कभी नाव गाड़ी पर और कभी गाड़ी नाव पर. गाड़ी नाव का ये खेल सदियों से होता आया है. सदियों पहले लोगों ने नाव बनाई होगी तो यही सोचकर कि ये गाड़ी को पार उतारेगी. और गाड़ी बनाई होगी तो भी यही सोचकर कि ये नाव को पानी में उतारेगी.
अभी जुलाई की बात है. सरकार को कौन बेलआउट करेगा और कौन आउट करेगा इसको लेकर क्या-क्या नहीं किया गया. कयास, प्रयास से लेकर उपवास तक. सरकार आउट नहीं हुई क्योंकि उसने अपने लिए नया बोर्ड गढ़ लिया था. अमर सिंह मैनेजिंग डायरेक्टर और मुलायम सिंह डायरेक्टर. बोर्ड के तीसरे मेंबर थे कैश.
अब ऐसा सॉलिड कम्बीनेशन और कहाँ मिलेगा? लिहाजा सरकार आउट नहीं हुई. तीन तिलंगे, मतलब अमर सिंह, मुलायम सिंह और कैश ने मिलकर सरकार को बचा लिया.
नहीं-नहीं कैश का मतलब मजनू नहीं. वो तो ख़ुद नहीं बच सके, सरकार को क्या बचायेंगे?
सरकार को बेलआउट मिल गया तो सरकार इस पोजीशन में आ गई कि दूसरों को बेल आउट कर सके. हवाई जहाज चलाने वाले फंस गए? बेल आउट कर दो. रीयल एस्टेट वाले फंस गए? बेल आउट कर दो. एक्सपोर्टर जी फंस गए? चिंता काहे का? हम हैं ना बेल आउट आउट करने के लिए.
आउट होने के कगार पर पहुँचने से पहले किसानों को बेल आउट किया ही जा चुका था.
सत्यम को उसके प्रोमोटर ने फंसा दिया तो क्या हुआ? उसे भी बेल आउट कर दो. वो तो नए बोर्ड में ढंग के लोग हैं, बोलकर सरकार का बेल आउट करने का प्रोग्राम बरबाद हो गया.
सत्यम को बेल आउट करने की घोषणा करके सरकार कितनी खुश हुई होगी. लेकिन सत्यम के नए बोर्ड ने बेल आउट लेने से मनाकर दिया. लगा जैसे सरकार निराश हो गई. ये सोचते हुए कि; "कैसे लोग हैं? यहाँ हम बेल आउट करने के लिए तैयार बैठे थे. ये लोग इतना निराश कर देंगे, नहीं पता था."
तिरपन हज़ार कर्मचारियों और उनके परिवार का 'आशीर्वाद' पक्का करने की कोशिश नाकाम कर दिया.
बेल आउट का ये मौसम खिचेंगा. काहे न खिंचे? चुनावी सालों में इन और आउट का खेल तो पहले होता था. एक ही खेल कितने दिन चलेगा? सरकार के साथ-साथ वोटर भी बोर हो जाता है. आख़िर कुछ तो नया हो. ऐसे में इन और आउट से आगे बढ़कर बेल आउट खोज लिया गया.
कभी-कभी लगता है जैसे सरकार और उसके मंत्री बेल आउट करने के लिए अकबकाये से कंपनी और सेक्टर खोज रहे हैं. रोज सरकार के मंत्री घर से निकल कर सड़क पर आ जाते हैं और लोगों को रोक-रोक कर पूछते हैं; "बेल आउट चाहिए?"
सामने वाला अगर ना कह देता होगा तो निराश हो जाते होंगे. फिर खोज पर निकल जाते होंगे.
सरकार की ये हालत देखकर लग रहा है जैसे चुनाव तक मंत्रियों के परफॉर्मेंस का पैमाना बेल आउट ही होगा. कौन सा मंत्री बेल आउट के लिए कितने केस लाया?
देखेंगे कि वित्त मंत्रालय के अफसर होम लोन से लेकर पर्सनल लोन लेने वालों को बेल आउट करते हुए दिखेंगे. हो सकता है कोई अफसर रतीराम जी तक को बेल आउट करने के लिए रोज उनके दूकान के चक्कर लगता हुआ दिखे. अगर रतीराम जी को बेल आउट की ज़रूरत नहीं है तो उनके ऊपर प्रेशर तक दे सकता है. आपको बेल आउट लेना ही पड़ेगा. कैसे नहीं लेंगे? अगर नहीं लिया तो हम आपको देख लेंगे.
अफसर रतीराम जी को बेल आउट करने पर पूरी तरह से उतारू हो जायेगा.
चुनावी भाषण में बेल आउट का ही जिक्र होगा. प्रधानमंत्री कहेंगे; "हमने जनवरी महीने में कुल चार लाख किराना स्टोर्स को बेल आउट पैकेज दिया. आपको ये जानकर खुशी होगी कि हमारे मंत्रियों ने बेल आउट के लिए दिन-रात एक कर दिया. आजतक किसी सरकार ने इस तरह से बेल आउट कार्यक्रम नहीं चलाया."
पूरा माहौल ही 'बेल आऊटीय' हो जायेगा. जनता कहलाने वाले लोग एक-दूसरे से पूछेंगे; "तुम्हें बेल आउट मिला कि नहीं?"
दूसरा बोलेगा; "हमने तो तीन बेल आउट एन्जॉय किया. तुम्हें कितना मिला?"
मंदी के इस दौर में कहीं तो तेजी दिखेगी. कुछ तो बढ़ेगा. घोटाला करने वाले उद्योगपति बेल मांगेंगे और सरकार बेल आउट करने के लिए सेक्टर और कंपनियों को खोजेगी.
हमें तो कल किसी ने बेल आउट नहीं दिया !
ReplyDeleteसारा दिन त्राहि त्राहि करते रहे !
सुन्दर प्रविष्टि. हम इसे पढ़कर आनन्दित होते रहे. धन्यवाद.
ReplyDeleteहमें भी बेल-आउट कराने की कोई व्यौस्था करा दो सर, एक ठो पेपर देना है
ReplyDeleteबंधू हम तो दो तरीके की बेल सुने हैं...एक तो वो जो क्रिकेट के khel में तीन dandon पे पड़ी रहती है...और जिसके गिरने से खिलाड़ी आउट हो जाता है...दूसरी वो जो पेड़ पर लगती है और जिसका रस पीने से रोगी शीतलता का अनुभव करता है लेकिन आउट नहीं होता...आप कौनसी बेल की बात कर रहे हैं? या फ़िर वो जो बिना सहारे के चढ़ नहीं सकती...???? याने जिसे बढ़ने के लिए किसी का सहारा चाहिए और ना मिलने पर वो जमीन पर ही लोट लगाने लगती है...जिसमें पत्ते और फूल फल भी लगते हैं...अगर ये सब नहीं तो छोडिये हमें किसी और बेल के बारे मैं जानने की चाह नहीं है...और जो आउट करे उस बेल के बारे में तो कभी नहीं...
ReplyDeleteनीरज
लाहोल विला कूवत!
ReplyDeleteहमे आपने घर से 'आउट' कर दिया.. और हम बाहर 'बेल' बजाते रह गये..
किसी शायर ने ठीक ही कहा है.. दिल के अरमा आँसुओ में बह गये..
bahut shai sir..
ReplyDeleteबड़ा बेल-आउटनुमा माहौल बन गया है.
ReplyDeleteमजा आया पढ़ कर.
बेल आउट नामक दवा हाई लेवल का स्टेरायड है जो चम्ताकारिक तो है पर लम्बे समय में हड्दियाम खोखली कर देती है. पर क्या किया जाए? चुनाव जीतना और सरकार बचाना तो इससे ही होगा ना.
ReplyDeleteअगर कोई जुगाड़ हो तो ताऊ बहुत कड़की में दिन निकाल रहा है और हेराफेरी भी रास नही आ रही है सो एक ठो बड़ा वाला बेल आउट पकेज दिलवा दीजिये या कुछ रास्ता बता दीजिये हम लट्ठ और अपनी चम्पाकली भैंस को लेकर पहुंच जायेगे. ससुरे फ़िर तो हमको बेल आउट देबे ही करेंगे ना. :)
रामराम.
ये बेल आउट का ऍप्लिकेशन फॉर्म कहाँ मिलता है और किस-किस चीज की फोटो कॉपी लगानी पड़ेगी? फीस-वीस, चाय-पानी का भी कुछ लगेगा क्या?
ReplyDeleteक्या करोगे..." समरथ को नही दोष गुसाईं ".....
ReplyDeleteसरकार के सारे पैकेज या तो उपरी परत (उद्योगपतियों),जो कि सरकार की नोट से मदद कर सकें,उनके लिए होती हैं या फ़िर निचली परत (गरीब) जो की वोट से सरकार को समृद्ध करती है,के लिए होती है......मध्यम वर्गीय के लिए कुछ नही होता.....
जो सचमुच कुछ कर दिखाने की तमन्ना लिए आर्थिक मदद(लोन) के लिए बैंकों या सरकारी संस्थाओं का मुंह जोहती हैं,उसके लिए सरकार के पास कुछ नही होता है......
सही और साधा हुआ व्यंग है तुम्हारा.
वाह ! मिसिर जी महाराज !
ReplyDeleteसही लिखा है . ससुरा पूरा समय ही 'बेल-आउटीय' हुआ जाता है .
पहले 'सेल आउट' होता है उसके बाद 'बेल आउट' . दोनों एक ही हैं . जो जान गया समझो ब्रह्म को जान गया .
"बेल रिटन".
ReplyDeleteवाह! जल्दी बेल-आउट मन्त्रालय का गठन होने वाला है!
ReplyDeleteचुनाव चिन्ह "बेल" या बिल्वपत्र रखने वाली पार्टी शर्तिया जीतेगी!
अपना हाल तो सत्यम के 0.000001% से ही चल जाएगा, कोई बेलआउट तो करे।
ReplyDeleteदो बेल आऊट के साथ एक बेल आऊट फ्री की पैकेज डील ढ़ूँढ़ रहा हूँ-पता लगे तो बताना.
ReplyDeleteअभी तो हम आपका बेल बजाने के फिराक में हैं.. मेरे अगले पोस्ट का इंतजार किजिये.. :)
ReplyDeleteये बेल भी अमरीका की लगाई लगती है । अबतक तो ये नेशनल कंपनियों को ही मिला करती ती अब out वालों को भी ।
ReplyDelete