Wednesday, February 11, 2009

ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

मित्रों, सोचा था आज अपनी खोपोली यात्रा के आगे का हाल लिखूंगा. लेकिन जैसे ही अपना मेलबॉक्स खोला झालकवि 'वियोगी' का मेल मिला. 'वियोगी' जी ब्लॉग-जगत के बड़े एविड रीडर हैं. कई ब्लॉगर बन्धुवों की पोस्ट पर कविता की शक्ल में टिप्पणी कर चुके हैं. आज अनूप जी ने अपनी पोस्ट में जो प्रश्न पूछा है; "ब्लॉगर का कैसा हो बसंत?" उसके जवाब में 'वियोगी' जी ने ये कविता लिखी है.

उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि चूंकि उनका कोई ब्लॉग नहीं है, इसलिए मैं अपने ब्लॉग पर उनकी यह कविता छाप दूँ. मैं यह कविता छाप रहा हूँ. आपलोग भी पढिये.

खोपोली यात्रा के आगे का विवरण कल लिखूंगा.

आ रही कानपुर से पुकार
फुरसतिया पूछें बार-बार
दे-देकर अक्षर पर हलंत
ब्लॉगर का कैसा हो बसंत

वैसे तो सब ब्लॉगर ठहरे
सब लिए ज्ञान-सागर गहरे
लेकिन कोई न कुछ बोलंत
ब्लॉगर का कैसा हो बसंत

अब झालकवि ने ठान लिया
फुरसतिया जी को मान दिया
और लिख डाली कविता तुंरत
ब्लॉगर का कैसा हो बसंत

गर ध्यान-कान दें सब ब्लॉगर
हम उलट झाल की दें गागर
पढ़ लें उपाय सब हैं ज्वलंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

जो गरम हुए न ठंडे हों
बस हाथ में उनके डंडे हों
जिसको दौड़ा दें वो भगंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

जो टंकी पर चढ़ जा बैठे
और गुस्से में हैं जो ऐंठे
टंकी ऊंची कर लें तुंरत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

जो अपने शहर से प्यार करें
जी भरकर वे तकरार करें
किस्से फैलें सब दिक्-दिगंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

जो औरों को गाली देते
औ वे भी जो ताली देते
जल्दी से बन जाएँ महंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

ये ब्लॉग-जगत की मार-धाड़
औ पोस्टों में सब चीर-फाड़
सब चलता रहे यूं ही अनंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

जो मेहनत करके लिखते हैं
जो रोज यहाँ पर दिखते हैं
उनकी पोस्टों को न पढ़ंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

अपनी जिद पर सब अड़े रहें
गाली दे पीछे पड़े रहें
इन बातों का न दिखे अंत
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

उनके'वियोग' में वृद्धी हो
हमरे उद्देश्य की सिद्धी हो
इस ब्लाग-जगत का यही मंत्र
ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

26 comments:

  1. बहुत अच्छी... हमारी भी यही कामना है..

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  2. ये मिसिर जी झूठ बोलते है जी.. हमने कोई मेल वेल नही किया इन्हे.. ये खुद ही कुछ ना कुछ उल्टा सीधा हमारे नाम से लिख लिख कर प्रकाशित करवाते रहते है.. और हमारा लिखा सोच कर लोग बाग टीपिया जाते है.. यदि ऐसा ही चलता रहा तो हम कोटा जाकर द्विवेदी साहब से कहके कर केस करेंगे... फायनेंस तो ज्ञान दादा से ले लेंगे.. उनके पास शब्दो का टोटा है पैसो का थोड़े ही... जब कुकुर को पाल सकते है.. तो इस झाल को पालने में क्या सोचना..

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  3. हे झालकवि 'वियोगी' आप की चरण पादुकाएं कहाँ हैं....मैं उन्हें भरत की भांति पूजना चाहता हूँ....ऐसे मेधावी कवि का ऐसा ही सम्मान होना चाहिए...धन्य है भारत भूमि जिस पर ऐसे विलक्षण कवि ने जन्म लिया...इस धरती को धन्य किया...क्या कविता लिखी है...एक एक शब्द ताम्रपत्र पर लिख कर जमीन में गाड़ देना चाहिए ताकि आने वाली नस्लें कभी इसे देखें और समझे की बीसवीं सदी में भी महान कवि हुए हैं जिन्होंने ब्लॉग जगत की समीक्षा अद्भुत ढंग से की है.....आपने अपने ब्लॉग पर उन्हें छाप कर अपने ब्लॉग का स्तर बहुत ऊपर उठा दिया है... श्रीमान आप भी धन्यवाद के पात्र हैं...

    नीरज

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  4. हम तो इतनी सुंदर कविता पढ़ एकदम से सच्ची में अभिभूत हो गए....
    हमारी मांग है कि, ऐसे महान विद्वान् कवि जिनका अपना ब्लाग न होते हुए भी ब्लाग जगत की इतनी गहन,विस्तृत जानकारी रखते हैं और ऐसे चिरंतन रचनाओं का खेल ही खेल में श्रृजन कर डालते हैं,कृपया अविलम्ब इनका अपना एक ब्लॉग खुलवाया जाय......इस से एक तो हमें इनकी महान रचनाएँ पढने का सौभाग्य मिलेगा और दूसरे यह देखने का भी सुअवसर भी मिलेगा कि अपना ब्लॉग रहते ये दूसरों की ख़बर कैसे लेते हैं......

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  5. बढिया-बढिया मेल आते है आपको।तक़दीर वाले हैं आप्।

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  6. अब झालकवि ने ठान लिया
    फुरसतिया जी को मान दिया
    और लिख डाली कविता तुंरत
    ब्लॉगर का कैसा हो बसंत
    respected झालकवि ji ne shandar kavita likhi hai...hr shabd mey sacchai hai...yhi to ho rha hai aajkul...."

    Regards

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  7. बहुत सुन्दर। सुभद्रा कुमारी चौहान जी की कविता पुन: प्रस्तुत करने के लिये आप बधाई के पात्र हैं।
    कभी मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा।

    भीगी पलकें

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  8. झालकवि तो बड़े प्रतिभावान कवि है... तुरत-फुरत में क्या कालजयी कविता लिखी है. तुरत-फुरत में इसलिए की इस पोस्ट और शुकुलजी के पोस्ट के टाइम का अन्तर ही कितना है... और इस बीच मुझे पता है झालकवि बड़े व्यस्त भी थे. जय हो !

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  9. अपनी जिद पर सब अड़े रहें
    गाली दे पीछे पड़े रहें
    इन बातों का न दिखे अंत
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

    उनके'वियोग' में वृद्धी हो
    हमरे उद्देश्य की सिद्धी हो
    इस ब्लाग-जगत का यही मंत्र
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत
    हा हा हा बिल्कुल ठीक सोचा है आपने।

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  10. -झालकवि ’वियोगी’ जी की शान में समर्पित-

    न हो चाहत हरियाली की
    न अमन शांत बहाली की
    बस कहो चियारे चार दंत
    ब्लॉगर का कैसा हो बसंत

    वो बात बात में फंसते हैं
    फिर स्वांग हमेशा रचते हैं
    झगड़ों का कभी न होए अंत
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

    न बात किसी की मानी है
    भड़काने की बस ठानी है
    देते जाबाब वो रहे तुरंत
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

    जो बोलें वो तो दिखते हैं
    जो चुप हैं वो भी पिटते हैं
    डाकू जब हो जायें संत
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत

    जब झालकवि भी आ गायें
    और प्रेम प्रथा को सिखलायें
    चेलों को साधे रहे महंत
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत.

    -झालकवि जी को हार्दिक नमन. आशा है कविश्रेष्ट की रचनाओं से वैसे ही लगातार वास्ता पड़ता रहेगा जैसा कि इहाँ विवादों से. न वो इसे शांत होने देंगे और आपसे निवेदन है कि कविश्रेष्ट का प्रवाह अबाधित चलने दें और उन्हें नित अपने ब्लॉग पर स्थान दें. जय हो शिव बाबू की. जारी हो जायें खपोली यात्रा को लेकर. इन्तजार है.

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  11. "उनके'वियोग' में वृद्धी हो
    हमरे उद्देश्य की सिद्धी हो
    इस ब्लाग-जगत का यही मंत्र
    ब्लॉगर का ऐसा हो बसंत"

    यह भी खूब कहा, सच कहा.

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  12. झालकवि जी से..
    भाई मिसर जी के पाकिट में अनेक डुप्लीकेट हैं। आप का भी हो सकता है।
    पर कविता अच्छी है। लोग तो दूसरों की पेल देते हैं। मिसर जी ने अपनी या किसी और की आप के नाम से पेल दी तो आप को तकलीफ न होनी चाहिए।
    हाँ कोई कॉपीराइट का झगड़ा करे तो हमें जरूर बता दें। फागुन का महीना है सो कॉपीराइट सस्पैंड है।

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  13. भाई फ़ाल्गुन मे तो यूंही विवाद खत्म हो जाते हैं आखिर महिने से भी कम दूर होली है. सो अब विवादों से तौबा और बसंत के साथ होली की मस्ती शुरु करने काअ ऐलान होता है.

    आदर्णिय झालकवि जी सादर प्रणाम आपको.

    हमारे ब्लाग पर भी पधारे.

    भैस चढी चांद पर

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  14. वाह जोरदार रिजवाइंदर !

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  15. सब ब्लागरों ने कान दिया
    झालकवि का कहा मान लिया
    अब तो झगडे का हो अंत
    बिन्दास ब्लागरों को हो वसंत॥

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  16. ग़ज़्ज़ब..
    शिवजी ने छापी कविता बड़ी उड़ंत
    जग भूला कि मंदी आई इस बसंत

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  17. जब शिव जी ने भरमा डाला
    कवि झाल से यह कहवा डाला
    मुस्काकर सब सुन रहे पंत
    ब्लॉगर का ऐसा है वसंत :)

    छा गये भाई साहब...। कविवर का नया ब्लॉग कब खुल रहा है?

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  18. झालकवि ने सब को घुमा डाला। हम तो चुप्प ही रहेगें…:)

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  19. ये कैसी कर डाली फसंत ?
    के मुद्दा अब भी है ज्वलंत ।
    किस बात पे होवे है भिड़ंत ?
    जब ऊ भी संत औ ई भी संत ॥

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  20. क्या बढ़िया कविता लिखी है वियोगी जी ने !

    शिव जी और वियोगी जी का शुक्रिया ।

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  21. वाह क्या ब्लॉगरी वसंत है वियोग में भी भिडंत है ।

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  22. waah, post ke saath tippanni aur maze daar hain, kaise tippanayayen - kahin koi is par n blogariya daale.

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  23. भाई शिवकुमार जी! कविता तो आपने या आपके दावे के मुताबिक कविवर झालकवि वियोगी जी ने बहुत अच्छी लिखी. ऐसी कि मज़ा आ गया. लेकिन एक बात ये आपने नहीं बताई कि फुरसतिया जी ने हलंत कौन से अक्षर पर दिया था? कृपा करके इस विषय पर भी कुछ प्रकाश डालें.

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  24. बस ठीक ऐसा ही हो ब्लॉगर का बसंत :) :)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय