वाले बोलते समय तेल न मिलने के दुःख से थोडी देर के लिए ही सही, उबरे हुए दिखाई दे रहे थे.
आख़िर टीवी पर ख़ुद को देखने से दुःख कुछ तो कम होता ही है.
देखते-देखते मैंने सोचा कि ये अच्छा है कि हम ब्लॉगर लोग सरकारी ब्लॉगर नहीं हैं. अगर होते तो सरकार द्बारा सैलरी न बढ़ाए जाने पर हड़ताल पर चले जाते. तमाम तरह की डिमांड ठोक देते. डिमांड देखकर सरकार हलकान हो रही होती.
सोचिये जरा, कि क्या नज़ारा होता.....शायद कुछ ऐसा;
सरकार ने चिट्ठाकारों की सैलरी नहीं बढ़ाई. चिट्ठाकार चाहते हैं कि उनकी सैलरी में पूरे तीस प्रतिशत की बढोतरी हो. चिट्ठाकारों का एक गुट सुबह पोस्ट लिखने के एवज में साल के चार महीनों के लिए जाड़ा भत्ता मांग रहा है. महीने में तीस से ज्यादा पोस्ट लिखने वाले चिट्ठाकारों का एक गुट सैलरी में पूरे पचास प्रतिशत की बढोतरी चाहता है. पाँच से ज्यादा ब्लॉग लिखने वाले चिट्ठाकार क्वांटिटी अलावेंस की डिमांड कर रहे हैं.
पॉडकास्ट चढ़ाने वाले चिट्ठाकार इंटरटेनमेंट अलावेंस की डिमांड कर रहे हैं. कार्टून बनानेवाले चिट्ठाकार आर्ट अलावेंस की मांग कर रहे हैं.
चार्टर ऑफ़ डिमांड में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिन्दी सेवा करने के एवज में चिट्ठाकारों ने सरकार के हिन्दी मंत्रालय से साहित्य अकादमी की तर्ज पर एक चिट्ठा अकादमी की मांग की है. चिट्ठा अकादमी के अध्यक्ष पद के लिए गुटबाजी शुरू हो चुकी है.
सरकार ने चिट्ठाकारों की डिमांड ठुकरा दी है. सरकार के इस 'ठुकराहट' के जवाब में सारे चिट्ठाकार हड़ताल पर चले गए हैं. आज हड़ताल का उन्नीसवां दिन है.
सरकार के हिन्दी मंत्रालय द्बारा चिट्ठाकारों को मनाने की कोशिश नाकाम हो चुकी है. हिन्दी मंत्री ने एक चिट्ठी लिखकर चिट्ठाकारों से हड़ताल ख़त्म करने की अपील की थी लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया. ठुकराने का कारण बड़ा मजेदार है.
दरअसल हिन्दी मंत्री ने अपनी अपील में लिखा था;
"आप सब चिट्ठाकार हिन्दी की सेवा करते हैं. इसके लिए हम आपके आभारी हैं. सरकारी नीति के तहत जो काम हम नहीं कर पाते और वही कोई दूसरा कर देता है तो हम फट से उसके आभारी हो जाते हैं. लेकिन विगत कुछ दिनों से आपके लेखन स्थगित करने की वजह से हिन्दी सेवा-विहीन हो गई है. उसकी हालत बड़ी ख़राब है. आपलोगों की सेवा न पाकर हिन्दी दुखी हो गई है. इसलिए सरकार की तरफ़ से हिन्दी मंत्री की हैसियत से मैं आपसे अपील करता हूँ कि आप अपनी हड़ताल वापस ले लें."
सलाह-मशविरे के बाद चिट्ठाकार हड़ताल वापस लेने पर राजी हो गए थे. तभी आंग्ल-भाषा विरोधी एक चिट्ठाकार ने अड़ंगा लगा दिया. उनका कहना था कि; "सरकार का हिन्दी मंत्री अपने पत्र में अपील जैसे अंग्रेज़ी शब्द का इस्तेमाल कैसे कर सकता है? ये सरकार अभी भी अंग्रेजों की गुलाम है. हम हड़ताल वापस नहीं लेंगे."
लीजिये. हड़ताल वापस नहीं हुई.
चिट्ठाकारों की हड़ताल का असर सब क्षेत्रों में देखने को मिला. इस असर का असर यह हुआ कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक कमिटी का गठन किया. इस कमिटी में हिन्दी मंत्री, सांस्कृतिक मंत्री, सदाचार मंत्रालय के राज्य मंत्री थे. इस कमिटी ने चिट्ठकारों से मुलाकात की.
सदाचार राज्यमंत्री ने शास्त्री जी से हड़ताल तोड़ने का अनुरोध किया. साथ ही शास्त्री जी से तुंरत चिट्ठाकारिता शुरू करने का अनुरोध भी किया.
शास्त्री जी के भी हड़ताल में शामिल होने के असर के बारे में बताते हुए सदाचार राज्य मंत्री ने कहा; "शास्त्री जी, आपको ये जानकर दुःख होगा कि सरायकेला के राजेश ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दिया. कह रहा था कि उसने आपसे सलाह लेने के लिए एक पत्र लिखा था. माँ को वृद्धाश्रम भेजने के बारे में आपका मार्गदर्शन चाहता था. लेकिन आपके चिट्ठालेखन स्थगित करने की वजह से उसे जवाब ही नहीं मिला. जब पन्द्रह दिन तक जवाब नहीं मिला तो बोर होकर उसने अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दिया."
मंत्री जी की बात सुनकर शास्त्री जी को बहुत दुःख हुआ. उन्होंने हड़ताल के अपने निर्णय पर विचार करने का समय माँगा ही था कि मंच पर बैठे चिट्ठाकारों ने नारा लगाना शुरू आर दिया....
हमें फोड़ने की ये कोशिश
नहीं चलेगी नहीं चलेगी
नारे सुनकर सदाचार राज्य मंत्री मुस्कुराने लगे. उन्हें चिट्ठकारों में वोटर दिखाई देने लगे थे.
अभी वे मुस्कुरा ही रहे थे कि हिन्दी मंत्री ने अपने ज्ञापन में अपील शब्द पर फ़िर से विचार करने का आश्वासन देना शुरू किया. उन्होंने कुछ सोचने के बाद चिट्ठकारों से पूछा; "अच्छा, अगर मैं अपील की जगह अनुरोध शब्द यूज करूं तो आपलोग संतुष्ट हो जायेंगे?"
लीजिये अपील शब्द ठीक करने के चक्कर में यूज शब्द का इस्तेमाल कर डाला. हिन्दी रक्षक चिट्ठाकार और गरम हो गया. अब तो हड़ताल वापस लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
मंत्रियों और चिट्ठाकारों में फिर से बहस शुरू हो गई. बहस चल ही रही थी कि इस हड़ताल के असर के बारे में बताते हुए हुए सांस्कृतिक मंत्री बोले; "अब देखिये न. आपलोग तो हड़ताल पर बैठ गए. लेकिन इसका क्या असर हो रहा है उसके बारे में सोचा है आपने? कल ही जनता एक रेलवे स्टेशन पर नारे लगाने लगी. लोग कह रहे हैं कि चिट्ठाकारों की हड़ताल की वजह से जब से ज्ञान दत्त जी ने ब्लॉग लिखना बंद किया है, लोगों को रेल यातायात पर कोहरे के असली प्रभाव का पता ही नहीं चल रहा है. लोग सरकार से कह रहे हैं कि सरकार चिट्ठकारों की हड़ताल वापस करवाए. चारों तरफ़ हाहाकार मच गया है."
सांस्कृतिक मंत्री अभी ये बात बता ही रहे थे कि हिन्दी मंत्री बोले; "और वो वाली बात बताईये. वो इतिहास वाली."
उनकी बात सुनकर सांस्कृतिक मंत्री बोले; "हाँ. और वो. जब से आपलोग हड़ताल पर गए हैं, इतिहास प्रेमी दुखी हो गए हैं. डॉक्टर अमर कुमार जी ने काकोरी के शहीदों के बारे में पिछले सोलह दिनों से कुछ नहीं लिखा. आप ख़ुद सोचिये, इतिहास में सोलह दिनों का गैप बहुत बड़ा गैप होता है. इतिहास प्रेमी जनता सड़कों पर उतर आई है. इतिहास के बारे में जानने के लिए हाहाकार मचा हुआ है."
....जारी रहेगा....(?)
सैलरी बढाने वालों की सैलरी बढाना तो उनके अपने हाथ में है . हडताल की जरूरत ही नहीं . जब मन किया बढा ली . उनसे पूछा जाय कि पिछले दस साल मे कितने प्रतिशत बढा चुके हैं अपनी सैलरी ?
ReplyDeleteक्या इनकी सैलरी न बढती तो क्या देश में सांसदों के उम्मीदवारों की कमी हो जाती ?
हम तो कोई स्टेटमेण्ट नहीं देंगे। हमारी असोशियसन के कर्ता धर्ता टॉप ब्लॉगर अनूप शुक्ल फुरसतिया और समीरलाल उड़न तश्तरी हैं। वही नेगोशियेसन के लिये अधिकृत हैं! :)
ReplyDeleteहा हा हा ! लाजवाब !
ReplyDeleteसही कहा , जब सब जगह हड़ताल हो तो यहाँ क्यों नही..........
आप जारी रखें इसलिए हमें लेखन कार्य को विराम देना पड़ेगा? ठीक है हिन्दी सेवा (????) के लिए वह भी मंजूर है.
ReplyDeleteहमारी तरफ से हड़ताल समझें. :)
श्रीमान सरकार महोदय
ReplyDeleteमेरी भरती 'चिट्ठाकार' के पद पर एक सप्ताह पहले ही हुई है. मुझे ख़बर लगी है कि देश के चिट्ठाकारों ने हड़ताल कर दी है. मै श्री शिव कुमार मिश्र और श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी के अगुवाई वाले हड़ताली दल के मांगों में कुछ और मांग जोड़ना चाहता हूँ.
१. सरकार सभी चिट्ठाकारों को दफ्तर आने के समय में दो घंटे का रिलेक्स दे.
२. दफ्तर में चिटठा लिखने के लिए इन्टरनेट की सुविधा के साथ कंप्यूटर मिले.
३. घर में चिटठा लिखते समय पत्नी के प्रकोप से रक्षा के लिए सुरक्षा प्रदान की जाए.
४. सभी चिट्ठाकारो का मानसिक चिकित्सक से नियमित जांच करायी जाय.
इति.
ई ससुरी अगड़म-बगड़म पोस्ट का होत है??
ReplyDeleteलाहोल विला कूवत इस देश का क्या होगा.. जिसे देखो हड़तालरिया है.. पहले ही घना कोहरा होने से ज्ञान दत्त जी नज़र नही आ रहे है.. वो तो जब वो पटाखे क़ी आवाज़ करते है तब पता चलता है.. यही कही है.. उपर से ये मिसिर जी हड़ताल के आईडीए डे रहे है..
भाई जी हड़तालियों को रोके रखने और फ़िर तोड़ने के लिये आजकल "लठैतों" की आवश्यकता पड़ती है, उसका इन्तजाम करके रखा है या इधर से भेजूं…
ReplyDeleteचलिये कम से कम आप तो हड़ताल पर नहीं हैं.
ReplyDeleteकल तक हड़ताल ख़त्म न हुई तो शाम से गिरफ्तारियां कि जाएँगी /
ReplyDeleteसभी नामचीन फुरसतिया , उड़नतश्तरी, मिसिर, पांडे, शास्त्री ..... हुए भूमिगत !!
जेल भेजने की तैयारी !!!
और मैं करता हूँ अध्यक्ष पद की तैयारी!!!!
क्या गजब के आइडिये लाते है सरकार!!!
तेल पी सकते थे यह ख़याल पहले आया क्यों नहीं? चूंकि अब तेल की किल्लत रहेगी उसके बारे में सोचकर लड़ियाने का मतलब नहीं.. अब पीने को और क्या बचा है मगर? ब्लॉगरों का ख़ून?
ReplyDelete....जारी रहेगा....(?)
ReplyDeleteऔर हम वेट..अर्र रर ...प्रतीक्षा करेंगे|
मुझे तो लगता है कि चिट्ठाकार सैलरी कि जगह टिपण्णी कि डिमांड रखेंगे. जाडे में भत्ते के साथ :-)
ReplyDeleteचलिए आपने एक दिशा तो दिखा ही दी है कसम है कि मौका आने पर हम यह वार भी आजमाएंगे ! शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत सरस है आपकी यह अ-सीरियस पोस्ट।
ReplyDeleteकाश इस पोस्ट को सीरियसली ले पाता यानी ब्लॉगर भी हड़ताल कर पाते...:) लेकिन लगता है बिना हड़ताल किए ही धरती से विदा होना पड़ेगा। किसान के रूप में कर नहीं कर सकता..बतौर पार्ट टाइम पत्रकार भी संभव नहीं..ब्लॉगर के रूप में तो कोई चांस ही नहीं...बड़ा कोहरामय मामला है :)
बहुत सरस है आपकी यह अ-सीरियस पोस्ट।
ReplyDeleteकाश इस पोस्ट को सीरियसली ले पाता यानी ब्लॉगर भी हड़ताल कर पाते...:) लेकिन लगता है बिना हड़ताल किए ही धरती से विदा होना पड़ेगा। किसान के रूप में कर नहीं सकता..बतौर पार्ट टाइम पत्रकार भी संभव नहीं..ब्लॉगर के रूप में तो कोई चांस ही नहीं...बड़ा कोहरामय मामला है :)
तो बात कराउँ ब्लॉगमंत्री जी से, मगर एक बात है....किसी न किसी को भूख हडताल हेतु सामने आना पडेगा और मुझे इसके लिये समीर जी से बढिया कोई और ब्लॉगर जँच नहीं रहा। और हाँ, वो कनात और तंबू वगैरह के लिये किसी को कहा है कि नहीं, न कहा हो तो बता दो,अभी कहलवा देते हैं.....राज भाटिया जी और किस दिन काम आएंगे। और चाय वगैरह बनाने के समय झंझट रहेगा थोडा, दूध की कमी झेलनी पड सकती है .....तो उसके लिये अपने ताउ की भैंस को दुहने की ट्रेनिंग चालू करवाया जाय क्योंकि ताउ के सिवा भैंस किसी को अपने थन/छीमी छूने न देगी.....लात-ओत मार देगी सो अलग, और ताउ तो दुहने से रहे क्योंकि अगर वो दुहने बैठे तो लट्ठ लेकर हमारा प्रतिनिधित्व कौन करेगा।
ReplyDeleteबडी आफत है भाई.....हम तो अभी से ये सोच रहे हैं कि समीर जी जब भूख हडताल हेतु तंबू में पडे होंगे तो चोरी-छिपे कुछ फलाहार वगैरह पहुँचाने के लिये डॉ अमर जी को कैसे भेजूँ :)
पुरी दुनिया अपील कर रही है भाई ,देवडा जी हडतालीयो से,मनमोहनसिंग राष्ट्रसंघ से, आई एस आई पकिस्तानी आवाम से,लिंगाराजु सेबी से,जरदारी अमेरीका से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इजराईल से और ऐसे मौसम मे आप भी अपील पे लग गये !! ये तो जनवरी कम और अपील का महिना ज्यादा लग रहा है !!
ReplyDeleteका साहेब भूख हड़ताल त ना नू करे के पड़ी!
ReplyDeleteसबकी बात की और टिप्पणी करने वाले की नहीं...हम नाराज हैं और हड़ताल पर जा रहे हैं-कोई टिप्पणी नहीं करेंगे आज..जाईये, आज से हम भी भूख हड़ताल पर.
ReplyDeleteजब समझोता हो जाए तब बता देना टिप्पणी भी तभी करेंगे अभी तो हम हड़ताल पर है !
ReplyDeleteचिट्ठाकार इंटरटेनमेंट भत्ता, जाड़ा भत्ता आपने ब्लागिंग जगत को तो नई नई परिभाषाये आज दे दी है क्या बात है फ़िर हड़तालों की श्रंखला में भूख हड़ताल पर जाने की बात . हाँ यदि किसी ब्लॉगर को भूख हड़ताल पर जाना है तो भरपेट भोजन खींच कर ले फ़िर हड़ताल पे जावे. हड़ताल में ब्लागिंग गुटबाजी रिस्क भत्ता मांग लिया जाए तो क्या हर्ज... हा हा
ReplyDeleteशिव भईया, समीर जी को हडताल करने दें, ताऊ जी को दूध सप्लाई करने दें, प्रवीण त्रिवेदी को अध्यक्ष बना दें. मैं यहां से खिसक रहा हूँ.
ReplyDeleteआप सिर्फ एक काम करवा दें -- कोई जुगाड लगा कर मेरा चिट्ठाकारी-भत्ता जरा बढवा दें !! हो सके तो चिट्ठा-पेंशन के लिये भी हमारा नाम आगे बढा दें.
सस्नेह -- शास्त्री
इसी हडताल से शायद
ReplyDeleteहिन्दी ब्लोगरोँ को
सम्मन प्राप्ति हो जाये ;-)
क्या पता ?
पोस्ट अच्छी है जी
- लावण्या
भाई आप चिन्ता ना करे, हडताल शुरु किया जाय, बाकी हम सब संभाल लेंगे, कोई चिन्ता नही किया जाये, हम भी फ़ुरसत मे हूं, सोचता हूं एक ठो हडताल ही करवा दिया जाये, कुछ ठण्डा माहोल मे गर्मी आ जायेगा,
ReplyDeleteअच्छा भाई अब हम दुध का इन्तजाम करने जा रहे हैं. बेफ़िक्र रहा जाये, हम अनशन पर बैठे सब लोगों को मलाई मार के चाय पिलाता रहूंगा.
रामराम,
अरे, इस ब्लॉगॉव में भी शहर की हवा लग गई है, मैं हड़ताल वापस ले रहा हूँ और यहॉं तो लोग हड़ताल पर जाने की तैयारी कर रहे हैं:)
ReplyDeleteहम भी इस चार्टर ऑफ़ डिमाण्ड से खुश नहीं। अरे जो बहुत कम लिखते है लेकिन टिप्पणी तो करते है उनकी पगार तो 100% बढ़नी चाहिए, टिप्पणी तो ब्लोग की लाइफ़ लाइन है। इस लिए हम टिप्पणीकार अलग पार्टी बनाएगें और भूख हड़ताल पर बैठेगें। हमारे नेता होगें शिव कुमार मिश्र जी। जाइए उनसे बात कीजिए।
ReplyDeleteतेल वालों की हड़ताल तो बोल गयी। अब ब्लागरों का क्या होगा?
ReplyDeleteभय्यन अनूप जी आप कहना क्या चाह रहें हैं? ब्लागरों की हडताल से पहले ही खेमाबंदी।
ReplyDeleteबस हो गया हड़ताल का तिया पांचा,
ReplyDeleteमित्रों कुछ भी करो मगर एकता से, खेमा नही गुट नही,
टिप्पणीकार संगठन एकता जिंदाबाद.
शानदार,
हार्दिक बधाई
हड़ताल वो होती है जो वापस लेने के की जाती है....ये वाक्य मेरा है कहीं से चुरा के लाया हुआ नहीं है....चिठ्ठाकार हड़ताल क्यूँ करेंगे भाई...बड़ी मुश्किल से उन्हें कोई पढता है...हड़ताल कर देंगे तो कोई धनि धौरी न रहेगा उनका...आप हो किस ग़लत फ़हमी में जनाब ?
ReplyDeleteनीरज
ReplyDeleteशिवभाई, आपने सुना तो होगा ही.. पढ़ें फ़ारसी बेचें तेल ..
सो भईय्या, फ़ारसी पढ़े होने का गुमान रखने के नाते तेल बेचने वालों के साथ होने का कुछ-कुछ तो निभायेंगे ही, न ?
टिप्पाणियों में अंतरिम राहत की घोषणा करो..
ज़ल्द ही वापस आता हूँ !
काकोरी के शहीद का लिंक अपनी पोस्ट पर देने के लिये धन्यवाद, मित्र !