छोटी सी ये दुनियाँ, पहचाने रास्ते हैं...कभी तो मिलोगे...कहीं तो मिलोगे...तो पूछेंगे हाल...
वर्षों पहले सुने इस फिल्मी गाने की याद हाल ही में ताजा हो गई. जब याद आया तो लगा जैसे गीतकार को हिन्दी फ़िल्म उद्योग के तमाम लोगों ने मिलकर चंदा जुगाड़ करके नॉर्मल से ज्यादा पैसा देकर ये गाना लिखवाया होगा.
मन में आया कि इस गाने को लिखवाया ही इसीलिए गया ताकि हिन्दी सिनेमा के लिए लिखी जानेवाली कहानियों का मार्ग प्रशस्त किया जा सके.
हाल ही में मुझे टीवी पर 'सिंह इज किंग' नामक फिलिम के दर्शन हुए. सुन रक्खा था कि साल २००८ की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म थी, सो दर्शन करने बैठ गया.
आप पूछ सकते हैं कि इतनी पुरानी फिलिम के बारे में लिखने की क्या ज़रूरत है? जब लोग स्लमडॉग मिलेनयर और देव डी के बारे में चर्चा कर रहे हैं उस समय सिंह इज किंग के बारे में लिखने की क्या ज़रूरत है?
तो जी मेरा जवाब यह है कि फिलिम पुरानी हुई तो क्या हुआ, मैंने तो हाल ही में देखी. ऐसे में और क्या किया जा सकता है? स्लमडॉग मिलेनयर सात महीने बाद में देखूँगा तो उसपर भी लिख डालूँगा.
हाँ तो मैं बात कर रहा था सिंह इज किंग के बारे में.
यह फ़िल्म हैपी सिंह जी के बारे में है. हैपी सिंह जी 'हैपी गो लकी टाइप' बन्दे हैं. बढ़िया बॉडी के मालिक. गाँव में रहते हैं. कोई काम-धंधा नहीं करते. गाँव में बेरोजगारी रहती है न. वैसे तो गाँव वाले इन्हें निकम्मा समझते हैं लेकिन हैपी जी नाच-गाने में माहिर हैं. बढ़िया भांगड़ा 'पाते' हैं. गाँव में शादी-व्याह के मौके पर यही नाचते-गाते हैं.
हैपी सिंह जी की एक समस्या है. ये सच बोलते हैं. सच के सिवा और कुछ नहीं बोलते. अब सच बोलेंगे तो समस्या खड़ी होगी ही. कहते हैं कि सच कड़वा होता है. इसीलिए इनके सच बोलने से गाँव वाले त्रस्त रहते हैं. इस त्रस्तता से बचने के लिए गाँव वाले हैपी जी को ऑस्ट्रेलिया भेज देते हैं. ऑस्ट्रेलिया जाकर उन्हें वहां से लकी सिंह जी को अपने पिंड वापस लाने का जिम्मा सौंपा जाता है.
लकी सिंह जी हैपी जी के ही पिंड के हैं और अपनी प्रतिभा के बूते पर ऑस्ट्रेलिया में रहकर डॉनगीरी करते हैं. उनके माँ-बाप अपने गाँव में हैं और लकी सिंह जी के वापस आने की राह तकते हैं. राह तकते-तकते बीमार भी हो जाते हैं. गाँव वाले लकी सिंह जी से नाराज़ हैं क्योंकि उन्होंने डॉनगीरी अपनाकर अपने पिंड का नाम पूरा मिट्टी में मिलाय दिया है.
खैर लकी सिंह जी को लाने के लिए हैपी जी को आस्ट्रेलिया भेजने का प्रस्ताव पिंड में पारित हो जाता है और हैपी जी आस्ट्रेलिया के लिए रवाना कर दिए जाते हैं. ऑस्ट्रेलिया जाते समय हैपी सिंह जी को कुछ समय के लिए ईजिप्ट में रुकना पड़ता हैं. ऑस्ट्रेलिया का रास्ता ईजिप्ट से होकर गुजरता है.
ये नया एयर रूट है.
ईजिप्ट में हैपी जी की मुलाक़ात एक लड़की से होती है. लड़की भारतीय है. साथ में पंजाबन भी. चेहरे-मोहरे से पहली नज़र में लड़की फिलिम की हीरोइन टाइप लगती है. हीरोइन पंजाब में नहीं रहती इसलिए हैपी सिंह जी उससे पंजाब में नहीं मिल पाते. लेकिन चूंकि हीरोइन से हीरो को मिलना ही है इसलिए ईजिप्ट में दोनों की मुलाकात होती है.
वैसे भी ईजिप्ट देखने में बढ़िया जगह लगी. ऐसे में हीरो और हीरोइन के लिए यही अच्छा था कि दोनों वहीँ मिल लेते. हीरो को हीरोइन से ईजिप्ट में मिलाकर डायरेक्टर ने फिर से छोटी सी ये दुनियाँ पहचाने रास्ते हैं....वाली बात साबित कर दी.
हीरोइन के साथ हैपी सिंह जी ईजिप्ट में भी वैसे ही मिलते हैं जैसे भारत में मिलते. ईजिप्ट का एक चोर हीरोइन के हाथ से पर्स छीनकर भागता है. हैपी जी उसका पीछा करते हैं और दौड़ने के मामले में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करके हीरोइन का पर्स वापस लाते हैं.
इस सीन को दिखाकर डायरेक्टर ने साबित कर दिया दुनियाँ चोर और हीरो से भरी पड़ी है. क्या भारत और क्या ईजिप्ट, चोर और हीरो दोनों जगह हैं.
चोर का काम है हीरोइन का पर्स चोरी करना और हीरो का काम है दौड़कर चोर को पकड़ना, उसको रिक्वायरमेंट के हिसाब से पीटना, पर्स लेकर हाँफते हुए वापस आना और हीरोइन को देना. इतना सबकुछ करके हीरो थक जाता है. कुछ और करने के लिए नहीं बचता इसलिए हीरोइन से प्यार करने लगता है.
इन सिद्धांतों पर चलते हुए अपना कर्तव्य निभाकर हैपी जी उस लड़की से प्यार करने लगते हैं.
हीरोइन को यह बात मालूम नहीं है. इसीलिए हैपी जी को अलाऊड नहीं है कि वे लड़की के साथ पार्क, सड़क, पहाड़ या कहीं और गाना गा सकें. जब तक हीरोइन को हीरो के प्यार का पता नहीं चलता उन्हें हीरोइन के साथ सपने में गाना गाकर संतोष करना पड़ता है. इस सिद्धांत का पालन करते हुए हैपी जी उस लड़की के साथ सपने में एक गाना गाकर ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना हो जाते हैं.
वे ऑस्ट्रेलिया तो पहुँच जाते हैं लेकिन इनका समान वहां नहीं पहुँच पाता. ये एयरलाइन्स का बिजनेस जो चौपट हुआ है वो ऐसे ही नहीं हुआ है. बड़ी अव्यवस्था हैं जहाज चलाने वाली कंपनियों में. हैपी सिंह जी का सामान ऑस्ट्रेलिया नहीं पहुंचाकर डायरेक्टर ने इस समस्या को बखूबी दिखाया है.
खैर, हैपी सिंह जी आस्ट्रलिया पहुंचकर लकी सिंह जी के पास जाते हैं और उनसे गाँव वापस लौटने की बात कहते हैं. ठीक वैसे ही जैसे गाँधी जी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए कहा था.
वे लकी सिंह जी को बताते हैं कि किस तरह गाँव में उनके माँ-बाप बीमार हैं. लकी सिंह जी उनकी बात नहीं मानते और उन्हें अपने घर से बाहर फेंकवा देते हैं. हैपी जी को वापस आना पड़ता है.
सामान वाले बैग में ही हैपी जी का रुपया-पैसा रखा है. रुपया पास में नहीं है इसलिए इन्हें खाना नहीं मिल पाता. भूखे-प्यासे वे सड़क किनारे रखी एक बेंच पर लेट जाते हैं. इन्हें लेटा देख एक महिला आती है. संयोग देखिये कि ये महिला भारतीय है. साथ में पंजाबन भी.
वही...छोटी सी ये दुनियाँ वाली बात....
ये महिला हैपी जी की पंजाबियत देखकर खुश हो जाती है. उन्हें खाना खिलाती है. महिला फूलों की एक दूकान की मालकिन है. हैपी जी उसकी दूकान पर काम करने लगते हैं.
संयोग देखिये कि लकी सिंह जी एक दिन इसी महिला की दूकान से फूल मंगाते हैं. उनके यहाँ पार्टी-वार्टी थी. डॉन पार्टी तो मनायेगा ही. ऐसी पार्टियों में गाना वगैरह की भी उत्तम व्यवस्था होती ही है. लकी सिंह जी की पार्टी में हैपी जी फूल लेकर जाते हैं.
हैपी जी फूल लेकर जब बोट पर आयोजित पार्टी में जाते हैं तभी लकी सिंह जी के दुश्मन बोट पर अटैक कर देते हैं. लकी सिंह जी को गोली लग जाती है. वे अस्पताल पहुँच जाते हैं. अस्पताल में बिस्तर पर लेटे-लेटे उन्हें पता चलता है कि वे अपनी आवाज़ खो चुके हैं.
आवाज़ खोने की वजह से अपने दल-बल को वे इशारे से कुछ समझाने की कोशिश करते हैं. उनके दल-बल वाले उनके साथ सालों तक काम करने के बावजूद उनका इशारा नहीं समझ पाते. गलतफहमी का नतीजा यह होता है कि हैपी सिंह को लकी सिंह जी का धंधा चलाने का मौका मिल जाता है.
धंधे भी कैसे-कैसे. देखकर पता चला कि भारत और आस्ट्रेलिया की कानून-व्यवस्था एक जैसी है. भारत और आस्ट्रेलिया में बिजनेसमैन से लेकर पुलिस और डॉन से लेकर चोर तक, सब एक जैसा ही सोचते और करते हैं.
जैसे लकी सिंह जी से आस्ट्रेलिया की पुलिस उतना ही डरती है जितना भारत की पुलिस किसी भारतीय डॉन से डरती. जैसे फुटपाथ पर ठेला लगाकर खाना बेचने वाले होटल वालों का धंधा आस्ट्रेलिया में भी उतना ही चौपट करते हैं जितना भारत में करते हैं.
जिस महिला ने हैपी जी की मदद की थी, हैपी जी उसकी मदद करते हैं. संयोग देखिये कि वे जिस लड़की से ईजिप्ट में मिले थे, वो इस महिला की बेटी है....वही..छोटी सी ये दुनियाँ वाली बात...
तमाम मौज लेने के बाद और तथाकथित कॉमेडी की सात-आठ रील ख़तम करके हैपी जी लकी सिंह जी को बगल में दबाये अपने पिंड वापस आते हैं.
फिलिम पूरी हो जाती है. पूरी होने के बाद रिलीज हो जाती है. रिलीज होने के बाद सबसे बड़ी हिट हो जाती है.
और हम पचीस वर्षों से यही सोचते-सोचते हलकान हुए जाते हैं कि हिन्दी सिनेमा में दुनियाँ इतनी छोटी कैसे हो जाती....निश्चित रूप से ये गाने का असर है.
वही...छोटी सी ये दुनियाँ पहचाने रास्ते हैं....
एन्ना आच्चे अन्ना?? एक ही दिन में कहानी भूल गये? :) हम तो फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखे थे फिर भी अभी तक याद है.. आस्ट्रेलिया का रास्ता ईजिप्ट से होकर नहीं जाता है.. वो तो टिकट अदला-बदली हो जाती है, जिसके कारण हमारे बहादुर हीरो ईजिप्ट पहूंच जाते हैं.. :D
ReplyDeleteतो जी मेरा जवाब यह है कि फिलिम पुरानी हुई तो क्या हुआ, मैंने तो हाल ही में देखी. ऐसे में और क्या किया जा सकता है? स्लमडॉग मिलेनयर सात महीने बाद में देखूँगा तो उसपर भी लिख डालूँगा.
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मैने तो फिलम नहीं देखी। पोस्ट भी आज ही पढ़ी है, इस लिये आज टिप्पणी कर देते हैं। जब जागे तभी सवेरा!
पढ़ कर लग रहा है बडे़ ध्या्न से फिल्म देखी आपने... अर्रे भूल गया फिल्म में ध्यान देने ्वाली भी कोई बात थी...:)
ReplyDeleteपिक्चर तो देखी हुई है, पर उसके बारे में इतनी गहराई से नहीं सोचा था।
ReplyDeletebahut acchhe sir, is baar main bhi aise hi filim dekhoonga.
ReplyDeleteमन्ने भी देखी थी यह फिल्म -आपकी समीक्षा ने एक एक दृश्य याद दिला दिए -मजेदार थी यह !
ReplyDeleteआप ने सही सोचा बंधू ये फ़िल्म "छोटी सी दुनिया पहचाने रास्ते...." वाली थीम पर बनी है लेकिन इसमें एक और गाने का पुट भी मिला दिया गया है...वो गाना है..." ज़िन्दगी इतिफाक है कल भी इतेफाक थी आज भी इतेफाक है...." क्यूँ की इस गाने के अनुसार इस फ़िल्म में इतने इतेफाक हैं की फ़िल्म का नाम ही इतेफाक होना चाहिए था ...हर सीन इतेफाक से आता है...और कितना बड़ा इतेफाक है की ये फ़िल्म हित हो गयी....इस गाने पर ढेरों फिल्में बनी हैं...कभी फुर्सत में याद दिलाएंगे...
ReplyDeleteफ़िल्म न दिमाग लगा कर बनाई गयी गई है और ना ही दिमाग लगा कर देखि जा सकती है...इसलिए इसपर चर्चा करना अपना दिमाग ख़राब करने वाली बात है...
नीरज
लो जी ना तो हमने फ़िल्म देखी और ना ही देखने वाले हैं, सो अब झूंठ मूंठ क्या टीपियाये? :)
ReplyDeleteरामराम.
हिन्दी फिल्मोँ का अपना फेन्टसी सँसार है ..शायद वही एक ऐसी जगह है जहाँ जादू की छडी से सब पूरा किया जाता है !
ReplyDeleteफिल्म हमने भी देखी है और सब कुछ अक्ल ताक पे धर कर मौज भी ली :)
- लावण्या
अच्छा और मजेदार विश्लेषण....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा। मज़ा आया।
ReplyDeleteचलिये आप ने समय ओर पेसा दोनो बचा दिये मै भी आज कल मे इसे देखने की सोच रह था, हमारे यहां आज कल सेल लगॊ है, सोचा शाय्द सेल मे फ़िल्म की टिकट भी लगी हो, तो लगे हाथ चार टिकटे ले लू, धन्यवाद अब बच्चो को सुना दुगा इस स्टोरी को...
ReplyDeleteहमने यह फिल्म नहीं देखी मगर अब ऐसा नहीं लग रहा. किसी से भी इस फिल्म के बारे में चर्चा करते समय १९ नहीं पडूंगा. आप जो भी फिल्म देखें उसका अगर ऐसा ही विश्लेषण कर दें तो काफी समय बाकी लोगों का बच जायेगा. :)
ReplyDeleteहम ने यह फिल्म नहीं देखी। वैसे भी अब फिल्म देखने का नंबर बहुत बहुत दिनों बाद आता है। वजहें तो आप ने इस आलेख में गिना ही रखी हैं।
ReplyDeleteपूरी फिल्म ही बाँच दी आपने तो
ReplyDelete" फ़िल्म हमने देखि है.......और कई बार क्योंकि आए दिन टेलिविज़न पर आती रहती है......मगर इतनी बारीकी से नही जितना अच्छा विश्लेष्ण अपने कर दिया....."
ReplyDeleteRegards
दरअसल इस फ़िल्म का एक ही संदेश था. "हम फ़िल्म बनने वालों से तुम फ़िल्म देखने वाले जियादा उल्लू हो " फ़िल्म कि सफलता इस बात का सूचक है की लोगों ने इस संदेश को स्वीकार किया
ReplyDeleteअजब गजब क़ी फिलिम समीक्षा... हालाँकि पी डी मोशाय सही कह रहे है.. टिकिट क़ी अदला बदली हो गयी थी.. और वहा भी संयोग देखिए जिस से अदला बदली हुई.. ये उसी हीरोइन का बॉय फ्रेंड है.. फिर से वही गाना याद आता है.. "छोटी सी.........
ReplyDeleteफ़िल्म तो हमें भी देखी है... पर बिना दिमाग का उपयोग किए. आपकी समीक्षा 'हट' के है. :-)
ReplyDeleteयही समीक्षा पहले लिख देते तो फ़िल्म और जाने कितने रिकॉर्ड कायम करती. खैर देर आयद दुरुस्त आयद...फ़िल्म तो हमने भी देखी थी, पर ये एंगल लगा के कभी सोचा नहीं था. ऐसा रिव्यू तो आज तक नहीं पढ़ा...एक दो और फ़िल्म की भी लिख दीजिये न प्लीज ऐसे रिव्यू पर तो फ़िल्म बन सकती है :)
ReplyDeletemaja aa gaya. lekin is umra me bhi mishra ji aap itni dilchspi le kar film dekhte hai
ReplyDeletebadhai o badhai
maja aa gaya. lekin is umra me bhi mishra ji aap itni dilchspi le kar film dekhte hai
ReplyDeletebadhai o badhai
सारी स्टोरी छाप दी , मै देखने जाने वाला था आज टिकट के पैसे भी बेकार गये . अब ५०० रुपये तुरंत भीजवा दो हम टिकट आपको भेज रहे है , मौज लेने का सरा मजा खराब कर दिये हो :)
ReplyDeleteहमने फिलम नहीं न देखी इसीलिए एक डाउट आ रिया है- हिरोइन इजिप्ट में मिली तो ‘मम्मी’ हुई ना?:)
ReplyDeleteआपने कमाल की सीन बाई सीन समीक्षा की है ।
ReplyDeleteफ़िल्म तो हमने भी टी.वी पर ही देखी है ।
बढ़िया ही कहा जाता है सो कह रहे हैं। वैसे आखिर में आप लिख देते -जैसे उनके दिन बहुरे, वैसे सबके दिन बहुरैं तो फ़िलिम कथा में थोड़ी वास्तविकता और चपक जाती!
ReplyDeleteबिना पिक्चरहाल गये या टीवी देखे एक बम्बइया फिल्म देखने का मजा आ गया...। यह ब्लॉग भी कमाल की चीज है। ...और आपका लेखन तो दर कमाल...।
ReplyDeletebahut accha blog hai.
ReplyDeleteDhanayvad.
holi gifts