आज आई टी कंपनी चलाने का नाटक करने वाला और रीयल में रीयल इस्टेट कंपनी चलाने वाला एक उद्योगपति कन्फेशनल मोड में आ गया. उसके इस मोड में आने का नतीजा ये हुआ कि लोगों का विश्वास उसकी कंपनी से उठ गया. लोगों के विश्वास उठने का नतीजा ये हुआ कि उसकी कंपनी के शेयर के दाम ज़मीन पर आ गए. शेयर के दाम ज़मीन पर आने का नतीजा ये हुआ कि कोई उन शेयरों को ज़मीन से भी उठाने के लिए तैयार नहीं है.
कौन झुके मिट्टी उठाने के लिए?
नया खिलाड़ी था, इसलिए पकड़ा गया. मैं कहता हूँ पाप करो तो उसे पचाने की हैसियत रखो. अगर पाप को दबा नहीं सकते तो उद्योगपति कहलाने में शर्म आनी चाहिए. वैसे फिर सोचता हूँ कि ये भी ठीक है कि बेचारा ऐसी हैसियत कहाँ से लाता? बेचारे के पिताजी किसान थे. हमारे पिता की तरह थोड़े न थे जो हमें सबकुछ सिखा कर स्वर्ग सिधारे.
हमारे पिताजी ने तो यहाँ तक सिखाया कि 'पब्लिक डोमेन' में लड़ाई कैसे करनी है. इसके पिताजी कैसे सिखाते? सारा जीवन तो किसानी में काट दिया.
एक ही घोटाला करने पर पकड़ लिए जाते हैं ये लोग. क्या उद्योग चलाएंगे ऐसे लोग? ऐसे लोगों को उद्योगपति कहलाने में शर्म आनी चाहिए.
मैं तो कहता हूँ कि उद्योग चलाने की काबिलियत का इम्तिहान होना चाहिए. इम्तिहान लेने वाले जबतक इस बात से स्योर नहीं हो जाते कि उद्योगपति पाँच हज़ार करोड़ के कम से कम पाँच घोटाले करके निकल सकता है, उसे शेयर मार्केट से पैसा उगाहने का लाईसेंस मिलना ही नहीं चाहिए.
हमें देखो. आजतक केवल शेयर मार्केट में ही घोटाला नहीं किया. डुप्लीकेट शेयर सर्टिफिकेट की ट्रेडिंग करवा दी लेकिन मजाल किसी की जो पकड़ ले? रक्षा मंत्रालय के क्लासीफाईड डाक्यूमेंट हमारे आफिस से मिले लेकिन मजाल किसी की है जो हमें फंसा दे. अभी हाल ही में दो घंटे के लिए मीडिया में न्यूज़ दिखाई दी कि मैंने कंपनी के काम के लिए जो लोन लिया था, उसे हीरा व्यापारियों के थ्रू मार्केट में लगवाया ताकि मेरी कंपनी के शेयर के दाम बढ़ सकें. लेकिन मजाल किसी की जो मुझे फंसा दे.
वहीँ ये दो कौडी का उद्योगपति केवल पाँच हज़ार करोड़ रुपया खाकर फंस गया. लानत है. और फ़िर फंसता कैसे नहीं? मैं कहता हूँ कि कंपनी तुम्हारी है तो कंपनी के शेयर भी तुम्हारे पास रखो. कम से कम चालीस परसेंट तो रखो. पागल आदमी था. आठ परसेंट रखकर उसे भी प्लेज करने चला गया. आठ परसेंट शेयर रखकर सेंट परसेंट कैश लोगे तो कैसे चलेगा?
ऐसे पागलों की वजह से ही लोग भारतीय उद्योगपतियों को लोग शक की निगाह से देखने लगे हैं. ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं से बाहर के लोग ये सोचते हैं कि भारतीय उद्योगपति घोटाले करके उसे पचाने की हैसियत खोते जा रहे हैं. लेकिन सच में ऐसा नहीं है. जबतक हमारे जैसे पुराने और अनुभवी उद्योगपति हैं, पाचन शक्ति का विकास होता रहेगा.
असल में मामले में इसलिए पकड़ा गया क्योंकि आधे से ज्यादा शेयर कैपिटल दस-पन्द्रह लोगों में ही था. हमें देखो, पिछले साल हमने शेयर मार्केट से पैसा उगाहा. लाखों लोगों से तीन-तीन हज़ार लेकर कितने हज़ार करोड़ रुपया ले लिया. किसी को महसूस तक नहीं हुआ. किसे होगा? तीन-तीन हज़ार इन्वेस्ट करने वाले तीन हज़ार के लिए आँसू थोड़े न बहायेंगे. आंसू तो वे लोग बहायेंगे जिनका हजारों करोड़ लगा हुआ है. बस बेचारा इसी में मारा गया.
मुझे तो लगता है कि इसका मीडिया ट्रायल करके ही दफनाने की कवायद शुरू हो गयी है. वैसे सच कहूं तो आज की तारीख में मीडिया ही सबकुछ है. वही पुलिस, वही वकील, वही जज और वही सरकार. अच्छा किया जो मैंने मीडिया में पैसा लगाया.
सोच रहा हूँ इसकी कंपनी के सारे शेयर खरीद लूँ. बाद में साबित कर दूँगा कि आई टी कंपनी का कैश निकालकर ही इसने रीयल इस्टेट कंपनी खड़ी की है. अगर सरकार के लोगों से हिसाब बैठ गया तो रीयल इस्टेट कंपनी अपनी हो जायेगी. और फिर सरकार के लोगों से हिसाब कैसे नहीं बैठेगा? सारी ज़िन्दगी हिसाब बैठाने में ही खर्च कर दी. ऐसे में भी हिसाब नहीं बैठेगा तो लोग मुझपर लानत भेजेंगे.
आईडिया अच्छा है. अभी तो मेरे मित्र पार्टी के लिए लोकसभा उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं. उन्हें समय मिले तो तो हिसाब बैठाने का काम शुरू करता हूँ.
नोट:
डायरी का ये पेज मैंने खास तौर पर इसलिए लिखा है ताकि मेरा बेटा आज से बीस साल बाद जब इस पेज को देखे तो उसे अपने पिता पर गर्व हो. साथ में उसे अपने पिता की हैसियत का अंदाजा भी लगे.
डायरी कबाड़ शिवकुमार मिश्र खतरनाक आदमी, नहीं ब्लागर है! अधिक दिनों तक डायरियों के पन्ने सार्वजनिक करता रहा तो लोग डायरियाँ लिखना छोड़ देंगे।
ReplyDeleteपल्ले पड़ी हो तो जरा राजू की डायरी के पन्ने पढवाओ।
देखो जी किसान का बेटा था इसलिए गुनाह कुबूल करने के बाद भी अपने गांव का हीरो है...कल जब चुनाव जीत कर दिल्ली पंहुचेगा तो देख लेना अव्वानी डव्वानी सारे लुटिया लेकर धोने पंहुच जाएंगे। और पंडित जी मेरे से पहले टिपियाने वाले पंडित जी की बात पर जरूर गौर फरमाइएगा। एडवोकेट हैं। डायरी सार्वजनिक करने पर भी और न करने पर भी वाद दाखिल कर सकते हैं।
ReplyDeleteदिनेश जी दी गल्ल सोले आणे सच्ची है, कोई बंदा डायरी लिखण तो पैलां पुच्छेगा - ओ बेटा वेखीं...अगल-बगल कित्थे ओ ब्लॉगरा शिवकुमार ते नई ए :)
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट।
डुबवानी जी डुबवाने और स्वयं उबरे रहने के लिये धरती पर अवतार लिये हैं।
ReplyDeleteआप को अवतारवाद पर विश्वास है या नहीं!
जोरदार...
ReplyDeleteडायरी संग्रहालय बन गया होगा, आपके पास अब तो :)
ReplyDeleteजिय सीकुमार, बड़ सही लेखायी है..
ReplyDeleteआप इतना सर्वकालिक रच रहे हो कि बेटा बीस साल बाद इसे पढ़ कर कहेगा कि शायद डैडी ने कल ही लिखा है और मेरे डैड कितना समकालिक लिखते हैं...
ReplyDeleteबहुत सही!! मुझे गर्व है तुम्हारी लेखनी पर,,, और कोशिश करता हूँ कि कहीं नजदीक पहुँच पाऊँ या जरा सी ऐसी छाप दिखे मेरी लेखनी में भी.
बधाई..लिखते रहो.
असली किस्सा ये हुआ की " राजू बन गया ज़ेंटलमैन" बस और बवाल हो गया...होता है...अंतरात्मा जब जागती है तो बवाल होता है...इसीलिए कहते हैं न की भले इंसानों का जमाना नहीं है...राजू जब तक बदमाश था खूब चल रहा था शराफत से अपनी असलियत बताई तो बिचारा जेल जा रहा है... फनिल जी शरीफ बनेगे नहीं और बवाल होगा नहीं ....सुना है उनके भाई फुकेश जी भी अब उनका साथ देने की बात कर रहे हैं...उनकी याने फुकेश जी की डायरी नहीं मिली क्या आपको?
ReplyDeleteनीरज
हे भगवान तो ये था चार दिन पहले आपका गज्जू के समोसे खाने जी जिद करने का कारण ?
ReplyDeleteमै यहा सभी ब्लोगर भाईयो को सूचित कर देना चाहता हू कि पंडित शिवकुमार जी को पहले तो अपने घर या आफ़िस मे आंमत्रित ही ना करे और करे तो किसी भी तरह से उनकी बातो मे ना आये कभी आप इनकम टैक्स पर फ़्री की सलाह पाने के चक्कर मे फ़ाईल लेने जाये और पीछे से आपकी की मेहनत से कबाडी हुई डायरी या लेख सिरे से गायब मिले .
हम भी झोक मे आकर गज्जू के समोसो की बडाई कर गये थे और शिवजी के जोश दिलानेपर हम जो समोसे लेने निकले उसका नतीजा आज आप यहा छपी फ़निल डुबवानी की डायरी से देख सकते है . हमारे पर भरोसा कर हमारे उद्योग पति मित्र ने डायरी यहा रखने को दी थी और आज हमारी सारी साख शिवकुमार जी डायरी छाप मिट्टी मे मिलाय दिये है . शिव जी को समोसा खिलाने के खेद के साथ आपका पंगेबाज
डुबवानी बचा रहेगा...वह नहीं डूबेगा
ReplyDeleteवाह ! वाह ! वाह !
ReplyDeleteसही सटीक सार्थक !
बोले तो, एकदम बवाल ! छा गए ! जियो !
तुम्हारे इस विषय पर पोस्ट का बहुत बहुत इन्तजार था...
कलमे जोर ऐसी ही बनी रहे.
:) बेटा तो बीस सालb आद देखेगा, हम तो अभी ही कह रहे हैं कि क्या लिखते है शिवकुमार जी। सब अपनी अपनी डायरी छुपा लिए हैं
ReplyDeleteअरूण जी 'पंगेबाज' से हमारी पूर्ण सहानुभूति है..
ReplyDeleteशिव कुमार जी से मुझे ये उमीद नही थी की वो चौर्यकर्म में भी लिप्त होंगे...
मैं एक ब्लागर की डायरी लिखने जा रहा था, पता चल गया अब या तो लिखूंगा ही नहीं या फिर स्विस बैंक में रखूंगा, कहीं आपके हत्थे चढ़ गई तो???
ReplyDeleteवाह ! अब बेचारे कहाँ छुपायें अपनी डायरी, आप जैसे लोग सब उडा लाते हैं... :-)
ReplyDeleteये तो लेटेस्ट पन्ना उड़ा लाये आप. अब इस वर्ष की बाकी कहानी डुबवानी जी कहाँ लिखेंगे?
ReplyDeleteउद्योगपति फनिल डुबवानी की डायरी सार्वजनिक कर आपने भावी उद्योगपतियों का बड़ा उपकार किया है। मुझे ज्ञात हुआ है कि उनके पिता डिरबाई डुबवानी भी अपने पुत्रों के लिए ऐसी ही प्रेरणादायक डायरी लिखकर गए थे :)
ReplyDeleteज्ञान भैया की बात से सौ फ़ीसदी सहमति. और साथ ही यह भी बता दें कि हमने तो कभी कोई डायरी-वायरी लिखी ही नहीं और न भविष्य में लिखने का कोई इरादा ही रखते हैं. अगर कोई शख़्स अपने को शिवकुमार मिश्र कहते हुए कुछ भी लिख कर उसे मेरी डायरी का पन्ना बताने लगे, तो उस पन्ने को कृपया फ़र्ज़ी माना जाए. :)
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