शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Friday, February 13, 2009
हम खोपोली घूम आए....खंडाला, लोनावाला में डूबता सूरज
नाश्ता करते-करते बातचीत भी हुई. खाने या नाश्ते के टेबल पर बात करना एक निहायत ही बेसिक मानवीय गुण है. ड्राईंग रूम के सोफे पर बैठे हम टीवी देखते हैं. कहीं और भी साथ में बैठे रहें तो बातचीत नहीं करते लेकिन डायनिंग टेबल पर बैठे नहीं कि उसे कांफ्रेंस टेबल में बदल डालते हैं.
नीरज भइया ने हमसे पूछा कि वहां तक पहुँचने में कोई असुविधा तो नहीं हुई?
उनका यह प्रश्न सुनकर मुझे फ़िल्म शोले की याद आ गई. ठाकुर बलदेव सिंह जी ने जय और वीरू बाबू से यही सवाल किया था. हमें लगा कि ठाकुर साहब ने तो यह सवाल इसलिए किया था कि उन्होंने जय और वीरू जी को लेने किसी को स्टेशन नहीं भेजा था. लेकिन नीरज भइया ने अशफाक भाई को भेजा था. फ़िर ऐसा सवाल क्यों?
तभी मुझे अचानक लगा कि नीरज भइया ने यह सवाल मेजबान-धर्म का पालन करते हुए पूछा है. हमने मेहमान-धर्म का पालन न करते हुए उन्हें बताया कि कोई असुविधा नहीं हुई. आख़िर मेहमान धर्म का पालन क्यों करूं? मैं कोई मेहमान थोड़े न था.
मेहमान होता तो और कुछ नहीं तो यही कह देता कि; "एक असुविधा हुई. आपके ड्राईवर गाड़ी इतनी अच्छी चलाते हैं कि कोई तकलीफ ही नहीं होती."
आप पूछेंगे कि तकलीफ नहीं हुई तो इसमें कहाँ की असुविधा? तो मेहमान के रोल को निभाते हुए मेरा जवाब यह हो सकता है कि; "हमें तकलीफ में रहने की आदत पड़ी हुई है. ऐसे में तकलीफ नहीं होती तो हम बेचैन हो जाते हैं."
इसे कहते हैं प्रायोजित तकलीफ की सृष्टि.
शाम को नीरज भइया ने बताया कि खंडाला और लोनावाला जैसी मशहूर जगह खोपोली के पास ही है. कोई आठ- दस किलोमीटर दूर. उनके द्बारा दी गई इस सूचना ने हमारे लिए प्लीजेंट सरप्राइज की उत्पत्ति की. आख़िर हमें पता थोड़े न था कि हम इतनी प्रसिद्द जगहों के करीब हैं.
आपके मन में अगर सवाल हिचकोलें मार रहा हो कि खंडाला कौन तो हम यही कहेंगे कि; " अरे वही खंडाला जिसने अमीर खान की 'फेमसता' में चार चाँद लगा दिए थे. गायक बना दिया था....." ओह, ये वाकया नहीं मालूम? कोई बात नहीं. हम फिर से बताते हैं. अरे वही खंडाला जिस जगह पर फिल्मी सेठों के बंगले वगैरह हुआ करते हैं.
आशा है अब समझ गए होंगे. अगर अब भी नहीं समझे तो हमें थोड़ा समय दीजिये कि हम कोई और निशानी लेकर आयें....अच्छा, अच्छा..समझ गए? चलिए बढ़िया बात है.
वैसे खंडाला और लोनावाला के नज़दीक होने की इस सूचना के साथ-साथ उन्होंने हमें सनसेट देखने के लिए उकसाया. हम तुंरत उकस गए.
ये सनराइज और सनसेट का मामला भी अजीब है. जब तक अपने घर और शहर में रहते हैं, सनराइज, सनसेट से नाता वैसे ही टूटा रहता है जैसे पकिस्तान से डेमोक्रेसी का.
कितनों का नाता तो सन से ही टूटा रहता है. सनसनाकर सबेरे उठते ही आफिस जाने के लिए ऐसे लुढ़कते हैं कि कोई सन याद नहीं रहता. न ऊ वाला और न ई वाला.
लेकिन अपने शहर से बाहर हुए और दूसरे शहर में पहुंचे नहीं कि सनराइज की बात राइज हो जाती है. साथ में सनसेट की बात भी सेट-इन कर जाती है.
मेजबान से पूछना शुरू कर देते हैं; "अच्छा ये बताईये, आपके यहाँ सनराइज कब होता है?....अच्छा. सात बजे? और सनसेट?..अच्छा, अच्छा वो साढ़े छ बजे! हे हे हे... हमारे शहर में तो सन पहले ही राइज हो जाता है. इस मामले में हम लकी हैं. अरे भाई पूरब में जो रहते हैं."
सुनकर लगता है जैसे इनका शहर नहीं होता तो सन महाराज राइज ही न कर पाते. मेजबान अपना माथा ठोंक लेता है. ये सोचते हुए कि 'सन ने राइज और सेट किया. ऐसे में ये लकी कैसे हुए?'
खैर, सनसेट देखने के लिए हम लोनावाला की तरफ़ दौड़े. रास्ते में चक्कियों की दुकानें खूब दिखाई दीं. चक्की माने आटा वाली चक्की नहीं. चक्की माने एक मिठाई जो वहां की स्पेसिअलिटी है. एक ही नाम से कई दूकानें दिखीं.
एक ही नाम की कई दूकानों को देखकर मुझे कलकत्ते के प्रसिद्द सोना-चाँदी व्यापारी लख्खी बाबू की याद आ गई. जो लोग कलकत्ते में रहते हैं वे जानते हैं कि चौरंगी से भवानीपुर के बीच लक्खी बाबू के असली दूकान के नाम से कोई सौ दुकानें हैं. पता ही नहीं चलता कि असली कौन सी है.
देखकर लगता है कि अलीबाबा ने चोरों को कन्फ्यूज करने के लिए घरों पर निशान लगाने का आईडिया इन्ही दूकानों को देखकर उठाया था. दूकानों के नाम ऐसे कि पढ़ने वाला सोचता रह जाए कि दूकान असली है, सोना असली है या लक्खी बाबू असली हैं. दूकानों का नाम ही इसी तरह से लिखा होता है. कहीं लिखा रहता है; "लक्खी बाबू की असली सोना-चाँदी की दूकान"...कहीं लिखा रहता है; "असली लक्खी बाबू की सोना-चाँदी की दूकान"...कहीं लिखा रहता....
खैर आते है लोनावाला में.हम लोनावाला पहुंचे तो हमने महसूस किया कि सनसेट में अभी काफी समय बाकी है. नीरज भइया ने हमें बताया कि सहारा ग्रुप द्बारा तैयार किया गया प्रसिद्द 'नगर' ऐम्बी वैली भी नज़दीक ही है. हम ऐम्बी वैली देखने गए. सुना है वहां अजीत अगरकर और पार्थिव पटेल के भी फ्लैट हैं.
वहां पहुंचकर पता चला कि चूंकि हमने मुंबई आफिस से कोई पास नहीं लिया है इसलिए हमें अन्दर जाने की मनाही है. अब मनाही है तो है. क्या करते? लौट आए.
वैसे नीरज भइया से ऐम्बी वैली के बारे में सुनकर हमें लगा जैसे वहां के पहाड़, झीलें, जंगल और वहां का सबकुछ सरकार ने बड़े सस्ते में ही उद्योगपतियों को थमा दिया होगा. अगर भारत नदी, पहाड़, जंगलों वगैरह से मिलकर बना है तो निश्चित तौर पर भारत की बिक्री जारी है.
खैर, वापस लोनावाला के एक सनसेट पॉइंट पर आए. देखकर सोचने लगे कि सूरज अगर पहाड़ों के पीछे ही डूबता है तो पहाड़ तो उत्तर प्रदेश और झारखण्ड में भी हैं. फिर वहां कोई लोनावाला या खंडाला जैसी जगह क्यों नहीं बन सकी. क्या वहां के पहाड़ ऐसे हैं कि सूरज उनके पीछे डूबने के लिए राजी नहीं होता?
सनसेट पॉइंट पर लोगों का उत्साह देखकर निश्चिंत हो लिए कि लोनावाला के पहाड़ों के पीछे डूबने में सूरज को भी कोई गुरेज नहीं है. यही कारण था कि इतने सारे लोग जुटे थे. युवाओं की टोली थी. परिवार थे. साधु थे. सैलानी थे. बाहर से आए इनलोगों को संभालने के लिए वहां के दूकानदार थे.
पकौडियां तली जा रही थी. भुट्टे भुने जा रहे थे. चाय बन रही थी. चेहरे खिले हुए थे. मुंह के दांत बिजी थे. कैमरों से आवाज़ आ रही थी. पोज बनाये जा रहे थे. पोज ठीक किए जा रहे थे. मोबाइल फ़ोन का उपयोग बात करने के लिए बंद था. उनसे फोटो खीचे जा रहे थे. बीच-बीच में दाएं-बायें होने की हिदायत देती आवाजें सुनाई दे रही थीं.
एक परिवार के चार-पाँच लोग आए. परिवार के मालिक से दिखने वाले सज्जन उस जगह के वेटरन लगे. क्योंकि आते ही दूकानदारों से उनसे दुआ-सलाम किया. उनका पूरा परिवार सनसेट देखने के लिए सूरज की तरफ़ आँख लगाकर खड़ा हो गया और वे साहब कुर्सी पर सूरज की तरफ़ पीठ करके पकौडियां खाने लगे. उन्हें देखकर लगा कि आए तो परिवार की इच्छा से हैं. लेकिन सूरज को डूबते हुए देखने से उन्हें खासा कष्ट होता होगा इसलिए सूरज की तरफ़ पीठ करके पकौडियां खा रहे हैं.
नीरज भइया ने बताया कि वहां का भुट्टा बढ़िया होता है. हमने भुना भुट्टा खाने की कोशिश की. लेकिन भुट्टे में भरी मिठास ने हमें निराश कर दिया. हम तुंरत चाय पीने पर उतारू हो गए.
तीन-चार लोगों की एक टोली थी. उसमें से जिनके हाथ में कैमरा था वे अपने साथी को हिदायत दे रहे थे; "दोनों उँगलियों इस तरह से रखो कि सूरज दोनों के बीच दिखाई दे." उनका दावा था कि वे ऐसी तस्वीर खींचेंगे जिसे देखकर लगेगा कि उनके साथी ने सूरज को अपने दो उँगलियों में जकड़ रखा है.
उन्हें ऐसा करता देख मुझे पता नहीं क्यों हनुमान चालीसा की "लिल्योहि ताहि मधुर फल जानू..." वाली लाइन याद आ गई.
हमने भी सूरज को डूबते देखा. तसवीरें ली. कैमरे के साथ कलाकारी दिखाने की हमारी जितनी औकात थी, हमनें सब दिखा दी. आस-पास के लोगों के ऊपर हँसे. ये सोचते हुए कि वो बचकाना हरकतें कर रहा है. युवाओं की एक टोली हमारे पास ही थी. उनमें से अचानक दो हंसने लगे. हमें लगा कि वे भी हमें बचकाना हरकतें करने वाले समझते होंगे.
सूरज डूब गया तो लगा कि जैसे अब करने के लिए कुछ बचा ही नहीं. हम वापस चले आए.
नीरज भइया के साथ हम...
तो.... 'सन' को पूरी तरह 'सेट' कर आए.....
ReplyDeleteजोरदार संस्मरण,लाजवाब विवेचना.......
नीरज भाई के तो हाथ है ना, तो फिर ये शोले के ठाकुर क्यों याद आए? क्या नीरज भाई भी कोई ‘भाई’ है:)
ReplyDeleteबहुत रोचक.. आपके साथ हम भी घूम लिये... तस्विरें आपने बहुत ली पर हमारे लिये केवल एक.. ऐसी भी क्या कंजुसी है..:)
ReplyDeleteवाह जी वाह बहुत ही अच्छा एवं रोचक विवरण दिया है आपने लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि भुने भुटटे की मिठास ने निराश क्यूं कर दिया जरा
ReplyDeleteबंधू रंजन भाई से यूँ तो हम वाकिफ नहीं लेकिन उनकी समझदारी से बहुत वाकिफ हो गए हैं...पिछली पोस्ट पर उन्होंने हमारी खोपोली वाली पोस्ट पढ़ी और इस बार उन्होंने बहुत ही समझदारी वाला सवाल पूछा है....वो ये की आपने अपनी इस यात्रा पोस्ट में मात्र एक ही फोटो क्यूँ लगाया है...आप पाठकों को खोपोली और उसके सन सेट के चित्रों से वंचित क्यूँ रखना चाहते हैं? दूसरे ये की क्या खोपोली में सिर्फ़ सनसेट ही ऐसा था जिसके बारे में लिखा जाए....और कुछ नजर नहीं आया...??? क्या ये श्रृंखला का अंत है या आप इस यात्रा पर और प्रकाश डालना चाहेंगे...??
ReplyDeleteनीरज
bahut badhia likha. aur bhi photo post karte.
ReplyDelete"उन्हें ऐसा करता देख मुझे पता नहीं क्यों हनुमान चालीसा की "लिल्योहि ताहि मधुर फल जानू..." वाली लाइन याद आ गई." आपको भी क्या सटीक लाइन याद आई हम हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए. बहुत दिनों के बाद इतनी मजेदार हँसी आई है. आगे से अब ऐसी जगह पर ये लाइन तो याद आएगी ही. वाह !
ReplyDeleteलोनावाला में हमारे साथ भी ऐसा हुआ था हम थोड़ा पहले पहुच गए थे पीछे से आने वालों ने फोन किया की कहाँ हो... हमने बता दिया की मगनलाल चिक्की वाले की दुकान के पास हैं. थोडी देर में फोन आया की आने यहाँ तो सभी मगनलाल ही हैं. हमने कहा 'ओरिजनल मगनलाल'. उसने फोन तो रख दिया लेकिन २ मिनट बाद फिर गरियाते हुए फोन आया की साले काहे मौज ले रहे हो बताओ कहाँ पर हो :-)
बहुत मनोरंजक संसमरण . बडा आनन्द आया .
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर संस्मरण । आपने लोणावळा की चिक्की की याद दिला दी । (चक्की नही)
ReplyDelete@ आशा जी
ReplyDeleteअसल में चक्की इसलिए लिखा गया क्योंकि हमलोग चक्की ही कहते हैं. वहां के हिसाब से यह चक्की नहीं बल्कि चिक्की है.
शिव भाई
ReplyDeleteसनसेट वृतांत बेहतरीन रहा. अब खपोली यात्रा वृतांत लिखिये. तस्वीरें तो खैर और डालना ही है. यह भी तो बताओ कि क्या बात हुईं, कहाँ खाँ और घूमें. भूषण स्टील भी गये होगे. कुछ खाया पिया भी होगा..कि बस सन सेट और चक्की..:)
शिव जी,
ReplyDeleteमजा आ गया. अभी तो आप लोनावाला में ही हो, फटाफट वहां से वापस आओ और खंडाला में भी घुमाओ हमें.
Shiv bhai,
ReplyDeleteNeeraj bhai,
Sun set ki aur aapki tasveer achchee lagee aur yatra vivran bhee ...
shubhkamna sahit,
- Lavanya
हम भी खिलखिला रहे हैं। अब ई न बतायेंगे कि पढ़ने वाले पर या लिखने वाले पर। तस्वीर लगाने में कंजूसी का आरोप प्रथम दृश्ट्या सही साबित होता है।
ReplyDeleteइतना सुन्द्र वृत्तांत कि अगर हम खपोली रहते भी हों तो उस स्थान पर मुग्ध हो एक बार फिर देखने निकल जायें।
ReplyDeleteइस लेखन पर तो प्रोफेशनल लेखक भरें पानी!
शानदार आगाज के साथ सारी बात आप कह गए । पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।धन्यनवाद
ReplyDeleteशिव कुमार जी आपकी पोस्ट काफी रोचक लगी ...आपकी लेखनी ने इस में चार चाँद लगा दिये...
ReplyDeleteनीरज जी काफी खुशमिजाज इंसान हैं हर कोई इनसे प्रभावित है और इनकी गजलें...? माशा अल्लाह....!लोनावला मैं भी गई थी काफी अरसे पहले वहाँ एक झील थी अब नाम याद नहीं...मैं उसके किनारे काफी
देर बैठी थी कुछ यादें भी जुडी हैं उससे...
shiv ji , gyaan ji ,
ReplyDeletemain sirf neeraj ji mil paaya , unke gaon nahi ja paaya , aapke lekh me uska varnan padhkar aanad aa gaya ..
maza aa gaya padhkar
aapko shivraatri ki shubkaamnaayen ..
Maine bhi kuch likha hai @ www.poemsofvijay.blogspot.com par, pls padhiyenga aur apne comments ke dwara utsaah badhayen..