पिछली पोस्ट में मैंने लिखा था कि द्वितीय सर्ग के लिए तुकबंदी इकठ्ठा करने की कोशिश करूंगा. लीजिये, एक बार फिर डेढ़ सौ ग्राम तुकबंदी इकठ्ठा हो गई है. चुनाव-कथा के द्वितीय सर्ग के लिए. आप भी झेलिये.
शर्मराज ने आँखें खोली, और
शांत-मुख लेकर
बोले; "सुन लो भ्रात आज तुम
चित्त, कान सब देकर"
जिस रस्ते पर चलकर चाहो
सत्ता सुख को पाना
उसे चुनो और बुन डालो तुम
पक्का ताना-बाना
सच तो यह है आज राजसुख
उतना इजी नहीं है
इसे प्राप्त करने के हेतु ही
हर दल आज बिजी है
विकट सत्य को समझो कि यह
गठबंधन का युग है
विचलित न हो लोग कहें गर
'शठ-बंधन' का युग है
शर्म छोड़ कर शठ बन जाओ
खोजो और शठों को
अगर ज़रुरत हो तो चुन लो
कुछ धार्मिक मठों को
राजनीति हो अलग धर्म से
गीत सदा यह गाकर
प्राप्त करो सत्ता सुख को
'शठ-बंधन' धर्म निभाकर
शर्म से होती है सत्ता-नीति को हानि
....................शर्महीनता ही सत्ता-नीति का आधार है
एक बार शर्म छोड़ बेशर्म बन जाओ
................... और फिर देखो कैसे बढ़ता बाज़ार है
ले लो ज्ञान मुझसे और कूद पडो दंगल में
....................सत्ता पाने के लिए जुगत हज़ार है
बात सुनो भ्रात मेरी ध्यान-कान देकर तुम
....................तुम्हें ज्ञान देने को शर्मराज तैयार है
सबसे पहले बाँट डालो देशवासियों को तुम
....................इसके पश्चात अपने वोटर को चुन लो
कर समापन यह चुनाव पानी में उतारो नाव
...................वोटर को लुभाने के तरीके भी सुन लो
कर डालो वादे और खा डालो कस्में तुम
...................इन सारे तरीकों को शांत-चित्त गुन लो
इसके साथ पैसे और शराब का कम्बीनेशन हो
...................इसपे भी वोटर न रीझे, गुंडे भेज धुन दो
मुद्दा हो निकास का या आर्थिक विकास का हो
..................उसके बारे में भूल से भी मत बोलना
दलों का जो दलदल है उसको पहले निहारो
..................कितना कीचड़ है उसमें इसको तुम तोलना
अपने दल के कीचड़ को बाकी से तुलना कर
..................कसकर कमर को अपनी सीटों को मोलना
बारगेनिंग का कर हिसाब अगले की पढ़ किताब
..................उतरकर दलदल में तुम धीरे-धीरे डोलना
चुनाव के मंचों पर तो साथ में दिखना, परन्तु
..................विपक्षी के साथ भी तुम रखना रिलेशन
जाने कौन काम आये चुनाव परिणाम बाद
..................असली सत्ता सुख का ये पहला कंडीशन
इसके साथ-साथ याद रखना पहले पाठ को तुम
..................जिससे मिले एंट्री का क्वालिफिकेशन
नारों और गानों की लिस्ट तैयार कर
..................सुबह-शाम करते रहना उनका रेंन्डीशन
धर्मनिरपेक्षता पर खतरे की बातें करो
..................जो भी तुम चाहोगे वही हो जायेगा
देश को बचाने का रच डालो स्वांग गर
..................राजधर्म कोसों दूर पीछे रह जायेगा
सत्ता में आने के बाद भत्ता हड़प डालो
..................जनता हलकान हो पर प्लान फल जायेगा
धरते पकड़ते रहो दल और नेताओं को बस
..................राज करो पांच साल, देश चल जायेगा
साथी दल को संग लेकर लड़ लो चुनाव किन्तु
..................कहीं-कहीं उन्ही संग 'फ्रेंडली' कंटेस्ट हो
ट्राई कर लंगी मार उनको गिरा डालो
..................अगर उस सीट पर भी उनका इंटेरेस्ट हो
इससे भी न काम बने दो-चार कैंडीडेट खोज
..................उनको खड़ा करने का इंतजाम परफेक्ट हो
भ्रात सारे घात सीख उतरो मैदान में तुम
..................मेरी तरफ से तुमको आल द बेस्ट हो
शर्मराज की बात सुनी और लेकर उनका ज्ञान
बेशर्मी पर उतर गए और शुरू हुआ अभियान
पढ़कर, पांच मिनट से चुप चाप बैठ शब्द खोज रही हूँ कि क्या कहूँ इसपर,पर कुछ समझ नहीं आ रहा.....
ReplyDeleteजियो !!!
वीभत्स चित्रण... गंदी राजनीति क़ी पोल खोल दी आपने तो
ReplyDeleteयाचना नहीं, अब गर्मी होगी।
ReplyDeleteदिग दिगन्त बेशर्मी होगी।
शर्मराज अब बोलेगा।
नोटों का थैला खोलेगा! :)
sirf wah aur iske alawa kuchh nahi.
ReplyDeleteधन्य हो प्रभु ! हे ! आधुनिक दिनकर आपने हमारी आंखें खोल दीं .
ReplyDelete’याचना नहीं अब रण होगा’ के स्थान पर लगता है :
याचना नहीं अब ’पण्य’ होगा
जनता का मोल ’नगण्य’ होगा ।
विद्वान जुबां नहिं खोलेंगे
नेता ही नेता बोलेंगे ।
व्यापारी दल्ले सब होंगे
मर्कट की नाईं ढब होंगे ।
अब कौवे गाना गाएंगे
दरबारी राग सुनाएंगे ।
कोयल को लौट आम्रवन है
पर हमें कौन-सा कानन है ?
सो हे मानवश्रेष्ठ! हे नरपुंगव!
आम चुनाव सामने है . मतदान ज़रूर करें और सोच समझ कर करें .
याद पढता है बंधू हम जिस सरकारी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ( जिसे अब ग्रहण लग चुका है) उसकी गिरती दीवारों पर सुन्दर शब्दों में नारे लिखे रहते थे जैसे की .."सदा सच बोलो".... "ईमानदारी बहुमूल्य गहना है"..."सदा दूसरों की मदद करो" आदि...इत्यादि...जो अब फिजूल के लगते हैं...बहुत से लोग जो अब मूर्ख कहलाते हैं, सोचते हैं की क्यूँ उन नारों को अपना कर अपना जीवन नष्ट किया...
ReplyDeleteमेरा हर राज्य के शिक्षा मंत्री से अनुरोध है की आप की इस कविता का एक एक छंद प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं की दीवारों पर तुंरत प्रभाव से लिखवा देना चाहिए....ताकि आने वाली नस्लें मूर्ख ना कहलायें...बल्कि इसे ताम्र पात्र पर लिखवा कर ज़मीन में गड़वा देना चाहिए ताकि सदियों बाद अगर ये खुदाई में मिले तो भविष्य के लोगों को पता चले की हम कब से महानता की श्रेणी में आ चुके थे...इसकी प्रतिलिपि चाँद और मंगल ग्रह पर भेजने के बारे में भी गंभीरता से सोचा जाना चाहिए...हमें अपने बारे में दूर ग्रह के प्राणियों को भी तो बताना चाहिए ना...
आप नहीं जानते आपने गुरुदेव रबिन्द्र नाथ की तरह उस गीत की रचना कर डाली है जिसे हम भविष्य में रास्ट्र गीत के रूप में गाने वाले हैं...
धन्य हैं आप दूर द्रष्टा जी... आप को मेरा नमन.
नीरज
आपने तो बहुत सारे रहस्य खोल दिए
ReplyDeleteजय हो! जय हो! जय हो!
ReplyDeleteप्रभो आपके इन वचनामृत का प्याला पी कर...... अर् र र .... माफ़ कीजिये पढ़ कर हम कृतार्थ हुए.
इस कविता के माध्यम से आपने बहुतो के ज्ञानचक्षु खोल दिये हैं.
आपसे विनम्र निवेदन है की चुनाव तक ये क्लास यूँही चालू रखिये. कईयों का भला हो जायेगा.
बहुत से गुर सिखा दिए आपने बात की बात में.
आप निश्चय ही बधाई और प्रशंशा के पात्र है.
ग्रहण कीजिये.
हम कनफुसिया गए मिश्र जी ऐसा लगा भेष बदल कर विवेक आपके ब्लॉग पर लिख रहा है.....आप तो कवि बन गये.
ReplyDeleteअब कौवे गाना गाएंगे
ReplyDeleteदरबारी राग सुनाएंगे
उम्दा आनंद आ गया आल्हा की स्टाइल में ... मिश्र जी बधाई आपको
अब कौवे गाना गाएंगे
ReplyDeleteदरबारी राग सुनाएंगे
ये लेने ब्लॉग जगत के कुछ ब्लागरो पर भी लागू होती है . कौवे गाना सुनाते है वाहवाही लूटते है और दरबारी ब्लॉगर (शुद्ध भाषा इन्हें चम्मच कह सकते है ) कूकर राग अलापते है .
शर्मराज की बात सुनकर शर्माजी भी शरमा गए और अपने श्रम से चुनाव में शर्मसार हो गए:)
ReplyDeleteभारतीय चुनावो की एक अजीब बात यह है कि चाहे जैसे गुण्डे, मवाली, बदमाश और माफ़िया हों; यदि वे चुनाव जीत लेते हैं तो मीडिया से लेकर बड़े-बड़े बुद्धिजीवी भी ‘जनादेश’ को सिर माथे लगाकर वोटरों की भुरि-भूरि प्रशंसा करने लगते हैं। त्रिशंकु संसद चुनी जाय या स्पष्ट बहुमत आ जाय उसको जनता का सही निर्णय बताने से नहीं थकते ये बुद्धिजीवी। जबकि सच्चाई यह है कि ये वोटर भी अपने वोट के प्रयोग के समय उतनी ही घटिया सोच रखता है जितने घटिया आजकल के प्रत्याशी होते हैं। उम्मीदवार यदि अपनी जाति का हो, रिश्तेदारी का हो, बड़ा गुण्डा हो, धनपशु हो तो यह उसकी योग्यता है। अगर अपने परिचय का हो तो उसके लिए प्रचार भी कर आएंगे। जो खुद ही दीन हीन होगा वह हमारी क्या मदद करेगा? इसलिए उसे चुनते हैं जो सभी सम्साधनोम से लैस हो। वोटिंग से ठीक पहले यदि वह दारू और पैसा दे गया तो पाँच साल के लिए उसके हाथ में देश सौंप देने में ये जरा भी नहीं हिचकते। ...फ़लानी भले ही कुछ नहीं करेगी लेकिन हमारी दुश्मन जाति को चार जूते लगाने की बात तो करती है। ...साड़ी कपड़ा बटोरने का मौका जो दे रहा है उसको वोट न दें तो किसे दें।
ReplyDeleteगोरखपुर में वोटरों ने मजा लेने के लिए एक हिजड़े को मेयर चुन लिया। पाँच साल तक उसने जमकर अपनी अयोग्यता से खजाना लुटने दिया। एक घर बनवाकर उसमें नये पर्दे वगैरह लग गये। बाकी अधिकारियों ने जैसे चाहा खजाना लूटा। कोई विजन नहीं लेकिन महानगर का प्रथम नागरिक बना दिया उसे। घूमघूमकर कहता रहा कि मैं जानता हूँ जनता मुझे दुबारा नहीं चुनेगी इसलिए पुश्तैनी धन्धा बन्द नहीं करूंगा। काठ की हाँड़ी एक ही बार चढ़ती है।
आपने जो बेशर्मी की बातें गिनायी हैं उसमें से अधिकांश इसलिए सच हो रही हैं क्योंकि वोटर भी उतना ही घोंचू, मक्कार, लालची, अकर्मण्य और बेशर्म है। जो बहुत जागरूक और बुद्धिमान हैं वे वोट डालने ही नहीं जाते। केवल घर बैठकर टीवी देखते और नेताओं को कोसते रहते हैं।
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया का ‘लीड इण्डिया कैम्पेन’ कहाँ विलुप्त हो गया?
बेहतरीन रचना है शिवजी। सच...नेता जितने गिरते जाते हैं उन्हें ज़लील करने के लिए लेखक को रचना का स्तर उतना ही ऊपर उठाना पड़ता है। वो शर्मप्रूफ हो गए हैं बावजूद इसके हमें तो कोशिश करनी चाहिए और क्या शानदार कोशिश की है आपने।
ReplyDeleteगिरते गिरते गिर गए,
ReplyDeleteऔर गिरते जा रहे।
..... आगे तो सब जानते हैं कि गिरने को उनके गढ्ढा भी न बचा।
ये तो बहुत ही सामयिक रचना है. चुनाव के मौसम मे लाजवाब लिख दिया आपने.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत अच्छी पड़ताल हो गयी जी। पढ़कर मजा आ गया। सभी टिप्पणीकर्ताओं से सहमत होते हुए आपको स्थापित कवि की उपाधि दी जाती है। बधाई।
ReplyDeleteशिव भाई,
ReplyDeleteबहुत अच्छे !!
शाबाश , जीते रहो ..
स स्नेह आशिष व हार्दिक बधाई
आपकी बडी बहन,
- लावण्या
ले लो ज्ञान मुझसे और कूद पडो दंगल में
ReplyDelete...सत्ता पाने के लिए जुगत हज़ार है .....
-आ रहे हैं २२ को ज्ञान लेने.
बेहतरीन रचना!!सच में आपको स्थापित कवि की उपाधि दी जाती है. :)
कविराज की जय हो! जय हो! जय हो!
ReplyDeleteलोकतंत्र : जैसी प्रजा वैसा राजा.
ReplyDeleteगुझिया सम्मलेन में 'जारी रहेगा' लिखकर पहले अखबार और अब राजनीति में उलझ गए आप. वैसे आजकल यही ट्रेंड इस मीडिया और राजनीति :-)
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