लोकतंत्र के कई खंबे हैं. पहला है. दूसरा है. तीसरा है. चौथा भी है जो कभी-कभी पहला बनने की कोशिश करता है. सोमनाथ बाबू हाल के वर्षों में तीसरे के पहले बनने की कोशिशों से चिंतित दीखते थे. तीसरा इसलिए चिंतित रहता है कि पहला अपने स्थान पर दिखाई नहीं देता.
ऐसी चिंता अतिक्रमण को बढ़ावा देती थी.
ये तो खंबों की बातें हैं. लेकिन लोकतंत्र की नींव क्या है? नींव समय के हिसाब से बदलती रहती है. ऐसा केवल लोकतंत्रीय नींव में होता है. जैसे चुनाव के वक्त उल्लंघन ही असली नींव होती है. नेता चुनावी-मुद्रा में आया नहीं कि हलकान होते हुए उल्लंघन करने लगता है.
चुनावी-मुद्रा को किसी हालत में छायावादी दृष्टिकोण से मत देखिये. यह न सोचिये कि चुनावी-मुद्रा का मतलब चुनाव में बाँटीं जाने वाली मुद्रा से है. मेरे कहने का मतलब केवल इतना है कि चुनावों के दौरान नेता की मुख-मुद्रा भी तो बदलती रहती हैं. सुख-मुद्रा, मतलब करेंसी तो निकलने ही लगती है. मुद्राओं की कमी थोड़े न है.
आचार संहिता का उल्लंघन करने से साबित होता है कि लोकतंत्रीय व्यवस्था पक्की है. ऐसे उल्लंघन न हों तो पता ही न चले कि लोकतंत्र के सारे खंबे खड़े हुए हैं. सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है.
अब देखिये न, नेता उल्लंघन करता है. चुनाव आयोग जवाब मांगता है. वकील मुकदमा दायर करता है. जज साहब एंटीसिपेटरी बेल देते हैं. मीडिया रिपोर्टिंग करता है. लोकतंत्र का वृत्तचित्र पूरा हो जाता है. ऐसी और कौन सी क्रिया होगी जिसकी वजह से लोकतंत्र के जिन्दा रहने का सुबूत मिलता है? मानते हैं न, कि नहीं होगी.
आनेवाले समय में आचार संहिता का उल्लंघन किसी भी नेता के बायोडाटा में एक ऐडेड एडवांटेज का सुबूत माना जायेगा. अब वो ज़माना धीरे-धीरे जा रहा है जब पार्टियाँ बदलने वाला नेता ही असली नेता होता था. अजीत सिंह जी तक को लोगों ने अब असली नेता मानने से इनकार कर दिया है.
आप पूछेंगे कि वो क्यों? इसका जवाब यह है कि वे बेचारे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं कर पाते न.
आनेवाले समय में किसी भी नेता द्बारा आचार संहिता के उल्लंघन का रेकॉर्ड्स ही उस नेता को नए दलों के साथ जुड़ने का कारगर माध्यम बनेगा. नेता जी टिकट न पाकर असंतुष्ट होंगे तो किसी दूसरे दल में शामिल होने जायेंगे. जिस दल में जाना चाहेंगे उसके अध्यक्ष बोलेंगे; "कैसे लें आपको अपने दल में? आपने तो पिछले दो चुनावों में एक बार भी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया?"
नेता जी यह सुनकर शरमा जायेंगे. हो सकता है मुंह लटका कर वापस आ जाएँ. यह भी हो सकता है कि बोल उठें; "ये तो हमसे गलती हो गई. लेकिन आप चिंता न करें, अब आपके दल में आ गए हैं तो अगले तीन-चार दिन में ही दस-बारह बार आचार संहिता का उल्लंघन कर डालेंगे. बस, आप हमें अपने दल में शामिल कर लें."
अध्यक्ष जी बोलेंगे; "लेकिन आपका भरोसा कैसे कर लें? कैसे मान लें कि आप जल्द ही आचार संहिता का उल्लंघन करेंगे?"
नेता जी बोलेंगे; "इतना तो विश्वास करना ही पड़ेगा आपको. आखिर मैं एक नेता हूँ. वैसे भी पहले में प्रतिक्रियावादी ताकतों के साथ था. अब मैं सेकुलर हो गया हूँ. जिसने विचार संहिता का उल्लंघन कर डाला, उसे आचार संहिता का उल्लंघन करने में कितनी देर लगेगी?"
अध्यक्ष जी यह सुनकर संतुष्ट हो जायेंगे. नेता जी को अपने दल में शामिल कर उन्हें सेकुलर बना डालेंगे.
कल्पना कीजिये कि कैसे-कैसे सीन देखने को मिल सकते हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी की मीटिंग हो रही है. चुनाव प्रभारी उपस्थित नेताओं को लताड़ते हुए कह रहे हैं; "लानत है. पंद्रह दिन हो गए आचार संहिता लागू हुए. विपक्षी पार्टियों के बत्तीस नेताओं ने संहिता का उल्लंघन किया. एक हमारी पार्टी है, जिसकी तरफ से एक बार भी उल्लंघन नहीं हुआ. ऐसे कैसे चलेगा?"
उपस्थित नेता सफाई देते हुए हलकान हो रहे हैं. एक नेता कह रहा है; "आप चिंता न करें. आज से ही हमारे नेता आचार संहिता का उल्लंघन करना शुरू कर देंगे."
चुनाव प्रभारी और खीज उठेंगे. बोलेंगे; " आचार संहिता का उल्लंघन सबसे पहले पैसा बांटने से शुरू होता है. फिर इलाके के कलेक्टर वगैरह को गाली देनी पड़ती है. विपक्ष के न जाने कितने नेताओं ने यह काम पहले ही कर डाला. अब चुनाव आयोग इन मामलों पर दृष्टि जमाये हुए है. हमारे हाथ से उल्लंघन करने के दो तरीके तो निकल गए न."
उपस्थिति नेताओं में से एक कहेंगा; " वो बात तो है. लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. एक काम करते हैं. किसी कंसल्टेंट को हायर करके यह पता लगवाने की कोशिश की जाय कि अचार संहिता के उल्लंघन के लिए क्या-क्या काम किये जा सकते हैं जो बाकी पार्टियाँ नहीं कर रही हैं. जो पैसा लगेगा उसकी चिंता न करें. फंड की कमी नहीं है."
पार्टी किसी कंसल्टेंट को हायर करने की कवायद शुरू कर देगी. कंसल्टेंट स्टडी करके अचार संहिता के उल्लंघन के कुल पैंतालीस तरीके बता डालेंगे. वो भी लिखित. पार्टी के नेता खुश होकर उल्लंघन करना शुरू कर देंगे.
पार्टियों में एक अलग ही सेल होगा. जैसे पार्टी के माएनोरिटी सेल, मेजोरिटी सेल, इकनॉमिक सेल वगैरह होते हैं वैसे ही अचार संहिता उल्लंघन सेल होगा. इस सेल के हेड ऐसे नेता बनेंगे जिनके ऊपर चुनावों के दौरान अचार संहिता उल्लंघन के कम से कम पचास मामले पहले से दर्ज हों.
उल्लंघन करने की नीति को एक अलग ही आयाम मिलेगा. लोकतंत्र पुख्ता होता जायेगा. पुख्ता...और पुख्ता.
जिसने विचार संहिता का उल्लंघन कर डाला, उसे आचार संहिता का उल्लंघन करने में कितनी देर लगेगी?"
ReplyDeleteis line ke liye to 100 no... bahut hi dhansu likh mara hai..
हम तो अभी ब्लोग अचार संहिता का उलघंन करने के चक्कर मे ही व्यस्त है . जरा बताये कि ये कार्य आपको गरियाने से पूर्ण हो जायेगा क्या ? पैसा बाटने जसे तुच्छ कार्यो से हम जरा दूर ही रहना चाहते है फ़िलहाल हम ब्लोग जगत को ही पुखता करने के कार्य मे जुटे है :)
ReplyDeleteआसंउसे (अचार संहिता उल्लंघन सेल) का हेड ही पार्टी के जीतने पर प्रधान मन्त्री बनेगा। यह तो शायद सर्वमान्य अलिखित नियम है! :)
ReplyDeleteबहुत ज्यादा ही पुख़ता दिख दिया...
ReplyDeleteवास्तव में चारों खम्भे सक्रीय रहे इसकी जिम्मेदारी हमारे जिम्मेदार नेताओं पर ही है. इसके लिए कुछ भी गलत करना कोई गलत नहीं है.
हमारे बारे में एक बात मशहूर है...हम अचार के बहुत शौकीन हैं...आम का हो...हरी/लाल मिर्च का हो...नीम्बू अदरक का हो...या मिला जुला पचरंगी हो...इसे देखते ही हमारी लार टपकने लगती है....सबसे पहले हमारी दृष्टि अचार पर ही पड़ती है...संहिता पर तो जाती ही नहीं...इसलिए हम अचार का नहीं संहिता का उलंघन करते रहते हैं...
ReplyDeleteअब आप कहेंगे की भैय्या ये क्या कमेन्ट हुआ...??? तो हम कहेंगे की बंधू ये आप जानो...क्या हुआ क्या नहीं हुआ...इतनी ही समझ होती तो ब्लोगिंग छोड़ कोई दूसरा काम न कर लेते...
( वैसे ये आपकी पोस्ट पर कमेन्ट नहीं है...हमारा अनर्गल प्रलाप है...हम नेता बनने की प्रेक्टिस जो कर रहे हैं...जिसमें कभी मुद्दे पर कमेन्ट नहीं किया जाता...सिर्फ अनर्गल प्रलाप ही किया जाता है )
नीरज
खेल चल रहा है, आओ जनतंतर-जनतंतर खेलें। बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
ReplyDeleteदेखिए जी, उल्लंघन तो हमारी महान परम्परा का अति महान हिस्सा है. हमारा इतिहास केवल उन्हीं लोगों को समेट कर आगे बढ़ता है जो अपने समय में किसी बड़ी चीज़ का उल्लंघन कर सके. अब देखिए, हनुमान जी को कौन जानता अगर उन्होने समुद्र का उल्लंघन न किया होता? कौन जानता दुशासन जी को अगर उन्होने द्रौपदी की चीर का उल्लंघन न किया होता? गनही महात्मा को कौन जानता अगर उन्होने नमक कानून का उल्लंघन न किया होता? और सोचिए, शिव कुमार मिसरे को कौन जानता अगर ऊ चारो खंबों की तथाकथित मर्यादाओं का उल्लंघन करके सबकी ऐसी-तैसी न करते होते?
ReplyDeleteऔर पांडे जी को असंउसे के गठन के लिए बधाई. हमारी शुभकामनाएं हमेशा उनके साथ रहेंगी.
वैसे ही अचार संहिता उल्लंघन सेल होगा. इस सेल के हेड ऐसे नेता बनेंगे जिनके ऊपर चुनावों के दौरान अचार संहिता उल्लंघन के कम से कम पचास मामले पहले से दर्ज हों.
ReplyDeleteवाह वाह आज मंदी मे आपने हमारी चिंताएं दूर करदी. अब ताऊ बेरोजगार नही होगा.:)
रामराम.
सही है ,यह खेल तो ऐसे ही चलेगा .
ReplyDelete"एक हमारी पार्टी है, जिसकी तरफ से एक बार भी उल्लंघन नहीं हुआ. ऐसे कैसे चलेगा?" जनता कैसे मानेगी की हमारी पार्टी कुछ करा रही है और मिडिया में भी तो आना है "ऐसा बिलकुल नहीं चलेगा" जल्दी से आप लोग कुछ करे .
ReplyDeleteक्या लोकत्रंत होगा ऐसे समाज में .
आचार विचार और संहिता ही मान लिया तो लोकतंत्र कैसा?????
ReplyDeleteबड़ा ही सटीक आकलन किया है....
भला हो इस आचार संहिता का - चारों खम्बे चित्त हो गए:)
ReplyDeleteमुझे लगता है कि यह पोस्ट कहीं आचार संहिता उल्लंघन की प्रेरणा देने वाली मील की पत्थर पोस्ट न बन जाये!
ReplyDeletejay ho...jai ho...jai ho....shiv ji kee jay ho gyaan ji kee jai ho....hamaare baare men bhi kucchh sochiye naa ham bhi vahin jaa rahe hain....ham vahaan kya kar paayenge....??
ReplyDeleteसही कह रहे हैं, वो नेता ही क्या जो आचार संहिता का उल्लंघन न करे और वो धर्मनिरपेक्षी ही क्या जो हिन्दुओं को गाली न दे.
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ReplyDeleteऔर रोजगार के नए नए क्षेत्रों का विकास होगा।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
मै अब क्या कहू भगवन !!! कुछ बोलुगा तो आचार खाना पडेगा। क्यो कि आचार सहिता जो लागु है और टिकट के झुगाड मे ताऊ को लगा रखा है। अब ताऊ एक टिकट का पॉच खोका माग रहा है, ताऊ को बोला थोडा रहम करो भाई, तो ताऊ कहता ज्यादा किट-किट नही करने का ? आचार सहिता लागु है कोई सुन लेगा तो लेने के देने पड जाऐगे।
ReplyDeleteudan tashtari ke lekh ke jariye aap ke blog par pahuncha hoon. lekh padkar achchha laga. badhaai ho
ReplyDeleteitni nirasha thik nahin. samay badla hai aur bhi badlega- hamsabko aisa vishvas rakhna chahie.
ReplyDeleteआचार संहिता है तो उसका उल्लंघन भी है । यही तो है पुख्ता लोकतंत्र ।
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