रांची में ब्लॉगर मीट में शामिल होने का न्यौता मिला. चूंकि ये मीट पूर्वी भारत के ब्लॉगर भाईयों की थी इसलिए मैं ऑटोमेटिक क्वालीफाई कर गया. कहीं भी मेरे नाम का सेलेक्शन हो जाता है तो जानकर बड़ी खुशी होती है. पिछली बार इतनी खुशी तब हुई थी जब मुझे स्कूल की क्रिकेट टीम में सेलेक्ट कर लिया गया था.
हाँ, एक अन्तर है. स्कूल की क्रिकेट टीम में सेलेक्शन के कारण निहायत ही क्रिकेटीय थे और पूरी तरह से मेरी अपनी एबिलिटी के चलते थे. वहीँ इस मामले में भौगोलिक कारणों की वजह से सेलेक्शन हुआ.
आख़िर मैं कानपुर का ब्लॉगर होता तो पूर्वी भारत के ब्लॉगर सम्मलेन के लिए क्वालीफाई थोड़े न कर पाता.
करीब एक महीने पहले मीत साहब ने बताया था कि रांची में पूर्वी भारत के ब्लॉगर भाईयों का एक सम्मलेन होने वाला है, ऐसे में मुझे भी यह सम्मलेन अटेंड करने का मौका मिलेगा. उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं ख़ुद तो जाऊं ही, बालकिशन को भी साथ ले चलूँ. बालकिशन से बात हुई. वे जाने के लिए तैयार हो गए. यह बताते हुए टिकट भी कटवा लिया कि रांची में उनके कुछ और भी काम हैं. लिहाजा मीट के बाद दो दिन वे रांची में और रहेंगे.
उन्हें बाद में पता चला कि कोलकाता में अचानक निकल आया उनका काम ज्यादा महत्वपूर्ण था. टिकट रद्द करवाने के लिए इतना काफी था. उन्होंने मुझे निराश नहीं किया. अपना टिकट रद्द करवा लिया और रद्द टिकट के डिस्पोजल के लिए रद्दी की टोकरी खोजने लगे.
बाद में रंजना दीदी ने बताया कि वे भी इस सम्मलेन के लिए क्वालीफाई करती हैं. मैंने उनसे कहा कि हम जमशेदपुर से रांची चलते हैं. इससे नज़दीकी और बढ़ जायेगी.
जमशेदपुर में रंजना दीदी के घर से निकलने के लिए जब तैयार हो रहे थे उसी समय किसी टीवी न्यूज चैनल में रांची शहर की रविवारीय गतिविधियों की जानकारी देते हुए एक संवाददाता ने स्टूडियो में बैठे एंकर को बताया कि "आज यहाँ ब्लॉगर-मीट होने वाली है."
उसकी बात सुनकर मुझे मीट के पुख्ता इंतजाम का सुबूत मिल गया.
जमशेदपुर से निकले तो पता चला कि श्यामल सुमन जी भी हमारे साथ ही चलेंगे. इसी बहाने श्यामल जी से भी मिलना हुआ.
जमशेदपुर से रांची जाते वक्त हमने बालकिशन को फ़ोन करके पूछा; "तो क्या मैं वहां घोषणा कर दूँ कि तुम ब्लागिंग से संन्यास ले चुके हो?"
मेरी बात सुनकर वे बोले; "अरे ऐसे कैसे ले लेंगे संन्यास? बिना टंकी पर चढ़े संन्यास ले लेंगे? मुझे क्या ऐं-वै ब्लॉगर समझा है?"
ये कहते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि वहां जाकर बोलना कि बालकिशन एस एम् एस के थ्रू शिरकत करेंगे.
उनकी बात सुनकर मुझे उन कांफ्रेंस की याद आ गई जिनमें बड़े-बड़े नेता विडियो के थ्रू शिरकत करते हैं. बड़े लोग ऐसे ही होते हैं जी. मैं बालकिशन को ऐं-वें ब्लॉगर न समझ लूँ शायद इसीलिए उन्होंने एस एम् एस के थ्रू शिरकत की बात कही.
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें वहां शरीक समझा जाय और उनके बिहाफ पर मैं मीट में एक शेर भी दाग दूँ. शेर था;
गुलाब, ख्वाब, दवा, जहर, जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ, बता इंतजाम क्या-क्या है
मैंने मीत साहब तक बालकिशन की बात पहुँचा दी.
लोगों से पूछते-पूछते मीट की जगह पहुँच गए. बड़ा सा आई हॉस्पिटल. बिल्कुल ब्रांड न्यू. वहां पहुंचकर बैनर लगा देखा. अंग्रेज़ी भाषा में लिखा गया बैनर खूब फब रहा था. लिखा था;
"कश्यप आई हॉस्पिटल इन असोसिएशन विद झारखंडी घनश्याम डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम प्रजेंट्स अ कप ऑफ़ काफ़ी विद हेल्दी माइंड्स."
पढ़कर बड़ा अच्छा लगा. कभी कल्पना भी नहीं की थी कि कोई ब्लॉग भी कार्यक्रमों का प्रायोजक बन सकता है. इस लिहाज से घनश्याम जी का ब्लॉग कार्यक्रम के प्रायोजक के रूप में पहला ब्लॉग बना. अगर कोई ब्लॉग कहीं और कोई भी कार्यक्रम प्रायोजित कर चुका है तो ब्लॉगर भाई टिप्पणी में बता सकते हैं.
अगर ऐसा नहीं हुआ तो घनश्याम जी के ब्लॉग का नाम हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास में प्रथम प्रायोजक ब्लॉग के रूप में दर्ज हो जायेगा.
खैर, वहां पहुँचते ही मैंने घनश्याम जी को पहचान लिया. वे अपनी चिर-परिचित टोपी पहने हुए थे. मैंने उन्हें अपना परिचय दिया. मेरा परिचय पाकर उन्होंने संतोष जाहिर किया.
अन्दर पहुंचकर इंतजाम देखा तो अच्छा लगा. बड़ा भव्य इंतजाम था. बड़े से हाल में कुर्सियां सजी थीं. मंच न केवल लगा था बल्कि सज़ा भी था. फूल थे, गुलदस्ते थे जिन्हें देखकर लग रहा था कि उछलकर किसी के हाथ में ख़ुद ही न जा बैठे. कुर्सियों की कतारें जहाँ ख़त्म हो रही थीं वही पर खाने की एक टेबल सजी थी. उसपर कतार से व्यंजनों के बर्तन रखे थे. कैमरे शोर मचाने के लिए तैयार थे. मंच पर एक कोने में दीपक खडा था जो जलाए जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.
रंजना दीदी को लगा कि जब वहां ब्लॉगर आने वाले है तो फिर ये स्लोगन कि "अ कप ऑफ़ काफ़ी विद हेल्दी माइंड्स." क्यों लिखा गया?
मैंने अनुमान लगाते हुए कहा कि; "पत्रकार भी तो आने वाले हैं. शायद इसीलिए ऐसा लिखा गया है."
मेरे जवाब से वे संतुष्ट दिखीं.
हाल में घुसते ही मनीष कुमार जी और प्रभात गोपाल जी दिखाई दिए. मैंने उन्हें पहचान लिया. हाथ मिलाते हुए मैंने दोनों को अपना नाम बताया. मुझे देखकर दोनों आश्चर्यचकित हो गए.
प्रभात जी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि मैंने उन्हें पहचान लिया. वहीँ मनीष कुमार जी के आश्चर्य का कारण कुछ और ही था. उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं ही शिव कुमार मिश्र हूँ. उन्होंने बताया कि मेरे ब्लॉग पर लगी मेरी तस्वीर मुझे मेरे असली रूप से दस साल बड़ा करके दिखाती है.
उनकी बात सुनकर कुछ समय के लिए कैमरे पर से मेरा विश्वास ही उठा गया. वैसे मैं खुश भी हुआ. मुझे गाना याद आ गया; "जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं..."
बाद में मनीष जी ने मुझे आश्वासन दिया कि वे मेरी ऐसी तस्वीर खीचेंगे कि तस्वीर में भी मैं वैसा ही दिखूंगा जैसा हूँ. कुछ क्षणों के लिए लगा जैसे अब जीवन के दस एक्स्ट्रा साल बोनस में मिलकर रहेंगे.
कार्यक्रम की शुरुआत हुई. सबको गुलदस्ते भेंट कर दिए गए. फोटो खिच गए. तालियाँ बजी.
वहां बड़े-बड़े लोग आए थे. रांची के सबसे पुराने अखबार रांची एक्सप्रेस के संपादक बलबीर दत्त जी आए थे. तमाम नए पत्रकारों ने ब्लागरों को बताया कि उनलोगों ने पत्रकारिता के सारे गुर दत्त साहब से ही सीखे हैं. दैनिक आज के सह-संपादक थे. कुछ और संपादक थे. मॉस कम्यूनिकेशंस के छात्र थे.
संगीता पुरी जी थीं. धनबाद से लवली आई.बनारस से अभिषेक मिश्र आए. बोकारो से पारुल जी आई थीं.
खैर, बलबीर दत्त जी को कहीं और जाना था. लिहाजा उनसे पहले बुलवा लिया गया. वे बोले भी. खूब बोले. उन्होंने बताया कि ब्लागिंग कोई नई बात नहीं है. ये पहले से होती आई है. ब्लॉग पर मिलने वाली टिप्पणियों की तुलना उन्होंने संपादक के नाम लिखे गए पत्रों से की. ये तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे चालीस साल पहले संपादकों को पत्र लिखते-लिखते वे ख़ुद एक दिन संपादक बन गए.
ब्लागिंग और पत्रकारिता के बारे में थोडी सी बात करने के बात उन्होंने कार्यक्रम के प्रायोजक कश्यप आई हॉस्पिटल की डॉक्टर भारती कश्यप और उनके परिवार द्बारा आंखों की चिक्तिसा में किए गए योगदान के बारे में बताया. हॉस्पिटल के बारे में बताने के बाद उन्होंने कश्यप दम्पति को इस अस्पताल के सफल होने की शुभकामना दी.
भारती जी के बारे में सुनकर अच्छा लगा.
दत्त साहब के बाद दैनिक आज के नीलू जी बोले. उन्होंने भी साबित कर दिया कि ब्लागिंग कोई नई बात नहीं है. सम्पादक के नाम पत्र ब्लागिंग का ही एक रूप है. उसके बाद उन्होंने पत्रकारिता में ब्लागिंग के महत्व को समझाया. उन्होंने बताया कि किस तरह अमिताभ बच्चन जी के ब्लॉग पर लिखी गई पोस्टें पत्रकारों के लिए सहायक होती हैं. उन्हें वहां से स्टोरी मिलती रहती है. उसके अलावा अब तो हर अखबार एक कोना ब्लागिंग को समर्पित करता है.
माननीय पत्रकारों की बात सुनकर ब्लागिंग के बारे में हमारी गलतफहमी जाती रही.
....जारी है.
रांची ब्लागर मीट के आपके अनुभव को जानने की इच्छा थी .... एक भाग तो पढ लिया.....अब आगे का इंतजार है।
ReplyDeleteवाह भई, आँखो देखा हाल सुन कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteआगे की रपट का इंतजार है! हेल्दी माईंड के बारे में पढ़कार किंचित आश्चर्य सा हुआ। गलतफ़हमी के बारे में अभी हम कुछ न कहेंगे।
ReplyDeleteयानी इस बार मौज आपने ली . अनूप जी जो नही थे वहा :)
ReplyDeleteआँखो देखा हाल बडा ही रोचक रहा....आगे ???"
ReplyDeleteRegards
sir, reporting to achi rahi. ab agli report ka intjar hai
ReplyDeleteब्लागिंग मीट का दस्ताने ए हाल बडा ही रोचक रहा है आगे की प्रतीक्षा में
ReplyDeleteआगे की रपट का इंतजार है.....आँखो देखा हाल बडा ही रोचक रहा....
ReplyDeleteलवली से सारा किस्सा सुन ही चुके हैं, अब आपसे भी सुन रहे हैं..
ReplyDeleteपूरा सुनाईये तभी कमेंट बढ़िया से करेंगे.. :)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletereporting mein 'photos' nahin hain???
ReplyDelete'Yah to aankhon padha haal hai...photo dekhne ke baad kahengey ankhon dekhaa!'
बेहतरीन लिखा है।
ReplyDeleteधनबाद के पास ३ साल बिताने के कारण मैं भी क्वालिफाई करती हूँ शायद। पता नहीं क्यों इस ब्लॉगर मिलन के लेख पढ़ अपने छोटे से कस्बे की बहुत याद आ रही है।
घुघूती बासूती
बड़ी जोरदार मीट हो गई यह तो...
ReplyDelete" उन्होंने बताया कि मेरे ब्लॉग पर लगी मेरी तस्वीर मुझे मेरे असली रूप से दस साल बड़ा करके दिखाती है. "
ReplyDeleteआपत्ति...घोर आपत्ति मी लार्ड....हमें मनीष जी की इस टिपण्णी पर घोर आपत्ति है...हमें शिव का लिखा आंखों देखा हाल नहीं पढ़ना हमें मनीष जी की आँखें पढ़नी हैं...हमारी खींची फोटो पर उन्होंने उंगली उठाई है मी लार्ड...हम किता प्रयास कर के शिव की उम्र को केमरे से छुपाने में कामयाब हुए थे हम ही जानते हैं....और ये मनीषजी जी कह रहे हैं की अभी भी वो दस साल बड़े दीखते हैं उसमें...पहले ये स्पष्ट किया जाए की क्या उन्होंने शिव की खोपोली यात्रा के बाद उनके ब्लॉग पर लगी फोटो को देखा है? अगर नहीं तो हम अपना आरोप वापस ले लेते हैं...और यदि हाँ...तो उनपर मान हानी के मुक़दमे की तैय्यारी करते हैं....
ये क्षेत्र-वाद ब्लॉग में नहीं घुसना चाहिए...ये क्या की पूर्वी क्षेत्र के ब्लोग्गर को बुलाया और पश्चिम वालों को भूल गए...कल को पंजाबी ब्लोगर, बंगाली ब्लोगर, मराठी ब्लोगर समुदाय बन जाएगा...ब्लॉग समुदाय छोटे छोटे हिस्सों में विभक्त हो जाएगा...हम डर रहे हैं...इस क्रिया को रोका जाए...आप ब्लोगर मीट करें सब को बुलाएँ जो आना चाहे वो आए जो नहीं आ सके वो रह जाए...इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है...नहीं हम खिसियानी बिल्ली नहीं हैं...खम्बा नहीं नोच रहे...सच कह रहे हैं...
वर्णन बहुत सुंदर है....आगे की कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
नीरज
बहुत रोचक रहा यह ब्लाग मीट का वर्णन
ReplyDeleteतो हो आए आप रांची से. और! डाक्टर साहेब का बताए. कुछ परहेज-वरजेह तो नईं न कहे हैं बिलोगिंग से?
ReplyDeleteआपके मुम्बई यात्रा के बाद बहुत सुंदर यात्रा वृतांत ही कहेंगे इस मीट मे शिरकत को.
ReplyDeleteऔर हां एक जरुरी और काम की बात ये समझी कि ब्लागिंग से सन्यास बिना टंकी पर चढे नही लेना है.:)
रामराम.
आनंद आ रहा है। अगली किस्त भी पढ़ेंगे।
ReplyDeleteआप पर तीन इल्जाम है...
ReplyDeleteएक -आप ब्लोगर्स को भी हिस्सों में बाँट रहे है .पूर्वी भारत ...पश्चिमी भारत
दूसरा -आप बालकिशन जैसे लोगो को भी अपने साथ ले जाकर बिगाड़ रहे है
तीसरा -आपको अगली पोस्ट के बाद बताएँगे ...
मनीष जी बातो को सीरियसली न ले .ओर अपनी असली फोटो ब्लॉग पे लगाये ..
ये तो बहुत ही बड़िया मीट रही। हम मनीष जी से सहमत होने जा ही रहे थे कि नीरज जी की धमकी पढ़ ली। अब आप की लेटेस्ट तस्वीर देख कर ही बतायेगे कि दस साल आप को बोनस मिले कि नहीं । हम नीरज जी की बात से पूर्णतया सहमत हैं ये क्षेत्रवाद आने वाले संकट की निशानी है। इसे यहीं दबा देना चाहिए और भारत के चारों कोनों में ब्लोगर मीट का आयोजन करना चाहिए जिसमें सभी हिन्दी ब्लोगरस निमंत्रित हों
ReplyDeleteइसलिए कहते हैं,व्यंगकार बड़ा खतरनाक होता है,उसे साथ लेकर कहीं जाना नही चाहिए..अपनी एक्सरे निगाहों से क्या क्या देख डालेगा और फ़िर कागज पर क्या क्या उड़ेलेगा,पता नही.....खैर ,तू अगली खेप डाल कल ही....फ़िर सोचती हूँ आगे से तेरे साथ कहीं जाया जाय या नही.... ........
ReplyDeleteयह आपकी सूक्ष्म दृष्टि का कमाल है कि आप इतनी बारीकी से मीट का विश्लेषण कर ले रहे हैं. मनीष जी के योगदान कि प्रतीक्षा रहेगी. ब्लौगर्स के Healthy Mind पर आपको संदेह क्यों है!
ReplyDeleteरपट अच्छी है, शुरू में फिसले तो अंत तक पहुँच गए। कहीं बीच में नहीं अटके। अगले भाग पर रपटने का भी इरादा रखते हैं। इंतजार के साथ।
ReplyDeleteबहुत जानदार विवरण है। और "जारी है" में उत्सुकता की कंटिया भी फंसी हुई है।
ReplyDeleteहम फिलहाल कुछ नहीं बोलेंगे जी। आप अपनी बात पूरी कर लें तब बताएंगे। थोड़ा-बहुत ‘संचिका’ पर चेंप आए हैं। :)
ReplyDeleteVery Happy to read about this report on HINDI BLOGGERS :)
ReplyDelete" "अ कप ऑफ़ काफ़ी विद हेल्दी माइंड्स."
क्या बात है, सही है सही है।
ReplyDeleteअब लगता है छत्तीसगढ़ में एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर मीट का आयोजन करवाना ही पड़ेगा।
प्रस्ताव आगे बढ़ा दिया गया है उधर से आगे कब बढ़ेगा पता नई ;)
अरे आप तो जसदेव सिंह टाईप आंखो देखा हाल सुना रहे हैं एकदम लाईव ओरिजनल्।
ReplyDeleteआयोजन कि विस्तृत खोज खबर पढकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteक्वालीफाई से क्या तात्पर्य है क्या वहा पर कुश्ती होती है ?
शिव जी अपने चिरपरिचित लहज़े में बहुत खूब बयाँ किया है आपने इस कार्यक्रम के पहले हिस्से को।
ReplyDeleteनीरज भाई आज ही नेट की दुनिया में वापस लौटा हूँ।
आप बिल्कुल अपना आरोप वापस ले लें क्यूँकि मेरा इशारा शुरु के दिनों से लगी तसवीर से ही था। भला खापोली की सुंदर वादियों के बीच शिव जी का यौवन क्यूँ ना खिल उठेगा !:)
और हाँ नीरज जी बातचीत में आपके इलाके की खूबसूरती का भी जिक्र आया था।
मीट ब्लॉगर्स की थी या पत्रकारो की.. ससुर कोई ब्लॉगर तो बोला ही नही ब्लॉगारी पे.. ब्लॉगरो में पत्रकार कब से आ गये?? यदि पत्रकार ब्लॉगारी करे भी तो भी वे रहेंगे तो ब्लॉगर ही...
ReplyDelete